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राम राम सब कोई कहे, दशरथ कहे न कोय।एक बार दशरथ कहे कोटि यज्ञ फल होय।। Kya hai katha
राम राम सब कोई कहे, दशरथ कहे न कोय। ek baar dashrath kahey koti yagya fal hoye!esa isliye kyon ki jiska beta bankar param bramh ko aana pade wo sadharan nahi ho sakta
जैसा कि सभी जानते है कि भगवान श्रीराम ने आखिर सूर्य वंश में जन्म लिया राजा दशरथ के पुत्र के रूप में इस धरती पर आए पर क्या कभी यह सोचा कि आखिर प्रत्येक कल्प में वह इसी परिवार को क्यों अपना घर मानते है और इसी परिवार में अवतार लेते है?
हमेशा रामजी दशरथजी के ही पुत्र क्यों बनते है? Why Shri Rama always became Dashrath’s Son?
इसका एक मात्र कारण परम पिता परमेश्वर के माता पिता बनने की काबिलियत सिर्फ माता कौशल्या और महाराज दशरथ में ही थी। उनके पूर्व जन्म के पुण्य तपस्या और अंतिम इक्षा इस का कारक और कारण थी।आपने पिछले अंक भाग एक में सुना कि आदिमानव हम सभी मनुष्यों के सबसे पुराने पूर्वज इस प्रथ्वी पर आने वाले ब्रह्मा के शरीर से स्वयं प्रकट हुए मनुष्य की पहली जोड़ी स्वयंभू मनु और उन की पत्नी सतरूपा कैसे इस धरती पर आए और कैसे सभी प्राणी मात्र को अपने वश में करके नियम पूर्वक राज्य किया उनको और ऋषियों की संतानों से योनिजा श्रष्टि की बढ़ोत्तरी होती गई जो बढ़ते बढ़ते आज पूरे संसार में फ़ैल के अनगिनत होगए। और उनके खुद के द्वारा प्रतिपादित नियम जिन पर वह खुद आजीवन चले और सभी प्राणी मात्र में श्रेष्ठ मनुष्यों को चलाया और वहीं नियम आगे चलकर कानून बने।
स्वयंभू मनु और सतरूपा से क्या रिश्ता हैं दशरथ जी और माँ कौशल्या का? What is relation between swayambhu manu and satarupa, how they associate with dashrath and kaushalya?
क्या कारण है कि परमपिता परमेश्वर भगवान शिव के आराध्य भगवान श्रीराम सिर्फ दशरथ (Dashrath) के पुत्र ही बनना पसंद करते है। लाखो और भी मनुष्य और राजा थे फिर भी उन्होंने दशरथ और कौशल्या(Kaushalya) को ही अपना माता पिता चुना।
इसका एक मात्र कारण परम पिता परमेश्वर के माता पिता बनने की काबिलियत सिर्फ माता कौशल्या और महाराज दशरथ में ही थी। उनके पूर्व जन्म के पुण्य तपस्या और अंतिम इच्छा इस का कारक और कारण थी।आपने पिछले अंक भाग एक में सुना कि आदिमानव हम सभी मनुष्यों के सबसे पुराने पूर्वज इस पृथ्वी पर आने वाले ब्रह्मा के शरीर से स्वयं प्रकट हुए मनुष्य की पहली जोड़ी स्वयंभू मनु और उन की पत्नी सतरूपा कैसे इस धरती पर आए और कैसे सभी प्राणी मात्र को अपने वश में करके नियम पूर्वक राज्य किया!
उनकी और ऋषियों की संतानों से योनिजा शृष्टि की बढ़ोत्तरी होती गई जो बढ़ते बढ़ते आज पूरे संसार में फ़ैल के अनगिनत हो गए। और उनके खुद के द्वारा प्रतिपादित नियम जिन पर वह खुद आजीवन चले और सभी प्राणी मात्र में श्रेष्ठ मनुष्यों को चलाया और वहीं नियम आगे चलकर कानून बने।
वह महान स्वयंभू मनु जिनकी स्मृतियों अनुभव को लिखित रूप में लिखने का श्रेय उनके महान पुत्र राजा उत्तनपाद को जाता है वह संविधान मनु स्मृति के नाम से लिखित संविधान बना जिसके नियम कानून दुनिया के सभी संविधान में श्रेष्ठ और मानव के लिए हितकारी है। उन्हीं मनु सतरूपा ने हजारों साल तपस्या किया और अंत में परमेश्वर केदर्शन किए वरदान मांगा कि आप जैसा सुंदर महान प्रतापी गुणवान पुत्र चाहिए भगवान अपने जैसा मनुष्य कहा से लाते क्योंकि कोई भगवान के बराबर तो क्या उंकेआपपास भी नहीं अतः उन्होंने वरदान दिया और खुद उनके पुत्र बनकर आने का संकल्प किया।
आज की स्टोरी के प्रमुख पात्र स्वयंभू मनु के अगले जन्म जब वह अपने सबसे प्रिय पुत्र महाराज उत्तान पाद जो अयोध्या के महाराजा अज के रूप में पुनर्जन्म लेकर राज्य कर रहे थे के पुत्र सत्यकेतु के रूप में जन्म लेते है। ईश्वर द्वारा प्रतिपादित नियम पुण्य के बदले पुण्य सेवा के बदले सेवा प्यार के बदले प्यार और पाप के बदले पाप जो इस जनम में मिलता है वह पूर्वजन्म का परिणाम है!
