ram ki bahen bharat ki saari

राम जी की बहन,भरत जी की सारी।

Adarsh Dharm ansuni katha kahani

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राम जी की बहन,भरत जी की सारी। केहि कारण ते, रही कुँवारी।

Ramji ne sitaji se vivah kiya tha jo janak ji ki putri thi, kushadwaja janak ji ke bhai they jinki betio main ek satyamati ki yah katha hai नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका आदर्श धर्म के अनसुनी रहस्यमय पौराणिक कहानियों और प्रसंग में। तो आज हम लेकर आए एक अद्भुत प्रसंग स्टोरी जिसमें एक तरफ भगवान राम का आदर्श उनकी प्रतिज्ञा और उस प्रतिज्ञा के पालन की प्रतिबद्धता है वहीं दूसरी तरफ उनकी एक भक्त की प्रतिज्ञा और समर्पण है तो देखते है कि किसकी जीत होती है। जब भक्त और भगवान की प्रतिज्ञाएं टकराती हैं। Hello friends Welcome to the unheard mystical mythological stories and themes of your ideal religion. So today we brought A wonderful story in which Lord Rama’s ideal is his pledge and commitment to obey that pledge on the one hand, and on the other hand he has the pledge and dedication of a devotee. So let’s see who wins. When the devotees and the vows of God collide.

महाराजा जनक के भाई कुशध्वज की कितनी बेटिआ थीं! Maharaja Janak ke bhai kushadhwaja ke kitni betia thi

दोस्तो आप सभी ने सुना होगा कि माता सीता(Sita) के पिता महाराज विदेह जनक(janak) के एक भाई भी होते है  जिनका नाम कुष्ध्वज (Khushadhwaja) बताया गया है उनके चार पुत्रियां जिनके नाम क्रमश: सत्यमती, मांडवी,उर्मिला और श्रुति कीर्ति और एक पुत्र जिसका नाम सीलनिधि था। Friends, all of you must have heard that Maharaja Videha Janak (Janak), the father of Mother Sita, also has a brother named Kushhadhwaja, who has four daughters named Satyamati, Mandvi, Urmila and Shruti Kirti respectively. And a son named Seelanidhi. महाराज जनक के अपनी कोई संतान नहीं थी! माता सीता तो साक्षात जगत जननी थी! जो खेत में एक घड़े से प्रकट हुई थी महाराज जनक ने उनका पालन पोषण किया था और इस तरह वह जनक की पुत्री बनी थी। Maharaj Janak had no children of his own! Mother Sita was the mother of the world! Maharaj Janak, who had appeared in a field in a pit, had nurtured her and thus she became the daughter of Janak.

सत्यमती कौन थी उसका कुशध्वज से क्या सम्बन्ध था! satyamati kon thi uska kushadhawaja se kya sambandh tha

राजकुमारी सत्यमती राजा कुषधवज की सबसे लाडली जिद्दी किन्तु अत्यन्त हठी और वैष्णव अर्थात भगवान विष्णु की भक्त थी।सीता स्वयंवर में भाग लेने के लिए जब भगवान श्रीराम लक्ष्मण के साथ मिथिला पहुंचते है! तो राजपरिवार में सबसे पहले सत्यम्ती ही श्रीराम जी को देखती है। Princess Satyamati King Kushdhavaj’s most darling and stubborn! But was very stubborn and a devotee of Vaishnav i.e. Lord Vishnu. When Lord Sri Ram reaches Mithila with Lakshman to participate in Sita Swayamvar! So in the royal family, Satyamati is the first to see Shri Ram. दरअसल रामजी जनक के निमंत्रण पर नहीं अपितु ऋषि विश्वामित्र के साथ गए थे अतः जहां जहां ऋषि विश्वामित्र जाते थे वहां वहां साथ में दोनों राजकुमार उनके शिष्य और अंग रक्षक की तरह जाते थे। Actually, Ramji did not go with Janak’s invitation but with the sage Vishwamitra, so wherever the sage Vishwamitra went, both the princes used to go as his disciple and bodyguard.

