ॐ जय श्रीराम मित्रो, स्वागत है आपका आदर्श धर्म सनातन धर्म के अनसुनी कथा प्रसंगों के प्रश्नावली में। आज मै अपने एक दर्शक श्रीमान बाबूराम कुशवाहा जी के एक प्रश्न का शास्त्रोक्त उत्तर दे रहा हूं जो उन्होंने हमारे हाल ही में रिलीज हुए वीडियो विनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरती मुस्कानी। के कमेंट बॉक्स में पूछा है। उनका प्रश्न है कि मानस के बाल काण्ड में आई एक चौपाई का अर्थ क्या है। और वह चौपाई है। Welcome to the questionnaire of unheard narratives of Sanatan Dharma, Adarsh Dharm. Today I am giving a scripted answer to a question by one of my audience, Mr. Baburam Kushwaha ji, asked through comment on my already released video ” Vinay Prem Bas Bhai Bhavani. Khasi Mal murati muskani”. His question is what is the meaning of a chupai written by Goswami Tulsi Das in Ramcharit Manas’s Baal Kand. Please explain the meaning of below quoted chupai- “Binu pad chalai sunai binu kana. Kar binu karma karai method nana”
बिनु पद चलई सुनई बिनु काना। कर बिनु कर्म करई विधि नाना।।
श्री बाबू राम जी का प्रश्न उत्तम है और आज के इस कलयुग के प्रभाव से ग्रसित लोगो के बीच अगर इस तरह के प्रश्न उत्तर आते है तो निश्चित ही लोगों को एक बार पाप कर्म करने के पहले थोड़ी सी झिझक तो अवश्य होगी। गोस्वामी जी ने बाल कांड में ईश्वर क्या है, ईश्वर है, ईश्वर सर्वव्यापी है, भगवान तो सभी जीवित और निर्जीव वस्तुओं में विद्यमान है। The question of Shri Babu Ram ji is excellent and if such questions are answered among the people affected by the influence of this Kalyug, then surely people will have some hesitation before committing sin. Goswami ji, tell us about in Baalkant what is God, God is omnipresent, God is present in all living and non-living things. उन्होंने वेद पुराणों के कई श्लोकों को सार रूप में दो चौपाई में समाहित कर दिया और यही उनकी कविता की खासियत है कि उनकी चौपाई और दोहों उनके श्लोकों का लोहा उस समय सभी विद्वान मानते थे। अकबर जैसा नास्तिक घमंडी शासक भी तुलसी बाबा जब उनके दरबार में बुलाए गए तो खड़े होकर उनका स्वागत करता था ऐसे महान कवि थे संत तुलसीदास। He encapsulated many shlokas of the Vedas Puranas in two forms in essence and this is the specialty of his poetry that his chaupai and duhon were incomparable. When atheist arrogant rulers Akbar called Tulsi Baba, in his court, then he was not stopped himself to pay respect and regard of the greatness of Tulsi baba. गीता के अध्याय १५ श्लोक १७ में कहा गया है
उत्तम: पुरुष अस्त तव अन्य: परमात्में अत्यू दाहतः । यो लोक त्रय माविष्य बिभरतय ईश्वर:।
इन क्षर अक्षर दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है जो तीनों लोको में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर और परमात्मा है वहीं ईश्वर है। geeta ke adhyaay 15 shlok 17 mein kaha gaya hai uttam: purush ast tav any: paramaatmen atyoo daahatah . yo lok tray maavishy bibharatay eeshvar: Out of these two Kshar Akshar, there is only one best man who enters all the three locos and nurtures everyone and is the imperishable God and the Supreme God. इस प्रकार ईश्वर सर्व व्यापी है हर जगह है हमारे आपके सबके अंदर वास करता है संसार की सभी जीवित और निर्जीव वस्तुओं में व्याप्त है विद्यमान है यही दो चौपाइयों में गोस्वामीतुलसीदास ने बताया है। उन्होंने कहा है! In this way, God is all-pervasive, everywhere resides within all of us inside and outside, he is present in all the living and inanimate objects of the world. This is what Goswami Tulasidas has told in two Chaupai. They have said: बिनु पद चलई सुनही बिनु काना-walk without feet, hear without ear
कर बिनु कर्म करही बिधी नाना-work different kind of work without hand
आनन रहित सकल रस भोगी -he tastes all thinks without mouth,
बिनु वाणी वक्ता बड़ योगी।- great speaker without voice
अर्थात। ईश्वर बिना पैर के चलता है बिना कान के सुनता है, बिना हांथ के नाना प्रकार के सभी कार्य करता है। बिना मुंह के सभी रसो का स्वाद लेता है और बिना वाणी के बहुत बड़ा वक्ता है बिना शरीर के सबसे बड़ा योगी है। meaning. God walks without feet, hears without ears, does all kinds of tasks without arms. Takes the taste of all cooks without mouth and is a very big speaker without speech, is the biggest yogi without body.
