Plato the father of Western Philosophy in hindi,प्लेटो-पश्चिमी दर्शन के पिता,

Political Science

प्लेटो का जन्म 427 ईसा पूर्व एथेंस में एक कुलीन परिवार में हुआ था उसका वास्तविक नाम एरिस्टोकल था! उसके पिता का ऐरिस्टन तथा माता का नाम परिक्ष्ने था । प्लेटो की एक बहन तथा दो भाई थे । प्लेटो ने अपना अध्ययन संगीत गणित कविता तथा रियोट्रिक में किया उसने अपने जीवनकाल में तीन युद्ध जीते जिससे उसे बहादुरी की उपाधि मिली। उसने जीवनपर्यंत विवाह नहीं किया!

प्लेटो, सुकरात से 20 वर्ष की उम्र में मिला, उसके विचारो से प्रभावित होकर उसे गुरु बना लिया! 399 ईस्वी पूर्व सुकरात को दी गई सजा ने उसका जीवन ही बदल दिया अपने गुरु की मौत से उसको गहरा धक्का लगा! वह कवि बनना चाहता था, पर अब उसने सुकरात को निर्दोष साबित करने के लिए लिखना शुरू कर दिया।

404 ईसा पूर्व एथेंस में कुलीनतंत्रों का शासन स्थापित हुआ! 387 ईसापूर्व में वह पाइथागोरस से मिला जो एक विचारक गणितज्ञ एवं राजनीतिज्ञ थे! 386 में वह वापस लौटा।

Athens and srpata -प्लेटो जीवन परिचय, सिद्धांत और पुस्तके

यहाँ एक मानचित्र दिया गया है ताकि आपको यह समझने में आसानी रही की प्लेटो जिस समय थे! उस समय यूनान के दो प्रमुख शहरो की बात पढ़ने को मिलती है जिनके नाम एथेंस और स्पार्टा था ! इसे आप भारत के दिल्ली और मुंबई जैसे शहर मान सकते है! विकसित और एक मॉडल को फॉलो करने वाले जहाँ पर अधिकार का मतलब एक विशेष जगह पर अधिकार होना था जो महत्वपूर्ण है ! जब एथेंस में कुलीन तंत्र आ गया तो प्लेटो ने वो जगह छोड़ दी और वह लोकतंत्र की स्थापना कर सके इस लिए उसने एक अकादमी की नीव रखी ताकि आने वाले युवाओ को वह दार्शनिक राजा के रूप में आकर दे सके !

प्लेटो ने किस अकादमी की और क्यों स्थापना की?-Which academy did Plato establish and why?

प्लेटो का मानना था कि ज्ञान विशुद्ध रूप से आंतरिक प्रतिबिंब का परिणाम नहीं था, बल्कि अवलोकन के माध्यम से मांगा जा सकता था और इसलिए, दूसरों को सिखाया जाता था। इसी विश्वास के आधार पर प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध अकादमी की स्थापना की।

प्लेटोनिक अकादमी, या  “अकादमी”, शहर की दीवारों के बाहर, एथेंस के उत्तर-पश्चिमी बाहरी इलाके में स्थित 387 ईसा पूर्व में प्लेटो द्वारा स्थापित प्राचीन एथेंस में एक प्रसिद्ध स्कूल था। साइट ने अपना नाम महान नायक एकेडेमोस से प्राप्त किया।

प्लेटो ने अपने जीवन का अधिकतम समय अकादमी को दिया तथा उसने 367 ईसा पूर्व में सिसली की यात्रा की तथा उसने डायनोसिस को एक दार्शनिक राजा बनाने का प्रयास किया जिसमें वह असफल रहा। प्लेटो की मृत्यु उसके एक शिष्य की शादी के अवसर पर 347 ईसा पूर्व हुई ।

“Oligarchy या कुलीन तंत्र का अर्थ होता है जहाँ सत्ता कुछ लोगो जो राजा या रहीस व्यापारी, या चर्च के पादरी आदि हो मतलब आम लोगो का सत्ता पर न तो अधिकार होता है न भागीदारी! कुछ गिने चुने लोग सत्ता को चलाते है और उससे जुड़े फैसले लेते है !”

