होलक किसे कहते है, holak kisey kahte hai,

Adarsh Dharm

ओम जय सियाराम मित्रो

  “होली क्यों जलाते हैं और रंग क्यों खेलते हैं इसके पीछे सनातन संस्कृति का क्या रहस्य है?

 सनातन के समस्त पर्व त्योहार किसानों की खुशी से ही संबंधित हैं। इतिहास की कुछ घटनाएं उनसे जुड़ गईं तो वह सोने पर सुहागा हो गई। सबसे पहले आते हैं पौराणिक कथा भक्त प्रहलाद और उनकी बुवा जिनको होलिका कहा जाता है। इसकी सच्चाई क्या है?

मित्रो होलिका से हिरण्यक्ष्यपु की बहन से भी पहले से मनाया जाता है। होली या होरी अन्न जलाने को कहते हैं। इस पर्व का प्राचीनतम नाम बासंती नव सस्येष्टि है अर्थात बसंत ऋतु के ने आनाजो से किया हुआ यज्ञ, होली होलक शब्द का अपभ्रंस है।

तृणाग्नि भ्रष्टार्थ पक्वश्मी धान्य होलक:।

अर्धपक्वशमी धान्यैस्तृण भ्रष्टैश्च होलक: होलकोअल्पानिलो मेद: कफ दोष श्रमपह:।

अर्थात तिनके की अग्नि में भुने हुए अधपके शमो धान्य (फली वाले अन्न) को होलक कहते हैं यह होलक वात पित्त कफ तथा श्रम के दोषों का शमन करते हैं।

होलिका क्या है? 

किसी भी अनाज के ऊपरी परत को होलिका कहते हैं जैसे चने का पट पर परत ,मटर का परत, गेहूं जौ का गिद्दी से ऊपर वाला परत। इसी प्रकार चना मटर गेहूं जौ की गिदी को प्रहलाद कहते हैं।

उदाहरण के लिए चने की फली के सबसे ऊपर वाला हरे वाला छिलका जलाया जाता है इसको होलिका और उसके अंदर जो चने का दाना होता उसकी ऊपरी परत को  प्रहलाद कहते हैं।

होलिका को माता इसीलिए कहते हैं क्योंकि माता निर्माण करती है यदि यह परत होलिका नही हो तो चना रूपी प्रहलाद का जन्म नही हो सकता। जब चना मटर गेहूं आदि को भूनते हैं तो वह पटपर या ऊपरी परत  या खोल पहले जलता है इस प्रकार अंदर का चना मटर अर्थात प्रहलाद बच जाता है। उस समय प्रसन्नता से जय घोष करते हैं अर्थात होलिका ने अपनी कुर्बानी देकर प्रहलाद को बचा लिया।

होलक क्या है?

अधजले अन्न को होलक कहते हैं और इसीलिए इस पर्व को होलीकोत्सव कहते हैं और बसंत ऋतू में नए अन्न से यज्ञ (येष्ठ) करते हैं  और इसीलिए इस पर्व का नाम बासंती नव सस्येष्ठ हैं। 

वासंतो अर्थात वसंत ऋतु

नव अर्थात नया

येष्ठि अर्थात यज्ञ।

इस पर्व का दूसरा नाम नव संवत्सर है  मानव श्रृष्टि में आदिकाल से ही आर्यों की यह परंपरा रही है कि नवान्न को सर्व प्रथम अग्निदेव और पितरों को समर्पित करते हैं उसके बाद स्वयं भोग करते थे। 

रबी और खरीफ की फसलों के बाद कृषक खुशी में वैशाखी और कार्तिकी  मनाते हैं और इसी को वासंती और शरदीय अर्थात रबी और खरीफ की फसल कहते हैं।

फाल्गुन पूर्णमासी वासंती फसल का शुभारंभ है अधपके अन्न को नव सश्येठी में भूनकर अग्नि देव और पितृ गण को समर्पित करते हैं तत्पश्चात ही अधपके अन्न अर्थात होलक को खाया जा सकता है यह नियम है।

देवताओं और पितृ को कैसे समर्पित करते हैं? वेद कहता है अग्निवै देवनाम मुखम अर्थात अग्नि देव और पितृ देव का मुख है। इसीलिए जो अन्न आदि आग में डाला जाता है वह शुक्ष्म रूप में होकर पितरों और देवो को मिल जाता है।

इसके साथ साथ हमारे यहां चातुर्मास यज्ञ की परंपरा है वेदज्ञो ने चातुर्मास यज्ञ के तीन समय निश्चित किए हैं आषाढ़ मास, कार्तिक मास और फालगुन मास।

यथा फाल्गुन्या पौराण्यमास्यम चातुरमास्यानि प्रायुञजीत मुखं वा एतत संवत सरस्य यत फाल्गुनी पौरणमासी आषाढ़ी पौरणमासी।

अर्थात फाल्गुनी पौरणमासी आषाढ़ी पौरनमासी और कार्तिकी पूर्णमासी को जो यज्ञ किए जाते है वे चतुर्यमास कहे जाते है।

पौराणिक कथा सच है या झूठ?

