कालिया नाग पूर्व जन्म में कौन था, Who was Kaliya Nag in previous birth,

Adarsh Dharm ansuni katha kahani

एक बहेलिया था जो जंगल में अपनी जाल बिछाकर पशु पक्षी पकड़ता था और फिर उनको बेचकर बदले में लोगो से अन्न्न और धन लेकर अपना तथा अपने परिवार का जीवन यापन करता था। दंडक वन बहुत बड़ा और घना जंगल था इसलिए वहां पशु पक्षियों की  कमी नही थी वह तरह तरह के पशु पक्षी पकड़ता और बेचता था।बहेलिया एक शिकारी होते हुए एक आस्तिक व्यक्ति था उसने एक बार सत्संग में सुना था कि सभी कार्य ईश्वर द्वारा या उसकी प्रेरणा से ही प्रतिपादित होते हैं अतः पाप हो या पुण्य वह अपनी सभी कर्म मनसा वाचा कर्मणा ईश्वर को ही समर्पित करता था।उसने यह भी सुन रखा था कि ईश्वर के वैदिक मंत्र वह नही पढ़ सकता क्योंकि वह उसके लायक नही। बीज मंत्र पढ़ने का अधिकार सिर्फ सदाचारी, शाकाहारी, अल्पाहारी, निराहारी, दयावान,दानशील, परोपकारी व्यक्तियों के लिए हैं किंतु राम नाम मंत्र जो बीज मंत्र के बराबर पुण्य प्रदान करता है कोई भी जाप करके अपने पापो से निवृत्त हो सकता है। अतः बहेलिया सुबह उठते ही राम नाम मंत्र का जप करता था कोई भी काम करने से पूर्व उसने एक ही बात कहनी होती थी हे राम आपकी शरण हूं, जो भी कर रहा हूं आप ही करा रहे हो जै श्रीराम।उसने अपना जाल लगाया और अपने कार्य श्रीराम जी के नाम करके घर चला गया दिन भर में बहुत सारे पक्षी दाना चुगने आए और जाल में फंस गए, अगली सुबह उनकी बिक्री हो गई। यह उसका रोजाना का नियम बन गया था।

 

एक बार जाल में पक्षी फंसे लेकिन जब वापस आया तो वहां उनके पंख ही मिले क्योंकि पक्षियों को कोई खा गया था, बहेलिया बोला रामजी की इक्क्षा। उसने फिर जाल लगाया अगले दिन फिर वही हुआ। अगले कई दिनो तक ऐसा ही होता था बेचारा बड़ा हैरान था कि उसको एक भी पक्षी पकड़ में नहीं आया तो एक दिन जाल लगाकर वही छिपकर बैठ गया तो देखता क्या है कि नाग परिवार नाग नागिन और उनके 7 बच्चे एक साथ घूम रहे हैं पक्षियों को फंसा देखकर उस परिवार ने एक एक पक्षी को निगल लिया और चले गए।बहेलिए को अत्यंत क्रोध आया उसने नाग के एक बच्चे की पीट पीट कर हत्या कर डाली और स्वभाव के अनुसार बोलता जा रहा था हे राम आपकी शरण हूं जो भी कर रहा हूं आप ही कर रहे हो अतः पाप हो या पुण्य हो सब कुछ आपको समर्पित है। नाग की हत्या करके उसके पाप को शरणागत वत्सल श्रीराम जी को समर्पित कर दिया।और उसने एक एक कर उन सात के सात नागों पुत्रों की हत्या कर डाली, नाग नागिन ने जब अपने पुत्र की आंख में देखकर हत्यारे की शक्ल पहचान ली इसके बाद दोनो बहेलिए का पीछा करने लगे और मौका देखकर नाग ने बहेलिए को डस लिया। बहेलिया स्वभाव के अनुसार वही बोला कि हे प्रभु राम जो कुछ हुआ आपने किया अतः सब कुछ आपको समर्पित। 

ह्रदय से बोले हुए उसके शब्द, अपनी कुटिया में बैठे भगवान श्रीराम के चरण में ठीक उसी जगह से खून निकल रहा था और सारा विष उनके शरीर में चढ़ गया।भयंकर विष के प्रभाव से जैसे बहेलिया बेहोश हुआ ठीक वैसे भगवान हो गए। माता सीता स्वामी की हालत देखकर लक्ष्मण को पुकारती हैं लक्ष्मण भैया वन से कंद मूल फल छोड़कर भागे हुए आए और देखा कि प्रभु के चरण में नाग दंश का निशान है उन्होंने तुरंत अपने शेष रूप का स्मरण करते हुए उस विष को प्रभु के शरीर से खींच लिया शरीर से विस निकल जाने से प्रभु श्रीराम उठकर बैठ गए किंतु उधर बहेलिया भी स्वस्थ हो गया।