इसी नियम के आधार पर महान पितृ भक्त राजा उत्तानपाद का बदला चुकाने के लिए उनके पुत्र रूप में जन्म लिया।
राजकुमार सत्यकेतु के जनम लेते ही अयोध्या में शुभ मंगल सगुण होने लगे ऋद्धि सिद्धि खुशियों की बहार आ गई। सप्तऋषियों में से एक महान अजर अमर ऋषि वशिष्ठ जी जो सर्यकुल के पुरोहित राजगुरु थे! ने अपनीदिव्य दृष्टि से स्वयंभू मनु को पहचान लिया था यहां मैं इस बात को प्रमुखता से उल्लेख करना चाहता हूं कि ऋषि वशिष्ठ की पत्नी (Arundhati) अरुंधती (swaymbhu manu’s daughter) ) जिनका उल्लेख लगभग सभी वेद पुराणों में है और पति सेवा भक्ति के कारण वह स्वयं भी अजर अमर है! वह स्वयंभू मनु महाराज की पुत्री है (Arundhati) जिनका कन्या दान मनु महाराज ने वशिष्ठ को किया था और जिनसे हजारों ऋषि संताने हुई हैं। स्वयंभू मनु का सभी ऋषियों में से वशिष्ठ जीसे ज्यादा लगाव था और दोनों एक दूसरे को बहुत मानते थे अतः पुनर्जन्म होने के बावजूद वशिष्ठ जी ने मनु जी को पहचान लिया था।
As soon as Prince Satyaketu was born, happiness and prosperity began to become auspicious in Ayodhya. One of the Saptarishis was the great never die, Vasistha ji who was the priest of the Saryakul Rajguru! Had identified Swayambhu Manu in his divine vision. Here I want to mention prominently that the wife (Arundhati) Arundhati (swaymbhu manu’s daughter) of sage Vasistha is mentioned in almost all the Vedas.
बाबा तुलसी दास ने रामायण में बिल्कुल सही लिखा है और यह हमेशा होता है।
जाके जापर सत्य सनेहू। मिलहि सो तेहि नहि कछु संदेहू।।
jaake jaapar saty sanehoo, milahi so tehi nahi kuchhu sandehoo
(True love always comeback)
अर्थात : अगर कोई किसी से हृदय से प्रेम करता है! तो वह उसको हर हालत में मिलता है इसमें कोई संदेह नहीं है।
meaning: If someone loves someone with heart! So he gets it at all costs, there is no doubt.
चूंकि महर्षि वशिष्ठ की पत्नी अरुंधति जो विवाह से पूर्व और विवाह के बाद भी अपने पिता से अत्यधिक प्रेम करती थी और हमेशा अपने पिता के दर्शन की अभिलाषा रखती थी परन्तु पिता स्वयंभू मनु तो सबकुछ त्याग कर तपस्या करने लगे और इधर हजारों साल बीत गए हजारों पीढ़ी आई और गई समय चक्र बढ़ता गया। सेवा के बदले सेवा का जो प्राविधान है उसकेतहत मनु महाराज को अपनी पुत्री और पुत्र की सेवा करना नियमतः कर्ज चुकाना जरूरी था
Since Arundhati, wife of Maharishi Vashistha who loved her father immensely before and after marriage and always aspired to see her father, but father Swayambhu Manu gave up everything and started doing penance and thousands of years passed here.
Generations came and went as the cycle progressed. Under the provision of service in lieu of service, Manu Maharaj was required to serve his daughter and son regularly to repay the debt.
अतः सत्यकेतु के रूप में मनु महाराज ने अपने पूर्वजन्मके पुत्र उत्ताणपाद जो इस धरती पर पुनर्जन्म लेकर महाराज अज़ के रूप में थे के घर पुत्र रूप में आए, उनकी पुत्री जो इस जनम में उनकी गुरुमाता बनी तो उनकी सेवा का बदला आश्रम में रहकर चुकाना ही था।
Hence Manu Maharaj as Satyaketu in hisprevious birth Son of Uttanapada who was reborn on this earth as Maharaj Az. The house came in the form of a son, his daughter who was his Gurumata in this birth. If made, then his service was to be repaid by staying in the ashram.
राजकुमार सत्यकेतु शुक्लपक्ष के चंद्रमा की भांति बड़े होने लगे और फिर उनका यज्ञोपवीत संस्कार करके शिक्षा के लिए महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में भेज दिया गया। जहां वह बड़े मन से पढ़ाई करने लगे और स्वयं भिक्षा मांगकर, गाय के सेवा, आश्रम की साफ सफाई जो अन्य ब्रम्हचारी करते थे यह भी करते थे। गुरु आश्रम में कोई राजा प्रजा का भेद नहीं होता शिष्य सिर्फ शिष्य होता है! यही कारण था कि सभी शिष्यों को एक जैसे वस्त्र खाना सोना रहना एक जैसा होता था।
Prince Satyaketu began to grow like the moon of Shuklapaksha and then his Yajnopaveet rites were performed and sent to Maharishi Vasishta’s ashram for education. Where he started studying with a lot of heart and by asking for alms, doing cow service, cleaning the ashram which other brahmacharias used to do. In the Guru Ashram, there is no distinction between a king and a disciple, only a disciple! This was the reason that all the disciples had to be sleeping alike eating the same clothes.
