Meaning of Federalism, Types of Federalism, History of Indian Federalism & how federalism Practically work in India?
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संघवाद की परिभाषा देश के शासन को चलाने के लिए शक्तियों के विभाजन का सिद्धांत संघवाद कहलाता है! जिसमें एक संविदा यानी एग्रीमेंट के द्वारा केंद्र और राज्यों के बीच शासन चलाने की शक्तियों का विभाजन या बंटवारा किया जाता है!
Note: भारत में फ़ेडरलिज़्म ‘कनाडा’ से लिया गया है।
संघवाद के प्रकार संघवाद में हम दो प्रकार देखते हैं:
दोहरी संघीय व्यवस्था | इकहरी या एकात्मक संघीय व्यवस्था: |
केंद्र और राज्य दोनों समान होते हैं नागरिक दोहरी नागरिकता रखते हैं! | केंद्र राज्यों की अपेक्षा शक्तिशाली होता है इकहरी नागरिकता होती है! |
2 संविधान होते ह | संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान होता है! |
सुरक्षा और बाहरी आक्रमण या विपदा से बचाव मुख्य लक्ष्य होता है! | एकीकृत न्याय व्यवस्था होती है! |
केंद्र राज्य की अनुमति के बिना उसके लिए कोई निर्णय नहीं ले सकता! | संसद राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने में सक्षम होती है! |
यह व्यवस्था यूएसए संयुक्त राज्य अमेरिका स्विजरलैंड में देखने को मिलती है! | भारतीय संविधान संकटकाल में एक होता है! Jaisa Bharat India me hai. |
सामान्य काल में संघीय सरकार की शक्तियां और सधारण होती है! मूलभूत विषयों में एकरूपता होती है! | |
राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति Election hota की जाती है! राज्यसभा में इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व दिया जाता! Like Senate (USA) | राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है! राज्यसभा में इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता! |
आर्थिक दृष्टि से राज्य केंद्र पर निर्भर नहीं होते हैं ! संविधान based on coming together federation में संघ को शक्तियां प्राप्त हैं! | आर्थिक दृष्टि से राज्य केंद्र पर निर्भर होते हैं संविधान के संशोधन में संघ को अधिक शक्तियां प्राप्त हैं! |
भारत में संघवाद की रूपरेखा ?
भारतीय संघ व्यवस्था में संघात्मक शासन के प्रमुख रूप से चार लक्षण कहे जा सकते हैं:
(1) संविधान की सर्वोच्चता:
(2) संविधान के द्वारा केन्द्रीय सरकार और इकाइयों की सरकारों में शक्तियों का विभाजन:
(3) लिखित और कठोर संविधान:
(4) स्वतन्त्र उच्चतम न्यायालय।
भारत की संघीय प्रणाली में शक्ति विभाजन केंद्र और राज्य के बीच शक्तियों का विभाजन
भारतीय संविधान में संघात्मक शासन के ये सभी प्रमुख लक्षण विद्यमान हैं।संविधान के ये एकात्मक लक्षण प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं:
(1) शक्ति का विभाजन केन्द्र के पक्ष में
(2) इकहरी नागरिकता
(3) संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान
(4) एकीकृत न्याय-व्यवस्था (Supreme Court)
(5) संसद राज्यों की सीमाओं के परिवर्तन में समर्थ (Parisiman Aayog)
(6) भारतीय संविधान संकटकाल में एकात्मक
(7) सामान्य काल में भी संघीय सरकार की असाधारण शक्तियां
(8) मूलभूत विषयों में एकरूपता
(9) राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा
(10) राज्य सभा में इकाईयों को समान प्रतिनिधित्व नहीं
(11) आर्थिक दृष्टि से राज्यों की केन्द्र पर निर्भरता
(12) संविधान के संशोधन में संघ को अधिक शक्तियां प्राप्त होना
क्याहै भारतीय संघवाद का इतिहास ?
भारत में संघात्मक व्यवस्था का इतिहास
- 1918 के मांटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में शीघ्र ही समान राज्यों के संघ की स्थापना करनी पड़ेगी इससे द्वैध शासन प्रणाली के कारण संघीय व्यवस्था के दृष्टिकोण को बल मिला !