प्लेटो लोकतंत्र के समर्थक थे वे चाहते थे की शासन लोगो की भलाई के काम करे जो बिना लोगो के साथ के संभव नहीं हो सकता ! इसके लिए राजा को पढ़ा लिखा संवेदनशील होना चाहिए ! नहीं तो वह पढ़े लिखे लोगो को जहर देकर मार देंगे ताकि लोगो में बुद्धि का विकास न हो सके वे अनपढ़ और उनके इशारो पर चलने वाले बने रहे !

प्लेटो द्वारा पश्चिमी दर्शन में योगदान-प्लेटो का मुख्य विचार क्या  था?

प्लेटो का मानना है कि समाज के विभिन्न हिस्सों के परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। सबसे अच्छी, तर्कसंगत और धर्मी, राजनीतिक व्यवस्था, जो वह प्रस्तावित करता है, समाज की सामंजस्यपूर्ण एकता की ओर ले जाती है और इसके प्रत्येक हिस्से को फलने-फूलने देती है, लेकिन दूसरों की कीमत पर नहीं।

 “प्लेटो की लेखन शैली संवादात्मक मतलब डायलॉग की फोम में है ! जैसे कोई प्रश्न करे और दूसरा व्यक्ति उसका उत्तर दे ! आप अगर यह पोस्ट पढ़ रहे है, तो यह एक विवरण की तरह लिखा गया है ! प्लेटो ने कैसे जीवन जिया और क्या क्या लिखा उसका फायदा या नुक्सान क्या और कैसे है ! “ 

प्लेटो ने अपनी सोच में द्वंद्वात्मक, विश्लेषणात्मक, परक्राम्य, निगमनात्मक, अनुरूप और ऐतिहासिक आदि सभी विधियों का उपयोग किया है।

“द्वन्द का मतलब होता है मानसिक संघर्ष; कीनिह दो लोगो के बीच विचारो का संघर्ष द्वंदात्मक शैली कहलाती है !” 
Plato has used all the methods in his thinking like dialectical, analytical, negotiable, deductive, analogous and historical etc.  

आप अगर अभी भी नहीं समझे तो एक उदहारण लेते है जैसे एक विचार आया, मान लीजिये आपने(A) कहा राजा को दयालु और गंभीर होना चाहिए, तभी वो एक अच्छा राजा बन सकता है! आपके साथी(बी ) ने कहा की अगर वो गभीर होगा तो हास्य विनोद यानि मनोरंजन को रोक देगा या बैन कर देगा ! परन्तु एक अच्छा जीवन जीने के लिए मनोरंजन भी तो जरुरी है मतलब राजा के गुणों में दया, गभीरता और विनोदी स्वभाव भी होना चाहिए ! यह रिजल्ट या परिणाम निकला इस द्वन्द या विचारो के संघर्ष का !

यह प्रथा हम आज कल लोकतान्त्रिक व्यवस्था में देखते है एक विधेयक आया पटल पर, बहस हुई अच्छी बात या सुझाव मान लिया गया और अब जो आपके पास है उससे ज्यादा लोगो को फायदा पहुंचाने का काम होगा !

इसलिए प्लेटो का सबसे बड़ा योगदान उनकी कृति रिपब्लिक को मन जाता है क्योकि इसमें उन्होंने  राज्य में सद्भाव और व्यक्ति में सद्भाव के बीच एक व्यावहारिक सादृश्य विकसित किया, और इसे अक्सर अब तक लिखे गए सबसे महान कार्यों में से एक माना जाता है। प्लेटो ने ऐसे संवाद लिखे जो स्वयं सद्गुण की प्रकृति के साथ-साथ विशेष गुणों की प्रकृति को भी मानते थे।

प्लेटो के सिद्धांत: न्याय, शिक्षा और साम्यवाद का सिद्धांत

प्लेटो ने अपने चिंतन में द्वंदात्मक, विश्लेषणात्मक, सौदेश्यात्मक निगमनात्मक, सादृश्यात्मक तथा ऐतिहासिक आदि सभी पद्धतियों का प्रयोग किया है।