आजकल भी स्कूलों में उसी परम्परा का निर्वाह किया जाता है! ड्रेस एक जैसी ही होती है परन्तु अन्य सभी सुविधाएं बच्चो को उनके माता पिता की आर्थिक स्थिति के अनुसार मिलती है जिससे बच्चो के अंदर शुरू से ही अमीर गरीब का अहंकार और द्वेष भावना का जन्म होता है सभ्य समाज में इसको रोकने की जरूरत है।
पूर्व जन्म में कौशल्या कौन थी? कौशल्या को क्यों मारना चाहता है रावण? Who was Kaushalya in previous birth? Why Ravan wants to kill Kaushalya?
शिक्षा ग्रहण के पश्चात राजकुमार सत्यकेतु युवराज बन गए अब उनकी पत्नी सतरूपा जो कौशल नरेश की पुत्री कौशल्या के रूप में जन्मी थी ! उनके बारे में एक दंतकथा है कि रावण ने उनका बचपन में शिशु कौशल्या का हरण कर लिया और उनको समुद्र में फेंक दिया, ताकि यह मर जाएगी ! तो इसका पुत्र कैसे जन्मेगा फिर उस शिशु को भगवान के मत्स्य रूपी अवतार मछली निगल जाते है
वह पुनः समुद्र के किनारे तपस्या कर रहे महर्षि अगस्त्य के पास आकर उनको बच्ची जिंदा दे जाते है। महर्षि अगस्त्य बच्ची को आश्रम भेज देते है और वही उनका पालन पोषण होता है! बड़ी होती हैं, उनकी शिक्षा आश्रम के कड़े नियमों में होती है! उसी गुरुकुल में कैकेय नरेश की पुत्री कैकेई भी शिक्षा ग्रहण कर रही थी और इस तरह दोनों राजकुमारी साथ पढ़ी और परस्पर अच्छी सहेली बन गई थी।
Prince Satyaketu became crown prince after his education, now his wife Satrupa, who was born as Kaushalya, daughter of Kaushal Naresh! There is a legend about him that Ravana took away his child Kaushalya in his childhood and threw him into the sea, so that it would die! So how would his son be born, and then the child was swallowed by the fish as a fish incarnation of God.
He again comes to Maharishi Agastya, who is doing penance on the banks of the sea, and gives him the baby alive. Maharishi Agastya sends the child to the ashram and he is nurtured! They grow up, their education is in the strict rules of the ashram! In the same gurukul, Kaikeyi, daughter of Kaikeya Naresh, was also studying and thus the two princesses studied together and became mutually good friends.
राजा रावण क्यों खुश था? क्या होता है जब वह कौशल्या को समुद्र में फेंक देता है? why king ravan was happy ? what happen when he throw kaushalya in sea?
रावण निश्चिंत था कि उसने नारायण के आने का रास्ता बन्द कर दिया जब कौशल्या ही नहीं रही तो उनका पुत्र राम कहा से आएगा और रावण तो अमर हो गया। परंतु होता वहीं है जो प्रभु चाहते है। शिक्षा के बाद राजकुमारी कैकेई अपने पिता के पास चली जाती है और कौशल्या को लेकर ऋषि अगस्त्य कौशल नरेश के पास जाकर सारी कथा बताकर उनकी पुत्री वापस करते है तथा उनको अयोध्या नरेश के युवराज सत्यकेतु के साथ विवाह का परामर्श देते है।
कौशल नरेश ने ऋषि की आज्ञा से महाराज अज से प्रार्थना की और फिर राजकुमार सत्यकेतु और कौशल्या का विवाह होता है।
Ravana was convinced that he stopped the way for Narayan to come, when Kaushalya could not exist, then his son Rama would come from where and Ravana became immortal.
After education, Princess Kaikeyi goes to her father and sage Agastya about Kaushalya goes back to king Kaushal and tells his story and returns his daughter and advises her to marry the King of Ayodhya with Satyaketu.
कैकेय नरेश महाराज अज के गुरूभाई और परम मित्र थे और दोनों राज्यों का एग्रीमेंट था कि अगर कोई तीसरा राज्य शत्रुता से इनमे से किसी पर आक्रमण करता है तो दोनों एक दूसरे की सहायता करेगे। नरेश अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार से करना चाहते थे उस समय बहु विवाह प्रथा थी परन्तु राजकुमार ने एक पत्नी रहते हुए दूसरी शादी करने से मना कर दिया।
Kaikeya Naresh Maharaj was Gurubhai(Classmate) and ultimate friend of Aja and the agreement of the two states was that both of them would help each other if a third state aggressively attacked any of them. The king wanted to marry his daughter to the prince at that time, it was a multi-marriage practice, but the prince refused to marry another while having a wife.
