सावन सुखी जेठ हरी बिना बीज के तीन फरी, पहेली,

Adarsh Dharm Gyan ki baatein

जय श्रीकृष्ण मित्रो

जब सावन का महीना था तब सुखा पड़ा रहा अर्थात तब तक कोई संतान नहीं हुई बंश बेल सुख गई। यानी की औलाद नहीं मिली इसीलिए उसको सावन

 सुखी की संज्ञा दी गई है।

 पहेली का शब्दार्थ

सावन सूखी = सावन बरसात का वह महीना है जिसमे प्रथ्वी पर चारो तरफ सिर्फ हरियाली ही दिखती है। किंतु यहां सावन को सुखी बताया गया है।

जेठ हरी = जबकि जेठ का महीना गर्मियों का सबसे ज्यादा गर्म महीना है जिसमे पौधे तो क्या बड़े बड़े पेड़ तक सुख जाते हैं जबकि इस पहेली

 में जेठ में हरी होने की बात की गई है।

बिना बीज के = अर्थात खेत में बिना बीज के ही फसल हो गई ।

 प्रस्तुत पहेली को समझने के लिए सत्यवती के द्वितीय पुत्र विचित्र वीर्य जो क्षय रोग टीवी से पीड़ित था जिसका

उस जमाने में कोई इलाज नहीं था, लाइलाज बीमारी थी। सत्यवती का प्रथम पुत्र चित्रांगद ने राजा बनने के थोड़े ही दिनों बाद आत्मदाह कर

लिया था। अतः बीमार विचित्र वीर्य को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया, एक टीवी के बीमार व्यक्ति से कोई कन्या विवाह को तैयार नहीं थी

 क्योंकि सभी को मालूम था कि विचित्रवीर्य   की आयु समाप्त है। किंतु वंश वेल को आगे बढ़ाने के लिए राजा का विवाह जरूरी था अतः भीष्म ने

काशीराज की लड़कियों को जबरदस्ती स्वंयबर से उठा कर दो राजकुमारियों से राजा विचित्रवीर्य का विवाह कर दिया यह पूरी कथा आप लोग

महाभारत सीरियल में देख चुके हो इसलिए इसको विस्तार न देते हुए आगे बढ़ते हैं।  किन्तु जो विधि का विधान है उसको कोई टाल नहीं सकता था

विवाह के तुरंत बाद विचित्र वीर्य की मृत्यु हो गई इसलिए राजकुमारियों को कोई संतान नहीं मिल पाई।

 विचित्र वीर्य की मृत्यु के बाद सत्यवती ने भीष्म से राजा बनने को कहा किंतु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा को ज्यादा महत्व देते हुए राजा बनना स्वीकार

 नहीं किया। अब समस्या थी कि सिंहासन खाली कैसे रहे कोई न कोई उत्तराधिकारी होना आवश्यक हैं अतः ऋषि नियोग को मंजूरी दी गई इसके लिए

 राजमाता सत्यवती ने अपने ऋषि पुत्र वैसम्पायन जिनको बाद में वेद व्यास कहा गया को बुलाया। माता की आज्ञा से उन्होंने दृष्टि भोग द्वारा संतान उत्पत्ति

 का संकल्प किया।

अब सत्यवती ने दोनो को डांटा और कहा कि एक चांस और लो ताकि कोई एक तो स्वस्थ बच्चा आए। अबकी बार दोनो रानियों ने मिलकर षड्यंत्र के

 तहत ऋषि के पास खुद न जाकर अपनी एक दासी को भेज दिया जो सहर्ष मुस्करा कर गई दिव्य दृष्टि पड़ते ही गर्भवती हो गई।

व्यास ने पुनः माता को बताया कि इस बारी दासी भेज दी थी। अब मेरी सारी तप शक्ति क्षीण हो चुकी है अतः ईश्वर को यही मंजूर था।

 सबसे पहले विचित्रवीर्य की बड़ी रानी को उनके कक्ष में भेजा गया, व्यास जी की आज्ञा थी निर्वस्त्र आने की किंतु कोई भी नारी किसी पुरुष के समक्ष

निर्वस्त्र कैसे जाए शर्म तो आयेगी ही अतः रानी ने सोचा कि शर्म तो तब आयेगी जब हम ऋषि को देखेगे क्यों न हम अपनी आंखे बंद करके जाएं, इसलिए

 उसने अपनी आंख बंद करके कक्ष में प्रवेश किया, ऋषि की आंखों से निकली शक्ति से वह गर्भवती तो हो गईं किंतु व्यास जी अपनी माता से बोले

नयन मूंदी कर हम पहि आई। अंधही पुत्र होहि तेहि माई।

इसके बाद दूसरी रानी को भेजा गया तो वह अपने शरीर पर पिंडोर अर्थात मिट्टी का लेप लगाकर पहुंची ताकि बिना वस्त्र के अपने शरीर को ढंक कर ऋषि के

 पास जाए। ऋषि ने जैसे ही दिव्य दृष्टि डाली चूंकि दृष्टि पूरी तरह से शरीर में प्रविष्ट नहीं हुई इसलिए बालक तो हुआ,

पिंडौर लगें होने से अत्यंत सुंदर हुआ किन्तु अल्पायु हुआ। व्यास जी ने यह रहस्य भीष्म और सत्यवती दोनों को बता दिया।

 चूंकि सभी बालक बिना स्त्री पुरुष के मिलन के तप शक्ति की दृष्टि भोग से हुए इसलिए कहा गया कि बिना बीज के फल लग गए।

इसके बाद रानियों को अंधा धृतराष्ट्र, पीलिया ग्रसित कमजोर पांडु, और दासी पुत्र महान विद्वान विदुर पैदा हुए। 

चूंकि पति के मर जानें के बाद जब संतान होने के चांस नहीं थे इसलिए उस समय को जेठ के महीने से संज्ञा दी गई है और उस जेठ के महीने में

 अपने जेष्ठ की दृष्टि भोग द्वारा बालक जन्मे इसलिए जेठ हरी अर्थात हरित कहा गया है।

उम्मीद करते हैं कि श्रीमान हरजीलाल गुर्जर समेत कमेंट बॉक्स में यह पहेली पूछने वाले दसियो मित्रों को अपने प्रश्न का समुचित उत्तर मिल गया होगा!

अस्तु जय श्रीकृष्ण।

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