शंकर राम रूप अनुरागे। नयन पंच दस अति प्रिय लागे।।
जय सियाराम मित्रोंआज का प्रश्न हमारे मित्र श्रीमान डाक्टर वीरेंद्र जी का है उन्होंने इस चौपाई का अर्थ जानना चाहा है और गूढ़ार्थ के साथ यह पूछा है कि भगवान शिव के १५ नेत्र कैसे कहां हैं कृपया अर्थ बताइए??
सबसे पहले चौपाई का शब्दार्थशंकर = भगवान शिव,शंकर, भोलेनाथ।राम = राम जी रूप = सुंदरता अनुराग = प्रेम भक्तिनयन = आंखेपंच दस= पन्द्रहअति प्रिय = अत्यंत प्रिय, अच्छे, प्यारेलागे = लगे,
भगवान शिव को पंचानन क्यों कहतें हैं?
शिवजी के पांच आनन अर्थात पांच मुख है इसलिए वे कहलाते है पंचानन ! और उनके हर एक मुख पर तीन तीन आंखे है ! साधारण अर्थ: भगवान शंकर राम जी की सुंदरता देखकर उनकी प्रेम भक्ति में मुग्ध हो गए उस समय उनको अपने १५ आंखे होने का आभास अति सुखदाई लगा उनको वह अपनी सभी आंखे अत्यंत प्रिय लगी। गूढ़ार्थ: प्रस्तुत चौपाई भगवान श्रीराम और उनके भाइयों के विवाह के लिए जनवासे (जहां बारात ठहराई जाती है) से कन्या के घर अर्थात जनक जी के महल को द्वाराचार के लिए जा रही बारात और दूल्हा भगवान श्रीराम उनके घोड़े उनके रूप उनकी सुंदरता के बखान के समय की है। चौपाई का गूढ़ार्थ समझने के लिए उसके आगे और पीछे और चौपाई दोहा छंद पढ़कर समझ सकते हैं। केकि कंठ दुती श्यामल अंगा।तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा। सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन।नयन नवल राजीव लजावन। सकल अलौकिक सुंदरता यी।क हि न जाय मनही मन भाई। बंधु मनोहर सोहहि संगा।जात नचावत चपल तुरंगा। राजकुंवर बर बाजि देखावहि।वंश प्रशंसक बिरिद सुनवा हि। जेहि तुरंग पर राम बिराजे।गति विलोकि खग नायक लाजे। क हि न जाय सब भांति सुहावा।बा जि वेष जनु काम बनावा। भावार्थ: सुंदर कोयल से कंठ, श्यामल सुंदर शरीर के अंगो और जिनकी कोई निंदा न कर सके वह वस्त्राभूषण, जो विवाह के लिए विविध प्रकार के मंगल कारी और सभी प्रकार से सुंदर थे। उन वस्त्र आभूषणों को पहन कर कमल के समान नेत्रों वाले श्रीराम की शोभा कहीं नहीं जाती बस मन को मुग्ध कर देने वाली है। उनके साथ उनके सभी भाई शोभायमान है जो अपने अपने घोड़ों को नचाते हुए शोभायमान है। घोड़ों की सेवा पालन करने वाले अपने अपने तरह तरह के सजे हुए घोड़े दिखाकर उनके वंश की विरुदावली सुनाते हैं प्रशंशा करते हैं। फिर एक घोड़े को जिसको श्रीराम जी पसंद करके उस पर सवार होते हैं! उस घोड़े की रफ्तार गति देखकर पक्षियों के राजा गरुड़ भी लज्जित हो गए। उस घोड़े की सुंदरता का वर्णन नहीं किया जा सकता वह ऐसे लग रहा था जैसे सबसे सुदर देवता काम देव ने स्वयं घोड़े का रूप बनाया हुआ है। जनु बाज वेष बनाई मनसिजु राम हित अति सोहई। आपने बय बल रूप गुन, गति सकल भुवन विमोहई। जगमगत जीन जराव जोति, सुमोति मनि माणिक लगे। किंकिन ललाम लगामु ललित, विलोकि सुर नर मुनि ठगे। भावार्थ: ऐसा प्रतीत होता है कि मानो साक्षात् कामदेव ने घोड़े का रूप रखकर रामजी की सेवा के लिए आया हो। अपने सुंदरता, शक्ति,रूप, और गति से सभी संसार को विमोहित कर रहा है।उसके ऊपर रखी जीन ऐसे जगमग जगमग चमक रही थी मानो उसमें कोई ज्योति निकल रही है क्योंकि उसमे नाना प्रकार के मोती, मनि माणिक लगे हुए थे। उसकी लाल रंग की सुंदर सजी हुई लगाम है ऐसे घोड़े को देखकर सभी देवता, मनुष्य, मुनि, किन्नर सभी अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे थे कि काश यह घोड़ा मुझे क्यो नहीं मिला। प्रभु मनसहि लय लीन मनु, चलत बाजी छवि पाव। भूषित उड़गन तड़ित घनु, जनू बर बरहि नचाव। भावार्थ: प्रभु के साथ मन से मन की लौ लगाए हुए वह घोड़ा ऐसे चल रहा था मानो विभिन्न आभूषणों से सुशोभित होकर बादलों में बिजली कौंध के गायब हो जाती है वैसे ही घोड़ा अपनी गति से नाचते हुए दूल्हे को लेकर उड़ता नाचता आता जाता था। अब आती है वह चौपाई एक और चौपाई के बाद जेहि बर बाजी रामु असवारा।तेहि सारदउ न बरनै पारा। संकरू राम रूप अनूरागे।नयन पंच दस अति प्रिय लागे। हरि हित सहित राम जब सोहे।रमा समेत रमा पति मोहे। निरखि राम छबि विधि हर्षाने।आठइ नयन जानि पछताने। सुर सेनप उर बहुत उछाहु।विधि ते डे वढ़ लोचन लाहू। रामहि चितव सुरेश सुजाना।गौतम श्राप परम हित माना। भावार्थ: जिस घोड़े पर भगवान राम सवार हुए उसकी महिमा तो स्वयं माता सरस्वती भी नहीं बता सकती। भगवान शिव रामजी की सुंदरता रूप पर मंत्र मुग्ध हो गए आज उनको अपनी १५ आंखो पर मान हो रहा है आंखे प्रिय लग रही हैं। भगवान राम की सुंदरता देखकर ब्रह्मा जी अत्यंत हर्षित हुए किन्तु अपनी सिर्फ आठ ही आंखे होने के कारण थोड़ा पछतावा भी रहा कि काश दो चार आंखे और होती तो कितना अच्छा रहता। देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय के आंनद कि सीमा नहीं थी क्योंकि उनके पास तो ब्रह्मा से डेढ़ गुनी आंखे थी वह अपनी १२ आंखो से लगातार प्रभु श्रीराम की सुंदरता का नयन सुख ले रहे थे। राम जी को देखते हुए आज देवराज इंद्र महर्षि गौतम के श्राप को वरदान मान के सबसे ज्यादा आनंद ले रहा था क्योंकि उसके शरीर में १००२ आंखे थी।
महर्षि गौतम का श्राप इन्द्र के लिए बना वरदान कब और कैसे?
