आज हम इस विषय पर व्याख्यान करते हैं कि विष्णु पुराण में नरसिंह भगवान विष्णु अवतार हैं,श्रीमद्भागवत पुराण,रामायण, महाभारत आदि सभी में विष्णु अवतार हैं किंतु मार्कण्डेय पुराण, दुर्गा सप्तशती के अनुसार वह माता के अवतार हैं। तो इसका निर्णय कैसे हो कि आखिर सच क्या है। अब जानते हैं थोड़ा विस्तार से
जैसा कि हमने पहले भी इस विषय पर व्याख्यान किए हैं कि सनातन को मिटाने के लिए विधर्मियो ने हमारे ग्रंथ जला दिए किंतु हमारे पूर्वज जिनको सनातन की वह बाते याद थी पुनः लिखी इसलिए विभिन्न ग्रंथो में विविधता है किंतु सबका सार तत्व एक ही है। कुछ लोग कहते हैं कि शिव जी सर्वशक्तिमान हैं कुछ विष्णु जी को कुछ ब्रह्मा जी को कुछ शक्ति को कुछ शक्ति के विभिन्न रूपों को कुछ गणेश को कुछ सूर्य को कुछ अन्य देवता या देवी को अपना इष्ट देव या कुल देवी मानते हैं। किंतु अगर आप इनका सार तत्व देखो तो यह सभी एक ही शक्ति भगवान के रूप हैं।
सनातन धर्म एक मात्र वह धर्म है जो विज्ञान के साथ समजस्य के साथ हमे ज्ञान देता है कि मात्र शक्ति के बिना पितृ शक्ति का अस्तित्व शून्य है और पितृ शक्ति के बिना मातृ शक्ति भी शून्य है। प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी अपनी बुद्धि से ग्रंथो को पुनः लिखा है इसलिए अपने अपने इष्ट को सर्वोच्च बताते हुए भी दूसरी शक्तियों को भी स्वीकार किया है। सनातन धर्म ही एक मात्र धर्म है जिसमे स्त्री को देवी माना गया है और पुरुष स्त्री को समानता का दर्जा दिया है।
स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं किसी भी स्त्री या पुरुष की उत्पति बिना दोनो की शक्ति मिलने से हो ही नही सकती यह तर्क वैज्ञानिक भी है और आध्यात्मिक भी है। विज्ञान कहता है कि जब तक शुक्राणु और अंडाणु दोनो नहीं मिलते तब तक श्रृष्टि नहीं बन सकती और विज्ञान ने यह फार्मूला भी सनातन धर्म से ही लिया है। सनातन धर्म ही प्रथम बिंदु First point परमब्रह्म परमात्मा और उनकी शक्ति भगवती महामाया को बराबर दर्जा देकर दोनो की युगल शक्ति से आगे की श्रृष्टि बनने की बात बताई है। अगर आप वेद और पुराण को पढ़कर एक दूसरे से इंटरलिंक करें तो जो सार तत्व आता है वह यही है कि जैसे ब्रह्मांड के कण कण में भगवान का वास है तो उसी कण कण में भगवती महामाया का भी वास है। जब दोनो की शक्ति मिलती है तभी श्रृष्टि की रचना होती है।
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अगर नरसिंह भगवान विष्णुजी का अवतार थे तो दुर्गा चालीसा में ये क्यों कहा
अगर हम मार्कण्डेय पुराण में जाते हैं तो नरसिंह भगवान माता नारसिंही का अवतार बताई गई हैं। दुर्गा चालीसा पढ़ो तो वहां भी आता है कि
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
प्ररगटत भयी फाड़कर कर खम्भा।
रक्षा करि प्रहलाद बचाओ
हिरण्यकुश को स्वर्ग पठायो।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं
श्री नारायण अंग समाही।
माता दुर्गा की कुछ अन्य चौपाई
निरंकार है ज्योति तुम्हारी
तिहूं लोक फैली उजियारी
तुम संसार शक्ति लै कीनहा
पालन हेतु अन्न धन दीन्हा।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला
तुम ही आदि सुंदरी बाला।
प्रलयकाल सब नाशन हारी
