अधिकमास adhik maas या पुरुषोत्तम मास purushottam maas में क्या करें

Adarsh Dharm

पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास  या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। संपूर्ण भारत की हिंदू धर्मपरायण जनता इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवद् भक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहती है। ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह है कि श्रद्धालु जन अपनी पूरी श्रद्धा और शक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न कर अपना इहलोक तथा परलोक सुधारने में जुट जाते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि यह माह इतना ही प्रभावशाली और पवित्र है, तो यह हर तीन साल में क्यों आता है? आखिर क्यों और किस कारण से इसे इतना पवित्र माना जाता है? इस एक माह को तीन विशिष्ट नामों से क्यों पुकारा जाता है? इसी तरह के तमाम प्रश्न स्वाभाविक रूप से हर जिज्ञासु के मन में आते हैं। तो आज ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर और अधिकमास को गहराई से जानते हैं-.

वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।

इसे मल मास का नाम क्यों दिया गया, Why was it named Mal Maas?

सनातन धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि आमतौर पर नहीं किए जाते हैं। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मल मास पड़ गया है।

अधिक मास का नाम पुरुषोत्तम मास कैसे पड़ा जाने पूरी कथा The full story of how Adhik Maas was named Purushottam Maas

 इस विषय में एक लघु कथा है। एक बार भगवान श्रीराम अपने दरबार में सिंहासन पर विराजमान थे उस समय उनके न्यायालय में एक केस आया जिसका निपटारा करना अत्यंत कठिन था। दर असल उनके राज्य में एक वणिक परिवार में दो सगे भाई थे जो अपने माता पिता के साथ दिए गए वचन के अनुसार व्यापार को अलग अलग बाट नही सकते थे और दोनो की पत्नियों में बनती नही थी देवरानी जेठानी की लड़ाई थी अतः इसके पूर्व भी रामजी के वनवास काल में राजा का काम संभाल रहे शत्रुघ्न ने फैसला किया था कि तुम दोनो 6 छै महीने व्यापार संभालोगे और उसका मुनाफा जो होगा उसका आधा व्यापार को बढ़ाने में लगाओ और आधा अपने पास रखो। माता पिता की सेवा का भार दूसरे भाई पर रहेगा। इसके लिए उन्होंने चैत्र से लेकर भाद्रप्रद तक एक बड़े भाई को और आश्विन से फाल्गुन तक दूसरे भाई को अधिकार दिया। अगले वर्ष मलमास का महीना आ गया अतः छोटे भाई ने 6 महीने होने के बाद भी व्यापार बड़े को नही दिया और बोला चैत्र से ही मिलेगा। दोनो में झगड़ा हुआ और इस बार रामजी के न्यायालय में थे। महर्षि विश्वामित्र महर्षि वशिष्ठ सहित सभी ने समझाया लेकिन दोनो भाई अड़े रहे तो राजा राम ने निर्णय सुनाया कि जो यह अधिक मास adhik maasहै वह मेरा मास है राजा का मास है इसमें होने वाले मुनाफे को अर्थात मेरे हिस्से को वेद वर्णित तरीके से गुरुकुल में पढ़ रहे ब्रह्मचारियों को अपने हांथ से दोनो भाई मिलकर दान कर दो। यह निर्णय एक परंपरा बनी और अधिक मास adhik maasको पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)अर्थात भगवान राम का मास नाम दिया गया। महर्षि विश्वामित्र ने कहा चूंकि यह पुरुषोत्तम श्रीराम के नाम का मास है अतः इस मास में उनके आदर्शो पर चलना है नियम उपनियम मानने होंगे। अतः लोगो ने रामजी के आदर्श मल मास में अपने ऊपर लागू किए। जिसमे क्या खाना, क्या नही खाना कैसे रहना क्या करना सब कुछ नियम से बांध दिया गया। इस तरह यह मास पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)बन गया।

अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरूषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है।

इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। उसको भी सत्यता के आस पास कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरूषोत्तम मास भी बन गया।

अधिकमास को पुरूषोत्तम मास कहे जाने का एक सांकेतिक अर्थ भी है। ऐसा माना जाता है कि यह मास हर व्यक्ति विशेष के लिए तन-मन से पवित्र होने का समय होता है। इस दौरान श्रद्धालुजन व्रत, उपवास, ध्यान, योग और भजन- कीर्तन- मनन में संलग्न रहते हैं और अपने आपको भगवान के प्रति समर्पित कर देते हैं। इस तरह यह समय सामान्य पुरूष से उत्तम बनने का होता है, मन के मैल धोने का होता है। यही वजह है कि इसे पुरूषोत्तम मास का नाम दिया गया है।

पुरुषोत्तम मास से जुडी मिलावटी और बनावटी कथाये भी प्रचलित है ,Adulterated and fabricated stories related to Purushottam month are also prevalent.

पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)की उत्पत्ति की पुराण में मिलावटी कथा जो ज्यादातर कथावाचक सुनाते हैं। यह मिलावट 19 वी शताब्दी में जब विभिन्न जाति के लोग मिलकर एक समुदाय बनाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण को श्रीराम जी श्रेष्ठ दिखाने के लिए यह मिलावट की गई। इस कथा के अनुसार

प्रत्येक राशि, नक्षत्र, करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है, परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है. इसलिए देव कार्य, शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है। इससे दुखी होकर स्वयं मलमास (अधिक मास) बहुत नाराज व उदास रहता था, इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी. मलमास को सभी ने असहाय, निन्दक, अपूज्य तथा संक्रांति से वर्जित कहकर लज्जित किया. अत: लोक-भत्र्सना से चिन्तातुर होकर अपार दु:ख समुद्र में मग्न हो गया. वह कान्तिहीन, दु:खों से युक्त, निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा.और मलमास बोला हे नाथ, हे कृपानिधे! मेरा नाम मलमास है. मैं सभी से तिरस्कृत होकर यहां आया हूं. सभी ने मुझे शुभ-कर्म वर्जित, अनाथ और सदैव घृणा-दृष्टि से देखा है. संसार में सभी क्षण, लव, मुहूर्त, पक्ष, मास, अहोरात्र आदि अपने-अपने अधिपतियों के अधिकारों से सदैव निर्भय रहकर आनन्द मनाया करते हैं.

मैं ऐसा अभागा हूं जिसका न कोई नाम है,न स्वामी, न धर्म तथा न ही कोई आश्रम है. इसलिए हे स्वामी, मैं अब मरना चाहता हूं.’ ऐसा कहकर वह शान्त हो गया. तब भगवान विष्णु मलमास को लेकर गोलोक धाम गए. वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजडि़त आसन पर बैठेथे. गोपियों से घिरे हुए थे.भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा – कि यह मलमास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा – हे हरि! आप इसका हाथ पकड़कर यहां लाए हो जिसे आपने स्वीकार किया उसे मैंने भी स्वीकार कर लिया है. इसे मैं अपने हीसमान करूंगा तथा गुण, कीर्ति, ऐश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान आदि मेरे समान सभी गुण इसमें होंगे मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैंमलमास में तुम्हे सौंप रहा हूँ मैं इसे अपना नाम ‘पुरुषोत्तम’ देता हूं और यह इसी नाम से विख्यात होगा.यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा। मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वहीदुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)के नाम से प्रसिद्ध हुआ.यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा अब यह जगत को पूज्य व नमस्कार करने योग्य होगा यह इसे पूजने वालों के दु:ख-दरिद्रता का नाश करेगा। यह मेरे समान ही मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करेगा। जो कोई इच्छा रहित या इच्छा वाला इसे पूजेगा वह अपने किए कर्मों को भस्म करके नि:संशय मुझ कोप्राप्त होगा.सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)स्वाध्याय योग्य होगा. इस मास में किया गया पुण्य कोटि गुणा होगा.जो भी मनुष्य मेरे प्रिय मलमास का तिरस्कार करेंगेऔर जो धर्म का आचरण नहीं करेंगे, वे सदैव नरक के गामी होंगे। अत: इस मास में स्नान, दान, पूजा आदि का विशेष महत्व होगा.इसलिए हे रमापते! आप पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)को लेकर बैकुण्ठ को जाओ.’इस प्रकार बैकुण्ठ में स्थित होकर वह अत्यन्त आनन्द करने लगा तथा भगवान के साथ विभिन्न क्रीड़ाओं में मग्न हो गया. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने मन से प्रसन्न होकर मलमास को बारह मासों में श्रेष्ठ बना दिया तथा वह सभी का पूजनीय बन गया।

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अधिक मास का पौराणिक आधार:

अधिक मास adhik maasके लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चुकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास adhik maasमें नरसिंह अवतार यानि आधा पुरूष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।

अधिक मास adhik maas का महत्व क्या है:

हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है।

अधिक मास adhik maas में फलदायी कर्म :

आमतौर पर अधिक मास adhik maas में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मासadhik maasमें विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं।

अधिक मास adhik maasमें क्या करें , क्या न करें :

धरती पर कल्पवृक्ष के समान एवम् समस्त मासों में श्रेष्ठ पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)में क्या करें ? , क्या न करें ? ; यह सबसे बड़े प्रश्न भक्तमण्डल के समक्ष उपस्थित हों जातें हैं । अनेकों स्थानों पर स्वार्थलोलुप पंडितों/पुरोहितों द्वारा अनेकों प्रकार का पाखण्ड फैला दिया जाता हैं और अनेकों प्रकार से लोगों को ठगा जाता हैं । इधर कुछ स्थानों में पर्याप्त जानकारी के अभाव में ही पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)बीत जाया करता हैं । आज पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)के आगमन के पूर्व ही आपको बताया जा रहा हैं की पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)में क्या करें ? , और क्या न करें ?

