विनय प्रेम बस भई भवानी,खसी माल मूरती मुसकानी,

Adarsh Dharm

vinay prem bas bhai bhawani

बिनय_प्रेम_बस_भई_भवानी_खसी_माल_मूरत_मुस्कानी।

 पांडेय जी का प्रश्न है कि श्रीरामचरित मानस में आई

प्रेम मगन बस भई भवानी। खसि माल मूरति मुस्का नी।।

 इस चौपाई का क्या अर्थ है और मुख्य प्रश्न है कि क्या करने से माता की मूर्ति मुस्करा पड़ी ?

 यह प्रसंग तब का है जब धनुष यज्ञ के दो दिन पूर्व गौरी पूजन के लिए माता सीता मंदिर जाती है और वह मंदिर पुष्प वाटिका में स्थित था या यह कह सकते है कि मंदिर के आस पास फूलों की वाटिका थी। माता सीता अपनी सहेलियों और अंग रक्षको के साथ वहां माता गौरी पूजन हेतु मंदिर पहुंचती हैं और वही अपने गुरु की पूजा हेतु पुष्प चुगने के लिए श्रीराम और लक्ष्मण वहां के माली से पूछकर पुष्प तोड़ने पहुंचते है। इस चौपाई का अर्थ समझने के लिए इसके पूर्व की चौपाई पढ़ना भी आवश्यक है। Pandey ji’s question is that Shri Ramcharit came in the psyche Prem Magan Bus Bhai Bhawani. Khasi maal murati muska ni. What is the meaning of this chaupai and the main question is whether the idol of the mother smiled? This incident is when two days before the Dhanush Yagya goes to Mata Sita temple for Gauri worship and the temple was located in the flower garden or it can be said that there was a flower garden around the temple. Mata Sita along with her friends and Anga Rakshaks reach the temple for worshiping Mata Gauri there and they ask Shri Ram and Lakshman to break the wreath by asking the gardener there to worship the flowers for the worship of their Guru. To understand the meaning of this chaupai, it is also necessary to read the chaupai before it.

माता सीता की एक सहेली थी जिसका पूजा पाठ में मन नहीं लगता था वह चंचल स्वभाव वाली थी हमेशा शरारती बच्चे जैसा व्योहार करती थी,मंदिर पहुंच कर वह द्वार से ही वाटिका घूमने निकल पड़ी उसने सोचा कि जब तक यह लोग पूजा करते है क्यों न वाटिका भ्रमण कर लिया जाए, और वह थोड़ा आगे बढ़ गई उसने देखा कि दो सुंदर राजकुमार वाटिका से फूल तोड रहे हैं उनको देखकर वह सम्मोहित हो गई और उसने सोचा क्यों न सीता और अन्य सहेलियों को बताकर सभी मिलकर इनकी सुंदरता का नयन सुख ले और यह विचार करके वह भाग कर मंदिर आती है और माता सीता का हांथ पकड़कर बरबस जबरदस्ती उनको मंदिर के द्वार पर लाती है और दूर से प्रभु राम को दिखाती है,जिनको देखकर माता सीता एकटक देखती ही रह गई, उनको अपने शरीर तक की सुधि नहीं थी बस देखे जा रही थी देखे जा रही थी। और इस दृश्य को देखते हुए वह अपनी आंखे बन्द कर लेती है। Mother Sita had a friend, who did not mind worshiping her, she was fickle and always behaved like a naughty child, reaching the temple, she had to walk out of the garden to the door, she thought that as long as these people worshiped, why not? Take a tour of the garden, and she moved a little further, she saw that two beautiful princes were plucking flowers from the garden, she was hypnotized seeing them and she thought why not tell Sita and other friends to all take pleasure in their beauty and Considering this, she runs away and comes to the temple, holding Mata Sita’s hand and forcefully brings her to the temple entrance and shows Lord Rama from far away, seeing whom Mata Sita kept staring at him, not even remembering her body Thi bus was being seen and was being seen. And seeing this scene, she closes her eyes. इसके बाद माता सीता वहां से चलती हैं किन्तु उनकी दशा ऐसी हो गई थी कि जैसे नाग की मनि छूटी जा रही हो, किसी मृग की कस्तूरी से कोई उसको अलग कर रहा हो और वह बेचारा बार बार मुड़कर पीछे देखता है वैसे माता जा तो आगे को रही थी किन्तु बार बार मुड़कर प्रभु राम को देखती जा रही थी अर्थात सखियां ले तो जा रही थी किन्तु जैसे अलग होती जा रही दूर जाती है वैसे ही प्रीति प्यार बढ़ता जा रहा था।