जब सत्यमती श्री राम को देखती है तो क्या होता है ! jab stayamati shri ram ko dekhti hai to kya hota hai

विश्वामित्र जी चलते चलते जहां कहीं रास्ते में कोई ऋषि आश्रम मिलता तो वहां विश्राम करते थे और अगले दिन पुनः प्रस्थान करते थे। इसी क्रम में जनकपुर के 8 कोस पहले महान ऋषि जमदग्नि पुत्र भगवान परशुराम के अनुजपुत्र परम वैष्णव और भगवान के भक्त महर्षि उपमन्यु का आश्रम था! Vishwamitra ji used to walk and wherever a sage used to rest on the way, he would rest there and leave again the next day. In the same sequence, 8 Kos of Janakpur was the ashram of the first great sage Jamadagni’s son, Lord Parshuram’s Anujaputra Param Vaishnava and Lord’s devotee Maharishi Upamanyu! जहां पर सदैव शास्त्रार्थ चलता रहता था! दूर दूर से लोग वहां शास्त्रार्थ प्रतियोगिता के लिए आया करते थे महर्षि उपमन्यु के दोनों पुत्र महान विद्वान और ज्योतिष शास्त्र,विज्ञान, सांख्य शास्त्र ,संगीत शास्त्र, रसायन शास्त्र और वैदिक शास्त्र में पारंगत थे! Where the scriptures used to go on forever! People from far and wide used to come there for the debate competition. Both the sons of Maharishi Upamanyu were great scholars and well versed in astrology, science, Sankhya(Maths), music, chemistry and Vedic scripture! और हो भी क्यों न, क्योंकि उनकी शिक्षा उनके पिता के साथ भगवान परशुराम, और महर्षि अत्रि, महान विदुषी गार्गी, महान विदुषी विख्यात सती अनुसूया जैसे विद्वानों द्वारा पूरी हुई थी। And why not, because his education was completed by his father along with scholars like Lord Parashurama, and Maharishi Atri, the great scholar Gargi, the great scholar, the famous Sati Anusuya. इन दोनों भाइयों को चारो वेद कंठस्थ थे जिसमे छोटे भाई ज्योतिष शास्त्र हस्तरेखा, मस्तिष्क रेखा, व्यक्ति की चाल,उठना बैठना, बात करने के तरीके शरीर के पांचों मुख्य इन्द्रियों की गतिविधियों को देखकर उसका अगली पिछली अवस्था, बिना पूछे उसके जन्म का समय,जीवित रहते क्या क्या करेगा क्या बनेगा कहां रहेगा कैसा जीवन साथी होगा कहां और किस जगह किस प्रकार किस समय पर उसकी मृत्यु होगी अक्षरश बता देते थे अतः उनका नाम अवस्थी था। These two brothers had the four Vedas memorized in which the younger brother astrology palmistry, brain line, movement of the person, sitting up, talking ways, seeing the movements of the five main senses of the body, his next previous stage, the time of his birth without asking What would he do while living, where would he live, where would his life partner be, where and at what place and at what time would his death be told, so his name was Awasthi. उनके बड़े भाई जिनको पक्षियों से बड़ा लगाव था उनके पास एक बाज था! जो उनकी भाषा समझता था और वह खुद सभी पशु पक्षियों की भाषा समझते थे ! यहां तक वह पेड़ पौधों से भी बात कर लेते थे ! बाज पालने की वजह से ऋषि पुत्र का नाम बाजपाई था। अवस्थी और बाजपाई सगे भाई थे!  उनकी ख्याति पूरे आर्यावर्त में थी। His elder brother who had a great attachment to birds had an eagle! One who understood their language and he himself understood the language of all animal birds! Even he used to talk to tree plants! Because of raising an eagle, the sage’s son’s name was Bajpai. Awasthi and Bajpai were real brothers! His fame was all over Aryavarta.