क्या हुआ जब रावण को पता चला कि कौशल्या जिन्दा है?What happened when Ravana came to know that Kaushalya was alive?
उधर राक्षस गुरु शुक्राचार्य ने रावण को कौशल्या के जीवित होने और दशरथ के साथ विवाह की पूरी कथा सुना दी!
अतः रावण अपने सभी प्रमुख दोस्त राक्षसों और विशाल सेना के साथ कौशल नरेश पर आक्रमण करता है! उस समय उनकी पुत्री कौशल्या भी अपने पिता के यहां सावन के महीने में झूला झूलने और कजरी तीज मनाने के लिए आई हुई थी।
राक्षसों की इतनी विशाल सेना देखकर अपनी हार निश्चित समझकर युद्ध तो करते हैैं किन्तु कई संदेश वाहक भेजकर अयोध्या को सूचना देते है कि जल्दी से जल्दी आकर कौशल्या को लेे जावे!
महाराज अज क्रोध में आते हैं और कैकेय नरेश को सूचना जाती है, अयोध्या की पराक्रमी सेना कौशल को प्रस्थान करती है !
जिसका नेतृत्व राजकुमार सत्यकेतु कर रहे थे, उधर कैकेय नरेश की बड़ी सेना भी आती है! जो अयोध्या की सेना के साथ मिल जाती है।सेनाएं कौशल पहुंचने में समय लगता है जिससे उधर कौशल नरेश के सभी तीनों राजकुमार वीरगति पा जाते है और कौशल नरेश बन्दी हो जाते हैं!
On the other hand, the demon Guru Shukracharya told Ravana the whole story of Kaushalya being alive and married with Dasaratha!
So Ravana attacks Kaushal Naresh with all his major friends, demons and huge army, at that time his daughter Kaushalya also came to her father to swing the swing in the month of Sawan and celebrate Kajri Teej.
Seeing such a huge army of demons, he considers his defeat to be a war, but by sending several messengers, he informs Ayodhya that he should come quickly and take Kaushalya!
Maharaja Aja comes in a rage and is informed by the Kaikeya king, the mighty army of Ayodhya departs the skill which was led by Prince Satyaketu, and there comes a large army of Kaikeya king! Which combines with the army of Ayodhya.
It takes time for the forces to reach Kaushal, whereby all the three princes of Kaushal Naresh killed by Ravan and Kaushal Naresh is captured
Was in front.
राक्षस पूरे कौशल पर अधिकार कर लेते हैं। कौशल्या को भी युद्ध करते हुए रावण ब्रम्ह फांश अस्त्र द्वारा बंदी बना लेता है और लंका जाने के लिए प्रस्थान करता है !पीछे से अयोध्या की सेना पहुंच जाती है और अब अयोध्याऔर लंका की सेनाएं अपने अपने सहयोगियों के साथ आमने सामने थी।
The demons take full skill. While fighting Kaushalya, Ravana captives by Brahma Phansh Astra and departs to Lanka! Ayodhya’s army reaches from behind and now Ayodhya and Lanka forces were face to face with their allies.
राजकुमार कुमार सत्यकेतु कैसे बने राजा दशरथ? दशरथ नाम था या उपाधि? How did Rajkumar Kumar Satyaketu become King Dasharatha? Was the name Dasharatha or title?
जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि रावण राजा दिलीप,रघु और अज किसी से भी कभी कोई युद्ध नहीं जीत सका था अतः सूर्यवंश का ध्वज देखकर उसकी हालत वैसे ही पस्त हो रही थी फिर भी युद्ध शुरू होता है रावण के नाभि में अमृत था उसको मारना कठिन था उसकी सेना भी अयोध्या की सेना के दस गुना थी परन्तु युद्ध किससे था
“कालहु डरे न रण रघुवंशी।”
राजकुमार सत्यकेतु ने धनुष की टंकार मात्र से राक्षसों के कान बहरे कर दिए,गुरु वशिष्ठ के अनुसार महाराज रघु और सत्यकेतु एक समान मेधावी शिष्य थे चूंकि वहीं दोनों के गुरु थे अतः उनकी तुलनात्मक समीक्षा सत्य थी। युद्ध शुरू हुआ राजकुमार के तेजी से चलाए जा रहे तीर किसी की समझ से परे थे चारो तरफ सिर्फ चीख पुकार लाश ही दिखाई पड़ रही थी।
राजकुमार का सामना खरदूषण, तृषिरा, अकंपन, अतिकाय , मेघनाद, अक्षयकूमार,मारीच , सुबाहु, देवांतक, मुष्टिक , लवनासुर आदि एक से एक बलवान और वरदानी राक्षस वीर नहीं कर पा रहे थे।
उधर महाराज आज और कैकेय नरेश राक्षस सेना पर योजना बद्ध तरीके से दो तरफ से आक्रमण करते हैं जिससे संख्या में बहुत बड़ी होने के बावजूद रावण की सेना में कोहराम मच जाता है राक्षस सेना के पैर उखड़ जाते है और सेना भाग खड़ी होती है।
जिससे क्रोधित होकर रावण का नाग कन्या से उत्पन्न पुत्र अहिरावण जो माता शक्ति का परम भक्त और वरदानी था जिसको कोई मनुष्य देवता असुर किन्नर नाग गंधर्व मार ही नहीं सकता था ने अपने सहोदर भ्राता महिरावन के साथ मिलकर कैकेय नरेश के सामने आकर बड़ा तीव्र हमला कर देता है और अधर्म युद्ध करके (अर्थात एक के ऊपर दो या अधिक लोग प्रहार करते है )
कैकेई जो स्वयं युद्ध करते हुए अपने रथ पर थी वह राजकुमार सत्यकेतु को सेना में अकेले घिरे हुए देखकर अपना रथ उनके पास ले जाती है, चूंकि उसके पिता का आदेश था कि वह राजकुमार के आस पास रहे अगर शत्रु धोखा करे राजकुमार पर पीछे से वार करने की कोशिश व्यर्थ करना उसको काम सौंपा गया था।
Kaikei, who was on his own chariot while fighting, sees Prince Satyaketu surrounded alone in the army and takes his chariot to him, as his father’s order was to stay around the prince if the enemy cheats on the prince from behind. He was tasked to try to waste it.