नाग नागिन देखा अरे इतने भयंकर विष के बावजूद दुश्मन जिंदा है अतः क्रोधित नागिन ने फिर बहेलिया को डस लिया बहेलिए ने फिर वही कहा और उसका प्रभाव राम जी फिर बेहोश हो गए।लक्ष्मण जी (शेष जी) ने पुनः उपचार किया राम जी के साथ बहेलिया भी स्वस्थ। अब तो नाग नागिन दोनो का यह नियमित काम था वह बहेलिया को डस कर मार देते थे किंतु बहेलिया के साथ विष प्रभु श्रीराम को चढ़ जाता था लक्ष्मण जी के उपचार से राम जी स्वस्थ तो उनके नाम की शरण में आया हुआ बहेलिया भी स्वस्थ अर्थात राम जी की कृपा से बच जाता था।नाग नागिन दोनो ही अत्यंत विषधर थे उनके जहर से मनुष्य बचता कैसे है यह देखने की यह जानने की उत्कंठा दोनो के ह्रदय में जाग्रत हुई और उन्होंने भगवान आशुतोष का स्मरण किया। भगवान आशुतोष नागों की आराधना से प्रसन्न हुए और उनके समक्ष प्रकट होकर बताया कि आपका दुश्मन बहेलिया अब प्रभु श्रीराम जी की शरण में है और जाने अंजाने अगर किसी ने श्रीरामजी की शरण ले ली तो उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।क्योंकि प्रभु राम शरणागत रक्षक हैं। वह शरण में आए हुए को एक खरोच नही लगने देते उसके सभी कष्ट अपने ऊपर ले लेते हैं।

