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Bharat me Maulik Adhikar
Kya hote hai Maulik Adhikar- Bharat me Maulik Adhikar kyon -samvidhan main Kis bhag main likha hai- kyon chahiye sabko Maulik Adhikar- kaisey hoti hai Bharat main Maulik Adhikaro ke raksha
क्या है मौलिक अधिकार -मौलिक अधिकार कितने हैं – क्यों है मौलिक अधिकार जरूरी?-मौलिक अधिकारों को किस देश के संविधान से लिया गया है–संविधान के कौन से भाग में मौलिक अधिकारों का वर्णन है- मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य तथा नीति निदेशक तत्वों के बीच अंतर- कौन करता है मौलिक अधिकारों की रक्षा !
मौलिक अधिकार क्या होते है?
हमारे अन्य अधिकारों से भिन्न है जहां साधारण कानूनी अधिकारों को सुरक्षा देने और लागू करने के लिए साधारण कानूनों का सहारा लिया जाता है! वही मौलिक अधिकारों की गारंटी और उनकी सुरक्षा स्वयं संविधान करता है!
सामान्य अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है, लेकिन मौलिक अधिकारों में परिवर्तन के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है! इसके अलावा सरकार का कोई भी अंग मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकता ! अतः मौलिक अधिकार नागरिकों के हितों की सुरक्षा की गारंटी, जो भारतीय संविधान उन्हें देता है स्थापित करते हैं!
भारत के संविधान में कितने मौलिक अधिकार है!
भारत संविधान में सात मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है ! जो (अनुच्छेद 12 से 35) के अंदर आते है :-
अनुच्छेद12: राज्य क्या है राज्य के अंदर कौन सी एजेंसी आती है! राज्य मतलब कोई राज्य नहीं जैसे यूपी, राजस्थान ! राज्य का मतलब सारी गवर्नमेंट एजेंसीज और उनके अंतर्गत मंत्रालय, ऑफिसर, एजेंसी आती है!
अनुच्छेद13: यह व्यवस्था दी गई है कि आप कौन से न्यायालय में जा सकते हैं हाईकोर्ट में कब जा सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट में कब जा सकते हैं! आप न्यायालय में अपील कर सकते हैं!
समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद -14 -18)
- अनुच्छेद-१४ विधि के समक्ष समानता,
- अनुच्छेद-१५ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध
- अनुच्छेद-१६ लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता,
- अनुच्छेद-१७ अस्पृश्यता / छुआछूत का अंत,
- अनुच्छेद-१८ उपाधियों का अंत
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद -19 -22 )
- अनुच्छेद-१९ (a) बोलने की स्वतंत्रता,
- अनुच्छेद-१९ (b) शांतिपूर्ण बिना हथियारों के एकत्र होना सभा करने की स्वतंत्रता,
- अनुच्छेद-१९ (c) संघ बनाने की स्वतंत्रता,
- अनुच्छेद-१९ (d) देश के किसी भी भाग में आने जाने की स्वतंत्रता,
- अनुच्छेद-१९ (e) देश के किसी भी क्षेत्र में रहने और बसने की स्वतंत्रता,
- अनुच्छेद-१९ (f)सम्पति की स्वतंत्रता,
- अनुच्छेद-१९ (g) कोई भी व्यापार करने की स्वतंत्रता,
- अनुच्छेद-२० अपराधो के लिए दोष सिद्धि के सबंध में सरक्षण,
- अनुच्छेद-२१ प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का सरक्षण,
- अनुच्छेद-२२ कुछ दशाओ में गिरफ्तारी और निरोध में सरक्षण
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद -23 -24)
- अनुच्छेद -२३ मानव के देह व्यापार और बलात श्रम पर रोक
- अनुच्छेद -२४ बालको के कारखनो और जोखिम भरे कामो पर रोक
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद -25 -28 )
- अनु. 25 अंतःकरण की और धर्म के बाद रूप से मानने आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार प्रसार कर सकता है
- अनु. 26 धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना करने की उसका पोषण करने के लिए विधि सम्मत संपत्ति अर्जित करने के लिए स्वामित्व प्रशासन का अधिकार है!
- Art./अनुच्छेद 27 राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता जिसकी आए किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या पोषण के व्यय के मेवे करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है!
- अनुच्छेद 28 राज्य विधि से पूर्णता पोषित किसी शिक्षा संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्म उपदेश को बलात सुनने के लिए बाध्य नहीं कर सकता!
संस्कृति और शिक्षा से संबंधित अधिकार(अनुच्छेद 29-30)
अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है केवल भाषा जाति धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश के लिए नहीं रोका जाएगा !
अनुच्छेद 30 शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद की संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी!
सम्पति का अधिकार (अनुच्छेद -31 )
अनुच्छेद -३१ जो पहले एक मौलिक अधिकार था! ४४ वे संशोधन 1978 के बाद यह यह अब एक वैधानिक यानि लीगल राइट अधिकार है!
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
अनुच्छेद 32 :संवैधानिक उपचारों के अधिकार को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में संविधान की आत्मा कहा !अनुच्छेद 32 इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को परिवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाही द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है!
kon se नागरिकों के मौलिक कर्तव्य Samvidhan deta hai
नागरिकों
के मौलिक कर्तव्य
1976 में संविधान सभा में
42 में संशोधन के तहत
जोड़े गए इसमें
कुल मिलाकर 10 कर्तव्यों
का उल्लेख है
! लेकिन इन्हें कैसे लागू
करना है, किस
पर लागू होगा
और अगर इसका
कोई हनन करता
है!
तो उस पर
क्या कार्यवाही हो
सकती है ! इसके
लिए राज्य या
नागरिकों पर किस
प्रकार का प्रभाव
पड़ेगा इस बारे
में संविधान में
कोई भी व्यवस्था
नहीं दी गई
है!
Niti Nedeshak Tatve Kahan likhey hai- Bharat ke Constitution main Directive Principle
नीति निदेशक तत्वों को
लागू करने का
प्रयास सरकारें करती रही
हैं इसी का
परिणाम है कि
बैंकों का राष्ट्रीयकरण,
कई फैक्ट्री अधिनियम,
न्यूनतम मजदूरी निर्धारण की
दर, कुटीर और
लघु उद्योगों को
प्रोत्साहित करने के
लिए राज्यों की
नीतियां, अनुसूचित जाति और
अनुसूचित जनजाति के प्रचार
प्रसार के लिए
उनको बढ़ावा देने
के लिए आरक्षण
आदि की व्यवस्था!
Difference between Fundamental Rights-Fundamental Duties-Directive Principle- मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य तथा नीति निदेशक तत्वों के बीच अंतर
भारतीय संविधान में भाग-3 में |
नीति-निर्देशक तत्व भाग-४ में अनुच्छेद 36-51 तक है ! यह आयरलैंड के संविधान से लिया है ! |
सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के बाद ४२वे संशोधन १९७६ के द्वारा मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया ! यह भाग -४ (क)में अनुछेद ५१ (क) के तहत रखा गया है ! यह रूस के संविधान से लिया है! |
इसके पीछे न्यायालय की शक्ति कार्य करती है अर्थात इसे लागू करने के लिए आप राज्य को बाध्य कर सकते है! |
इसके पीछे न्यायालय की शक्ति कार्य नहीं करती अर्थात इसे लागू करने के लिए आप राज्य को बाध्य नहीं कर सकते ! |
इसके पीछे न्यायालय की शक्ति कार्य नहीं करती अर्थात इसे लागू करने के लिए आप राज्य को बाध्य नहीं कर सकते ! |
मौलिक अधिकारों | नीति-निर्देशक तत्व | मौलिक कर्तव्य |
राज्य के नीति
निदेशक सिद्धांत नीति
निदेशक सिद्धांतों के
तत्व तीन
मुख्य बातों का उल्लेख
किया गया है :
- पहला
लक्ष्य और उद्देश्य
जो एक समाज
के रूप में
हमें स्वीकार करना
चाहिए! - दूसरा
अधिकार जो नागरिकों
को मौलिक अधिकारों
के अलावा मिलने
चाहिए - तीसरे
नीतियां जिन्हें सरकार को
स्वीकार करना चाहिए
!
मानव अधिकार आयोग:
- किसी भी संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकार तभी अपना पूर्ण रूप दिखाते हैं जब समाज के गरीब अशिक्षित और कमजोर लोग अपने अधिकारों को सुरक्षित महसूस करते हैं! उन्हें अपने अधिकारों को प्रयोग करने की स्वतंत्रता या छूट होनी चाहिए!
- पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज या पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट जैसी संस्थाएं अधिकारों के हनन के विरुद्ध चौकसी करती हैं वर्ष 2000 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया!
मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत मिलने पर मानव अधिकार आयोग जेल में बंदियों की स्थिति का अध्ययन करता है! हिरासत में हुई मृत्यु, हिरासत के दौरान बलात्कार या किसी भी तरह के दुर्व्यवहार की जांच के लिए अगर कोई मानवाधिकार आयोग के पास जाता है तो वे उस पर कार्य करते हैं! जांच करते हैं, खुद कोई भी मुकदमा सुनकर उस पर कोई भी न्याय देने का अधिकार नहीं रखते! उसके लिए व्यक्ति को न्यायालय ही जाना होता है!
Who Protect fundamental Rights in India-Adhikaro ke raksha
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
अनुच्छेद 32 :संवैधानिक उपचारों के
अधिकार को डॉक्टर
भीमराव अंबेडकर ने संविधान
सभा में संविधान
की आत्मा कहा
!अनुच्छेद 32 इसके अंतर्गत
मौलिक अधिकारों को
परिवर्तित कराने
के लिए समुचित
कार्यवाही द्वारा
उच्चतम न्यायालय में आवेदन
करने का अधिकार
प्रदान किया गया
है!
इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय को 5 तरह की writ निकालने की शक्तियां प्रदान की गई है !
जो निम्नलिखित हैं :-
बंदी प्रत्यक्षीकरण :
यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे गलत तरीके से बंदी बनाया गया है! इसके द्वारा न्यायालय बंदी बनाने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अंदर उपस्थित करें ! जिससे न्यायालय बंदी बनाए गए व्यक्ति से बंदी बनाए जाने के कारणों के बारे में विचार कर सकें!
परमादेश :
परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है! इस प्रकार का आज्ञा पत्र इसके आधार पर पदाधिकारियों को उनके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है!
प्रतिषेध लेख :
यह आज्ञा पत्र सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तथा उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालयों तथा न्यायिक न्यायाधिकरण को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहां कार्यवाही ना करें क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है!
उत्प्रेषण :
इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वह अपने पास लंबित मुकदमों के न्याय निर्णय के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजें!
अधिकार-पृच्छा :
जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है जिस के रूप में कार्य करने का, उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है तो न्यायालय अधिकार प्रेक्षा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक वह इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता वह कार्य नहीं कर सकता!
Is right of property is fundamental right ? क्या संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार है?
एक नागरिक का निजी संपत्ति पर अधिकार एक मानवीय अधिकार है। कानून की उचित प्रक्रिया और अधिकार का पालन किए बिना राज्य उस पर अधिकार नहीं कर सकता।
खंडपीठ ने हरियाणा राज्य मुकेश कुमार मामले (2011) में पूर्व के एक फैसले का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि संपत्ति का अधिकार न केवल एक संवैधानिक या वैधानिक अधिकार है, बल्कि एक मानव अधिकार भी है।
प्रतिकूल स्थिति के सिद्धांत: राज्य किसी नागरिक की निजी संपत्ति में अतिचार नहीं कर सकता है और फिर poss प्रतिकूल कब्जे के नाम पर भूमि के स्वामित्व का दावा कर सकता है।
निजी भूमि को हथियाना और फिर इसे अपना दावा करना राज्य को अतिक्रमणकारी बनाता है।
1967 में, जब सरकार ने जबरन भूमि पर कब्जा कर लिया, तो संविधान के अनुच्छेद 31 के तहत निजी संपत्ति का अधिकार अभी भी एक मौलिक अधिकार था।
संपत्ति का अधिकार 1978 में 44 वें संविधान संशोधन के साथ एक मौलिक अधिकार होना बंद हो गया।
इसे अनुच्छेद 300 ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार बनाया गया था। अनुच्छेद 300 ए के अनुसार राज्य को अपनी निजी संपत्ति से किसी व्यक्ति को वंचित करने के लिए उचित प्रक्रिया और कानून के अधिकार का पालन करना होगा
The main reason why Right of Property is not Fundamental Right in other word Kyon nahi hai Sampati ka Adhikar ek maulik Adhikar
1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा लागू किये गए 19 माह के आपातकाल में
आपातकालीन शक्तियों का बहुत अधिक दुरूपयोग किया गया. इस स्थिति को देखकर
आपातकालीन शक्तियों के दुरूपयोग पर अंकुश लगाने की आवश्यकता अनुभव की गई.
44वें संविधान संशोधन (44th amendment) द्वारा मूल संविधान की व्यवस्था में जो परिवर्तन किये गए हैं, उनसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मंत्रिपरिषद के तानाशाह बनने की आशंका और भी निराधार हो गयी है! इस संशोधन के द्वारा ऐसी व्यवस्थाएँ की गई हैं कि भविष्य में शासक वर्ग के द्वारा निजि स्वार्थों की रक्षा के लिए (जो इंदिरा गाँधी ने emergency के समय किया था) आपातकाल लागू नहीं किया जा सके और आवश्यक होने पर जब आपातकाल लागू किया जाए, तब भी शासक वर्ग द्वारा शक्तियों का मनमाना प्रयोग न किया जा सके!
Conclusion
To aapne dekha ki kis prakar se samvidhan humey maulik adhikar deta hai or uski raksha bhi karta hai. 5 writ ke dwara. As you see that Constitution of India give us Fundamental Rights. Therefore, Constitution protect citizen’s Rights. In other words, High Court and supreme court play a role of protector of fundamental rights in India. Whenever, Parliament make law against Fundamental rights court will take necessary action to protect them.
Fundamental rights are more powerful then Fundamental duties and Directive principal because fundamental duties and Directive principle has no power of judiciary behind it. Means if you are not following or obeying Directive principle or fundamental duties their is no provision of punishment behind it.