After that Mother Sita walks from there, but her condition was such that as if a snake’s mind is being lost, someone is separating it from the musk of an antelope and the poor thing turns back and looks back and the mother goes ahead. But it was turning and looking at Lord Rama again and again, that is, taking the rings, but as the separation goes away, the love of love was increasing.  गोस्वामी तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण के कई सारे श्लोकों को एक एक चौपाई में समाहित करते हुए क्या सुंदर व्याख्या की है। सम्पूर्ण श्रंगार रस अपने सुंदर कविता में पिरो दिया है जिसको पढ़कर/ सुनकर अतिसय आनंद में भाव विभोर हुए बिना आप भी नहीं रह पाएंगे। Goswami Tulsidas has interpreted what is beautiful by incorporating many verses of Valmiki Ramayana in a chupai. The entire adornment juice has been poured into his beautiful poem, which you will not be able to live without reading / listening to the feeling of ecstatic bliss.  सकुचाते शर्माते हुए जब वह अपनी आंखे खोलती हैं तो सामने दोनों वीर रस से परिपूर्ण रघुकुल के सिंह दिखते हैं। नख सिख मतलब पैर के अंगूठे के नाखून से लेकर उनके सिर की चोटी तक उनकी शोभा देखकर उनकी सुंदरता देखकर माता मन से प्रफुल्लित हो जाती है दूसरे पल अपने पिता महाराज जनक का प्रण याद आते ही थोड़ा विचलित होती है और इस तरह माता सीता दूर से ही प्रभु राम को देखकर वशीभूत हो जाती हैं उनके हृदय में अत्यंत अनुराग हो जाता है और वह इन्हीं विचारो में खो जाती हैं। ऐसे काफी समय एकटक निहारती हुई ! When she opens her eyes blushing shyly, both of them see Raghukul’s lions full of courage. Nakh Sikh means to see his beauty from the toe nail to the top of his head, seeing his beauty, the mother becomes enlightened by the second moment, remembering the vow of her father Maharaj Janak, she is a little distracted and in this way Mother Sita is from afar. He gets overwhelmed by seeing Lord Rama and gets very fond of her heart and she gets lost in these thoughts. Staring staring at such a long time माता सीता को परबस देखकर सभी सखी थोड़ा घबरा जाती है तो एक सखी उनसे ठिठोली करते हुए कहती है कि हे सीता अब घर वापस चलते है कल फिर इसी समय यहां आयेगे फिर जी भरके देख लेना और यह कहकर सखी मजाक करके हंसती है, सखी की बात सुनकर माता लजा जाती है और अपनी माता के डर से कि देर होगी तो माता डांटेगी इसलिए वापस चलती हैं। After seeing Mother Sita, all the friends are a little nervous, then a friend says to them that she is going back home now, Sita will come back tomorrow and then come here again at the same time, then look at it wholeheartedly and saying that Sakhi laughs jokingly, Sakhi Mother is embarrassed after listening to this thing and for fear of her mother that it will be late, mother will scold her so she goes back.

 माता सीता वहां से चलती हैं किन्तु उनकी दशा ऐसी हो गई थी कि जैसे नाग की मनि छूटी जा रही हो, किसी मृग की कस्तूरी से कोई उसको अलग कर रहा हो और वह बेचारा बार बार मुड़कर पीछे देखता है वैसे माता जा तो आगे को रही थी किन्तु बार बार मुड़कर प्रभु राम को देखती जा रही थी अर्थात सखियां ले तो जा रही थी किन्तु जैसे अलग होती जा रही दूर जाती है वैसे ही प्रीति प्यार बढ़ता जा रहा था। Mother Sita walks from there, but her condition was such that as if a snake’s mind is being lost, someone is separating it from the musk of an antelope and the poor thing turns back and looks back and the mother goes ahead. But it was turning and looking at Lord Rama again and again, that is, taking the rings, but as the separation goes away, the love of love was increasing.

 माता सीता पुनः मंदिर में जाती है और अब अपने दोनो हांथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए माता गौरी जो उस मंदिर में किशोरी रूप में स्थापित थी उनसे कहती है Mata Sita again goes to the temple and now folds her arms and prays to Mata Gauri who was established as a teenager in that temple.