ज्ञान मीमांसा
रिपब्लिक के छठे अध्याय में प्लेटो ने ज्ञान को चार भागों में विभक्त किया
1. काल्पनिक ज्ञान
2. व्यवहारिक ज्ञान या इंद्रिय ज्ञान 3. बौद्धिक या परिकल्पनात्मक ज्ञान
4. विवेकात्मक बौधज्ञान
 
न्याय संबंधी विभिन्न विचार
 
सिफेल्स के अनुसार “न्याय सत्य भाषण और ऋण भुगतान में निहित है।”
 
पोलीमार्क्स के अनुसार “न्याय मित्रों के साथ भलाई एवं शत्रु के साथ बुराई करने की कला है।”
 
थेमीक्रेस के अनुसार “न्याय बलवान की स्वार्थ सिद्धि का साधन है।”
 
ग्लूकॉन के अनुसार “न्याय निर्बलों की आवश्यकता है।”
 
प्लेटो के अनुसार “समाज में प्रत्येक व्यक्ति को वह उपलब्ध हो जो उसको प्राप्य हो ।”
 
3. प्लेटो के राज्य संबंधी विचार
 
राज्य की उत्पत्ति प्लेटो के अनुसार राज्य की उत्पत्ति तीन चरणों में हुई है:
प्रथम चरण राज्य मानव समाज की आवश्यकताओं से उत्पन्न होता है। राज्य की आर्थिक जरूरतों के लिए तथा भरण पोषण के लिए उत्पादकों की जरूरत होती है। अर्थात पहले चरण में प्रोडक्टिव क्लास का जन्म हुआ ।
 
द्वितीय चरण – राज्य की उत्पत्ति का दूसरा चरण उत्साह है। मात्र आर्थिक जरूरतों से मनुष्य संतुष्ट नहीं हो जाता उसमें प्रतिस्पर्धा एवं उत्साह जैसी भावनाएं होती है। तथा जनसंख्या वृद्धि के साथ अधिक लोगों का भरण पोषण करने के लिए सैनिक वर्ग की जरूरत पड़ी। यह वर्ग युद्ध द्वारा क्षेत्र को जीतकर धन एकत्र करते हैं तथा अपने लोगों की रक्षा करते हैं। 
 
तृतीय चरण सैनिक वर्ग में ही कुछ लोगों में साहस के साथ विवेक की मात्रा अधिक होती है! अत: वह शासकीय कार्यों में भाग ले सकते हैं । अतः उपरोक्त तीन चरणों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि राज्य का निर्माण तीन गुणों क्षुब्धा, साहस तथा विवेक के आधार पर राज्य की तीन मूल आवश्यकताओं प्रोडक्शन, डिफेंस तथा रूल के लिए हुइ ।
 
आदर्श राज्य की विशेषताएं
 
न्याय राज्य की आधारशिला होगी न्याय से अभिप्राय प्रत्येक वर्ग अपने अपने कार्यों को बिना दूसरों के  कार्यों में दखल दिए करेंगे। शिक्षा आदर्श राज्य का आधार स्तंभ क्योंकि शिक्षा द्वारा व्यक्ति को राज्य के अनुकूल बनाया जा सकेगा । आदर्श राज्य में शिक्षा राज्य द्वारा दी जाएगी स्त्री एवं पुरुषों के लिए एक प्रकार की शिक्षा दी जाएगी जिसका उद्देश्य शारीरिक एवं मानसिक विकास, व्यक्तियों को राज्य का उत्तम नागरिक बनाना, दार्शनिक राजा तैयार करना ।
 
साम्यवाद पर आधारित राज्य 
 
राज्य संचालन दार्शनिक राजा द्वारा किया जाएगा।
 
 प्लेटो का न्याय सिद्धांत
 
प्लेटो के आदर्श राज्य का आधार ही न्याय है। प्लेटो ने न्याय का सिद्धांत लोगों को कोरे व्यक्तिवाद से बचाने, कार्यों के विशिष्टीकरण द्वारा अक्षमता को दूर कर राज्य में स्थिरता प्रदान करने के लिए दिया।
 