- 1919 के भारतीय अधिनियम ने भारतीय शासन में पर्याप्त विकेंद्रीकरण कर दिया यद्यपि देश के शासन व्यवस्था पूर्वक एकात्मक बनी रही !
- 1923 में केंद्रीय विधानसभा के सभापति सर फेड्रिक व्हाइट ने भी भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था स्थापित करने की सिफारिश की! भारतीय राजनीतिक वातावरण में नेताओं को भय था कि अंग्रेज भारत में अपने शासन को स्थाई बनाने के लिए कहीं देशी राज्यों को संघ राज्य में सम्मिलित ना कर लें यह देसी राज्य प्रतिक्रियावादी शक्तियों के केंद्र थे और अंग्रेज इन के माध्यम से राष्ट्रीय आंदोलन को क्षति पहुंचा सकते थे लॉर्ड कैनिंग ने एक वक्तव्य में कहा था कि भारत में ब्रिटिश तथा देशी राज्यों के कारण ही इतने दिन तक स्थापित रह सके अन्यथा राष्ट्रवाद के झोंके में वह कभी भी बह गई होती !
- 1930 में साइमन कमीशन रिपोर्ट में कहा गया था कि भविष्य के भारतीय संघ का रूप ऐसा हो जिसमें प्रांतों को यथासंभव स्वायत्तशासी इकाइयों के रुप में सम्मिलित किया जाएगा !
- नेहरू समिति की रिपोर्ट ऐसे किसी भी संघ शासन के विरुद्ध थी जिसमें देशी राज्य सम्मिलित हो रिपोर्ट में कहा गया कि देश की राज्य संसद के निर्णय को अपने भारी बहुमत से अस्वीकृत कर देंगे ! जबकि संसद के निर्णय उन पर लागू नहीं होंगे यह स्थिति सीमित समिति की दृष्टि में संघवाद का मजाक ही होगी!
- देशी राज्यों को भी चेतावनी दी कि भविष्य में भारतीय संघ में वे तभी सम्मिलित हो सकेंगे! जबकि वह अपना प्रतिक्रियावादी स्वरूप समाप्त करके लोकतंत्र के स्वरूप बना ले!
- गोलमेज सम्मेलन 1930 में देसी राज्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देकर राष्ट्रवाद की गति को बंद करने का प्रयास किया गया
- 1935 के भारत सरकार अधिनियम से ब्रिटिश सरकार की नियत स्पष्ट हो गई! भारतीय संघ शिक्षा जारी राज्यों और लोकतंत्र व प्रांतों के मेल पर आधारित होना था! देसी राज्यों को संघ में कहीं अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाना था !जिससे राष्ट्रवाद के ज्वार को रोका जा सके !
- सर Samual Hor ने भी ब्रिटिश कि ब्रिटेन की संसद में कहा भारत में उत्तरदाई शासन की दिशा में पग बढ़ाते हुए पर्याप्त सावधानी बरती गई है और भारतीय राष्ट्रवाद को कभी भी सफल होने नहीं दिया जाएगा!
- कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार भारत में ३ श्रेणियों में संघ स्थापित किया जाना था! मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को लेकर देश के विभाजन पर जोर दिया! इस कारण कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकृति दे दी ! यद्यपि इसमें अत्यंत कमजोर केंद्रीय सरकार का गठन था! जिसके पास केवल विदेश संबंध प्रतिरक्षा और संचार तीन विषय रहने थे !
भारतीय संविधान में संघवाद
भारतीय संविधान द्वारा अंगीकृत संघीय व्यवस्था इस बात पर आधारित है कि
शक्ति विभाजन भारत के संविधान में दो तरह की सरकारों की बात मानी गई है! एक संपूर्ण राष्ट्र के लिए जिसे संघीय सरकार या केंद्रीय सरकार कहते हैं और दूसरी प्रत्येक प्रांतीय इकाई या राज्य के लिए जिसे राज्य सरकार कहते हैं !
यह दोनों ही संवैधानिक सरकारें हैं और इनके स्पष्ट कार्यक्षेत्र है यदि कभी यह विवाद हो जाए कि कौन सी शक्तियां केंद्र के पास है और कौन सी राज्यों के पास तो इसका निर्णय न्यायपालिका संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार करेगी !
भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों का उल्लेख मिलता है :
पहला संघ सूची, दूसरा राज्य सूची, तीसरा समवर्ती सूची
संघ सूची(Union List) में कुल 97 विषयों का उल्लेख है किंतु विभिन्न संशोधनों के माध्यम से इसमें अनेक विषयों में परिवर्तन किया गया है सुरक्षा विदेश नीति युद्ध संधि अनु शक्ति रेल वायुयान जैसे महत्वपूर्ण विषय केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है!
राज्य सूची(State List) : साधारण रूप से राज्य सूची में राज्य ही कानून बनाते हैं इस सूची में जिन विषयों को शामिल किया गया है वे स्थानीय महत्व के होते हैं यद्यपि सूची में 66 से रखे गए हैं किंतु विभिन्न संशोधनों के माध्यम से इस में परिवर्तन आता रहा है -कानून व्यवस्था, पुलिस ने जेल, स्थानीय स्वशासन, सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा, कृषि, सिंचाई आदि महत्वपूर्ण विषय सूची के अंतर्गत आते हैं!
समवर्ती सूची (Concurrent List): इस तीसरी सूची में सामान्यता ऐसे विषयों का समावेश है जिसमें स्थानीय महत्व का है किंतु यदि विषयों पर सभी राज्य समान रूप से कानून चाहते हैं तो उससे एकात्मकता की भावना बढ़ती है इस सूची पर केंद्र और राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं !
इनके अलावा एक सूची और है जिसे अपशिष्ट सूची (Residuary) कहा जाता है!अपशिष्ट विषय यद्यपि संविधान के समस्त विषयों का तीन सूची में परीणित किया गया है किंतु फिर भी यदि कोई ऐसा विषय जो नया हो और इन सूचियों में उसका वर्णन ना हो! तो उसे कनाडा के समान ही भारत ने भी संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है! राज्यों के विधान मंडलों को नहीं अर्थात किसी नए विषय में संघ सूची में शामिल किया जाता है ऐसे नए विषयों को ही अपशिष्ट विषय कहा जाता है!
- वह केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग पर आधारित होगी !
- विविधता को मान्यता देने के साथ ही संविधान एकता पर बल देता है !
- संविधान में अंग्रेजी के फेडरेशन के स्थान पर यूनियन शब्द लिया गया है जिसका अर्थ है संघ अनुच्छेद १(1) भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ यूनियन होगा! २ राज्य और उसके राज्य क्षेत्र में होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट है !
भारतीय संघात्मक व्यवस्था का व्यावहारिक रूप
भारत की संघात्मक व्यवस्था को समझने के लिए कि वह व्यावहारिक रूप में किस प्रकार काम करती है हम इसे
1. 1950 से 1960 तक
2. 1960 से 1967 तक
3. 1967 से लेकर 1971तक
4.1971 से 1977 तक
5. 1977 से 1980 तक
6.1980 से 1985 तक के काल
खंडों में बांटकर इसे समझने का प्रयास करेंगे :
1950 से 1960 तक :
भारत को नई-नई स्वतंत्रता मिली थी और राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने केंद्र और राज्यों के शासन की बागडोर संभाली थी! केरल को छोड़कर केंद्र सहित सभी राज्यों में कांग्रेस दल का राज्य था! एक दल की सरकार होने की वजह से केंद्र और राज्यों में संघर्ष की संभावना नहीं थी! इस समय केंद्र की राज्यों पर प्रधानता का काल था! जिसमें राज्य केंद्र से पूर्ण सहयोग कर रहे थे !
1960 से 1967 तक:
पहले हमने देखा 1950 से 1960 तक केंद्र और राज्यों में भरपूर सहयोग था क्योंकि ज्यादातर जगह केंद्र और राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी लेकिन 1960 के बाद केंद्र और राज्यों के संबंधों में तनाव आना शुरू हो गया! वित्तीय स्रोतों से संबंध में विवाद ने जन्म लिया !
