मैं बैरी सुग्रीव पियारा,अवगुन कवन नाथ मोहि मारा,

Adarsh Dharm
main bairee sugreev piyaara. avagun kavan naath mohi maara.

मैं बैरी सुग्रीव पियारा। अवगुण कवन नाथ मोहि मारा।।

main bari sugriv piyara

जय श्रीराम मित्रो

स्वागत है आपका आदर्श धर्म के प्रश्नावली कार्यक्रम में आज का प्रश्न हमने लिया है अपने एक  मित्र श्रीमान रामजी प्रसाद राहुल का जिसमे उन्होंने इस चौपाई का गूढ़ार्थ पूछा है।

बालि प्रभु राम से पूछता है कि हे नाथ हे स्वामी 

साधारण अर्थ:

धरम हेतु अवतरेव गुसाईं। मारेउ मोहि ब्याध की नाई।।

मैं बैरी सुग्रीव पियारा। अवगुण कवन नाथ मोहि मारा।।

 आप तो धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया है इसके बाद भी मुझे छिपकर एक शिकारी बहे लिया की तरह प्रहार किया ऐसा क्यों? फिर मेरी तो आपसे कोई शत्रुता भी नहीं थी आपको मेरा भाई सुग्रीव कैसे प्यारा हो गया और मैं आपका शत्रु कैसे हो गया, मेरा अपराध क्या था कि आपको मेरा वध करने पर विवश होना पड़ा? मुझे क्यों मारा प्रभु।

गूढ़ार्थ: बाली ने क्यों कहाँ ऐसा और रामजी ने क्या उत्तर दिया

मैं आप लोगो को बार बार इस बात को प्रमाण देता आया हूं कि गोस्वामी तुलसीदास की एक एक चौपाई में अन्य ग्रंथो के कई श्लोकों के अर्थ समाहित किए हुए हैं और इनको समझने के लिए हमें उन के आगे और पीछे की चौपाई और दोहे को ध्यान पूर्वक पढ़ने की जरूरत होती है वहीं आपके सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है।

प्रभु श्रीराम आगे जवाब देते हैं

अनुज वधू भगिनी सुत नारी। सुन सठ कन्या सम यह चारी।।

इन्हही कु दृष्टि विलोकई जोई। ताहि वधे कछु पाप न होई।

मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना! नारि सिखावन कर सि न काना।

मम भुज बल आश्रित तेहि जानी! मारा चहसि अधम अभिमानी।।

 भगवान श्रीराम कहते हैं 

कन्या भगिनी सुत की पत्नी या छोटे भाई की नारी।

जो इन्हें कुदृष्टि देखता है वह वध के योग्य दुराचारी।

अर्थात बेटी, बहन, बेटे की पत्नी बहू, और छोटे भाई की पत्नी इनको वेद एक समान मानते हैं कोई व्यक्ति अगर इन रिश्तों को गलत दृष्टि से देख भी लेता है तो उसका वध करने में कोई पाप नहीं है। हे मूर्ख तुझको इतना ज्यादा अभिमान हो गया था कि तूने उस नारी की बात अनसुनी कर दी, तुझे यह मालूम है कि सुग्रीव मेरे शरण में है उसके बाद भी दुष्ट तू उसको मारना चाहता था क्या यह अपराध कम थे।

 तो राहुल जी यह चौपाई उस समय की है जब बालि और सुग्रीव के युद्ध में सुग्रीव को पिटते देख प्रभु श्रीराम बालि को वाण मार देते हैं! वाण लगते ही वह घायल होकर तड़पता हुआ गिर जाता है लेकिन हिम्मत करके पुनः उठ के बैठ जाता है, वह सामने देखता है कि श्याम सुंदर शरीर वाले, अपने सिर पर जटा बनाए हुए गूथे हुए या बंधे हुए, लाल आंखो के साथ अपने धनुष पर दूसरा तीर चढ़ाए हुए खड़े है, वह बारम्बार प्रभु के रूप को देखकर उनके चरणों को देखता है और साक्षात परमब्रह्म स्वरूप भगवान राम को पहचान जाता है। मैंने अपने एक पुराने वीडियो, मंदोदरी किसकी पत्नी थी बालि या रावण की? मन्दोदरी हरण, अंगद जन्म रहस्य में इस बात को प्रमुखता से उल्लेख किया है कि बालि एक परमवीर, वरदानी होने के साथ परम तपस्वी और परम विद्वान भी था, जिनकी तपस्या के लिए उसकी पत्नी का हरण हो गया,जिनकी पूजा में रत होने के कारण उसकी पत्नी एक राक्षस की पत्नी बनने पर मजबूर हुई, वह महात्मा बालि भला परमात्मा को कैसे न पहचान लेता।