महर्षि गौतम ने इंद्र को श्राप दिया था कि स्त्री शरीर के जिस एक अंग के लिए तूने इतना कपट किया है !तो तेरे अपने शरीर में १००० योनियों की श्रंखला हो जाए। इंद्र ने गौतम जी के क्रोध के शांत होने पर उनके चरणों में गिरकर जब विनती की ! तो दयालु ब्रह्मऋषि ने योनियों को आंखो मे परिवर्तित करके श्राप के प्रभाव को कम कर दिया था! तब से इंद्र सहस नयन हो गया था। आज जब श्री राम जी दूल्हा बने घोड़े पर चढ़े हुए है और वह उनके दर्शन कर रहा है !अपनी १००० श्राप में मिली आँखों और स्वयं की २ आंखे अर्थात कुल १००२ आँखों से वह परम ब्रम्ह परमात्मा के दर्शन कर रहा ! आज उसे मिला श्राप वरदान लग रहा था।
निष्कर्ष: यहां गोस्वामीजी ने दूल्हा बने सुंदर आभूषणों वस्त्रों सजे हुए घोड़े पर बैठे भगवान श्रीराम को देखते हुए सारे देवता अपनी अपनी भावनाओं को व्यक्त करते है उनका वर्णन किया है। आपके प्रश्न का उत्तर बाल कांड की एक अन्य चौपाई स्वयं देती है जब श्रीराम लक्ष्मण की जोड़ी को देखकर जनकपुर की महिलाए बोलती हैं कहहि परस्पर वचन सप्रीती।सखि इन कोटि काम छबि जीती। सुर नर असुर नाग मुनि माहीं।शोभा असि कहुं सुनिअति नाही। विष्णु चतुर्भुज विधि मुख चारी।बिकट भेष मुख पंच पुरारी। अपर देव अस कोऊ न आही।यह छबि सखी पटतरिअ जाही जनकपुर की स्त्रियां खिड़की झरोखों पर इकठ्ठी होकर आपस में भगवान राम और लक्ष्मण की सुंदरता देखकर बाते करते हुए कहती हैं हे सखी इन दोनों भाईयो की शोभा, सुंदरता करोड़ों कामदेव से भी ज्यादा है। देवता,मनुष्य, राक्षस,नाग मुनि सभी को देख लो इनके जैसे सुंदर हो ही नहीं सकते। सबको तो छोड़ो त्रिदेव भी इनके आगे शोभा हीन है क्योंकि विष्णु जी के चार भुजाएं हैं ! इसलिए सुंदर नहीं दिखते, ब्रह्माजी के चार मुख हैं इसलिए कही से सुंदर नहीं हैं और शिवजी एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा, उनके पांच तो मुंह हैं और उनका भेष कितना भयंकर है वह इनकी बराबरी नहीं कर सकते।यह तो जग विदित है कि शिवजी को पंचानन कहा जाता है उनके पंच मुख हैं और पांच मुखो पर उनके तीन तीन नेत्र हैं इस तरह उनके 15 नेत्र हैं। शिवपुराण में इस बात को जिक्र आता है कि भगवान शिव जब प्रलय करते है तो वह अपने विराट रूप में होते है और तब वह अपने पांच मुख प्रयोग होते हैं वैसे कर्पूर की तरह गोरे सुंदर शिव जो दो आखो और एक ही मुंह से काम चलाते है किन्तु उनके है तो पंच मुख। भगवान राम की शोभा देखने के लिए शिवजी अपनी सभी आंखो से सारी तरफ देख रहे थे इसी तरह ब्रह्मा ने अपने आठ नेत्र खोलकर देखा, कार्तिकेय ने बारह से और सबसे ज्यादा आंनद उठाया इंद्र ने उसने 1002 आंखो से वह सुंदरता देखी जब राम जी की घुड़चढ़ी, द्वाराचार, बारात चढ़ी, या जनक के द्वारे पर बारात गई। उम्मीद करते हैं कि आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा अस्तु जय सियाराम।