1956 में राज्यों का पुनर्गठन का काम भी दबावों की राजनीति का परिणाम था! 1960 के बाद 1967 तक केंद्रीयकरण के स्वरूप में और कमी आई ! 1962 में चीन के आक्रमण के कारण नेहरू जी की छवि को धक्का लगा !
इस काल में क्षेत्रवाद और भाषावाद में केंद्र और राज्यों के रिश्तो में अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया! इस समय राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होने लगी और विकेंद्रीकरण का विकास होने लगा!
1967 से 1971 तक :
यह वह समय था जब निर्वाचन के बाद का कांग्रेस का संपूर्ण देश में एकछत्र साम्राज्य खत्म हो गया ! केंद्र में उसकी शक्ति घट गई और 8 राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें बन गई! पहली बार के २ राज्यों में विरोधी सरकारों के गठन होने से दोनों में संघर्ष प्रारंभ हो गया! इस समय एक मुख्य घटना यह थी कि कांग्रेस में फूट पड़ गई! उसका विभाजन हो गया तथा केंद्र का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था! राज्य ज्यादा स्वतंत्रता चाहते थे और अधिक वित्तीय साधनों पर नियंत्रण चाहते थे ! इस समय से गठबंधन की सरकारों का अस्तित्व सामने आया! केंद्र की कांग्रेस सरकार इंदिरा गांधी के नेतृत्व में डीएमके तमिल तमिलनाडु मे और केरल में सीबीआई केंद्र में इंदिरा गांधी को समर्थन दे रही थी! इसका परिणाम यह हुआ कि यह राज्य केंद्र से सौदेबाजी करने लगे अल्पमत में सरकार के आने के डर से केंद्र ने राज्यों की अनेक मांगे मान ली !
1971 से 1977 तक :
1971 से 1977 तक 1971 में राज इंदिरा गांधी कि लोकसभा में चुनाव शानदार सफलता प्राप्त हुई ! राज्यों की विधानसभाओं में भी उन्हें अप्रत्याशित सफलता मिली केंद्र और राज्यों में एक ही दल की सरकार बन जाने के कारण संघर्ष और सौदेबाजी में समाप्त हो गई ! एक बात बताना जरूरी है श्रीमती इंदिरा गांधी में अपने केंद्रीय मंत्रिमंडल के विश्वासपात्र मंत्रियों की नियुक्ति राज्य विधान मंडलों में कर दी!
श्रीमती गांधी ने चुन के मुख्य मुख्यमंत्री नियुक्त किया! वह राज्य विधान मंडलों के नेता चुने गए क्योंकि कांग्रेस विधानमंडल है दलों ने उन्हें सर्वसम्मति से दल का नेता चुन लिया इस नीति के अंतर्गत ही केंद्रीय मंत्रिमंडल से पीसी सेठी सिद्धार्थ शंकर रे मध्य प्रदेश पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के मुख्यमंत्री बनाए गए इसके विपरीत विभिन्न राज्यों में जिन नेताओं का अधिक प्रभाव स्थापित हो गया था उन्हें उखाड़ फेंका गया!
जून 1975 में जब देश में आंतरिक आपातकालीन स्थिति लागू हुई तो केंद्रीय करण की प्रवृत्ति पुनः जागृत हुई इसका मतलब यह है कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने पुनः अपने विश्वासपात्र मुख्यमंत्री नियुक्त किए इसका परिणाम यह हुआ कि अनेक मुख्यमंत्रियों को अपने पद छोड़ने पड़े !
1977 से 1980 तक
1977 में होने वाले लोकसभा के चुनावों में भारतीय लोकतंत्र में एक नया परिवर्तन देखने को मिला पहली बार केंद्र में कांग्रेस का शासन समाप्त होकर जनता पार्टी का शासन स्थापित हुआ! 1977 में जब जनता पार्टी को केंद्र में बहुमत मिला ! तो संपूर्ण देश में विरोधी दलों की और विशेषकर कांग्रेस की सरकारें राज्य में थी जिसका नतीजा यह हुआ कि राज्यों ने केंद्र से असहयोग का रुख अपना लिया केंद्र ने 43 वें संविधान संशोधन विधेयक पारित किया !