satyamati upmanu ashram me kyon gai thi

विश्वामित्र जी उनके आश्रम में पहुंचे और उसी दिन ऋषिपुत्र बाजपाई से अपने पिता की आज्ञा लेकर अपनी तीन दासियों के साथ पशु,पक्षियों की भाषा सीखने राजकुमारी सत्यमती पधारी थी। महर्षि उपमन्यु ने महर्षि विश्वामित्र का शिष्यों सहित स्वागत किया। Vishwamitra ji reached his ashram and on the same day Princess Satyamati came to learn the language of animals and birds along with her three maids from Rishiputra Bajpai taking her father’s orders. Maharishi Upamanyu welcomed Maharishi Vishwamitra with his disciples. रथ सेना देखकर लक्ष्मण द्वारा प्रश्न किए जाने पर महर्षि ने राजकुमारी के बारे में बताया Seeing the chariot army, Maharishi told about the princess when questioned by Laxman अयम् कन्या सत्यमति राजपुत्री कुश ध्वज:। परम विदुषी कुशाग्र बुद्धि: वैष्णवी सनातन:। अर्थात यह महाराज कुश ध्वज की सत्य मती नामक सुपुत्री है जो स्वयं महान विदुषी भगवान विष्णु की भक्त कुशाग्र बुद्धि वाली हैं। meaning She is Maharaj Kushadhwaja’s  daughter of the  named Satyamati, who herself is a devotee of Lord Vishnu, she is great scholar with sharp acumen. रामजी पूछते है कि इनका इस भयानक वन में आने का क्या प्रयोजन है। तो महर्षि कहते है। Ramji asks what is the purpose of his coming to this terrible forest. So Maharishi says. पशु – पक्षी नदी वृक्ष कीड़े मकोड़े सभी जीवित प्राणी अपने अपने योनि में अपने अपने सह वासी से बात करते है और मेरा बड़ा पुत्र उन सभी की भाषा जानता समझता है और यह वही भाषाएं सीखने हेतू बाजपाई के पास आई है। Animals – birds, river trees, insects, all living beings talk to their fellow in their category and my elder son knows the language of all of them and has come to Bajpai to learn the same languages Learned lessons. ऋषि उपमन्यु की यह बात सुनकर ! लक्ष्मण ने धीरे से रामजी के कान में फुसफुसाते हुए उस भाषा को सीखने की प्रार्थना की। भगवान राम ने मुस्कराते हुए लक्ष्मण का नाम लेकर विद्या सीखने की प्रार्थना की और ऋषि की अनुशंसा से दोनों ने बाजपाई ऋषि को गुरु बनाकर वह दुर्लभ विद्या सीखी और तीन दिन में उन्होंने कठिन परिश्रम से सारी भाषाएं सीख ली। On hearing this, from Rishi Upamanyu. Laxman whispered softly in Ramji’s ear and prayed to learn that language. Lord Rama smilingly prayed to learn Vidya by taking the name of Lakshmana and with the recommendation of the sage, both of them learned that rare knowledge by making Bajpai Rishi a guru and in three days they learned all the languages ​​with hard work. आपकी जानकारी के लिए ऋषि बाजपाई द्वारा दी गई विद्या से ही भगवान राम वन के सभी जीव जंतुओं से बात करते है। For