प्लेटो के न्याय का संबंध कानून से नहीं नैतिकता से है। प्लेटो के अनुसार न्याय का अर्थ यह है कि मनुष्य अपने सब कर्तव्यों का पूरा पालन करें जिनका पालन  समाज के प्रयोजनों की दृष्टि से किया जाना आवश्यक है।
 
सेफिलस पोलिमार्क्स तथा ग्लूकोन के न्याय सिद्धांतों की एक समान विशेषता यह है कि वह न्याय को बाह्य वस्तु मानते हैं इसके विपरीत प्लेटो न्याय को आत्मा या अंदर की वस्तू मानता है।
 
न्याय की प्रकृति एवं निवास स्थान छोटे रूप में मानव आत्मा तथा बड़े रूप में राज्य में पाया जाता है। व्यक्ति में तीन गुण पाए जाते हैं शौर्य, तृष्णा और ज्ञान इन तीनों में सामंजस्य स्थापित करना ही
व्यक्तिगत न्याय है।
 
प्लेटो के अनुसार राज्य मानव मस्तिष्क का ही विराट रूप है। प्लेटो के अनुसार राज्य में न्याय तभी स्थिर रहता है जब राज्य में शासक निस्वार्थ भाव से शासकों के हितों की रक्षा करते हुए शासन कार्य करता है। सैनिक प्राणों की बाजी लगाकर देश की सीमाओं की रक्षा करता है तथा उत्पादक वर्ग सब कष्टों को सहकर अपने उपयोग से अधिक उपयोग की वस्तुएं पैदा करता है। वस्तुतः न्याय कर्तव्यपालन से परे कोई वस्तु नहीं है।
5. प्लेटो का साम्यवाद
 
व्यक्तिगत संपत्ति तथा परिवार को प्लेटो संरक्षक वर्ग के लिए एक ऐसी चट्टान मानता है जिसमें टकराकर उनके नैतिक जीवन के क्षत-विक्षत होने की पूर्ण आशंका होती है। अतः प्लेटो ने संरक्षक वर्ग के लिए साम्यवाद की एक अभूतपूर्व विचारधारा का विकास किया।
प्लेटो दो प्रकार के साम्यवाद की बात करता है
 
संपत्ति का साम्यवाद,
पत्नियों का साम्यवाद ।
 
. संपत्ति रखने का अधिकार मात्र उत्पादक वर्ग को होगा संरक्षक केवल जीवन यापन के लिए जितना जरूरी है उतनी ही संपत्ति रख सकते हैं। . इसका उद्देश्य राजनीतिक है ना कि आर्थिक यह शासक को मोह से त्याग की ओर ले जाएगा।
 
संपत्ति के सिद्धांत का आधार
 
मनोवैज्ञानिक आधार- शासक वर्ग को तृष्णा तथा लोभ से दूर रखना ।
 
दार्शनिक आधार शासक को उन कार्यों से दूर रहना चाहिए जो शासन में बाधा डालते हैं। नैतिक आधार अर्थात हर वर्ग अपने नैतिक कार्य करेंगे। .
 
व्यवहारिक आधार व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो यदि शासन एवं संपत्ति एक ही हाथ में आ जाएंगे तो शासक पथ भ्रष्ट हो सकता है।
 
राजनीतिक आधार साम्यवाद का आधार राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करना था इस साम्यवाद से
 
शासक वर्ग में फैला भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता था।
 
साम्यवाद का मूल्यांकन
 
बार्कर और नैटिलशिप के अनुसार यह अर्धसाम्यवाद है क्योंकि यह संरक्षक वर्ग पर ही लागू होता है। अव्यवहारिक एवं नकारात्मक- दो राज्यों को जन्म देने वाला ।
 
मानव प्रकृति और स्वभाव के विपरीत।
 
अरस्तु के अनुसार यह आध्यात्मिक बुराइयों का भौतिक निदान है।
 
पत्नियों का साम्यवाद
 
प्लेटो संरक्षक वर्ग को निजी परिवार और निजी पत्नि से भी वंचित रखता है। उसका मानना है कि परिवार शासक को मोह माया में डाल सकता है। परिवार और संपत्ति दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं –  परिवार एकता में बाधक है क्योंकि यह तेरे मेरे की भावना पैदा करता है।
 