संसद और राज्य विधानसभाओं की अवधि को 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष करने का प्रयास किया! 1977 में प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य था जिसमें कहा गया कि केंद्र सरकार राज्य के अधिकारों को कम नहीं करना चाहती क्योंकि यदि राज्य कमजोर रहेंगे और केंद्र शक्तिशाली बना रहेगा तो देश मे अधिनायकवाद की प्रवृत्ति का विकास होगा!
इस समय केंद्र का जहां तक राज्यों के साथ संबंध का प्रश्न है जो गैर कांग्रेसी दल मार्क्सवादी दल अकाली दल नेशनल कांफ्रेंस अन्ना डीएमके द्वारा शासित थे सामान्यता मधुर ही थे! एक ओर केंद् उनसे संघर्ष करना नहीं चाहता था और दूसरी और राज्य भी केंद्र से संघर्ष करके अपनी मुसीबतें बढ़ाना नहीं चाह रहे थे!
1980 से 1984 तक
1980 सातवीं लोकसभा के चुनावों में श्रीमती इंदिरा गांधी को पुनः भारी बहुमत प्राप्त हुआ एक बार फिर से कांग्रेस ने केंद्र में वापसी की आते ही 9 गैर कांग्रेसी सरकारों वाले राज्यों में पुनः चुनाव करवाए गए ! इतना ही नहीं जनता सरकार द्वारा नियुक्त राजस्थान के राज्यपाल और तमिलनाडु के राज्यपाल जैसे श्रेष्ठ व्यक्तियों को भी उनके पद से हटा दिया गया!
इसी समय एनटी रामा राव को जिन्हें बहुमत प्राप्त था बहुमत सिद्ध करने का अवसर नहीं दिया गया और जिन्हें बहुमत प्राप्त नहीं था ऐसे भास्करराव को बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा गया बल्कि भास्कर राव ने तेलुगू देशम पार्टी में से अधिक दलबदल कराने के बाद बहुमत को अपनी ओर करने का प्रयास किया ! इस काम में उन्हें केंद्र सरकार का तथा राज्य के राज्यपाल का पूर्ण समर्थन मिला !
इस प्रकार के अनेक उदाहरण कांग्रेस द्वारा सरकारी गिराने और अल्पमत की सरकारों को समर्थन देकर सरकार में बने रहने के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं! इस समय कुछ कांग्रेसी राज्यों में तो तीन तीन बार मुख्यमंत्री बदले गए हरियाणा में राजनीतिक अनैतिकता ने सभी मर्यादाओं को लांग कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया !1980 में हरियाणा में जनता विधायक दल से सांठगांठ करके कांग्रेस में शामिल हो गए !
1984 से 1989 तक
1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद श्री राजीव गांधी ने शासन को संभाला! राजीव गांधी ने भी अपनी मां इंदिरा गांधी तथा अपने नाना नेहरू की तरह ही शासन चलाने की प्रवृत्ति दिखाई! शीघ्र ही विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री बदले गए !
1984 लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी को इंदिरा लहर के चलते प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ था! उनका यह मानना था कि केंद्र और राज्यों में एक ही दल की सरकार होनी चाहिए! जिससे केंद्र और राज्यों के संबंध अच्छे रहे! परंतु जब आंध्र प्रदेश कर्नाटक सिक्किम हरियाणा और केरल में विरोधी दलों की सरकारें बनी तब उन्होंने राज्य सरकारों की उपेक्षा करना शुरू कर दिया!
जिला अधिकारियों से सीधा संपर्क साधा और राज्य सरकारों की लोकशाही पर सीधे पकड़ बनानी शुरू कर दी ! राज्य सरकारों ने केंद्र के इस व्यवहार का कड़ा विरोध किया ! इसी प्रकार जवाहर रोजगार योजना जो केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई ! उसमें भी राज्य सरकारों की पूरी तरह से उपेक्षा की गई ! इस योजना के द्वारा राजीव गांधी विरोधी दलों तथा विरोधी कांग्रेसी गुटों के राज्य सरकारों के प्रभाव को कम करके केंद्र का सीधा प्रभाव स्थापित करना चाहते थे !