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी।
भगवती महामाया को ही सर्वशक्ति समन्वित माता दुर्गा कहा गया है।
उनके लिए ही
निराकार है ज्योति तुम्हारी
तिहू लोक फैली उजियारी ।
कहा गया है।
जैसे निराकार स्वरूप भगवान हैं जो ब्रह्मा विष्णु महेश की एकीकृत शक्ति हैं जो अजन्मा है, बिना हांथ पैर या किसी अंग के सब कुछ देखते हैं खाते हैं चलते हैं हंसते हैं रोते हैं संसार के कण कण में विद्यमान हैं उसी प्रकार भगवती महामाया भी हैं।
परमब्रह्म से विष्णु महेश ब्रह्मा त्रिदेव हैं तो महामाया दुर्गा से महालक्ष्मी महागौरी और महासरस्वती हैं, महासरस्वती का ही नाम सावित्री है।
परमब्रह्म परमात्मा और महामाया दुर्गा मिलकर तीन देवियां और त्रिदेव की रचना करते हैं, जिनके नाम ब्रह्मा विष्णु शिव महाकाली महालक्ष्मी और महा सरस्वती या सावित्री होते हैं
फिर उनके जोड़े बनते हैं ब्रह्मा के साथ उनको अर्धंगिनी सावित्री मिलती हैं, शिवजी को महाकाली विष्णु जी को महालक्ष्मी और फिर इनको श्रृष्टि रचना का काम, उसके पालन पोषण का काम और श्रृष्टि की ब्रह्मा द्वारा लिखे गए समय अनुसार संहार करने का काम दिया गया, सभी एक दूसरे से कनेक्ट हैं और संसार रूपी चक्र चलता जा रहा है सभी एक दूसरे के पूरक हैं।
ब्रह्माजी श्रृष्टि की रचना करते हैं किंतु बिना सावित्री के वह कुछ भी नही बना सकते। माता सावित्री सृष्टि के सभी शरीर का निर्माण करती हैं और ब्रह्मा जी प्राणी के पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार उसकी आत्मा को तत्संबंधी शरीर में प्रवेश कराते हैं और उसकी संसार में रहने की सभी आयु विद्या ज्ञान बल भाग्य सब निश्चित करके 84 लाख प्रकार की योनियों में जन्म कराते हैं।
भगवान विष्णु उसके पूर्व कर्मानुसार उसके भोजन, रहन सहन, दोस्त दुश्मन सब प्रदान करते हैं तीन लोक 14 भुवन में सभी की जनसंख्या को बराबर रखने के भगवती महालक्ष्मी की सहायता से लोगो को ज्ञानवान, बनाते हैं , दिग्भ्रमित करते हैं, ताकि स्वर्ग नर्क सभी जगह लोग कर्म के अनुसार आते जाते रहें।
क्या कहता है सनातन धर्म स्त्री और पुरुष के बारे में
हमारे सनातन ने ही बताया है कि पुरुष (अर्थात पुरुषोत्तम भगवान परमात्मा का अंश अर्थात आत्मा) और प्रकृति ( अर्थात महामाया, दुर्गा, शक्ति जो पंच तत्व क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर के समिश्रण से बनी शक्ति या शरीर) के एकीकृत रूप को सजीव प्राणी कहा गया है। बिना आत्मा के शरीर एक दिन भी नहीं रह सकता अपने मूल रूप में अलग अलग तत्व में विभक्त हो जायेगा उसी प्रकार शरीर के बिना आत्मा भी कुछ नहीं कर सकती वह ब्रह्मांड में भटकती रहती है।
वही शिवजी माता शक्ति की सहायता से ही प्राणियों के संहार की व्यवस्था करते हैं इसके लिए उन्हें भी भगवान विष्णु की माया में फंसे खराब लोगो को यमदूतों से, धर्मवान को देवदूतों से, अकाल मृत्यु वालो को शिव गणों से मंगवाते हैं। ईश्वर भक्त को लेने स्वयं भगवान विष्णु के विमान आते हैं। और यह सब प्रमाणिक है।
अगर नरसिंह भगवान विष्णुजी नहीं है तो कौन है