जो वह बखूबी निभा रही थी परन्तु राजकुमार को यह पता नहीं था कि उनकी पीछे से रक्षा कोई नारी कर रही थी। उधर अहिरावण के अधर्म पूर्ण प्रहार से काकेई के पिता श्री रथ से गिर जाते है और दर्द से बिलबिलाए राजा को मारने के लिए अहिरावण का भाई महि रावण अपनी तलवार उठाता है!
Which she was doing well, but the prince did not know that a woman was protecting him from behind. On the other hand, Ahiravan’s iniquity falls from the chariot of Kaikeyi’s father Chariot and Ahirvan’s brother Mahi Ravana lifts his sword to kill the king who is pained!
राजा की चीख सुनकर राजकुमार सत्यकेतु ने शब्दभेदी वाण बिना देखे आवाज पर चला देते है! जिससे वह वाण सीधा महीरावन के ह्रदय में घुस जाता है और उसकी वहीं मृत्यु हो जाती है। घायल राजा को शब्द भेदी बाण मारकर हजारों शत्रुओं का संहार करते हुए राजकुमार सत्यकेतु बचाकर निकाल लेते है। यह देखकर राजकुमारी ककेई उनकी भक्त बन जाती है।
Hearing the screams of the king, Prince Satyaketu, without looking at the words of words, would run on the voice! Due to which Vana directly enters the heart of Mahiravan and he dies there. The prince Satyaketu rescues the wounded king by piercing the word and killing thousands of enemies. Seeing this, Princess Kakei becomes his devotee.
उधर महाराज अज के वानो की वर्षा से रावण सेना कहीं ठहर नहीं पा रही थी! भागने पर भी जान बचने वाली नहीं थी रावण का आदेश था, कि भागे तो वह खुद उनका वध करेगा! इधर अयोध्या नरेश उधर राजकुमार सत्यकेतु और तीसरी तरफ से घायल अवस्था में ही कैकय नरेश ने शत्रु सेना में त्राहि त्राहि मचा दिया।
On the other hand, Ravana’s army was unable to stop anywhere due to the rain of Maharaj Aja’s arrows! Ravana’s order was not going to save even when he was running, that if he runs, he will kill them himself! Here the King of Ayodhya, the Prince Satyaketu and the Kaikeya King, in the injured state from the third side, made a storm in the enemy army.
मित्र को घायल देख अयोध्या नरेश अज अत्यंत क्रोधित हो जाते है औरअपने सामने लड़ रहे! रावण के नाना माळ्यवान के भाई सुमाली पर एक साथ सौ तीर मारकर उसका सर धड़ से अलग कर देते हैं !
और उसके रथ पर बांधे हुए अपने संबंधी कौशल नरेश को मुक्त करवा लेते है। कौशल नरेश मुक्त होकर दोगुने उत्साह के साथ युद्ध में पुनः लग जाते है। अपने महान पराक्रमी बना सुमालि वध, महान पराक्रमी पुत्र वध से क्रोधित रावण महान गर्जना करता है।
याद रहे रावण का एक महान पराक्रमी पुत्र महिरावण का सत्यकेतु के शब्द भेदी वाण से वध हो चुका था।
Ayodhya King Aj gets very angry after seeing his friend injured and fighting in front of him! Ravana’s maternal grandfather removes his head from the torso by hitting a hundred arrows at Sumali’s brother Sumali and frees his relative skills Naresh,
who is tied on his chariot. The King of Kaushal gets freed and rejoins the battle with double enthusiasm.
Sumali slaughter made his great mighty, Ravana angry with great mighty son slaughter roars great.
अब रावण की सेना पर चारो तरफ से प्रहार हो रहे थे एक तरफ खुद अयोध्या के राजा थे जिनका सामना पहले भी कर चुका था रावण और युद्ध में बंदी हो गया था ब्राह्मण पुत्र कहकर जीवन दान दिया था !
राजा ने, उनसे सामना वह करना नहीं चाहता था, दूसरी ओर तीसरी तरफ कौशल नरेश और कैके य नरेश थे जिनसे उसकी सेना का कोई भी निपट सकता था!