1989 के बाद तीन अल्प मध्य सरकारों का काल
भारत की राजनीति में यह सबसे ज्यादा उठापटक का काल कहा जा सकता है! पहली अल्पमत की सरकार वीपी सिंह की सरकार थी ! जो केवल ११ महीने चली दूसरी चंद्रशेखर की सरकार थी जिसमें जनता दल से दल बदलकर निकले ! 58 लोकसभा सदस्यों वाली इस सरकार को कांग्रेस ने बाहरी समर्थन दिया था! यह अति अल्प मध्य सरकार थी!
१० वीं लोकसभा के चुनाव तक चली ! १० वीं लोकसभा में कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनकर तो उमरी! परंतु उसे बहुमत प्राप्त नहीं हुआ श्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में इस तीसरी अल्प मध्य सरकार को राष्ट्रीय मोर्चा वामपंथी दलों तथा भाजपा आदि सभी का समस्याओं की प्रकृति के आधार पर समर्थन मिला !
जब वीपी सिंह की सरकार बनी ! तब उन्होंने किसी भी राज्य सरकार को भंग नहीं किया! यह विशेष ठीक क्योंकि अभी तक कांग्रेस की सरकार ने जो नीति अपनाई है उससे बिल्कुल अलग थी !
1990 के बाद तीन अल्प मध्य सरकारों का काल
प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर के ६ महीनों के शासनकाल के पश्चात्, कांग्रेस पुनः सत्ता में आई, इस बार, पमुलापति वेंकट नरसिंह राव (P.V.Narshimarao) के नेतृत्व में। P.V.नरसिंह राव, दक्षिण भारतीय मूल के पहले प्रधानमन्त्री थे। साथ ही वे न केवल नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के पहले कांग्रेसी प्रधानमन्त्री थे, बल्कि वे नेहरू-गांधी परिवार के बाहर के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने अपना पूरे पाँच वर्षों का कार्यकाल पूरा किया।
नरसिंह राव जी का कार्यकाल, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक एवं ऐतिहासिक परिवर्तन का समय था।
अपने वित्तमंत्री, मनमोहन सिंह के ज़रिये, नरसिंह राव ने भारतीय अर्थव्यवस्था की उदारीकरण की शुरुआत की, जिसके कारण, भारत की अबतक सुस्त पड़ी, खतरों से जूझती अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया गया। इन उदारीकरण के निर्णयों से भारत को एक दृढतः नियंत्रित, कृषि-उद्योग मिश्रित अर्थव्यवस्था से एक बाज़ार-निर्धारित अर्थव्यवस्था में तब्दील कर दिया गया। इन आर्थिक नीतियों को, आगामी सरकारों ने भी जारी रखा, जिनने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनाया।
इन आर्थिक परिवर्तनों के आलावा, नरसिंह राव के कार्यकाल में भारत ने अयोध्या की बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि के विवादित ढांचे का विध्वंस और भारतीय जनता पार्टी का एक राष्ट्रीय स्तर के दल के रूप में उदय भी देखा। नरसिंह राव जी का कार्यकाल, मई 1996 को समाप्त हुआ!
1996 जिसके बाद, देश ने अगले तीन वर्षों में चार, लघुकालीन प्रधानमन्त्रीयों को देखा: पहले अटल बिहारी वाजपेयी का १३ दिवसीय शासनकाल, तत्पश्चात्, प्रधानमन्त्री एच डी देवगौड़ा (1 जून, 1996 से 21 अप्रेल, 1997) और इंद्रकुमार गुज़राल(21 अप्रेल, 1997 से 19 मार्च, 1998), दोनों की एक वर्ष से कम समय का कार्यकाल एवं तत्पश्चात्, पुनः प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की 19 माह की सरकार।1998 में निर्वाचित हुए प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कुछ अत्यंत ठोस और चुनौती पूर्ण कदम उठाए।
मई 1998 में सरकार के गठन के एक महीने के बाद, सरकार ने पोखरण में पाँच भूतालिया परमाणु विस्फोट करने की घोषणा की। इन विस्फोटों के विरोध में अमरीका समेत कई पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, परंतु रूस, फ्रांस, खाड़ी देशों और कुछ अन्य के समर्थन के कारण, पश्चिमी देशों का यह प्रतिबंध, पूर्णतः विफल रहा।