अर्थात वह निराकार स्वरूप में सभी के अंदर व्याप्त है सब कुछ देखता है सुनता है बोलता है भोगता है हर समय सभी जगह विद्यमान है। सबके कर्मो का लेखा जोखा करता रहता है। That is, it is pervaded inside everyone in a formless form, sees everything, hears it, speaks and suffers all the time. Keeps an account of everyone’s actions उन्होंने अपनी चौपाई में यजुर्वेद के सर्ग ४० के श्लोक ०१ In Yajurveda’s sarg 70’s sloke 01 ईशा वास्य मिदम सर्व यत किंच्य जगत्याम जगत। अर्थात अखिल ब्रह्मांड में जो कुछ भी जड़ चेतन स्वरूप जगत है वह समस्त ईश्वर से ही व्याप्त है। Isha Vasya Midam Sarva Yat Kinchaya Jagatyam Jagat. That is, whatever the root conscious nature of the universe is in the whole universe. He is God. उन्होंने इन्हीं दो चौपाई में मनुस्मृति के सर्ग १२ के श्लोक १२२ और श्लोक १२४ को भी समाहित किया है। Tulsi baba explain in these two line which mentioned in manusrimti’s sarg 12’s sloka-122 and sloka-124 श्लोक: प्रशा सितार म सर्वेशाम नियाम समनोरपी। रूक्मा भम स्वप्न धी गम्य म विद्यात तम पुरुष म परम । एशु सर्व आणि भूतानी पंच अभि र व्याप् य मूर्ति भिः। जन्म वृद्धि क्षये र नित्यम संसार यति चक्रवत। अर्थात। जो सूक्ष्म से अति सूक्ष्म और सबका भली प्रकार शासन करने वाला है स्वर्ण के समान उज्जवल और निर्मल है स्वप्न में भी बुद्धि द्वारा प्रत्यक्ष होने वाला है उस परम पुरुष को जानना चाहिए। यही सम्पूर्ण प्राणियों को पंच भूत रूपी पांच मूर्तियों द्वारा व्याप्त किए है और जो जनम बृद्धी और क्षय के द्वारा निरंतर समस्त प्राणियों को चक्र की भांति घुमाता है वह ईश्वर है। meaning. Who is going to rule from subtle to very subtle and well-governed by all, is bright and serene like gold, even in his dream is going to be revealed by the intellect, that ultimate man should know. These five beings are pervaded by five idols in the form of five basic elements, and the one who continuously rotates all the creatures through the cycle of growth and decay is God. ब्रह्मसूत्र सर्ग १ के श्लोक २ में आता है In Brahmasutra’s Sarg 1 sloke 2 says
जन्म आद्य अस्य यत:। Origin of life is like this.
अर्थात जिससे इस संसार की उत्तपती स्थित संहार आदि होते है वह ईश्वर है। That is, the power from which this world emerge, get stability and then destroy. This entire world within God .