अतःरावण ने अपना रथ लेे जाकर राजकुमार के सामने लगा दिया,और अपने साथ सभी बड़े बड़े योद्धाओं को लेे लिया। अब शुरू हुआ दिव्यास्त्रों का युद्ध,राजकुमार सत्यकेतु और राजा रावण के मध्य घमासान युद्ध जिसे देखने केलिए आकाश में देवता,गन्धर्व खड़े हो गए।
Now Ravana’s army was being attacked from all sides, on one side there was the king of Ayodhya himself, who had faced Ravana before and was imprisoned in the war.
He had given life by saying that the Brahmin son, the king did not want to face him. Was, on the other side there were Kaushal Naresh and Kaikeya Naresh on the third side which no one of his army could deal with, so Ravana took his chariot and placed it in front of the prince, and took all the great warriors with him.
रावण ने अत्यंत क्रोध में दुर्वचन कहते हुए अपने पुत्र का बदला हर हालत में लेने की घोषणा कर डाली और बड़े वेग के साथ राजकुमार पर तीर छोड़ने लगा किन्तु सामने कोई मामूली योद्ध्य नहीं अपितु गुरु वशिष्ठ के शिष्य और महान तपस्वी महान वीर शास्त्र और शस्त्र के ज्ञाता सत्यकेतु थे उन्होंने रावण के सभी तीर रास्ते में ही नष्ट कर दिए और पुनः अपने धनुष को खीचकर रावण के संभलने के पूर्व उसके दस सिर का लक्ष्य करके दस दस बान मारे जो रावण के सभी सिरो में घुसकर ऐसे लग रहे थे मानो किसी पहाड़ पर नाग लिपटे है और उसके शरीर से बहती रक्त धारा ऐसे लग रही थी कि पहाड़ से छोटे छोटे झरने बह रहे हो।
Ravana, in great rage, declared his son to be avenged at all costs, calling it a misdemeanor, and with great speed, started throwing arrows at the prince, but in front of him was no ordinary warrior, but the disciple of Guru Vashistha and the great ascetic of the great heroic scriptures and weapons. The knower was Satyaketu, he destroyed all the arrows of Ravana on the way and again pulling his bow and aiming for ten heads of Ravana before he could reach him, shot ten arrows, which seemed to enter all the heads of Ravana.
रावण अधमरा होकर रथ में ही मूर्छित हो गया उसका सारथी रथ लेकर भागा, अब राजकुमार सत्यकेतु साक्षात महाकाल का रूप रख चुके थे क्योंकि उन्होंने अपने पिता समान पत्नी के पिता की दुर्दशा और पत्नी के भाईयो की मृत्यु और पत्नी का बंदी होना आदि से क्रोधित होना स्वाभाविक था उन्होंने इन्द्र द्वारा दिए गए अक्षय तरकश से जब वाण चलने शुरू हुए तो ऐसा कोई महारथी नहीं बचा जिसके शरीर से रुधिर की धाराएं न बह रही हो। उनके युद्ध को देखकर देवता आकाश में नृत्य करने लगे और राक्षस सेना में भगदड़ मच गई।
Ravana became adamant and fainted in the chariot, his charioteer ran away with the chariot, now Prince Satyaketu had taken the form of Sakshat Mahakala because he was angry with the plight of his father’s equal wife’s father and the death of his brothers and wife’s captivity, etc. Naturally, when he started walking with the renewable quiver given by Indra, there was no such maharathi whose blood streams were not flowing from his body. Seeing their war, the gods started dancing in the sky and the demon army was routed.
अब रावण की आज्ञा से उधर कुछ प्रमुख सेना नायकों को धर्म युद्ध के लिए भेजकर अयोध्या नरेश सहित सभी सेनानियों को व्यस्त कराकर योजना बद्ध तरीके से अधर्म युद्ध द्वारा राजकुमार सत्यकेतु को मार डालने के लिए रावण मेघनाद खर दूषण त्रिसिरा अतीकाय,लावनासुर,मारीच, सुबाहु और विराध नामक 10 महान वरदानी राक्षस जो आसुरी और हर प्रकार की विद्याओं से निपुण थे सबने घेरकर उनकी हत्या की योजना के तहत आक्रमण किया।
Now by sending some of the main army heroes for the war of religion under the orders of Ravana, by busy all the fighters including the King of Ayodhya!
Ravana Meghnad Khar Dushan Trisira Atikaya, Lavanasur, Maricha, Subahu and Viradha, 10 great giants who were adept with demoniacs and all kinds of disciplines, surrounded and planned to assassinate them to kill Prince Satyaketu in a lawless manner. Invaded under.
राजकुमार का सारथी बड़ा निपुण सारथी था उनके रथ की गति इतनी थी कि दस दिशाओं से अस्त्र शस्त्र आते रहे और राजकुमार उनको व्यर्थ करते जा रहे थे यह वीरता देखकर आकाश से देवता पुष्प वर्षा कर रहे थे।
The charioteer of the prince was a very skillful charioteer, the speed of his chariot was such that the weapons kept coming from ten directions and the prince was going to waste them.