परिवार संबंधी साम्यवाद की विशेषताएं
 
संरक्षक वर्ग को पारिवारिक मोह से मुक्त करता है।
 
राज्य में एकता तथा स्थायित्व स्थापित करता है। प्लेटो ने महिला मुक्ति तथा समान अधिकार पर बल दिया।
 
प्लेटो के अनुसार इससे श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति की जा सकती है। वह विवाह संस्था में सुधार कर इसे राज्य के हित में करना चाहता
 
राज्य परिवार रूपरेखा
 
राज्य शाषक वर्ग के यौन संबंधों को नियन्त्रित करेगा।
 
राज्य द्वारा शिशुओं का पालन पोषण किया जायेगा।
 
पत्नियों के साम्यवाद का मूल्यांकन
 
अरस्तु के अनुसार यह अनावश्यक है इसका निदान शिक्षा द्वारा हो सकता है। विवाह संबंध मात्र वासना तक ही सीमित नहीं यह नैतिक संस्था है।
 
यह प्लेटो के न्याय के विपरीत हैं।
 
यौन संबंध सार्वजनिक विषय नहीं है जो राज्य द्वारा नियंत्रित होगा।
 
परिवार के बिना नैतिक गुणों तथा चरित्र का विकास नहीं हो सकता है।
 
मनोवैज्ञानिक तत्वों की उपेक्षा ।
 
परिवार राज्य की आधारशिला है। यह शासक वर्ग में अविश्वास दिखाता है।
 
 
6. दार्शनिक राजा की अवधारण
 
प्लेटो तत्कालीन यूनानी नगर राज्यों में व्यक्तिवादी लक्षण तथा अज्ञानी शासकों के व्यवहार से पूर्ण रूप से परिचित था अतः उसने यह महसूस किया कि ‘हमारे नगर राज्यों में तब तक कष्टों का अंत नहीं होगा जब तक दार्शनिक राजा ना होंगे या संसार के राजाओं और राजकुमारों में दर्शन की भावना और सत्ता ना होगी।” एक राजा को दार्शनिक होना चाहिए क्योंकि वह आत्मा (विवेक) का प्रतिनिधि है। सदगुण ही ज्ञान है अर्थात एक व्यक्ति संसार के वस्तुनिष्ठ सत्य का ज्ञान मात्र विवेक से ही प्राप्त कर सकता है। अतः जिस व्यक्ति को सत्य का ज्ञान होता है वही सद्गुणी है। इसलिए उसे शासन करना चाहिए। व्यवहारिक अनुभव उसके समय में एथेन्स में प्रजातंत्र, स्पार्टा में सैनिक तंत्र तथा सिरैक्यूज़ में निरंकुश तंत्र के दुर्गुणों से समाज पीड़ित था। उसके शासक स्वार्थी, अज्ञानी और संकीर्ण थे। जिसमें शाषकों का चयन लॉटरी प्रणाली के अंतर्गत किया जाता था। अतः प्लेटो ने व्यंग्य से कहा कि “बढई और दर्जी होने के लिए कुछ भी प्रशिक्षण होते थे लेकिन शासक बनने के लिए नहीं ।
 
दार्शनिक राजा के गुण
 
दार्शनिक राजा विवेक का प्रेमी होना चाहिए।
 
वह सत्य के रास्ते पर चलने वाला होना चाहिए ।
 
. वह न्याय का प्रेमी होना चाहिए।
 
वह निस्वार्थ होना चाहिए अर्थात संपत्ति एवम परिवार रहित। उसमें आत्मसंयम होना चाहिए।
 
उसकी स्मरण शक्ति अधिक तथा स्वभाव शांत हो। उसमें उच्चतम प्राकृतिक गुण (विवेक) होना चाहिये।
 
दार्शनिक राजा पर प्रतिबंध
 
राज्य में धन एवं निर्धनता का प्रवेश रोकना ।
 
राज्य की सीमा में कमी या वृद्धि को रोकना । न्याय प्रशासन कायम करना ।
 
शिक्षा पद्धति बनाए रखना। दार्शनिक राजा के कर्तव्य –
 
प्रत्येक व्यक्ति को उसका विशिष्ट कार्य सौंपना । भावी शासकों की शिक्षा का संचालन करना ।
 