your information, Lord Rama talks to all the creatures of the forest with the knowledge given by Rishi Bajpai. रामचरितमानस में भी आता है जब माता सीता का हरण हो जाता है तो रामजी वन के पेड़ पौधो और जीवो से पूछते है! Ramcharitmanas also confirmed this when mata Sita is kidnapped by Ravan, then Ramji asks the trees and animals of the forest! “हे खग हे मृग हे मधुकर श्रेणी। तुम देखी सीता मृगनयनी।” राजकुमारी सत्यमती जो भाषा कई महीनों से सीख रही थी ! पर अभी तक आधा भाग भी पूरा नहीं कर पाई ! वह समस्त विद्या दोनों भाइयों ने तीन दिन में सीख लिया था !यह सुनकर राजकुमारी ने उनको देखने की आज्ञा मांगी और दूर से ही युगल कुमार श्याम और गौर को देखा। Princess Satyamati who was learning the language for many months! But haven’t even completed half of it yet! Both the brothers had learned all the knowledge in three days! Hearing this, the princess requested rishi to see them. She  saw the couple Kumar brunette and fair from afar. रामजी को देखकर वह क्षत्रिय कन्या वहीं प्रतिज्ञा करती है कि विवाह करूंगी! तो दशरथ पुत्र राम से वरना आजीवन कुवारी रहूंगी। Seeing Ramji, that Kshatriya girl vows that she will get married with Ramji only! otherwise she  will remain a virgin for life. विद्या सीखने के बाद दोनों भाई जनकपुर पहुंचते हैं वहां धनुष भंग करके जगतजननी माता सीता का विवाह परमपिता के अवतार श्रीराम से होता है! आप को यह भी मालूम है कि जयमाल के साथ ही रामजी ने एक पत्नी व्रत की प्रतिज्ञा कर लिया था। After learning Vidya, the two brothers reach Janakpur. In Janakpur, Lord Rama dissolved Shiva’s bow and married Mata Sita. Jagatjanani Mata Sita, the incarnation of the Supreme Father! As we know   at the time of Jayamal, Ramji had pledged single wife fast(means he never married again) . जब भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न को देखकर ऋषियों के परामर्श पर कुशध्वज अपनी पुत्रियों के विवाह भी दशरथ पुत्रो से करने की बात करते हैं ! उनका यह बचन सुनने योग्य है! Seeing Bharata, Lakshmana, Shatrughna, on the advice of the sages, Kushadhwaj talks about marrying his daughters to Dasaratha’s sons too! His word is worth listening to! श्रुनु भ्राता दैविक्षा म्मिकैक्षैव च सत्य मती पाणिग्रहण म् दशरथ पुत्रो अग्रज: मांडवी कन्या दानम द्वा तीय पुत्रो भरतैव वा उर्मिला श्रुति कीर्ति: लक्ष्मण: रिपु दमनैव सह। अर्थात: हे भ्राता देवताओं की प्रेरणा से मेरे मन की यह इक्ष है कि मै अपनी चारो पुत्रियों का विवाह दशरथ के इन चारो कुमारो से करू, जिसमें बड़ी पुत्री को श्रीराम की पत्नी, दूसरी मांडवी को भरत और उर्मिला और श्रुति कीर्ति के विवाह क्रमशः लक्ष्मण और रिपुदमन से करू।