 और इस तरह माता सीता ने प्रभु राम की तस्वीर अपने दिल में अंकित करके आगे चली फिर मन में धनुष की प्रत्यंचा का प्रण याद करके काफी भयभीत भी होती है और उधर प्रभु राम ने देखा कि सीता जा रही हैं तो उन्होंने सीता की तरफ देखकर अत्यंत प्रेम के साथ अपनी सुंदर भौह रूपी धनुष को चलाकर अपनी मधुर मुस्कान के वान से मानो सीता के ह्रदय में अपने प्रेम पत्र को लिख दिया। अब तो प्रेम का अंकुर दोनों तरफ फूट चुका था। And in this way, Mother Sita went ahead with the picture of Lord Rama in her heart, then remembering the vow of the bow in the mind, she is also very frightened and on the other hand, Lord Rama saw that Sita is going, so she looked at Sita extremely Running his beautiful eyebrow bow with love, he wrote his love letter in the heart of Sita as if with a sweet smile. Now the seedling of love had spread on both sides.  जय जय गिरवर राज किशोरी। जय महेश मुख चंद चकोरी।। जय गज बदन ष डा नन माता। जगत जन नि दामिनी दुती गाता।। नहि तव आदि मध्य अवसाना।अमित प्रभाव बेद नहि जाना।। भव भव विभव पराभव कारिं नि। विश्व विमोहिन स्वबस विहरिं नि।। पति देवता सुतीय महुं, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सक हि क हि सहस शारदा शेष। सेवत तो हि सुलभ फल चारी।वर दायनि पुरारि पियारी।। देवि पुजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहि सुखारे।। मोर मनोरथ जानहु नीके। बसहु सदा उर पुर सबही के।। कीनहेहू प्रगट न कारण तेही। अस कही चरन गहे वैदेही।। गजानन गणेश और ष डा नन कुमार कार्तिकेय की माता आपकी जय हो। दुष्टों राक्षसों के लिए बिजली के समान और सारे संसार की माता आपकी जय हो। Hail to you the mother of Gajanan Ganesh and Dr. Naan Kumar Karthikeya. For the evil demons, like lightning and the mother of the whole world hail you. हे माता आप तो आदि शक्ति हो, आपके आदि, मध्य या अंत के बारे में किसी को नहीं मालूम है आपके अमित प्रभाव है जिनको वेद भी नहीं जानते है। O mother, you are an Adi Shakti, no one knows about your beginning, middle or end, you have immense influence, which the Vedas do not even know. जय हो जय हो हे गिरिवर राज हिमालय की पुत्री आप की जय हो। हे भगवान शिव के मुख को चंद्रमा के समान मानने वाली चकोरी आप की जय हो। Jai Ho Jai Ho O Hail to you, daughter of Girivar Raj Himalaya. Hail to you, Chakori, who considers the face of Lord Shiva like the moon. हे माता आपकी सेवा करने से सभी सुलभ चारो फल मिल जाते हैं हे माता आप तो सभी को वरदेनी वाली हो इसीलिए भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय हो। O mother, by serving you, all the fruits are available, O mother, you are all with a blessing, that’s why Lord Shiva is most dear to you. आप ही संसार को उत्पन्न, पालन सृजन और नस्ट करने वाली हो आप संसार को विमोहित करते हुए अपनी माया से अपने बस करके विहार करती हो। You are the one who creates, nurtures and destroys the world, you seduce your world with your Maya and do it. हे माता पति देवता है यह सिखलाने वाली संसार की प्रथम सती आप ही हो और आप के द्वारा बनाई रेखा पर ही अन्य स्त्रियां चलती है हे माता आपकी महिमा इतनी बड़ी है कि हजारों सरस्वती और शेष भी वर्णन नहीं कर सकते। You are the first Sati of the world to teach that mother is a god, and you are the other women who follow the same line, O mother, your glory is so great that even thousands of Saraswati and the rest cannot be described. हे देवि आपके चरणों की पूजा करके सभी देवता मनुष्य ऋषि और सब चराचर प्राणी प्रसन्न हो जाते है सुखी हो जाते है O deity, by worshiping your feet, all the gods, humans, sages and all grazing creatures become happy.

गजानन गणेश और षडानन कुमार कार्तिकेय की माता कहकर सीता माता क्यों की वंदना ?

