Dear students, we get all answer Ch-5, Legislature of India in Hindi. What Legislature and what kind of function they perform.
प्रश्न1 :आलोक मानता है कि किसी देश को कारगर सरकार की जरूरत होती है जो जनता की भलाई करे अतः यदि हम सीधे-सीधे अपना प्रधानमंत्री और मंत्री गण चुन लें और शासन का काम उन पर छोड़ दें तो हमें विधायिका की जरूरत नहीं पड़ेगी क्या आप इससे सहमत हैं अपने उत्तर का कारण बताएं !
उत्तर: भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह बड़ा ही मुश्किल है कि इतने बड़े क्षेत्र में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिए सीधे जनता द्वारा चुनाव कराए जा सके। मंत्रिमंडल की परंपरा काफी प्राचीन है। राजा को सभी विषयों के बारे में जानकारी नहीं होती थी। इसीलिए वह मंत्रिमंडल या सभा, समिति का गठन करता था! जिससे वह विचार विमर्श कर किसी निर्णय पर पहुंच सके। संसदीय व्यवस्था में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को सभी विषयों की जानकारी होना संभव नहीं है। इसलिए उन्हें मंत्रिमंडल और मंत्रिपरिषद की आवश्यकता पड़ेगी। विधायिका के ना होने पर मंत्रिपरिषद और प्रधानमंत्री निरंकुश हो जाएंगे! अपनी मनमानी करने लगेंगे! उन पर नियंत्रण करने के लिए विपक्ष का होना आवश्यक है। इसलिए आलोक की बात मानना या लागू करना! भारत जैसे बड़े देश में या किसी भी देश में जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करता है, संभव नहीं है।
प्रश्न 2: किसी कक्षा में द्वि सदनीय प्रणाली के गुणों पर बहस चल रही थी चर्चा में निम्नलिखित बातें उभर कर सामने आई! इन तर्कों को पढ़िए और इन से अपनी सहमति या असहमति का कारण बताएं:
क) नेहा ने कहा कि द्विसदनीय प्रणाली से कोई उद्देश्य नहीं सकता !
ख) शमा का तर्क था कि राज्यसभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होना चाहिए!
ग) त्रिदेव ने कहा कि यदि कोई देश संघीय नहीं है, तो फिर दूसरे सदन की जरूरत नहीं रह जाती !
उत्तर 2: नेहा के कथन से सहमत नहीं हूं। जहाँ दो सदनीय प्रणाली होती है वहां दूसरा सदन उद्देश्यहीन नहीं होता। कारण उसके पास भी शक्तियां होती हैं और वह प्रत्येक विधेयक पर विचार विमर्श, वाद-विवाद के लिए स्वतंत्र होता है! जिससे लोगों को विषय के बारे में ज्यादा जानकारी मिलती है।
शमा की यह बात सही है क्योंकि तर्क था कि राज्यसभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होना चाहिए। यह व्यवस्था भारत के संविधान में दी हुई है। राज्यसभा में १२ प्रतिनिधि मनोनीत किए जाते हैं जो अपने-अपने विषयो में विशेष ज्ञान रखने वाले होते हैं यानी विशेषज्ञ होते हैं।
त्रिदेव ने कहा यदि कोई संघीय देश नहीं है तो दूसरे देश सदन की जरूरत नहीं रह जाती। यदि वहां दूसरा सदन ना हो तो कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता परंतु उसकी उपयोगिता की वजह से दूसरे सदन की आवश्यकता रहती है। ताकि वह जनहित के प्रश्न उठा कर शासन करने वाले लोगों को नियंत्रित कर सके।
प्रश्न ३: लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में क्यों कारगर ढंग से नियंत्रण में रख सकती है?
उत्तर :लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में अधिक कारगर ढंग से नियंत्रण में रख सकती है। क्योंकि लोकसभा के प्रतिनिधि प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा जनता द्वारा सीधे चुने जाते हैं। लोकसभा में बहुमत होने पर सरकार गिर जाती है। जबकि राज्यसभा में बहुमत कम होने पर भी। सरकार सत्ता में बनी रहती है। इसलिए लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में अधिक प्रभावशाली ढंग से नियंत्रण में रख सकती है!
प्रश्न4: लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखने की नहीं बल्कि जन भावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है क्या आप इससे सहमत हैं कारण बताएं।
उत्तर: लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखने के ही नहीं बल्कि जन भावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है। यह बात बिल्कुल सत्य है क्योंकि लोकसभा के चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं। जनता सीधे अपने मताधिकार का प्रयोग करके अपने प्रतिनिधि चुनती है। यह प्रतिनिधि जनता को विश्वास दिलाते हैं कि उनके हितों से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होगा! लोकसभा में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। वे सरकार को मनमानी करने से रोकती है। कोई भी ऐसा निर्णय लेने से सरकार को रोकती है जिसमे जनता का भला न हो रहा हो! इसके लिए विभिन्न प्रकार के प्रस्तावों द्वारा नियंत्रण रखने का प्रयास करती है। जैसे अविश्वास प्रस्ताव काम रोको प्रस्ताव प्रश्नकाल, स्थगन प्रस्ताव आदि द्वारा जनता के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री और उनके परिषद को नियंत्रित करते हैं।
प्रश्न 5: नीचे संसद को ज्यादा कारगर बनाने के कुछ प्रस्ताव लिखे जा रहे हैं इनमें से प्रत्येक के साथ अपनी सहमति या असहमति का उल्लेख करें यह भी बताएं कि इन सुझावों को मानने के क्या प्रभाव होंगे !
क) संसद को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक काम करना चाहिए
ख) संसद के सदस्यों को सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर देनी चाहिए !
ग) अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने वाले पर सदस्य को दंडित कर सके!
उत्तर:संसद को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक काम करना चाहिए। मैं इस कथन से सहमत हूं क्योंकि जितना समय संसद विधायक को रखने और पास करने में लगाती है। उससे अधिक समय संसद के सदस्य वाकआउट करने और शोर करने में बर्बाद कर देते हैं। कम समय के लिए संसद की कार्रवाई चलती है और ज्यादा समय के लिए कार्रवाई रूकती है। जो टैक्स देने वाली जनता के साथ एक घोर अन्याय है।
ख) दूसरा कथन संसद के सदस्यों को सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर देनी चाहिए भी सही है। क्योंकि उन्हें उनके काम करने की सैलरी मिलनी चाहिए ना की छुट्टी/ वाकआउट करने की। अधिकांश सांसदों को यह पता ही नहीं होता कि किस विधायक में कौन सी बात कही गई है? उस विधेयक को लागू होने के फायदे या नुकसान के बारे में जब सांसदों को ही पता नहीं होगा तो वह जनता को क्या बताएंगे?
ग) अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि कार्यवाही में बाधा पैदा करने वाले सदस्यों को दंडित किया जा सके। अध्यक्ष को निष्पक्ष रुप से सदन की कार्यवाही चलाने के लिए यदि कुछ कठोर फैसलों को लेना पड़े तो उसे लेना चाहिए और जो सदन के कामों में बाधा पैदा करें! उन्हें कठोर दंड देना चाहिए। जैसे उनके वेतन में कटौती और अन्य सुविधाओं में कमी आदि।
प्रश्न 6: आरिफ यह जानना चाहता था कि अगर मंत्री ही अधिकांश महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करते हैं और बहुसंख्यक दल अक्सर सरकारी विधेयक को पारित कर देता है तो फिर कानून बनाने की प्रक्रिया में सं संसद की भूमिका क्या है ?आप आरिफ को क्या उत्तर देंगे ?