इस संबंध में मैंने अपने वीडियो में बताया था कि होलिका यज्ञ पहले से होता आया है हिरणकश्यपु के आदेश पर उसकी बहन सिंहिका ने इसी होली के यज्ञ कुंड में प्रवेश किया था और उसने खुद ने अपनी चूनर जो अग्नि से सुरक्षित रखती,प्रोटेक्टेड थी वह प्रहलाद के सिर पर रखकर खुद को जला दिया 

और प्रहलाद को बचा लिया और यही कारण है कि सिंहिका को अनाज की होलिका की संज्ञा दी गई जो खुद जलकर अपने अंदर के दाने प्रह्लाद को बचाती है और वही काम सिंहिका ने किया था अतः उसको होलिका की संज्ञा दी गई थी। 

यही आधार है हमारी मातृ शक्ति के मातृत्व का, माता अपनी जान देकर भी अपनी संतान की रक्षा करती है क्योंकि पुत्र कु पुत्र हो सकता है किंतु माता कभी कुमाता नही होती।

निष्कर्ष:

आप हम सब प्रतिवर्ष होली जलाते हैं  उसमे आखत डालते हैं आखत अक्षत का अपभ्रंस है। अक्षत अन्न को कहते है अवधि भाषा में आखत को आहुति कहते हैं। अक्षत हो आखत हो चावल हो अन्न हो यह सब यज्ञ की प्रक्रिया है। आप होली की आग की परिक्रमा करते हैं यह भी यज्ञ की प्रक्रिया है प्रत्येक यज्ञ कुंड की परिक्रमा करने का विधान है।

 यह कार्य यज्ञ, अग्निहोत्र हवन का ही होता है और इन कार्यों से यह सिद्ध होता है कि होली प्रतिवर्ष सामूहिक यज्ञ की परंपरा है यहां पर संपूर्ण गांव या शहर या मोहल्ले के लोग सभी चारो वर्णों के लोग मिलकर यज्ञ करते हैं और नए अन्न को देवताओं और पितरों को भेंट करते हैं। 

आप जो गुलरिया बनाकर अपने अपने घरों में होली की अग्नि ले जाकर घर में जलाते हो यह प्रकिया बड़े यज्ञ से प्रसाद रूप में अपने घर में छोटा हवन या अग्निहोत्र करने की परंपरा है जिसमे बाहरी वायु शुद्धि बड़े यज्ञ से हो गई और घर के अंदर की वायु का शुद्धिकरण आपने छोटे छोटे अग्निहोत्र हवन से कर दिया। 

ऋतु संधिशु रोगा जायन्ते:

जब दो रितुए मिलती है तो रोग उत्पन्न होते हैं उनके निवारण के लिए यह यज्ञ किए जाते हैं होली हेमंत और बसंत ऋतु का योग है। रोग निवारण के लिए यज्ञ ही सर्वोत्तम साधन है। दिवाली में भी सार्वजनिक रूप से गांव के बाहर अग्नि में आखत डालकर मनाते हैं और होली में भी।

आशा करता हूं कि आप सभी समझ गए होंगे कि होली नव अन्न वर्ष का प्रतीक है।

वैसे नया सवतसर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होता है किंतु पूर्वांचल में होली के अगले दिन नया पत्रा लेकर पुरोहित पधारते है और पूजा होती है और आने वाले साल का सारा हाल अग्रिम में बताते हैं। अब यह प्रथा लुप्त होती जा रही है।

अतः विधर्मियो या तथाकथित सेकुलरो जिनको अपने ही वंश को मिटाने वाले विभीषण की संज्ञा दी जा सकती है ऐसे लोगो के बहकावे में आकर ऐसे लोग जो अपनी ही संस्कृति अपने सनातन धर्म की आलोचना करने वालो हैं को आप यथोचित उत्तर दो। 

और उनको उत्तरित करने के लिए आपको वेद पुराण रामायण गीता पढ़ना होगा,समझना होगा। सनातन धर्म में ऐसा एक भी कार्य नही है जो विज्ञान की कसौटी पर खरा न उतरे क्योंकि विज्ञान तो सनातन धर्म के वेदों का बच्चा है। 

राम जी के वनवास से लौटने के पहले   से दिवाली होती थी संयोग से वह इस दिन वापस आए तो त्योहार का आनंद दो गुना हो गया। 

वैसे ही होली सिंहिका के त्याग के पहले से होती आई है उसी दिन अग्निकुंड में उसने अपनी जान देकर भगवान के भक्त को बचाकर वह अमर हो गई ।

 इसीलिए प्रभु कृपा से वह अगले जन्म में उसे महान सती सुलोचना के रूप में जन्म मिला और भगवान श्रीराम के दर्शन करके उनके लोक में अपने पति विप्रचित अर्थात मेघनाथ के साथ हमेशा प्रभु में समाहित हो गई अस्तु।

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