गजानन गणेश और षडानन कुमार कार्तिकेय की माता आपकी जय हो। दुष्टों राक्षसों के लिए बिजली के समान और सारे संसार की माता आपकी जय हो। Hail to you the mother of Gajanan Ganesh and Sheshanan Kumar Karthikeya. For the evil demons, like lightning and the mother of the whole world hail you.

हे माता आप तो आदि शक्ति हो, आपके आदि, मध्य या अंत के बारे में किसी को नहीं मालूम है आपके अमित प्रभाव है जिनको वेद भी नहीं जानते है। O mother, you are an Adi Shakti, no one knows about your beginning, middle or end, you have immense influence, which the Vedas do not even know.

 जय हो जय हो हे गिरिवर राज हिमालय की पुत्री आप की जय हो। हे भगवान शिव के मुख को चंद्रमा के समान मानने वाली चकोरी आप की जय हो। Jai Ho Jai Ho O Hail to you, daughter of Girivar Raj Himalaya. Hail to you, Chakori, who considers the face of Lord Shiva like the moon.

 हे माता आपकी सेवा करने से सभी सुलभ चारो फल मिल जाते हैं हे माता आप तो सभी को वरदेनी वाली हो इसीलिए भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय हो। O mother, by serving you, you get all the four fruits accessible, O mother, you are all very virtuous, that’s why Lord Shiva is most dear to you.

 आप ही संसार को उत्पन्न, पालन सृजन और नस्ट करने वाली हो आप संसार को विमोहित करते हुए अपनी माया से अपने बस करके विहार करती हो। You are the one who creates, nurtures and destroys the world, you seduce your world with your Maya and do it.

 हे माता पति देवता है यह सिखलाने वाली संसार की प्रथम सती आप ही हो और आप के द्वारा बनाई रेखा पर ही अन्य स्त्रियां चलती है हे माता आपकी महिमा इतनी बड़ी है कि हजारों सरस्वती और शेष भी वर्णन नहीं कर सकते। You are the first Sati in the world to teach that mother is the god and you are the women who follow the line created by you, O mother, your glory is so great that even thousands of Saraswati and the rest cannot be described.

माता के हॅसने का गूढ़ रहस्य क्या था ?

   हे देवि आपके चरणों की पूजा करके सभी देवता मनुष्य ऋषि और सब चराचर प्राणी प्रसन्न हो जाते है सुखी हो जाते है O deity, by worshiping your feet, all the gods, humans, sages and all grazing creatures become happy.

 हे माता आप तो सभी के ह्रदय में वास करती हो और अन्तर्यामी हो इसलिए मेरे मन की अभिलाषा तो आपको अच्छे से मालूम है इसलिए मैं आपसे खुलकर प्रकट नहीं कर सकती, और ऐसा कहकर वह माता गौरी की प्रतिमा के चरणों को पकड़कर और थोड़ा शर्मा कर बैठ जाती है अर्थात माता भवानी सीता की विनय प्रार्थना के प्रेम वश मुस्करा पड़ी,जिससे उनके गले की माला नीचे खिसक गई और वह माता सीता के हांथ में गिरी।

O mother, you live in the heart of everyone and you are transcendent, so you know my desire well, so I cannot openly tell you, and by saying this, she is holding the feet of the statue of Mata Gauri and is a little shy. She sits down, meaning Mother Bhavani smiles at the love of Sita’s humble prayer, due to which the garland of her neck slips down and she falls into the hand of Mother Sita. विनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरती मुस कानी।।   साधारण अर्थ।

अर्थात माता भवानी गौरी देवि सीता की विनय प्रार्थना के प्रेम वश मुस्करा पड़ी,जिससे उनके गले की माला नीचे खिसक गई और वह माता सीता के हांथ में गिरी। Simple meaning. That is, Mata Bhavani Gauri Devi smiled under the love of Sita’s humble prayer, which caused her neck garland to fall down and she fell in the hand of Mata Sita. दूसरा अर्थ है कि भगवान राम के प्रेम के वशीभूत हुई देवि सीता की यह दशा, जिसमे उनको अपने शरीर की भी सुध न हो पूरी तरह से राम मय हो चुकी देवि सीता को देखकर, माता गौरी मुस्करा पड़ी। जिससे उनके गले में पड़ी हुई पुष्पो की माला गिर गई जो माता सीता के हांथ में गिरी। The second meaning is that this condition of Devi Sita, subjugated by the love of Lord Rama, in which she could not even care about her own body, seeing Devi Sita completely lost in Ram, Mata Gauri smiled. Due to which the garland of Pushpo lying in his neck fell which fell in the hands of Mother Sita.