धार्मिक विश्वासों को नियंत्रित करना इत्यादि ।
 
दार्शनिक राजा कैसे तैयार किया जाएगा :  अपनी शिक्षा पद्धति द्वारा प्लेटो दार्शनिक राजा का निर्माण करता है। 20 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा में व्यायाम और संगीत के द्वारा मन एवं शरीर का विकास किया जाएगा। 20 से 30 वर्ष की आयु तक विभिन्न विज्ञानों द्वारा विवेक विकसित होगा । 30 से 35 वर्ष तक द्वंदात्मक शिक्षा द्वारा सर्वोच्च सत्य का ज्ञान प्राप्त होगा । 35 से 50 वर्ष की आयु तक सैद्धांतिक ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग किया जाएगा। इस अवधि में उसे सोने की  भांति अग्नि में तपाया जायेगा।
 
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 आलोचनात्मक मूल्यांकन
 
कांट के अनुसार राजा का दार्शनिक एवं दार्शनिक का राजा होना संभव नहीं है। पोपर के अनुसार प्लेटो ने स्वार्थ सिद्धि के लिए दार्शनिक राजा को कुलीन वर्ग से लिया ताकि उसे लाभ
 
प्लेटो राजा को निरंकुश शासन देता है ।
 
नागरिकों की स्वतंत्रता एवं स्वविवेक का अंत कर देता है।
 
अधिकार और प्रतिबंधों में विरोधाभास ।
 
शासन के लिए विधि, वित इतिहास और अर्थशास्त्र के ज्ञान का अभाव । यह अवधारणा काल्पनिक है। प्लेटो स्वयं भी सिरैक्यूज़ के राजा को दार्शनिक बनाने में असफल रहा था ।
 
7. प्लेटो का शिक्षा सिद्धांत
 
रिपब्लिक का मूलमंत्र न्याय का अन्वेषण और प्राप्ति है और उसकी प्राप्ति के लिए अनुकूल वातावरण शिक्षा द्वारा स्थापित किया जा सकता था। प्लेटो के अनुसार यह दो उपायों से हो सकता था
 
राज्य द्वारा नियंत्रित और संचालित शिक्षा द्वारा।
 
नई सामाजिक व्यवस्था द्वारा।
 
शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक विकास के साथ व्यक्तिगत विकास से जुड़ा है। शिक्षा द्वारा आत्मिक उन्नति का स्थान उच्चतर है।
 
शिक्षा आदर्श राज्य की स्थापना के लिए अनिवार्य है ।
 
तत्कालीन शिक्षा पद्धतियाँ
 
1. स्पार्टा की शिक्षा पद्धति :- शिक्षा राज्य द्वारा नियंत्रित थी।
 
7 वर्ष की आयु से बालकों को माता-पिता से अलग करके शिक्षा दी जाती थी। शिक्षा में व्यायाम तथा युद्ध की विद्या दी जाती थी ।
 
शिक्षा में लिंग आधारित भेदभाव नहीं था।
 
इसका पाठ्यक्रम बहुत ही संकुचित था। इसमे साहित्य एवं बौद्धिक शिक्षा नहीं दी जाती थी। 
 
2. एथेन्स की शिक्षा पद्धति :शिक्षण संस्थाएं गैर सरकारी थी।
 
सोलन के कानून अनुसार माता-पिता का दायित्व अपने बालकों को अक्षर ज्ञान कराना था।
 
लड़कियों के लिए शिक्षा व्यवस्था नहीं थी ।
 
शिक्षा तीन स्तरों पर विभक्ति प्राथमिक माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा |
 
शिक्षा में पढ़ना लिखना, प्राचीन कवियों का साहित्य अध्ययन, व्यायाम, खेलकूद और संगीत आदि थे।
 
प्लेटो के शिक्षा योजना का आधार
 
प्लेटो ने शिक्षा को राज्य तथा व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक माना। इसके निम्नलिखत आधार है
 