उत्तर: आरिफ का मानना सही है कि संसदीय प्रणाली में अधिकांश बिल सरकारी होते हैं जिन्हें मंत्री ही तैयार करते हैं। और वे ही प्रस्तुत करते हैं। संसद में केवल उन पर विचार किया जाता है और बहस होती है। विधायिका के सदस्य सदन में होने वाली कार्रवाई जैसे बिल को पटल पर रखने के बाद। उस पर बहस करते हैं। वाद विवाद तथा उसके फायदे और नुकसान गिनाए जाते हैं। जिसके कारण आम लोगों को बिल के फायदे और नुकसान पता चलते हैं। विधेयक पास करने के लिए उस पर वोटिंग होती है जिसमें यह स्पष्ट होता है कि कितने लोग उसके पक्ष में है और कितने विपक्ष में? निचले सदन में पास होने के बाद विधेयक उच्च सदन में जाता है। यानी राज्यसभा में जहां उस पर पुनः वही प्रक्रिया दोहराई जाती है। पहले पटल पर बिल रखा जाता है। उस बिल पर बहस की जाती है पक्ष और विपक्ष के विचार कहे जाते हैं। उसके बाद उस पर वोटिंग कराई जाती है। बिल पास होता है। दोनों सभाओं में होने वाली प्रक्रिया। से यह स्पष्ट होता है। कि बिल पर पूरी तरह से विचार-विमर्श के बाद ही निर्णय लिया जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और स्टैंप के बाद ही कोई बिल कोई एक कानून का रूप लेता है।
प्रश्न 7. आप निम्नलिखित में से किस कथन से सबसे ज्यादा सहमत हैं अपने उत्तर का कारण:
क) सांसद विधायकों को अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होने की छूट होनी चाहिए
ख) दल बदल विरोधी कानून के कारण पार्टी के नेता का दबदबा पार्टी के सांसद विधायकों पर बढ़ा है!
ग) दलबदल हमेशा स्वार्थ के लिए होता है और इस कारण जो विधायक सांसद दूसरे दल में शामिल होना चाहता है उसे आगामी २ वर्षों के लिए मंत्री पद के अयोग्य करार कर दिया जाना चाहिए !
उत्तर: दलबदल अधिकांशतः सभी राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है। मेरे अनुसार यदि दलबदल करना भी है तो चुनावों से पहले जिसे भी कोई भी विधायक अपने पसंद के दल में शामिल हो सकता है। परंतु चुनाव जिस टिकट पर जीता उसे छोड़कर दूसरे दल में शामिल होना यह गलत है और इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए जैसा कि प्रश्न में कहा गया है कि २ साल के लिए। ऐसे नेताओं को मंत्री पद के अयोग्य करार दिया जाना चाहिए । एक व्यवस्था यह भी की जानी चाहिए कि यदि कोई अपना दल छोड़कर चुनाव जीतने के बाद दूसरे दल में शामिल होता है तो वह आजीवन चुनाव नहीं लड़ सकता किसी भी दल से।
विधायक को जिस भी दल में शामिल होना चाहे हो सके। यह स्वार्थ पर आधारित होता है। जहां जिस नेता को फायदा दिखता है वह उस दल में शामिल हो जाता है। दल बदल विरोधी कानून इस दिशा में एक प्रभावकारी कदम था परंतु इससे भी दल बदल की घटनाएं नहीं रुकी।
प्रश्न 8. डॉली और सुधा, इस बात पर चर्चा चल रही थी कि मौजूदा वक्त में संसद कितनी कारगर और प्रभाव कारी है :
डॉली का मानना था कि भारतीय संसद के कामकाज में गिरावट आई है यह गिरावट एकदम साफ दिखती है क्योंकि अब बहस मोहब्बाहिस्से पर समय कम खर्च होता है और सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करने अथवा वकआउट बाहर गमन करने में ज्यादा !
सुधा का तर्क है की लोकसभा में अलग-अलग सरकारों ने मुंह की खाई है धराशाई हुई है!
आप सुधा या डॉली के तर्क के पक्ष या विपक्ष में और क्यों कौन सा तर्क देंगे !