दुनिया में लड़ाई लगाकर मजे लेने में विख्यात नारद मुनि को भला चैन कैसे मिलता,नाग नागिन दोनो भगवान शिव के वचनों से संतुष्ट हो चुके थे इसलिए बहेलिए को उस दिन नही दंश नही मारा, बहेलिया अपनी आदत के अनुसार हर अच्छे बुरे काम के लिए प्रभु श्रीराम को ही समर्पित करता था हमेशा कहता था प्रभु की ईक्षा, जो करते हैं राम जी करते हैं मेरा अस्तित्व ही क्या है?उसके इन दीन बचनो को सुनकर प्रभु श्रीराम मुस्कराकर उसे अपनी शरण में लेकर उसके पाप भस्म कर देते थे।
नारद ऋषि ने नाग नागिन को बदला लेने के लिए उकसाते हुए कहा कि ऐसे तो लोगो के अंदर जो नाग बदला अवश्य लेता है यह डर ही निकल जायेगा और लोग एक एक कर नागों और सर्पों का वंश ही समाप्त कर देगे। जो मुहावरे समाज में प्रचलित हैं वह सारे खत्म हो जायेगे अतः आपको अपने बच्चो की मौत का बदला अवश्य लेना चाहिए। माना कि प्रभु श्री राम बड़े ताकतवर हैं लेकिन फिर भी है तो वह मनुष्य रूप में ही, और मनुष्य कोई भी हो उसके शरीर पांच तत्वों से ही बना है उसके अंदर वही मांसपेशियां रक्त और रक्तसंचार की नलियां ही हैं आपके पास जो अमूल्य विष है वह रक्त संचार बंद कर देगा। अगर आप इस बार बहेलिए को डसने के पूर्व क्यों न श्रीराम को ही डस कर पहले शत्रु के मित्र को नष्ट कर दो क्योंकि शत्रु का मित्र अपना सबसे बड़ा शत्रु होता है।
 दूसरे श्रीराम राजा दशरथ के पुत्र हैं, दशरथ जी संसार से चले गए, हैं यह तो अभी किशोर बालक ही हैं अगर इनको डस कर तुमने इनका वध कर दिया तो इनकी पूजा करने वाले सभी देवता यक्ष किन्नर मनुष्य राक्षस सब तुम्हारे आधीन हो जायेगे। सारा संसार तुम्हारी पूजा करेगा क्योंकि इतिहास गवाह है जीतने वाले की ही पूजा होती है। आप तो पशु पक्षी के बाद वाली योनि अर्थात कीड़ों में गिने जाते हो यह सोचो कि अगर एक कीड़े ने पक्षी, पशु से ऊपर मनुष्य जिसके आधीन सभी देवता, राक्षस,यक्ष,किन्नर मनुष्य पशु पक्षी हैं उस राम का वध कर दिया तो कितना नाम हो जायेगा। गरुण की सवारी करने वाले, शेष नाग पर सोने वाले छलिया की छल से हत्या करके तुम शेष नाग से भी ज्यादा ताकतवर और पूजनीय हो जाओगे। सभी तुम्हारी पूजा करेगे। नाग की बुद्धि पूरी तरह से पलट गई और वह घमंड में इतराता हुआ बोला हां देवरिषि आप सत्य कह रहे हो अब तो मैं सबसे पहले दशरथ के पुत्रों का ही वध करूंगा।
नाग नागिन बदला अवश्य लेगे की शपथ के साथ पंचवटी पहुंच गए और बहेलिया से पहले श्री राम को डस कर समाप्त करेगे फिर बहेलिया को यह संकल्प की प्रतिज्ञा की थी। अर्थात कुछ भी हो राम को अवश्य डसेगे।
उधर भगवान श्रीराम जी सुबह की संध्या वंदन और योग कर रहे थे ,दोनो उनको घेरकर बैठ गए और उन को डसने का मौका देख रहे थे। सदा चौकन्ने रहने वाले रक्षक वीरवर लक्ष्मण जी ने देखा तो उन्होंने मंत्र अभिपुरित दो बाण चलाए एक रामजी को डसने को तैयार नाग को भेदकर उसे लेकर आसमान की तरह गया और दूसरा प्रभु के आस पास गोल चक्कर बनाता हुआ विलुप्त हुआ अब उस चक्र को भेदकर कोई अंदर नही जा सकता था।
नाग को भेदकर जिस वाण ने उसको आसमान के रास्ते कई योजन पर फेंक दिया था वहां नाग पड़ा हुआ अपने भाग्य को कोसते हुए ईश्वर से मृत्यु मांग रहा था। लक्ष्मण जी का वाण वापस उनके तरकश में आ गया था अब नागिन को देखकर लक्ष्मण जी कहते हैं नागिन तू स्त्री जाति है और मैं रघुवंशी कभी स्त्री पर मर्दानगी नही दिखाता अतः तुझे आखिरी चेतावनी देता हूं कि भाग जा और अपनी जान बचा ले। नागिन भी अपने प्राण अपने हांथ में लेकर आई थी और नाग के ऊपर बाण मारने के कारण कुपित थी अतः लक्ष्मण से बदला लेने के लिए अचानक उछलकर लक्ष्मण को डंस मार देती है लेकिन लखन लाल हंस रहे थे उनके ऊपर विष का कोई प्रभाव न देखकर नागिन शेष जी आवाज और फुंफकार को समझ गई और कुछ बोलती इसके पूर्व लखनलाल का एक बिना फर वाला बाण छूट गया। उससे बचने हेतु नागिन भाग रही है लेकिन शेष जी का दंड स्वरूप बाण पीछे पीछे आ रहा है।अपनी मृत्यु सन्निकट देखकर नागिन नारद को कोसती हुई शिवजी की याद करती है भगवान आशुतोष ने उसको श्रीराम की ही शरण जाने का सुझाव दिया तो बदले से भरी नागिन प्रभु श्रीराम की शरण हूं हे अवध बिहारी कौशल्या नंदन दशरथ पुत्र राम मुझे बचाओ मैं आपकी शरण हूं कहती हुई पुनः पंचवटी आ गई। और शेष जी को पहचान कर बोलती है।