महर्षि पतंजलि ने कहा है Maharishi Patanjali has said
क्लेश कर्म वीपाका श शयेर परा मृष्ट: पुरुष विशेष ईश्वर:।
अर्थात जो क्लेश (क्या हैं अविद्य, अस्मिता, राग, द्वेष, और अभि निवेश) कर्म (पाप और पुण्य) कर्मो के फल ( जाति ,आयु, भोग) तथा वासनाओं से रहित जो पुरुषों में विशेष है वह ईश्वर है। clash means sorrow(type of sorrow un-education, proud, quarrel, malice etc.) karma are two type (sin and virtue) is the God who is special among men devoid of karma (caste means animal or plant in next life, age how much time you live on earth, enjoyment of life means either good and comfortable life you live, or struggle in life you face) and desires. And God exclusive and above from all desires and pain of life. तत्र निरती शयम सर्वज्ञ बीजम
अर्थात सर्वज्ञता का बीज कारण ईश्वर है। That is, God is the seed of omniscience.
पूरवे षा मपि गुरु: काले नानव अच्छे दात।
अर्थात वह ब्रह्मा आदि का भी गुरु है शिक्षा देने वाला है सबसे बड़ा है क्योंकि उसका काल के द्वारा अंत नहीं होता है। That is, he is also the teacher of Brahma etc. He is the one who teaches, the eldest, because it does not end with time.
विष्णु पुराण सर्ग ६ के श्लोक५/८६ में कहा गया है स इश्वरो व्य अष्टि सम अष्टी रुपो व्यक्त स्वरूप: अप्रक ट स्वरूप:। शरवेश्वर: सर्वद्रक सर्व वि च्च समस्त शक्ति: परमेश्वराख्य:। अर्थात वह ईश्वर ही समष्टि और व्यष्टी रूप है, वे ही व्यक्त और अव्यक्त रूप है वे ही सबके स्वामी सबके साक्षी और सब कुछ जानने वाले है तथा सर्व शक्तिमान है उन्ही को परमेश्वर भगवान कहते हैं । meaning That God is the whole and individual form, He is the express and the latent form, He is the master of all, the witness of all and the One who knows everything and He is the most powerful, He is called the God of God. इसके आगे उन्होंने उन अर्धग्यनी अज्ञानी लोगो को यह भी बताया है कि ( अगुनही सगुनही नहि कछु भेदा।) सगुण और निर्गुण भगवान में कोई अंतर नहीं है भगवान निराकार है किन्तु धर्म की रक्षा के लिए वहीं ईश्वर साकार रूप मे दुष्टों के संहार धर्म की पुनर स्थापना के लिए साकार रूप में भी आते है। Further, he has also told those semi-ignorant people that (Agunahi sagunahi nahi kachu bheda.) There is no difference between form God like Ram, Krishna etc and nirguna, God is formless, but to protect religion, there is a realization of God as the destruction of the evil religion. They also come in form for installation. ईश्वर का स्मरण करना जरूरी है उनको मानना जरूरी है ठीक वैसे जैसे कोई जल को पानी कहे या नीर कहे आब कहे वाटर कहे तो मतलब सिर्फ जल ही है वैसे आप ईश्वर को भगवान कहो, ईश्वर कहो, राम कहो, कृष्ण कहो विष्णु कहो शिव कहो गणेश कहो सूर्य कहो या दुर्गा कहो वस्तुतः सभी उसी परमब्रह्म परमात्मा के रूप है किसी भी नाम से स्मरण करो वह आपकी सुनेगे और यही गोस्वामी जी ने बतलाया है। It is important to remember God, it is necessary to believe them, just as different people says different name of water in the same way, you call God God or remember through his different name like Ram, Krishna, Vishnu and Shiva. Say Ganesha, say Surya or say Durga, in fact, all are in the form of the same Supreme God, remember by any name, they will listen to you and this is what Goswami Ji has told.
तुलसीदास जी ने उन अज्ञानियो नास्तिको को समझाने के लिए जो कहते है कि कहां है ईश्वर मुझे बताओ मैंने तो देखा नहीं,चोर कहता है मैंने चोरी की किसी ने देखा नहीं, किन्तु किसी ने देखा है जिसको तुम देख नहीं पा रहे। Tulsidas ji to explain to those ignorant who say where is God I have not seen, the thief thought that no one seen when I steal something but their is someone who has seen everything what you cannot see him.
उम्मीद करते है कि कुशवाहा जी के प्रश्न का समुचित उत्तर मिल गया होगा!
We hope that a proper answer to the question of Kushwaha ji has been found!
अस्तु जय सियाराम। Astu Jai Siyaram.
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Jai shri narayana