मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खिलाने की परंपरा को शुरुवात किसने की ? मकर संक्रांति में अन्न दान , गो दान ,गंगा या अन्य नदी स्नान, आदि तो लाखो सालो साल से चले आ रहे हैं किन्तु इस दिन खिचड़ी ही क्यों खिलाई जाती है? क्यों अपनी बहन बेटी के घर खिचड़ी और उसके साथ घी,मक्खन आदि ही दान में दी जाती है?
तो आज मैं आपको एक बहुत ही रहस्यमय प्रसंग बतलाना चाहता हूं जो शायद आपने पहले कभी नहीं सुना होगा। वैसे तो मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान, नदी स्नान, अन्न दान , गो दान की परम्परा तो लाखों साल से चली आ रही है किन्तु इसको पर्व कब से माना गया है। तो मित्रो आप सबको पता है कि महाभारत युद्ध के बाद महीनों भीष्म जी सरसय्या पर लेटे हुए सूर्यदेव के उत्तरायण में आने की प्रतीक्षा करते रहे, उस बीच मे उन्होंने ना तो कुछ खाया और न पिया था बस प्रभु की याद करते थे भजन करते थे। किन्तु जब सूर्य देव उत्तरायन हुए और मकर संक्रान्ति का शुभ दिन आया तो भगवान श्रीकृष्ण की उन्होंने याद किया और वह तुरन्त वहां पहुंचे!
भक्त भगवान से कहते है कि हे वसुदेव अब मेरा अंतिम समय है अतः विदा दो। कन्हैया जी मुस्कराते हुए बोले कि आप ने काफी दिनों से कुछ खाया नहीं है आज आपको मै अपने हांथ से कुछ भोजन बनाकर खिलाना चाहता हूं ताकि आपकी आत्मा जब शरीर से बाहर निकले तो तृप्त होकर निकले भूखे पेट होकर कभी भी कहीं भी न तो शरीर के साथ और न शरीर के बाद यात्रा की जानी चाहिए यह मंत्र क्या आप भूल गए। पितामह बोले कि प्रभु जैसी आपकी इक्षा किन्तु अन्न हस्तिनापुर का नहीं होना चाहिए, इसलिए प्रभु ने सात्यिकी को भेजकर मथुरा से अन्न मंगवाया जो वहां बृज की पवित्र भूमि की उपज थी और वह थे चावल, हरे उड़द की दाल, बृज का दही, बृज का मक्खन, और माता यशोदा के हांथ का बना हुआ अचार।
अब चूंकि भीष्म ने हस्तिनापुर से पूरी तरह विरक्ति ले ली थी इसलिए हस्तिनापुर के किसी भी व्यक्ति की सेवा भी नहीं ले सकते थे हालांकि दुखी और भावुक अर्जुन उनके सिर के पास बैठकर फूट फूट कर रो रहे थे भीष्म रोते हुए अर्जुन, नकुल और भीम को समझा रहे थे। युधिष्ठिर और सहदेव चुपचाप पैरो के पास खड़े अश्रुधारा बहा रहे थे।
भगवान अपने भक्त को अपने धाम भेजने की तैयारी कर रहे थे, सत्यिकी और कृतवर्मा सुखी लकड़ी लाते है और माता यशोदा के बर्तनों में उनका लाला आज खिचड़ी बना रहा था खिचड़ी पकाकर एक सुंदर थाल में सजाकर भगवान स्वयं चम्मच से एक एक ग्रास अपने भक्त भीष्म को खिलाते हैं और प्यार के साथ उनके शरीर पर सिर पर हांथ फेरकर उनके समस्त कष्ट दूर कर देते हैं उनको मरने से पूर्व होने वाली समस्त पीड़ा से मुक्त कर देते है माता गंगा वहीं प्रभु के सामने हांथ जोड़कर खड़ी है प्रभु उनके पुत्र को खिचड़ी खिला रहे हैं जिसमें उनका सबसे प्रिय खाद्य पदार्थ बृज का माखन और दही भी है।
भीष्म के दाहिनी तरफ कुंती गांधारी और धृतराष्ट्र खड़े होकर अश्रु बहा रहे थे,उनके बायी तरफ द्रौपदी सुभद्रा, दुर्योधन की पत्नी भानुमति, कर्ण की पत्नी वैशाली आदि सभी स्त्रियां खड़ी अपने घर के सबसे बुजुर्ग और महान विद्वान, महान धनुर्धर, हस्तिनापुर के सच्चे सेवक, महान पितृ भक्त भीष्म जी इन सभी के साथ इस मृत्युलोक को छोड़कर जा रहे थे, उन्होंने हमेशा सभी को एक सच्चे अभिभावक की तरह प्यार किया था सभी उनको भी उतना ही प्यार करते थे।