 तीसरा और मुख्य गूढ़ार्थ जो साधारण शब्दों में समझ नहीं आएगा किन्तु अगर आप इस चौपाई से पहले पढ़ी गई चौपाई को सुनोगे तो समझ में आएगा कि माता गौरी क्यो मुस्करा पड़ी। Third and the main decipherment which will not be understood in simple words, but if you will listen to the bed read before this bed, then you will understand why Mother Gauri smiled.

माता गौरी के किशोरी कन्या के रूप की पूजा का महत्त्व

सनातन परम्परा है कि कोई भी कन्या अपने विवाह के पूर्व माता गौरी जो किशोरी कन्या के रूप में हैं उनकी ही पूजा करती हैं अगर कहीं माता गौरी का किशोरी रूप मंदिर पास में नहीं होता है तो किसी कुंवारी कन्या को उनके रूप की कल्पना करते हुए उनके स्थान पर कन्या की पूजा करवाते है और अब तो यही परम्परा है कि जिस कन्या की शादी होने जा रही होती है उसकी छोटी बहन भतीजी या परिवार की ही कोई छोटी कन्या को बिठाकर पूजा करवाई जाती है उसकी पूजा करने के बाद जब विवाह होता है तो वर पक्ष द्वारा गौरी रूपी कन्या हेतु नए वस्त्र देने का विधान परम्परा चली आ रही है। लेकिन माता सीता जो स्वयं जगत जननी सर्वेश्वरी परम ब्रह्म परमात्मा की शक्ति स्वरूपा महामाया आदिशक्ति हैं वह अपने ही दूसरे रूप से प्रार्थना करते हुए मानव लीला करते हुए भूल गई कि वह गौरी माता के किशोरी रूप की पूजा कर रही है न कि पति के साथ शिव पार्वती की। किशोरी रूप में माता गौरी अविवाहित हैं किन्तु सीता माता ने उनकी प्रार्थना में उनके पति के साथ उनके दोनों बच्चो जो राम अवतार के बहुत बाद में हुए, क्योंकि नारद ऋषि के श्राप के कारण जो राम अवतार 13 वें मन्वन्तर में हुआ था उस समय तो माता भवानी सती रूप में थी , माता गौरी का रूप तीसरे मन्वन्तर का माना गया है माता पार्वती जी 15 वें मन्वन्तर में हुई और इसी मन्वन्तर में माता के पुत्र के रूप में स्वयं परमब्रह्म के शीर्ष अंश भगवान गणेश और कार्तिकेय जी प्रकट हुए थे।  Sanatan tradition is that any girl worships her mother Gauri who is in the form of a teenager girl before her marriage, if the teenager form of mother Gauri is not near the temple, then a virgin girl is imagined as her The girl is worshiped at the place and now it is the tradition that the girl who is going to get married, her younger sister niece or any younger girl of the family is seated and worshiped after her marriage, when the marriage takes place Legislative tradition of giving new clothes to a girl like Gauri by the groom’s side is going on. But Mata Sita, who herself is the power of the universe Janmani Sarveshwari Param Brahma, the divine form, Mahamaya Adishakti, while praying in her own form and forgetting that she is worshiping the teenager form of Gauri Mata and not Shiva with her husband Of Parvati. Mata Gauri is unmarried as a teenager, but Sita Mata prayed to her husband with her two children who were much later than Rama Avatar, because of the curse of Narada Rishi, which Rama incarnation took place in the 13th Manvantar at that time. Bhavani was in the form of Sati, Mata Gauri is believed to be of the third Manvantara, Mata Parvati ji was in the 15th Manvantara and in this Manvantara, Lord Ganesha and Kartikeya appeared as the top parts of Parambrahm himself as the son of Mother.

जगत जननी माता महामाया सीता भगवान राम के प्रेम में इतना मगन हो गई कि उनके द्वारा प्रार्थना में उनके अगले जनम के पिता ,पति और पुत्रो के नाम निकले और इसी बात से माता गौरी किशोरी जी मुस्करा पड़ी। Jagat Janani Mata Mahamaya Sita became so engrossed in the love of Lord Rama that the names of her next birth father, husband and sons came out in prayer by her, and that is why Mata Gauri Kishori ji smiled.