इस आर्थिक प्रतिबंध की परिस्थिति को बखूबी संभालने को अटल सरकार की बेहतरीन कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया। भारतीय परमाणु परीक्षण के जवाब में कुछ महीने बाद, पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया। दोनों देशों के बीच बिगड़ते हालातों को देखते हुए, सरकार ने रिश्ते बेहतर करने की कोशिश की।
फ़रवरी 1999 में दोनों देशों ने लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किये, जिसमें दोनों देशों ने आपसी रंजिश खत्म करने, व्यापार बढ़ने और अपनी परमाणु क्षमता को शांतिपूर्ण कार्यों के लिए इस्तेमाल करने की घोषणा की।
1999-2004
वाजपेयी फिर से वाजपेयी ने तीसरी बार शपथ ग्रहण करने के बाद, 1999 में, अपनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार का पूर्ण पांच साल के कार्यकाल में नेतृत्व किया, ऐसा करने वाला पहला गैर-कांग्रेसी गठबंधन।
2004 se 2014 मनमोहन सिंह ने कांग्रेसी गठबंधन सरकार पद पर रही! मनमोहन सिंह ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(UPA) सरकार 2004 से 2014 के बीच 10 साल तक पद पर रही।
भारत के प्रमुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं! जिन्होंने 26 मई 2014 -2019 से भाजपा सरकार का नेतृत्व किया है जो भारत की पहली गैर-कांग्रेस एकल पार्टी बहुमत सरकार है। 2019-2024 भाजपा सरकार !
निष्कर्ष :
इस प्रकार हमने संघवाद या संघीय व्यवस्था के बारे में जाना ! भारत का संघवाद किस प्रकार अमरीका के संघवाद से भिन्न है भारत का संघवाद एक शक्तिशाली केंद्र की रूपरेखा तैयार करता है !
एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद भारत को आजादी मिली इसी कारण संविधान निर्माताओं ने एक शक्तिशाली केंद्र की आवश्यकता को महसूस किया और संविधान में सारे प्रावधान निश्चित किए जिससे राज्य केंद्र पर निर्भर रहें और चाह कर भी केंद्र से अलग ना हो सके! शक्तिशाली केंद्र , इकहरी नागरिकता यह सुनिश्चित करती है राज्य और नागरिक संविधान से अपनी शक्तियां लेंगे और किसी भी विवाद की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट या उच्चतम न्यायालय का निर्णय आखिरी होगा!
वर्तमान परिस्थिति में भारत एक संप्रभु देश है और इसकी और इसका शक्तिशाली केंद्र सरकार इसकी आंतरिक वहे सुरक्षा आर्थिक स्थिति आपातकालीन स्थिति या संकटकालीन स्थिति जैसी वर्तमान में हम देख रहे हैं भारत का सशक्त केंद्रीय संगठन इन सब परिस्थितियों में सुरक्षा देने और जनमानस की रक्षा करने में समर्थ है
संघवाद के व्यावहारिक पक्ष के अध्ययन से हमें पता लगा की राज देश अच्छी तरह से विकास करता है या शांति बनी रहती है इसके पीछे केंद्र और राज्यों में एक ही दल की सरकार होना मुख्य कारण रहा यदि केंद्र में अलग दल की सरकार है और राज्य में अलग दल की तो इस स्थिति में खींचातानी वाली स्थिति बनी रहती है समय-समय पर राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने और अधिक आर्थिक उपार्जन की बात उठती रही है राज्य अपनी धन के लिए आर्थिक स्थिति के लिए केंद्र पर निर्भर रहते हैं राज्यों की अपेक्षा केंद्र के पास ज्यादा सशक्त बल है या सेना है जिसके कारण समय आने पर किसी भी राज्य में यदि ऐसी स्थिति आती है कि वहां अतिरिक्त सेवादल सेना भेजने की आवश्यकता होती है तो केंद्र इस स्थिति में तुरंत कदम उठाता है वह चाहे बाढ़ की स्थिति हो या आंतरिक कलह की शक्तिशाली केंद्र हर प्रकार की स्थिति से निपटने में सक्षम रहता है भारत का संघवाद राज्यों के रक्षक की भूमिका और एक बड़े अभिभावक की तरह उनकी हर जरूरतों का ध्यान रखता है!