कुछ नियम हैं जिनका पालन सर्वसाधारण के लिए अत्यन्त ही सरल और सहज हैं

शुद्धि और नित्य क्रियाएं – दिन में दो बार स्नान करना चाहिए । यदि बीच में कभी पूजा में बैठ रहे हैं तो तब भी स्नान करना चाहिए । पुरुषों को संध्यावंदन , ब्रह्मयज्ञ , नित्यहोम आदि पूर्ववत करना चाहिए ।  पूरा महीना ब्रह्मचर्य से रहें (स्त्रीसंग आदि न करें) । विशेष रूप से तुलसीजी को 8 पवित्र नाम पढ़ते हुए नित्य जल चढ़ाना और तुलसीजी के सामने दिया लगाना चाहिए साथ ही साथ आरती भी करनी चाहिए । तुलसीअर्चन  भी करना चाहिए ।

व्रत और उपवास – यदि संभव हों तो पूरे पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)में केवल रात्री में भोजन करना चाहिए परन्तु यदि ऐसा संभव न हों तो कम से कम अमावस्या , पूर्णिमा , दोनों एकादशी और पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)के अंतिम पांच दिवस व्रत पूर्वक रहना चाहिए (विशेष : एकादशी के दिन सामान्य एकादशियों जैसे ही अन्न बिलकुल नहीं खाना चाहिए) ।

नित्य की स्तुतियाँ और पाठ – नित्य चतुःश्लोकी भागवत , गोपाल सहस्त्रनाम , श्री कृष्णाष्टकम् आदि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए । नित्य श्रीमद्भागवत् पढ़ना अथवा सुनना चाहिए । पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)महात्म्य का नित्य पाठ करना चाहिए । कम-से-कम एक घंटे भजन/कीर्तन करना चाहिए ।

दीपदान , घटदान और कांसे का सम्पुट – मंदिरों और घरों में दीपक लगाने चाहिए (इसीको दीपदान कहते हैं) [ दीपदान में तेल/घी कुछ भी प्रयोग में ला सकते हैं ] । जल से भरे हुए घड़े का और कांसे के सम्पुट में मालपुओं का दान देना चाहिए । दान सदैव यथाशक्ति और सत्पात्र व्यक्ति को देना चाहिए (अर्थात् सही व्यक्ति को देना चाहिए और जितनी क्षमता हों उतना ही दान देना चाहिए) ।

सिनेमा और टेलिविज़न – इस परम् पवित्र मास में सिनेमा और टेलीविज़न का पूर्णतः त्याग करना चाहिए साथ ही साथ सोशल मीडिया में भी कुछ उल्टा-सीधा नहीं देखना/सुनना चाहिए । इस समय को रामायण अथवा भागवतजी पढने/सुनने में लगाना चाहिए ।

दूरी – झूठ , निंदा और शत्रुता आदि से दूरी बनाकर रखना चाहिए ।

पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)में क्या खाएं, क्या न खाएं

पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)में भगवान श्रीकृष्‍ण, श्रीमद्‍भगवतगीता, प्रभु श्रीराम और भगवान विष्‍णु की उपासना की जा‍ती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है। इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं इस मास में खाने-पीने की चीजों का बहुत महत्व है। इस माह तमोगुणयुक्त पदार्थों का सेवन करना शास्त्रों में मना है। आइए जानते हैं इस माह किन-किन चीजों का अपनाएं और किन-किन चीजों से परहेज रखें।

इस माह कोई भी व्यक्ति यदि गेंहू, चावल, मूंग, जौ, मटर, तिल, ककड़ी, केला, आम, घी, सौंठ, इमली, सेंधा नमक, आंवला आदि का भोजन करें तो उसे जीवन में कम शारीरिक कष्ट होता है। उक्त पदार्थ या उससे बने पदार्थ उसके जीवन में सात्विकता की वृद्धि करते हैं। अत: इस माह उपरोक्त पदार्थों का सेवन अवश्य ही करना चाहिए।

क्या न खाएं

इस माह में उड़द, लहसुन, प्याज, राई, मूली, गाजर, मसूर की दाल, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, शहद, मांस, मदिरा, धूम्रपान, मादक द्रव्य आदि का सेवन करने से तमोगुण की वृद्धि का असर जीवनपर्यंत रहता है। अत: पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)में इन चीजों का खान-पान वर्जित कहा गया है।

 

अतेव इन नियमों का पालन करते हुए पुरुषोत्तम मास (purushottam maas)व्यतीत करें , आप पर पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम की कृपा अवश्य होगी।

अस्तु जय श्रीराम।

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