हनुमानजी ने सिन्दूर क्यों लगाया, जाने कथा

हनुमानजी ने सिन्दूर क्यों लगाया, जाने कथा,hanuman ji ne sindoor kyon lagaya

Adarsh Dharm ansuni katha kahani

महायुद्ध समाप्त हो चुका था। जगत को त्रास देने वाला रावण अपने कुटुम्ब सहित नष्ट हो चुका था। कौशलाधीश राम के नेतृत्व में चारो ओर शांति थी।   राम का राज्याभिषेक हुआ। राजा राम ने सभी वानर और राक्षस मित्रों को ससम्मान विदा किया। अंगद को विदा करते समय राम रो पड़े थे। हनुमान को विदा करने की शक्ति तो श्रीराम में भी नहीं थी। माता सीता भी उन्हें पुत्रवत् मानती थी। हनुमान अयोध्या में ही रह गए।

हनुमानजी क्यों बोले सीता माता रामजी के साथ रह सकती है मैं क्यों नहीं?

राम दिन भर दरबार में, शासन व्यवस्था में व्यस्त रहे। सन्धा जब शासकीय कार्यों से छूट मिली तो गुरु और माताओं का कुशलक्षेम पूछ अपने कक्ष में आए। हनुमान उनके पीछे-पीछे ही थे। राम के निजी कक्ष में उनके सारे अनुज अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उपस्थित थे।
 वनवास, युद्ध, और फिर अनन्त औपचारिकताओं के पश्चात यह प्रथम अवसर था जब पूरा परिवार एक साथ उपस्थित था। राम, सीता और लक्ष्मण को तो नहीं, कदाचित अन्य वधुओं को एक बाहरी, अर्थात हनुमान का वहाँ होना अनुचित प्रतीत हो रहा था।
 क्योंकि शत्रुघ्न सबसे छोटे थे, अतः वे ही अपनी भाभियों और अपनी पत्नी की इच्छापूर्ति हेतु संकेतों में ही हनुमान को कक्ष से जाने के लिए कह रहे थे। पर आश्चर्य की बात कि हनुमान जैसा ज्ञाता भी यह मामूली संकेत समझने में असमर्थ हो रहा था। 
  उनकी उपस्थिति में ही बहुत देर तक सारे परिवार ने जी भर कर बातें की। फिर भरत को ध्यान आया कि भैया-भाभी को भी एकान्त मिलना चाहिए। उर्मिला को देख उनके मन में हूक उठती थी। इस पतिव्रता को भी अपने पति का सानिध्य चाहिए। 
अतः उन्होंने राम से आज्ञा ली, और सबको जाकर विश्राम करने की सलाह दी। सब उठे और राम-जानकी का चरणस्पर्श कर जाने को हुए। परन्तु हनुमान वहीं बैठे रहे। उन्हें देख अन्य सभी उनके उठने की प्रतीक्षा करने लगे कि सब साथ ही निकले बाहर।  राम ने मुस्कुराते हुए हनुमान से कहा–”क्यों वीर, तुम भी जाओ। तनिक विश्राम कर लो।” हनुमान बोले–”प्रभु, आप सम्मुख हैं, इससे अधिक विश्रामदायक भला कुछ हो सकता है ? मैं तो आपको छोड़कर नहीं जाने वाला।”          शत्रुघ्न तनिक क्रोध से बोले–”परन्तु भैया को विश्राम की आवश्यकता है। कपीश्वर! उन्हें एकान्त चाहिए।”हनुमान बोले–”हाँ तो मैं कौन सा प्रभु के विश्राम में बाधा डालता हूँ। मैं तो यहाँ पैताने बैठा हूँ।”

 शत्रुघ्न बोले–”आपने कदाचित सुना नहीं। भैया को एकान्त की आवश्यकता है।” हनुमान बोले–”पर माता सीता तो यहीं हैं। वे भी तो नहीं जा रही। फिर मुझे ही क्यों निकालना चाहते हैं

 

hanumanji ne sindur kyon lagaya
hanumanji ne sindur kyon lagaya

ऐसी कौन सी सनातन की प्रथा है जिससे हनुमान जी सदा रामजी के साथ रह सकते है?