 इसके बाद उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप माला देने के बाद बोलकर आशीर्वाद भी दिया उसे सुनकर आप की शंका का और समाधान हो जाएगा।   After this, after giving the garland as a blessing, he also gave blessings by speaking and after listening to it, your doubts will be solved further.

आगे पढ़िए

सादर सिय प्रसाद सिर धरेऊ। बोली गौरि हरशु हिय भरेऊ।।

सुन सिय सत्य आशीष हमारी। पूज हि मन कामना तुम्हारी।।

नारद बचन सदा सू चि साचा। सो बरु मिलही जाहि मनु राचा।।

अर्थात उस माला को प्रसाद के रूप में माता सीता अपने सिर में लगाकर रख लेती हैं अर्थात प्रसाद को मत्थे में लगाकर ही लेना होता है वह किया फिर हृदय को प्रसन्न करते हुए माता गौरी बोली।

That is, Mata Sita keeps that garland as Prasad in her head, that is, she has to take Prasad in the head, she did it and then she said Mata Gauri, pleasing the heart.  इसके बाद उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप माला देने के बाद बोलकर आशीर्वाद भी दिया उसे सुनकर आप की शंका का और समाधान हो जाएगा।   After this, after giving the garland as a blessing, he also gave blessings by speaking and after listening to it, your doubts will be solved further.

आगे पढ़िए

सादर सिय प्रसाद सिर धरेऊ। बोली गौरि हरशु हिय भरेऊ।।

सुन सिय सत्य आशीष हमारी। पूज हि मन कामना तुम्हारी।।

नारद बचन सदा सू चि साचा। सो बरु मिलही जाहि मनु राचा।।

अर्थात उस माला को प्रसाद के रूप में माता सीता अपने सिर में लगाकर रख लेती हैं अर्थात प्रसाद को मत्थे में लगाकर ही लेना होता है वह किया फिर हृदय को प्रसन्न करते हुए माता गौरी बोली। That is, Mata Sita keeps that garland as Prasad in her head, that is, she has to take Prasad only in the forehead, she did it and then pleased her heart and said Mother Gauri.  हे सीता मेरी बात सुनो, मेरा आशिर्वाद है जो बिल्कुल सत्य होगा, और वह यह है कि आपकी मनोकामना पूर्ण रूप से सिद्ध होगी। O Sita, listen to me, it is my blessing that will be absolutely true, and that is that your desire will be fully proved.

नारद का बचन जो हमेशा सुंदर और सत्य होता है अतः आपको वहीं वर पति मिलेगा जिसके लिए आपका मन उत्साहित हो रहा है। अर्थात जिसको आपके हृदय में जगह मिली है वहीं आपके पति होंगे।  Narada’s childhood which is always beautiful and true, so you will get the same husband for which your heart is getting excited. That means, whoever has found a place in your heart, there will be your husband.

अब यहां देखो आप मेरा वीडियो नारद का स्त्री से एकतरफा प्यार वाला वीडियो देखे वहां नारद जी ने क्या श्राप दिया था उसका जिक्र माता गौरी कर रही है, हमारे वीडियो के आओ मानस पढ़ना सीखे के अंक 29 से 32 में नारद मोह की विस्तृत व्याख्या के साथ बताया गया है। इसके साथ उसके पहले माता सती द्वारा भगवान राम की परीक्षा और फिर शिव जी द्वारा उनका त्याग की कथा भी बता चुके हैं जिसमें सिद्ध होता है कि माता पार्वती का जन्म राम जन्म के बाद हुआ था और यही माता गौरी ने बताया कि नारद के सभी वचन श्राप अवश्य फलीभूत होंगे।

Now here you see my video of Narada’s unrequited love for a woman, where Mata Gauri is referring to what Narada ji cursed, in the detailed explanation of Narada Moh in our video Aao Manas Learned to Read Has been told along with. Along with this, he has also told the story of Lord Rama’s examination by his mother Sati and his renunciation by Lord Shiva, in which it is proved that Mata Parvati was born after Rama’s birth and this is what Mata Gauri told that all the words of Narada The curses will surely come to fruition.  माता गौरी ने कहा कि आपके मन में जो बस गया है वहीं सुंदर सांवरा सलोना वर आपको मिलेगा, जो स्वयं करुणा निधान, सज्जन, शीलवान, बहुत प्रीत प्यार करने वाले और सभी वरो के राजा है अर्थात उनसे अच्छा कोई संसार में और वर नहीं है।  Mata Gauri said that whatever has been settled in your mind, you will get the beautiful bride Salona, ​​who is compassionate self, gentleman, Sheelwan, very loving and king of all dreams, that is, there is no better groom in the world than them. .

इस प्रकार माता गौरी का आशीर्वाद सुनकर सीता के साथ सभी सखियां खुश हुई आनंदित हुई तुलसी दास जी कहते है फिर बारंबार भवानी गौरी की पूजा करके सभी सखियो के साथ माता सीता घर को लौट चली। Thus all Sakhis with Sita were happy to hear the blessings of Mata Gauri. Tulsi Das ji says again, Mata Sita returned to the house with all Sakhis after worshiping Bhavani Ghori again and again.

माता गौरी का आशीर्वाद सुनकर देवि सीता के मन की खुशी की बात कही नहीं जा सकती अर्थात अकथनीय है क्योंकि सभी शगुन मंगल की जड़ अर्थात सबसे बड़ा सगुन यह हुआ कि देवि सीता के बाए अंग फड़कने लगे। किसी भी नारी के बाम अंग , बायी आंख, बाए कान, बाए तरफ की नाक,बाए हांथ में अगर कोई कम्पन होता है तो वह स्त्री के लिए शुभ माना जाता है। पुरुष के लिए दाहिने अंग फड़कना शुभ होता है। Hearing the blessings of Mata Gauri, Devi cannot be said to be happy in the mind of Sita, that is inexplicable because all the omen is the root of Mars, that is, the biggest realization is that the devi started tearing limbs of Sita. If there is any vibration in any woman’s balm limb, left eye, left ear, left hand nose, left hand, it is considered auspicious for a woman. It is auspicious for a man to flap his right limb.

 माता गौरी आगे और खुलकर बोलती हैं

मनु जाहि राच्यो मिलही सो वर सहज सुंदर सनावरो 

करुणा निधान सुजान शीलू सनेहु जानती रावरो।

एही भांति गौरी आशीष सुनि सिय सहित हिय हर्षित अली।

तुलसी भवानिही पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हर्ष न जाय कहि।

मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।  निष्कर्ष: स्वरूप में तीन कारण थे जिससे माता गौरी को हंसी आयि थी जिससे वह मुस्कराने लगी। Conclusion: There were three reasons in the form that made Mata Gauri laugh, which made her smile.

1- माता सीता भगवान राम को देखकर उनके रूप में इतना खो गई थी कि प्रार्थना करने में माता की प्रार्थना में माता के अगले जन्म उनके पति उनके बच्चो तक का बखान कर डाला जबकि गौरी पूजन किशोरी अविवाहित गौरी का कर रही थी इसलिए माता हंस पड़ी कि आदिशक्ति महामाया जिनका मै स्वयं एक अंश हूं वह मुझसे आशीर्वाद मांग रही है क्या मानव लीला कर रही है महामाया। 1- Mother Sita was so lost as her seeing Lord Rama that in praying to the mother, the mother’s next birth of her mother told her husband even to her children, while Gauri was worshiping the teenager unmarried Gauri, so the mother laughed. That Adishakti Mahamaya, who I am a part of myself, is asking me for her blessings, what human leela is doing Mahamaya.

2- वह प्रभु राम के प्रेम में विवेक शून्य होकर अपने मन की मनोकामना बताने मे असमर्थ होकर मां गौरी के चरन पकड़ के बैठी थी वरदान आशीर्वाद भी मांग नहीं पा रही थी इसलिए माता गौरी हंस पड़ी। 2- She was seated holding mother Gauri’s charan, unable to tell her mind’s desire, void of conscience in the love of Lord Rama, so mother was not able to ask for blessings, so Mother Gauri laughed.

3- माता सीता द्वारा मानव लीला में शर्म संकोच के कारण मन की बात खुद समझ लेने की प्रार्थना की बात पर हंसी आ गई। 3- Sita laughed at the request of Mother Sita to understand the mind herself due to shy shyness in human leela.

उम्मीद करते हैं कि श्री मान नंद किशोर पांडेय जी के प्रश्न का समुचित उत्तर मिल गया होगा अस्तु जय श्रीराम  We hope that the proper answer to the question of Shri Man Nand Kishore Pandey ji would have been found.

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