राजकुमार ने आकाश की तरफ जहां से मेघनाद दिव्यास्त्र चला रहा था ! मंत्र अभिपुरीत दीवाल चक्र बना दिया जिससे ऊपर के अस्त्र सभी ऊपर ही स्वतः नष्ट हो रहे थे यह विद्या सिर्फ गुरु वशिष्ठ के पास थी जो उन्होंने दिलीप के काल में सिद्धि की थी और राजा दिलीप फिर रघु और अब सत्यकेतु को प्रदान की थी, और इसके बाद यह विद्या श्रीराम और लक्ष्मण को भी दी थी।
The prince walked towards the sky from where Meghnad was driving the divya! The mantra made the Abhilavar Diwala Chakra so that the above weapons were all automatically destroyed above. This knowledge was only with Guru Vashistha which he had accomplished during the time of Dileep and provided it to King Dilip then to Raghu and now Satyaketu, and its Later this knowledge was also given to Shri Ram and Lakshmana.
इसके बाद उन्होंने मंत्र से अपने रथ के आसपास चक्र बनाने का मंत्र पढ़ना शुरू किया और दूसरी तरफ युद्ध भी कर रहे थे कि इतने में रावण ने उनके सारथी को निशाना बनाकर! उसपर शक्ति चला दी गरुण शक्ति अचूक थी !सारथी का सिर धड़ से अलग हो गया दूसरी तरफ से मारीच ने उनके रथ के पहिए की धुरी का कील जिसके सहारे रथ का पहिया बाहर नहीं निकलता है ! वह निकाल दिया जिससे घूमते हुए रथ से पहिया निकल गया और राजकुमार के इतने में ही त्रिसिरा की फेंकी हुई बरछी घुस जाती है!
After this, he started reciting the mantra to chakra around his chariot and was also fighting on the other side that Ravana targeted his charioteer. The power of the charioteer was unmistakable! The charioteer’s head was severed from the other side, from the other side, Marich spiked the axle of the wheel of his chariot with the support of which the wheel of the chariot does not come out! He fired, which led to the wheel coming out of the chariot, and in the Prince’s lot, Trisira’s thrown spear entered!
जिससे राजकुमार जमीन पर गिर जाते हैं ! यह दृश्य देखकर वीरांगना कैकेई अपने रथ को वायु के समान वेग से लेकर वहां पहुंचकर राजकुमार को उठाकर अपने रथ में बैठा देती हैं। कैकेई के रथ की गति तो उनके रथ से भी तेज थी! अब अपने घाव की परवाह न करते हुए !
Due to which the princes fall to the ground! Seeing this scene, Veerangana Kaikei takes her chariot with the same velocity as air and reaches there and picks up the prince and sits in his chariot. The speed of Kaikeyi’s chariot was faster than his chariot! Now not caring about your wound!
राजकुमार सत्यकेतु युद्ध के साथ मंत्र पढ़ते हुए सुरक्षा कवच बनाने में सफल हो गए !अब उनके आगे पीछे दाए बाए सभी तरफ मंत्रो की दीवाल थी जिसको कोई अस्त्र शस्त्र भेद नहीं सकता था!
Prince Satyaketu succeeded in creating a protective shield while reciting the mantra with war! Now there was a wall of chants on the left and right sides, which no weapon could distinguish.
अब राजकुमार सत्यकेतु महाकाल बनकर सभी राक्षसों पर टूट पड़े उन्होंने रावण को लक्ष्य करके 100 वाण चलाए जिससे उसके शरीर में भयंकर घाव हो गए और वह मूर्छित हो गया. रावण पुत्र मेघनाद आकाश से नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र चला रहा था किन्तु सुरक्षा चक्र से टकराकर नष्ट हो रहे थे. इसके बाद राजकुमार सत्यकेतु ने बड़े वेग के साथ नाना प्रकार के बंधन युक्त अस्त्र चलाए और रावण मेघनाद सहित दस के दस महारथी के रथ तोड़कर सारथी मारकर उनको निशस्त्र कर दिया और बंदी बना लिया।
Now Prince Satyaketu became a Mahakal and broke on all the demons, and he targeted Ravana and fired 100 vaan which caused severe wounds in his body and he became unconscious. Ravana’s son Meghnad was running various types of weapons from the sky, but he was getting destroyed after colliding with the security circle. After this, Prince Satyaketu, with great speed, carried a variety of weapons and broke the chariots of ten maharathis, including Ravana Meghnad, by killing the charioteer and disarmed them.
रावण मूर्च्छा से जाग चुका था उसने सत्यकेतु की वीरता देख कर खुद प्रशंसा करते हुए बोला:-
धन्य धन्य: जननी तवम धन्य नरेश पिता अज:।
धन्य: तव गुरु: विप्र: शस्त्र,विद्या ददाति जिम।
धनयम धारायती त्वमस्त्रतानाम।
धन्य धन्य: त्वं बलम। धिग बलम आसुरी विद्या आर्य सिद्धि बलम बलम।।
अर्थात आपकी माता धन्य है आपके पिता महाराज अज धन्य है और आपके गुरु वह ब्राह्मण धन्य है जिन्होंने आपको शिक्षा दिया है।आपके शौर्य और बल धन्य है जबकि हमारी आसुरी विद्या को धिक्कार है और इससे सिद्ध होता है कि आर्यो की शक्ति सच की शक्ति है और असुर शक्ति शून्य है।
सभी दस महारथियों बंदी बनाकर विजय घोष के साथ जयनाद होने लगे आकाश से देवता पुष्प वर्षा करने लगे और परमपिता ब्रम्हा ने एक साथ अकेले दस महारथियों से जीतने के कारण उनका नाम दसरथ किया इस तरह राजकुमार सत्यकेतु दशरथ हो गए।
All the ten maharathis were taken captive and began to vie with Vijay Ghosh, the gods started showering flowers from the sky and Parampita Bramha won his name with ten maharathis together, and he was nominated for this way, thus Prince Satyaketu became Dasharatha.