उत्तर : डॉली की बात सही है सदन का बहुमूल्य समय बेकार की बातें वकआउट और शोर-शराबे में नष्ट होता है। जो की अच्छा नहीं है। संसदीय व्यवस्था के लिए, यह दुखद है कि आम जनता की टैक्स का पैसा सांसद इस प्रकार बर्बाद करते हैं। उन्हें जनहित के फैसले और बिलों पर बहस करने के लिए जो समय मिलता है! उसे वह गाली गलौज एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में बर्बाद कर देते हैं। इससे संसद की गरिमा और उसका प्रभाव कम होता है। जो कि एक गंभीर विषय है ।
सुधा के का कथन भी सही है बार-बार सरकारें बहुमत खो देती है। जिसका कारण स्पष्ट बहुमत का अभाव होता है। छोटे-छोटे दल अपना प्रभाव बढ़ाने तथा ब्लैकमेल करने की परंपरा का अनुसरण करते हैं और अपने निजी फायदे के लिए देश का बहुत बड़ा नुकसान करते हैं। जब वे सरकार को शुरू में तो समर्थन देते है बाद में अपने निजी हित पूरे ना हो पाने के कारण वह अपना समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा देते हैं। उनके लालच की वजह से संसद की गरिमा को बहुत नुकसान पहुंचता है।
प्रश्न 9) किसी विधेयक को कानून बनने के क्रम में जिन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है उन्हें क्रमवार सजाएं
a) किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है
b) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है बताएं कि अगर इस पर हस्ताक्षर नहीं करता या करती तो क्या होता है
c) विधेयक दूसरे सदन को भेजा जाता है और वहां इसे पारित कर दिया जाता है
d) विधेयक का प्रस्ताव किस सदन में हुआ है उसमें यह विधेयक पारित होता है
e) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है
f) विधेयक उप समिति के पास भेजा जाता है समिति उसमें से कुछ फेरबदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है!
g) संबंध मंत्री विधायक की जरूरत के बारे में प्रस्ताव करता है
h) विधि मंत्रालय का कानून विभाग विधेयक तैयार करता है
उत्तर 9: g)संबंध मंत्री विधायक की जरूरतों के बारे में प्रस्ताव करता है।
h) विधि मंत्रालय का कानून विभाग विधेयक तैयार करता है।
a) किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।
f) विधेयक उप समिति के पास भेजा जाता है? समिति उसमें कुछ फेरबदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है।
e) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।
d) विधेयक का प्रस्ताव। जिस सदन में हुआ है उसमें यह विधेयक पारित होता है।
c) विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहां इसे पारित कर दिया जाता है।
b) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। अगर राष्ट्रपति पर हस्ताक्षर कर देता है तो यह कानून बन जाता है। राष्ट्रपति इस प्रकार के बिल को पुनः विचार विमर्श के लिए भेज सकता है। परंतु पुनः विचार विमर्श के बाद राष्ट्रपति को बिल पर स्वीकृति देनी पड़ती है।
प्रश्न १०: संसदीय समिति की व्यवस्था से संसद के विधायी कामों के मूल्यांकन और देख रेख पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर : कानून बनाना: एक जटिल प्रक्रिया है। विधेयक बनाने से पहले उसके विषय का चयन उससे संबंधित सारी जानकारी आंकड़ों का विश्लेषण। उसकी आवश्यकता और लागू होने के बाद उसके प्रभाव का जनता पर होने वाला असर। इन सब के बारे में बारीकी से जांच पड़ताल की जाती है। ताकि उसे एक प्रभावशाली ढंग से कानून के रूप में बनाया जा सके। यह काम मंत्रियों के विभागों के अलावा। संसदीय कमेटियां, सभी नौकरशाहों और विभागीय कर्मचारियों की सहायता से कुशलता पूर्वक करती हैं। समीक्षा समिति, कई रिपोर्टों का अध्ययन करने के बाद यह निर्णय लेती है कि कौन से अनुच्छेद इसमें आवश्यक रूप से शामिल होने चाहिए और कौन से नहीं? उसके बाद उसकी कई बार। अवलोकन और पुनरावलोकन के बाद उसे एक बिल के रूप में बनाया जाता है !
निष्कर्ष: इस प्रकार इस पाठ में हमने जाना कि विधायिका की भूमिका लोकतंत्र में कितनी महत्वपूर्ण है वह कार्यपालिका के प्रभावशाली ढंग से काम करने के लिए कितनी आवश्यक है! कार्यपालिका अर्थात प्रधानमंत्री और उसकी कैबिनेट कहीं निरंकुश ना हो जाए! इस बात की व्यवस्था विधायिका उस पर समय-समय पर अंकुश रखकर उसे नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।