1. दार्शनिक आधार प्लेटो के अनुसार मनुष्य का मन कुछ विशिष्ट वस्तुओं की तरफ आकृष्ट होता है। शिक्षक का कार्य इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना बिल्कुल भी नहीं है। शिक्षक का कार्य सिर्फ इतना है कि वह मन के समक्ष ज्ञानरूपी प्रकाश लाएं तथा आत्मा की शुद्धिकरण पर पूरा ध्यान दें और अवांछित चीजों को उन से दूर हो ।
 
2. मनोवैज्ञानिक आधार मानसिक आधार पर प्लेटो ने शिक्षा को आत्मा के विकास के आधार पर तीन भागों में बाँटा है बालकावास्था, युवावस्था तथा प्रौढ़ावस्था इनके आधार पर शिक्षा के विषयों को भी विभक्त किया है।
 
1. स्पार्टा से अपनाई गई बातें  शिक्षा राज्य द्वारा नियंत्रित होगी। स्त्री पुरुष दोनों को समान शिक्षा दी जाएगी।
 
सामाजिक पहलओं को लिया।

प्लेटो द्वारा लिखी पुस्तके और उनका संक्षिप्त विवरण

 1. द रिपब्लिक (THE REPUBLIC) – प्लेटो के प्रसिद्ध ग्रंथ रिपब्लिक का शीर्षक न्याय से संबंधित है। यह आज के गणतंत्र से नहीं जुड़ा है। इसे समाजशास्त्र, अर्थ शास्त्र शिक्षा शास्त्र और अध्यात्म शास्त्र का ग्रंथ भी कहा जा सकता है। रिपब्लिक एक ऐसा ग्रंथ है जिसका अब तक पृथक्करण नहीं हो पाया है। रिपब्लिक का अर्थ है राज्य अथवा गणराज्य । इसमें प्लेटो सद्गुणी जीवन पर विचार कर रहा था। उसका मत था कि सद्गुणी जीवन समाज में ही प्राप्त हो सकता है। व्यक्ति और समाज का अटूट संबंध है इसलिए उसने रिपब्लिक में आदर्श राज्य का चित्रण किया। बार्कर के अनुसार प्लेटो ने रिपब्लिक में निम्नलिखित चार प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न किया गुणी व्यक्ति के क्या लक्षण है और उसका निर्माण कैसे हो सकता है। सद्गुणी राजा के क्या लक्षण है और उसका निर्माण कैसे हो सकता है। वह कौन सा ज्ञान है जो सद्गुणी व्यक्ति में सद्गुणी बनने के लिए होना चाहिए और किस प्रकार एक सद्गुणी राज्य अपने नागरिकों को उस ज्ञान की ओर जाने के लिए रास्ता दिखा सकता है जो सद्गुणी जीवन का आधार है। . पहले प्रश्न का उत्तर नीतिशास्त्र से मिलता है। दूसरे का राजनीतिशास्त्र से तीसरे का अध्यात्मशास्त्र से और चौथे का उत्तर भी नीतिशास्त्र से मिलता है। स्टेट्समैन ( STATESMAN) एक संक्षिप्त परिचय प्लेटो के दूसरे ग्रंथ का नाम स्टेटसमेन है। यह रिपब्लिक के कुछ वर्ष बाद लिखा गया। इसकी शैली संवादात्मक है। इसमें एक एसे महामानव की कल्पना की गई है जो राज्य चलाने में सक्षम हो। इसमें प्लेटो लोकतंत्र का इतना कट्टर विरोधी नहीं है जितना कि रिपब्लिक में था। कानून के प्रति भी उसका दृष्टिकोण बदल गया था। संसार की वास्तविकताओं के कारण उसका आदर्शवाद कमजोर हो गया था!