दशरथ जी जब अपने नए सारथी को गले लगाकर उसको धन्यवाद देने लगे तो उनको मालूम हुआ कि वह पुरुष नहीं अपितु राजकुमारी कैकेई है! उनकी वीरता और बुद्धि के दशरथ जी कायल हो चुके थे अतः उनके साथ विवाह के प्रस्ताव को अपने पिता और उनके मित्र के समक्ष रखा जिसको सभी ने स्वीकार कर लिया। अब महाराज अज के दरबार में सभी बंदी लाए गए और राजकुमारी कैकेई सहित कौशल्या और सभी का प्रस्ताव था कि इन सभी बंदियों को मृत्यु दण्ड दिया जाए। महाराज ने दरबार में फैसला करने की बात कहकर टाल दिया।
When Dashrath ji embraced his new charioteer and started thanking him, he came to know that he is not a man but a princess Kaikei! Dasharatha ji was convinced of his bravery and wisdom, so put the proposal of marriage with him to his father and his friend, which was accepted by all. Now all the captives were brought to the court of Maharaja Aja and Kaushalya and everyone, including Princess Kaikeyi, proposed that all these prisoners be given death sentence. The king deferred the decision to make a decision in the court.
इधर सारा समाचार लंका पहुंचा और रावण की माता केकसी भागी हुई अपने पति ऋषि विसरवा के पास भागी उनकी अनुनय विनय की अंत में पत्नी की प्रार्थना पर उन्होंने ब्रम्हा जी से प्रार्थना की जिससे ब्रमहाजी स्वयं ऋषि के साथ युवराज दशरथ से मिले और ब्रम्हाण पुत्रो को छोड़ देने की प्रार्थना की,ऋषियों ब्राह्मणों को ईश्वर से बढ़कर मानने वाले रघुवंशी दशरथ को रावण के पिता पर दया आ गई अतः उन्होंने युवराज के
अधिकार से दुष्टों को जीवन दान दे दिया और पिता से प्रार्थना करके उनको छुड़वा दिया।
Here the whole news reached Lanka and Ravana’s mother ran away to her husband Rishi Visarva, at the end of his plea Vinay, at the end of his wife’s prayer, he prayed to Bramha Ji so that Bramhaji himself met Yuvraj Dasaratha with the sage and left the Brahman sons. Raghubanshi Dasaratha, who considered the sages Brahmins to be more than God, took pity on Ravana’s father, so he prayed to the crown prince With authority, he gave life to the wicked and prayed to the father and rescued them.
कैकई ने क्यों और क्या की प्रतिज्ञा कैसे हुई पूरी? How and what did Kaikai fulfill his vow?
परंतु अपने पिता के साथ और दशरथ के साथ अधर्म युद्ध के कारण कैकेई ने प्रतिज्ञा उठा ली थी कि इन दस और अहिरावण को हर हालत मै मृत्यु दंड देना है उनकी बात खराब होने से वह दुखी हुई किन्तु यह कहां कि इन सभी दुष्टों की मृत्यु मेरे पुत्रो अवश्य होगी।
But due to the unrighteous war with his father and with Dasaratha, Kaikei took a pledge that these ten and non-violent people have to be punished with death at all costs. They were saddened by the worsening of them, but where is the death of all these wicked Will definitely have sons.
राम वन गमन में माता कैकेई खलनायक बनी, पति खोया किन्तु अपनी
प्रतिज्ञा पूरी कराई इन सभी दुष्टों का वध उनके पुत्रो द्वारा किया गया।(Mata Kaikei became the villain in Ram Van Gaman, husband lost but his
All the wicked were slaughtered by their sons.)
अतः निष्कर्ष में कह सकते है कि महान राजा दशरथ अपने पुत्र भगवान राम से कहीं भी कम नहीं थे वह ईश्वर थे तो यह भक्त थे, वीरता और अन्य गुणों ने अधिक ही थे कम नहीं। राम जैसा पुत्र तो सबको चाहिए, कभी यह भी सोचो कि क्या आप दशरथ जैसे पिता है क्या? जब आप दशरथ नहीं बन सकते तो पुत्र राम कैसे हो सकता है।
Therefore, in conclusion, one can say that the great King Dasaratha was not less than his son Lord Rama, if he was a god, then he was a devotee, valor and other qualities were not less. Everyone needs a son like Rama, ever think whether you are a father like Dasaratha? How can you become a son Rama when you cannot become Dasharatha?
अस्तु जय सिया राम
प्रस्तुति पंडित विजय कुमार अवस्थी
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