कृष्ण जी कहते है कि हे भक्त आपने मुझसे पूछा था कि माखन में ऐसा क्या था कि तुम चोरी करते थे आज वही माखन खा कर मेरी मैया के हांथ का मक्खन चख कर देखो, ब्रिज का मक्खन खा के ऐसा कौन है जो चोर बनकर भी वह मक्खन न खाना चाहेगा। मेरी मैया का बनाया हुआ यह अचार चख कर देखो। वह खिचड़ी जो स्वयं परमब्रह्म परमात्मा प्रभु श्रीकृष्ण ने बनाई हो वह भक्त जिसको प्रभु खुद खिला रहे हो क्या अद्भुत दृश्य रहा होगा आ हा हा कैसा रहा होगा वह क्षण वह दर्शनीय दृश्य, जब खिचड़ी माखन खा के भीष्म के आंखो से प्रेमाश्रु निकल रहे थे।
इस तरह से अपने हांथ से खिचड़ी पकाकर भक्त को खिलाकर प्रभु ने उनको अपने पौत्रो को आज अंतिम शिक्षा देने की प्रार्थना की।और वह प्रश्न जो नकुल,भीम, अर्जुन, सहदेव, और स्वयं धृतराष्ट्र आदि ने किए उनके उत्तर भीष्मजी ने दिए थे वह आप को अगले वीडियो मे बताएंगे। प्रश्न उत्तर के पश्चात भगवान कृष्ण की कृपा से भीष्म ने नश्वर शरीर छोड़ कर प्रभु धाम प्राप्त किया और तब से अब तक खिचड़ी बनाकर खिलाने की परम्परा चली आ रही है।
चूंकि प्रभु श्रीकृष्ण की कुंती बुवा थी, सुभद्रा और द्रौपदी बहन थी इसलिए भगवान का अनुकरण करते हुए यह पर्व अपनी बहन बेटियों को समर्पित हो गया इस दिन खिचड़ी घर की किसी स्त्री के मायके से ही आती है जो बनाकर गृहणी अपने घरवालों को ससुराल वालो को खिलाती है और यह मान्यता है कि हमारी बहन बेटियां अपने ससुराल में रहकर भी अपने मायके वालों को अन्न धन से समृद्ध रहे यह आशीर्वाद भगवान श्रीकृष्ण से दिलाने के लिए अपने मायके से आए अन्न की खिचड़ी अवश्य खिलाने की कोशिश करती है।
अतः यहां यह भी सिद्ध होता है कि हमारी बेटियां हमेशा अपने घरवालों को सुखी देखना चाहती है आशीर्वाद देती है और दिलाती हैं। इस तरह यह नियम बन गया जो अब तक चला आ रहा है।इस दिन अन्न दान तो पहले से था उसमे कोई भी अन्न हो सकता था किन्तु खिचड़ी तो कान्हा जी ने बना के खिलाई थी तभी से शुरू हुई।
गीता के अध्याय 3 श्लोक 21 में भगवान कहते हैंयाद्यदाचरति श्रेष्ठ सत्ततदेवेतरो जन:। स यतप्रमाणम कुरूते लोक स्तदनु वर्तते।।श्रेष्ठ पुरुष जो जो आचरण करते है अन्य पुरुष भी वही अनुकरण करते हैं वह जो कुछ प्रमाण कर देते हैं समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाते हैं।अतः अपनी बहन बेटी बुवा पक्ष को आज के दिन खिचड़ी बनाकर खिलाने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा मिलती है दान करने खिलाने से उनके अन्न धन की वृद्धि होती है !
अतः हम सबको हमेशा अपनी परम्पराओं का अनुकरण करते रहना चाहिए और मकर संक्रांति को अपनी गृहिणी द्वारा बनाई हुई खिचड़ी को बड़े आदरपूर्वक ग्रहण करना चाहिए और मुक्त मन से गृहिणी के घर वालो के अन्न धन वृद्धि के लिए प्रभु श्रीकृष्ण से प्रार्थना करनी चाहिए इससे आप की गृहिणी को सुख मिलता है और ग्रहलक्ष्मी के खुश होने से आपके घर भी लक्ष्मी का वास होता है और सबसे अच्छी बात श्रीमती जी खुश तो सारे घर में खुशी ही खुशी वरना — आगे आप सभी समझदार है अस्तु।
Bahut achchhi jankari gurudev
aap ke sunder shabdo ke liye aapka dhanyawad.