2. स्टेट्समैन में प्लेटो राजविज्ञ को कानून से ऊपर रखना चाहता है। लेकिन व्यवहारिक अनुभव के कारण वह ऐसा नहीं कर पाता। एक तो उपयुक्त राजविज्ञ का मिल पाना कठिन कार्य है यदि मिल भी गया तो वह राज्यहित में कार्य करेगा या नहीं इसका कोई भरोसा नहीं। इसी समस्या के कारण उसने राज्य में कानून के शासन पर बल दिया। लेकिन वह लोकतंत्र के पक्ष में नहीं था। उसका मानना था कि एक कुशल चिकित्सक रोगी के मत से उसे दवाई नहीं देगा क्योंकि लोकतंत्र में हुर कोई रोगी (भ्रष्ट) होता है जिसे उचित शाषक ही ठीक कर सकता है । प्लेटो ने इस ग्रंथ में राज्यों के प्रकारों की व्याख्या भी दो आधारों पर की है एक प्रभुसत्ता कितने लोगों के पास है और दूसरी जिनके हाथों में प्रभुसत्ता है क्या वह कानूनों का अनुसरण करते हैं या नहीं . प्रभुसत्ता एक व्यक्ति के हाथ में हैं तथा कानूनानुसार शाषन (ROYALTY) राजतंत्र प्रभुसत्ता एक व्यक्ति के हाथ में तथा कानून की अपेक्षा की जाती हो (TYRANNY) अत्याचारतंत्र प्रभुसत्ता कुछ लोगों के हाथ में तथा कानूनानुसार शाषन ( ARISTOCRACY) कुलीनतंत्र प्रभुसत्ता कुछ लोगों के हाथ में तथा कानून की उपेक्षा (OLIGARCHY) सामंततंत्र प्रभुसत्ता कुछ लोगों के हाथ में चाहे कानून अनुसार हो या उसकी उपेक्षा (DEMOCRACY) लोकतंत्र उपर्युक्त कथनों के अनुसार हम कह सकते हैं कि प्लेटो ने अपने दूसरे ग्रंथ में अधिक व्यावहारिकता दिखाते हुए कानून के महत्व को स्वीकारते हुए राजविज्ञ पर कुछ कानून द्वारा रोक लगाने को स्वीकार किया। 

3. द लॉज एक संक्षिप्त परिचय यह प्लेटो की अंतिम कृति तथा सबसे लंबा संवाद है। प्लेटो ने इसे शायद 70 वर्ष की आयु में लिखा था। इसमें नगर राज्य की समस्याओं पर प्लेटो के चिंतन तथा मनन के अंतिम परिणाम प्रस्तुत किए गए हैं प्लेटो की रिपब्लिक दार्शनिक लेखन के समूचे क्षेत्र में महान है जबकि यह एक कठिनाई से बनाई जाने वाली कृति है। इसकी लेखन शैली लेखक की क्षीण होती हुई साहित्यक क्षमता का ही परिचय देती है। इसमें कला का पूर्णत: अभाव है। इसमें संवाद का क्रम भी अत्यंत अस्त व्यस्त हैं।

4. Meno में सद्गुणों को पढ़ाने पर बल दिया।

5.MENEXENUS इसमे पेरिविलियन स्वर्ण युग की आलोचना की गई है।

6. GORGIAS इसमें प्लेटो ने विवेक द्वारा निर्णय पर बल दिया है।

7. SYMPOSIUM इसमें उसने प्यार पर बल दिया है।

8. TIMAEUS इसमें उसने जीवन तथा भगवान पर प्रकाश डाला है।

9. PHILEBUS यह ETHICS एवं अच्छी जिंदगी पर बल देता है।

प्लेटो के विचारो का आलोचनात्मक विश्लेषण

न्याय सिद्धांत की आलोचना
 
यह कानूनी नहीं नैतिक धारणा है।
 
व्यक्तिगत हितों पर राज्य का दबदबा स्थापित करने वाला न्याय ।
 
अत्याधिक एकीकरण अर्थात दो गुणों का त्याग तथा एक प्रबल गुण को बढ़ावा । प्रजातंत्र विरोधी मात्र शासक वर्ग का बहुसंख्यकों पर शासन ।
 
.विरोधाभास – शासक वर्ग निम्न वर्ग के कार्य में हस्तक्षेप करता है।
 
अधिकारों एवं दंड की कोई व्यवस्था नहीं।
 
यह व्यक्ति को एकान्गी बनाता है।
 
पोपर के अनुसार उसके न्याय में सर्वसत्ताधिकारवादी अंकुर छिपे है अत: प्लेटो के न्याय में फासीवादी विचार छिपे हैं।
 
यह प्रेरणात्मक नहीं व्यक्ति दूसरे गुणों का विकास नहीं करेगा।
 

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