अब यहां संत तुलसीदास ने जो रामजी ने कहा उसका तो उल्लेख कर दिया लेकिन जो बालि ने कहा उसका उल्लेख खुलकर नहीं किया किन्तु महर्षि अगस्त्य ने जो उस समय त्रेता मे मौजूद थे और सारी घटनाएं प्रभु की लीला प्रत्यक्ष देख रहे थे उन्होंने लिखा है

य इमं परमं गुहयं तव भक्तिभिधास्यति।

भक्तिं त्वं परां कृत्वा, व्रतं सदाचारेव च।

देव द्विज गुरु प्राज्ञ पूजनम शौचमार्जवम।

तस्मातसदाचार: क्रित्वा मनुषयेषु न च अन्य:।

अर्थात हे प्रभु यह परम गोपनीय भक्तिकर्म जो आपकी आज्ञा से ही मै आपको बतला रहा हूं आपका भक्त हूं पूरा जीवन आपकी भक्ति की है इसके साथ साथ आपको मालूम है कि मेरा व्रत ही सदाचार रहा है तो भला मेरे द्वारा यह पाप कर्म कैसे हो सकता था। अर्थात छोटे भाई की पत्नी को कुदृष्टि कैसे देख सकता था।

फिर भी प्रभु आपकी वेद कहते है कि देवता, ब्राह्मण, गुरु, ज्ञानी जनो का पूजन पवित्रता से रहना सदाचार करना यह सब तो मनुष्यों के लिए कहे गए हैं अन्य प्राणियों के लिए नहीं। 

हे प्रभु वैसे आपकी आज्ञा से मैंने आजीवन सदाचार, तप, ऋषियों की सेवा उनकी रक्षा, सब कुछ वेद अनुकूल काम किए हैं फिर भी यदि नहीं करता तो भी यह नियम हम पशुओं पर लागू ही नहीं होते, इसलिए आपके द्वारा बताए गए कारण या अपराध तो मुझ पर लागू ही नहीं हैं, हे प्रभु अब बताओ कि किस अपराध के लिए आपने मुझे दंडित किया है।

 प्रभु श्रीराम ने कहा कि हे बालि आप सही कह रहे हो किन्तु मेरा भी एक प्रण है प्रतिज्ञा है कि अगर कोई मेरी शरन में आ जाता है और सिर्फ मुझ पर आश्रित हो जाता है तो उसको मै समस्त प्राणियों से अभय कर देता हूं उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े, शरणागत की रक्षा के लिए हम रघुकुल वाले अपने प्राण भी दे सकते हैं और किसी के प्राण ले भी सकते हैं। अहंकार वश तुमने यह नहीं सोचा नहीं माना कि सुग्रीव अव मेरी शरण में है इसलिए तुमको दंडित करना पड़ा। शिवजी के वरदान की मान्यता रखते हुए छिपकर तीर चलाना पड़ा है।

अब इसके आगे का दोहा मानस से ही देख लो पूरा प्रसंग ही स्पष्ट हो जाता है

बालि कहता है

सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि।

प्रभु अजहूं मैं पापी, अंतकाल गति तोरि।।

अर्थात हे राम जी सुनो आप चराचर के स्वामी हो आपके सामने मेरी कोई भी चतुराई नहीं चलने वाली, अतः मैं स्वयं मान लेता हूं कि मैं आज भी पापी हूं, अब अंतिम समय में मेरी गति आपके हांथ में ही है जो चाहो वैसा करो, यहां कुछ विद्वान का मत है कि बालि ने यहां रामजी को श्राप दिया है कि आपके अंत काल में भी यही गति होगी, और रामजी ने उस श्राप को स्वीकार किया था इसीलिए अगले जन्म कृष्ण अवतार में बालि के हांथ वही गति ली थी।