लखन जी हमको जीने दोशेष जी हमको जीने दोएक बहेलिया दुष्ट परितापी7 पुत्र मेरे मारे पापी उनका बदला हो उनका बदला लेने दोलखन जी हमको जीने दोराम तुम्हारे बड़े जो भ्राताबार बार वह है शत्रु बचाताउससे पहले हो इसको डसने दोलखन जी हमको जीने दोआज तो बदला मैं बस लूंगीराम को डस कर उसे डसूंगीपितृ सभी नागों के हो,अब हमको रहने दोलखन जी हमको जीने दो लक्ष्मण जी नागिन को डांटते हुए समझाते हैं कि ओ बेवकूफ बे मौत मारी जायेगी, यह सिर्फ मेरे बड़े भाई श्री राम नही है अपितु यह परमब्रह्म परमात्मा महाविष्णु राम है जो समस्त चर अचर जीवित निर्जीव कण कण में समाए हैं इनके अंदर अनगिनत ब्रह्मांड हैं। कितने शेष महेश गणेश दिनेश सुरेश ब्रह्मा विष्णु भ्रमण कर रहे हैं इनको डस कर मारने की हिम्मत करके तूने मेरे हाथों अपनी मृत्यु को आमंत्रित कर रही है। कल्प कल्पांतर के बाद मुझ दास को इनकी सेवा का सुअवसर मिला है तू भी इनकी भक्ति कर तेरा कल्याण होगा।
नागिन कहती है कि मेरे पुत्र मारे गए मेरे पति की भी मृत्यु हो गई अब मैं जी कर क्या करूंगी। मेरी शपथ मैं अवश्य पूरी करूंगी,मैं जानती हूं कि मैं राम को डस कर जीवित नहीं बचूंगी लेकिन मेरी शपथ पूरी हो जायेगी। लखन लाल और नागिन की वार्तालाप संवाद सुनकर भगवान श्रीराम वही प्रकट हो गए और नागिन से कहते हैं हे नागिन तेरे सभी प्रश्नों का उत्तर मैं देता हूं। तुमने शिव जी की बात न मानकर जो पाप किया है उसके लिए तुमको पूरे कल्प नाग योनि में जीना होगा, तुम्हारा पति जीवित है और लखन लाल के बाण से उसके शरीर में जो रक्त निकला है उसके शरीर में जहां जहां लगा है उतने ही फन उसके अंकुरित हो जायेगे और आगे से वह कालिया नाग कहा जायेगा। तुम्हारी उसकी मुलाकात 14 चतुर्युगी के बाद वैवस्त मन्वंतर के सत्ताईसवे चतुर्युगी के द्वापर में जब मैं यदुकुल में कृष्ण अवतार लूंगा और कालिया हमारे गरुण के डर से यमुना नदी में छिपा होगा वहां तुम उसको मिलोगी और तब तुम्हारी मनोकामना मुझे डसने की पूरी होगी और तब मैं तुमको मैया कहूंगा, मेरे मैया कहते ही तुमको आज का दिन याद आ जायेगा। और उसके बाद तुम्हारा नाग योनि से उद्धार करने के लिए हमारे भक्त हमारे अंश नर अर्जुन के प्रपौत्र जन्मेजय द्वारा किए जाने वाले यज्ञ में आहुतिया जो नागों की दी जाएगी उसमे तुम सबको नाग योनि से मुक्ति मिलेगी और मेरे यहां चिर काल तक वास करोगी।भगवान उस परमभाग्यशाली नागिन को अपना विश्व रूप दिखलाते हैं और उसकी भाग्य से जिन देवताओं ऋषियों ने भगवान के उस अद्भुत रूप को देखा उन्होंने पुष्पों की वर्षा करते हुए अति आनंद पूर्वक शंख घड़ियाल बजाकर पूरे विश्व को गुंजायमान कर दिया।परमपिता परमेश्वर कहते हैं हे नारद तुम्हारा स्वार्थ हमारे विराट रूप को देखना था किंतु तुम्हारे कारण यह नाग नागिन जो कष्ट उठायेंगे इस लिए तुम भी इनके साथ सदैव कष्ट पाओगे पृथ्वी पर अविरल विचरण नही कर पाओगे अर्थात 3 पल से ज्यादा पृथ्वी के किसी स्थान पर ठहर नहीं पाओगे।हे नागिन देखो तुम्हारे सात पुत्र जो गंधर्व थे इनको हमेशा दूसरे के घर झांकने की आदत थी और इन्होंने महर्षि कश्यप को उनकी पत्नी के साथ एकांत में प्रेमालाप करते देखकर भी लगातार ताक झांक करते रहे थे, जिससे क्रोधित होकर ऋषि ने इनको सर्प होने का श्राप दिया था, किंतु इनके रुदन और विनती पर दया करके उन्होंने इनके श्राप की अवधि कम कर दी थी इसीलिए मृत्यु के देवता ने बहेलिए के माध्यम से इनका वध किया और बहेलिए ने अपने कर्म को मुझसे जोड़कर मुझे अर्पित कर दिया,बहेलिए ने इनकी आत्मा मुझे देकर इनको आवागमन के चक्र से मुक्त कर दिया अब यह हमारे साथ हमारे लोक में रहते हैं। अब प्रभु अपने आकार को समेट कर राम रूप में आकर माया द्वारा सबको सब भुला कर बोलते हैं कि हे नागिन मेरी शरण में आने से बहेलिए के सभी दोष पाप नष्ट हो गए क्योंकि रघुवंशी राम का तो प्रण है कि जो भी मेरी शरण में आ गया तो मैं उसको अपने प्राण देकर भी बचाना पड़े तो अवश्य बचाता हूं। जो मेरी शरण में आ जाए तो फिर मैं उसको अभय कर देता हूं।इस तरह कृष्ण अवतार में इस नागिन ने अपने पति कालिया के साथ उनको कई बार डस कर प्रतिज्ञा पूरी की थी और कृष्ण जी ने जिस नागिन को मैया कहकर काली दह में संबोधित किया वह यही त्रेतायुग की नागिन थी। जिसका नाग योनि से उद्धार परीक्षित पुत्र महाराज जन्मेजय की नाग यज्ञ में हुआ और प्रभु के धाम में सदा के लिए चली गई।आशा करते हैं कि रामायण के इस गूढ़ रहस्य को जानकर आप सभी को आनंद आया होगा अस्तु। जय श्रीराम।

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