अब आते हैं नरसिंह अवतार पर, नरसिंह अवतार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का (शक्ति का एकीकृत) रूप या अवतार है। शेर के मुख वाली और अष्टभुजी रूप सीने से ऊपर का भाग माता महामाया दुर्गा या लक्ष्मी माता का है ! और सीने से नीचे का भाग भगवान विष्णु का है !अतः नरसिंह अवतार ही एक मात्र ऐसा अवतार है! जिसमे भगवान और माता ने एक शरीर में प्रवेश करके अवतार लिया था। अन्य 9 अवतारों में अलग अलग शरीर के साथ आए! किंतु इस अवतार में दोनो को एक ही शरीर में आना पड़ा क्योंकि हिरणाकश्यप को वरदान था! न दिन में न रात में न घर में न मनुष्य से! न देव दानव पशु स्त्री पक्षी कीड़े मकोड़े! न अस्त्र शस्त्र न आग! न पानी न वायु न बीमारी! ना विष न भोजन न विकार से मरेगा।
स्त्री पुरुष अकेले नहीं मार सकते थे !इसीलिए उन्होंने नर सिंह स्त्री पुरुष के कॉम्बिनेशन से एक शरीर बनाया! शाम के समय घर के बाहर वाली चौखट पर उसका अपनी ज्वाइंट शक्ति से वध किया था।
हर क्षेत्र में विजय के लिए क्यों लेते है भगवान नरसिंह का नाम
अतः प्रश्न का सही उत्तर लक्ष्मी नारायण है! क्योंकि नर्सिंग अवतार में विष्णु जी और महालक्ष्मी शक्ति दोनो का सम्मिलित अवतार था।
जिस किसी को शक्ति की ताकत की जरूरत होती है ! और युद्ध में या किसी कोर्ट कचहरी में जीत की तमन्ना होती है! उसको हमेशा नर्सिंग भगवान का नाम लेकर कार्य शुभारंभ करना चाहिए !उसका कार्य अवश्य सफल होता है। श्रीरामचरित मानस में आता है कि श्रीराम भक्त हनुमान जो सोते जागते ! हंसते रोते दिन रात भगवान श्रीराम के नाम का जप करते हैं !किंतु जब वह शत्रु के देश अकेले जा रहे होते हैं! तो उन्होंने भगवान श्रीराम का नाम नहीं लिया बल्कि किस के नाम का जप किया।
मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेहु सुमिरि नरहरि।।
अर्थात हनुमान जी ने अपना रूप एक मच्छर के जितना छोटा बनाकर! फिर भगवान नर सिंह का स्मरण करके लंका में प्रवेश करते हैं।
उम्मीद करते हैं, आप लोगो को यह प्रसंग अच्छा लगेगा, और अपने कमेंट के माध्यम से हमे अवगत भी कराएंगे अस्तु। प्रेम से बोलो नरसिंह भगवान की जय।
Bhagwan Ko Jab नर Leela Karni hoti hai तब वे नर और नारी दोनों अलग-अलग रूपों में ही आते हैं पंडित जी और आपको पता होगा की नरसिंह अवतार में कोई ज्यादा लीला नहीं हुई थी और उनको हिरण्यकश्यप को दिए गए वरदान के अनुसार ही रूप धारण करना पड़ा था ठीक इसी तरह भगवान का अवतार हुआ था और वहां अवतार भी इसी का उदाहरण है इन अवतारों में भगवान ने कोई खास लीला नहीं की बल्कि संसार को दुष्टों से बचाने के लिए दुष्टों का संहार तुरंत करना पड़ा था रही बात माता दुर्गा या भगवान विष्णु की तो कभी भी आप भगवान विष्णु या माता दुर्गा से संबंधित ग्रंथों को ध्यान से पढ़िए गा तो पाओगे कि दोनों में कथा समान ही होती है फर्क सिर्फ इतना होता है माता के भक्तों ने माता को महता दे दी और भगवान विष्णु के भक्तों ने भगवान विष्णु को लेकिन दोनों ने एक ही नारायण और नारायणी एक दूसरे के पूरक हैं एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है कहीं विष्णु भगवान बड़े हैं कहीं मां दुर्गा इन्हीं मतभेदों के कारण सनातन धर्म का पतन होता है मुझे बात बता दीजिए यह
1.पत्नी वियोग का का श्राप भगवान विष्णु को मिला था या महा विष्णु को?
जय और विजय किसके द्वारपाल हैं विष्णु के या महा विष्णु के?