 आप?” शत्रुघ्न ने कहा–”भाभी को भैया के एकान्त में भी साथ रहने का अधिकार प्राप्त है। क्या उनके माथे पर आपको सिन्दूर नहीं दिखता ?” हनुमान आश्चर्यचकित रह गए। प्रभु श्रीराम से बोले–”प्रभु, क्या यह सिन्दूर लगाने से किसी को आपके निकट रहने का अधिकार प्राप्त हो जाता है ?”
राम मुस्कुराते हुए बोले–”अवश्य। यह तो सनातन प्रथा है हनुमान।” यह सुन हनुमान तनिक मायूस होते हुए उठे और राम-जानकी को प्रणाम कर बाहर चले गए। 
 प्रातः राजा राम का दरबार लगा था। साधारण औपचारिक कार्य हो रहे थे कि नगर के प्रतिष्ठित व्यापारी न्याय मांगते दरबार में उपस्थित हुए। ज्ञात हुआ कि पूरी अयोध्या में रात भर व्यापारियों के भण्डारों को तोड़-तोड़ कर हनुमान उत्पात मचाते रहे थे। 
राम ने यह सब सुना और सैनिकों को आदेश दिया कि हनुमान को राजसभा में उपस्थित किया जाए।

रामाज्ञा का पालन करने सैनिक अभी निकले भी नहीं थे कि केसरिया रंग में रंगे-पुते हनुमान अपनी चौड़ी मुस्कान और हाथी जैसी मस्त चाल से चलते हुए सभा में उपस्थित हुए।

Sindur se range Hanumanji

उनका पूरा शरीर सिन्दूर से पटा हुआ था। एक-एक पग धरने पर उनके शरीर से एक-एक सेर सिन्दूर भूमि पर गिर जाता। उनकी चाल के साथ पीछे की ओर वायु के साथ सिन्दूर उड़ता रहता। 

          राम के निकट आकर उन्होंने प्रणाम किया। अभी तक सन्न होकर देखती सभा, एकाएक जोर से हँसने लगी।
 अंततः बन्दर ने बन्दरों वाला ही काम किया। अपनी हँसी रोकते हुए सौमित्र लक्ष्मण बोले–”यह क्या किया कपिश्रेष्ठ ? यह सिन्दूर से स्नान क्यों ? क्या यह आप वानरों की कोई प्रथा है ?”
          हनुमान प्रफुल्लित स्वर में बोले–”अरे नहीं भैया। यह तो आर्यों की प्रथा है। मुझे कल ही पता चला कि अगर एक चुटकी सिन्दूर लगा लो तो प्रभु राम के निकट रहने का अधिकार मिल जाता है। तो मैंने सारी अयोध्या का सिन्दूर लगा लिया। क्यों प्रभु, अब तो कोई मुझे आपसे दूर नहीं कर पाएगा  न?”
          सारी सभा हँस रही थी। किंतु भरत हाथ जोड़े अश्रु बहा रहे थे। यह देख शत्रुघ्न बोले–”भैया, सब हँस रहे हैं और आप रो रहे हैं ? क्या हुआ ?” 
          भरत स्वयं को सम्भालते हुए बोले–”अनुज, तुम देख नहीं रहे! वानरों का एक श्रेष्ठ नेता, वानरराज का सबसे विद्वान मंत्री, कदाचित सम्पूर्ण मानवजाति का सर्वश्रेष्ठ वीर, सभी सिद्धियों, सभी निधियों का स्वामी, वेद पारङ्गत, शास्त्र मर्मज्ञ यह कपिश्रेष्ठ अपना सारा गर्व, सारा ज्ञान भूल कैसे रामभक्ति में लीन है। 
राम की निकटता प्राप्त करने की कैसी उत्कण्ठ इच्छा, जो यह स्वयं को भूल चुका है। ऐसी भक्ति का वरदान कदाचित ब्रह्मा भी किसी को न दे पाएं। मुझ भरत को राम का अनुज मान भले कोई याद कर ले, पर इस भक्त शिरोमणि हनुमान को संसार कभी भूल नहीं पाएगा। 

Pandit Vijay Kumar Awasthi Adarsh Dharm

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