हनुमानजी-की-दिव्य-उधारी

हनुमानजी-की-दिव्य-उधारी-hanuman-ji-ki-divya udhari

Adarsh Dharm

भगवान राम जी ने सुग्रीव अंगद विभीषण जामवंत आदि को अयोध्या से वापस कर दिया था तो हनुमान जी को वापस क्यों नही भेजा?

हनुमानजी की दिव्य उधारी।सब पर कर्जा हनुमान जी का,सब ऋणी हनुमानजी महाराज के।कैसे?

रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण, जामवंत, अंगद , सुग्रीव, नल नील, आदि यहां तक हनुमान जी महाराज के पिता केशरी जी, सब को अयोध्या से विदा किया। सभी को यथोचित आदर सम्मान उपहार आदि दिए। एक युवराज अंगद ही थे जिन्होंने अयोध्या से न जाने की बात की और प्रभु से बोले। 

बालक ज्ञान बुद्धि बल हीना। राखहु शरण नाथ जन दीन्हा।।

हे प्रभु मैं आपका बुद्धि बल और ज्ञान शून्य एक बालक हूं और मेरे पिता जी ने मरते समय मेरा हांथ आपको पकड़ा कर आपकी शरण में दिया था अतः आप मुझे अपने से अलग नहीं कर सकते।

रामायण में यह विस्तार से बताया गया है कि काल भैरव के साक्षात अवतार अंगद जी के प्रेम में भगवान राम रो पड़े और उनको समझाने में बहुत समय लगा कई दिनो तक चारो भाई, माता सीता सभी ने अंगद को समझाया और तब जाकर अंगद जी किसकिन्धा को रवाना हुए।
अयोध्यावासियों  ने सोचा कि जब अंगद जी को भेजने में इतना समय लगा तो हनुमान जी तो प्रभु के सबसे खास हैं इसलिए प्रभु उन को बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से!
अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।

माता सीता ने क्यों किया इंकार हनुमान जी को अपने घर भेजने की लिए जाने-यहाँ ?

माता सीता बोलीं मैं तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका लेके गए, और धीरज बंधवाया कि…!


कछुक दिवस जननी धरु धीरा।कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥

मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए,आप किसी और से बुलवा लो।

लक्ष्मणजी ने क्यों कहाँ दशरथजी का लक्षमण तो मर चुका है, कब और कहाँ हुई मृत्यु !

अब बारी आई लक्षमण जी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।

ये जो लक्ष्मण खड़ा है ना , वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। दशरथ पुत्र लक्ष्मण तो लंका युद्ध में मेघनाथ ने मार डाला था। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं!

भरत जी ने क्यों कहा जिसने मेरे प्राणो की रक्षा की उन हनुमानजी को क्यों बोलूं जाने को ?


अब बारी आई भरत जी की, अरे! भरत जी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझ पर, हनुमान जी का सब मिलके और लगवा दो!
और दूसरी बात ये कि…!
बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।अधम कवन जग मोहि समाना॥
मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि…!
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥
मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।

मैंने तो पूरी रामायण में कहीं कुछ नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो,किसने और क्यों कहा?


अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुघ्न भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुघ्न भैया बोल पड़े मैंने तो पूरी रामायण में कहीं कुछ नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकालने के लिए, जिन्होंने ने माता सीता, लक्षमण भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो! किसी अच्छे काम के लिए कहते तो बोल भी देता। और भैया आपको बताया था कि मैंने तो हनुमान जी को गुरु बना लिया है उनसे मैं तरह तरह की युद्ध कलाएं शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान ले रहा हूं फिर भला मैं उनको यहां से जाने को क्यों बोलूंगा।मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।

प्रति उपकार करौं का तोरा।सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥क्यों बोले रामजी ?

अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार माता सीता ने कहा प्रभु! आप तो तीनों लोकों के स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है।और आप ही खुद कहते हो कि…!*
प्रति उपकार करौं का तोरा।सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु! राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो
सनमुख होइ न सकत मन मोरा
हे देवी! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ्य राम में नहीं है, जो “राम नाम” में है। क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न…! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।


“हनुमान करे अपना विवाह जो स्वयं एक ब्रह्मचारी।

रावण लंकेश हरें इनकी फिर से जब नारी।

मुदरी लै रघुनाथ चलै,निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।

अवस्थी कहें, सुधि सोच हरें, तन से, मन से होवें उपकारी।

तब रघुनाथ चुकायि सकें, ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।”


सर्व प्रथम बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी विवाह करें जो वह नही करने वाले। फिर लंकेश रावण इनकी पत्नी का हरण करें। फिर नारी विरह में दुखी हनुमान जी की अंगूठी लेकर यह राम समुद्र को पार करके जाए उनकी पत्नी की सुधि लाकर दुखी हनुमान को सूचित करे, और उनके ऊपर वैसे ही निस्वार्थ भाव से उपकार करे उनकी सेवा करे।हे देवी! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि…!
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं”
मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।
दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए,सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।रामजी ने हनुमान जी से कहा! सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद,अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ…?
हनुमानजी बोले! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो…!
“तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना”और यह भी कहा था “तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई”
तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?

हनुमानजी ने प्रभु राम से कौन से दो पद मांगे ?


सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। रामजी ने कहा! ठीक है, मांग लो, सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।
हनुमानजी ने कहा! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, तो फिर…! आप को कौन सा पद चाहिए…?
हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।
हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।
जानकी जी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए राघवजी बोले, लो उतर गया हनुमानजी का कर्जा!
और अभी तक जिसको बोलना था, सब बोल चुके है, अब जो मै बोलता हूं उसे सब सुनो, रामजी भरत भैया की तरफ देखते हुए बोले…!
“हे! भरत भैया’ कपि से उऋण हम नाही”……..
हम चारों भाई चाहे जितनी बार जन्म लेे लें, हनुमानजी से उऋण नही हो सकते..!!

आशा करता हूं कि आप मित्रो को यह व्याख्यान पसंद आया होगा |
अस्तु। जय श्री राम जय|

जय हनुमान।

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