क्या हुआ जब दशरथ जी के सामने कुशध्वज की सभी बेटियों की शादी,उनके चारो बेटो के साथ करने का प्रस्ताव आया ! What happened when Dasharatha ji got a proposal to marry all the daughters of Kushdhwaj with his four sons?

जब यह प्रस्ताव राजा दशरथ के समक्ष लाया जाता है तो दशरथ जी ने अपने सभी पुत्रो से उनकी राय पूछी! तो राम के अलावा सभी ने हां कर दिया और उनके विवाह सुनिश्चित हो गए। किन्तु रामजी ने अपनी प्रतिज्ञा एक पत्नी व्रत की बात रखकर और रघुकुल की प्रतिज्ञा प्राण जाए पर वचन न जाए बताकर विवाह से इंकार कर दिया। When this proposal is brought before King Dasharatha, Dashrathji asked all his sons for their opinion! So everyone except Rama said yes and their marriages were ensured. But Ramji refused the marriage, keeping his vow to a wife, and telling Raghukul to pledge, but the promise should not go.

नारद ने सत्यमती को आत्मदाह करने से कैसे रोका?How did Narada prevent Satyamati from committing self-immolation?

सत्यमती को मना करना, मुसीबत को निमंत्रण था! उसने अपनी प्रतिज्ञा दोहराई कि विवाह करूंगी,तो सिर्फ राम से ! वरना मरना पसंद करेगी या आजीवन कुँवारी रहेगी। To deny Satyamati was an invitation to trouble! He reiterated his vow that if I get married, only to Ram! Otherwise, she would like to die or be a virgin for life. आत्मदाह करने को उद्धत राजकुमारी को समझाने के लिए रामजी देवरिषि नारद का आव्हान करते है ! देव ऋषि ने राजकुमारी को समझाया किआत्मदाह करके भी तुम्हारी आत्मा भटकती रहेगी! In order to convince the princess to commit self-immolation, Ramji Devrishi calls Narada ! Lord Rishi explained to the princess that even after self-immolation, your soul will continue to wander! प्रेत योनि के समस्त कष्ट बतलाया और मनुष्य योनि में ही भगवान राम के नाम जप और तपस्या की शिक्षा दिया। Told all the trouble of being haunted! In this life, only by chanting and penance in the name of Lord Rama can he get peace and Shri Ram. यह भी बताया कि जगत जननी माता सीता! तो उनकी महामाया है! यह राम कोई मनुष्य नहीं साक्षात परम ब्रम्ह हैं! जो अपनी माया से भक्तों को मनुष्य रूप में दर्शन दे रहे है। It was also told that the mother of the world is Sita! So is His Highness! This Ram is not a human being, he is the ultimate brahma! Who, through his illusion, is giving a vision to the devotees in human form.

सत्यमती और कुशध्वज को श्री राम की तपस्या करने का क्या फल मिला? What was the result of Satyamati and Kushadhwaj doing penance to Sri Rama?

उनकी शिक्षा मानकर राजकुमारी ने बहुत सालों तक तपस्या किया और एक दिन भगवान राम ने प्रकट होकर उनको वरदान दिया कि इस जनम में वह मर्यादाएं बनाने के लिए पुरषोत्तम के रूप में है! Considering her education, the princess did penance for many years and one day Lord Rama appeared and gave her a boon. And explain her that in this birth he is in the form of Purushottam to make dignity. अतः प्रतिज्ञाबद्ध है! विवाह नहीं कर सकते, किन्तु आपकी तपस्या व्यर्थ नहीं होगी ! अगले जन्म के द्वापर युग में तुम्हारा जनम कुशध्वज के पुनर्जन्म में उन्हीं की बेटी के रूप में होगा और तुम्हारा यही नाम सत्या ही होगा और तुम इतनी ही सुंदर होगी! तुम मेरे सभी पत्नियों में मेरी सबसे प्रिय पत्नी होगी। So it is pledged! Cannot marry, but your penance will not be in vain! In the Dwapar Yuga of the next birth, you will be born as their daughter in rebirth of Kushdhwaja and your name will be Satya and you will be so beautiful! You will be my dearest wife of all my wives. रामजी के सामने ही योग अग्नि से राजकुमारी सत्यमती ने अपने आप को जला दिया। Princess Satyamati burnt herself with yoga fire in front of Ramji. पुनर्जन्म हुआ कृष्ण अवतार में वहीं सत्यमती भगवान कृष्ण की सबसे प्यारी और दुलारी पत्नी सत्यभामा हुई। In the reborn Krishna avatar, Satyamati was the most beloved and cherished wife of Lord Krishna, Satyabhama.
निष्कर्ष /Conclusion
अब आप सब समझ ही गए होंगे कि राम जी की बहन ( सीता को छोड़ कर उनके लिए सभी सामान उम्र की महिला बहन थी) भरत जी की सारी। (साली मतलब पत्नी की बहन, वह मांडवी की सगी बहन थी) ईही कारण ते रही कूवारी। क्योंकि प्रतिज्ञा वश उन्होंने किसी और से विवाह नहीं किया था You must have now understood that Ram ji’s sister (except Sita, all other females are Ramji’s sister), Bharatji ki saari. (Sali/saari means wife’s sister, she was the real sister of Mandvi) This is the reason why she was not married anyone. Because Ramji  did not marry anyone else under the promise! I hope you like it. अस्तु जय सियाराम Astu Jai Siyaram
Pandit Vijay Kumar Awasthi Adarsh Dharm
Pandit Vijay Kumar Awasthi Adarsh Dharm

3 thoughts on “राम जी की बहन,भरत जी की सारी।

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