खैर यहां आप दोनों भाव ले सकते हो, बालि के प्रेम पूर्वक वार्तालाप से दया के सागर भगवान राम द्रवित हो गए और बोले कि मै आपको अमर कर देता हूं, अपने प्राण रख लो और उसके सिर पर हांथ रखकर प्यार किया तो बालि कहता है हे प्रभु जिसकी पूजा अर्चना लोग जन्म भर करते है किन्तु अंत समय में उनके मुंह से राम शब्द नहीं निकलता वह राम जी जिनके नाम का जाप करके काशी मे मरने वाले लोगो को शिवजी मुक्ति दाता परम गति देने की शक्ति पा जाते है वह भगवान राम मेरे सामने खड़े है ऐसा मौका दुबारा नहीं आने वाला इसलिए प्रभु

सो नयन गोचर जासु गुन नित नेति श्रुति गावही।

जीति पवन मन गो निरस करि मुनि ध्यान कबहुंक पावहीं।

मोहि जानि अति अभिमान बस प्रभु कहेउ लागु सरीरही। अब कवन सठ हठि काटि सुरतरु बारि करिहिं बबूरहीं।

अब नाथ करुंगा विलोकहु देहु जो वर मांग ऊं। जेहि योनि जनमौ कर्मवश यहां राम पद अनुराग ऊं।

यह तनय मम सम विनय बल कल्यान प्रद प्रभु लीजिए।

गही बांह सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिए।

राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीनह तनु त्याग।

सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग।।

 तो इस तरह से महात्मा बालि ने अपना शरीर त्याग किया तुलसी बाबा उपमा देते है कि जैसे किसी नाग के गले में फूलो कि माला पड़ी हो वह चलेगा तो कब माला गिर गई उस को पता नहीं चल सकता उसी प्रकार बालि को मृत्यु के कोई कष्ट हुए बिना ही शरीर छूट गया।

वह साक्षात परमब्रह्म मेरे आंखों के सामने है जिसके गुणों का गायन वेद पुराण नेति सभी करते हैं। मुझे यह जानकर अपने आप पर गर्व है कि प्रभु मुझे जिंदा रखने की बात कर रहे हैं किन्तु वह कोई दुष्ट ही होगा जो जिद करके देवतरु कल्प वृक्ष को काट दे और काटों वाले बबूल के वृक्ष की सिंचाई करेगा। हे नाथ अब दया करके मेरी तरफ देखो और जो मैं मांग रहा हूं वह वरदान दीजिएगा हे प्रभु अपने कर्म के अनुसार मेरा अगला जो भी नया जन्म हो वहां भी मेरा आपके चरणों में अनुराग हो अर्थात मै आपके चरण कमलों का ही भक्त बनू। यह मेरा बेटा जो मेरे समान ही विनय शील विद्वान और बलवान है इसका हांथ अपने हांथ में ले लो इसको अपना सेवक बना लीजिए और अंगद को अपने पुत्र की तरह प्यार देना। 

ऐसा कहकर बालि ने अपने पुत्र अंगद का हांथ प्रभु राम के हांथ में देकर अपने शरीर को त्याग देता है ठीक उसी तरह जैसे किसी नाग के गले में फूलो की माला कब गिर गई यह नाग को पता ही नहीं चला अर्थात उसको, प्रभु कृपा से मृत्यु के समय होने वाले दुसह दुख कष्ट कुछ भी महसूस नहीं हुए। कहते है कि 

जनमत मरत दूसह दुख होई। सो तेहि स्वलपहु व्याप्त न सोई।

अर्थात प्रभु राम की कृपा से कोई दुख हुए बिना उसके प्राण निकल गए।

 उम्मीद करते है कि श्रीमान राहुल जी आपको अपने प्रश्न का गूढ़ार्थ समझ में आ गया होगा अस्तु जय सियाराम।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *