तुलसी इस संसार में पांच रतन हैं सार,संत मिलन हरिकथा दया धर्म उपकार,

Adarsh Dharm

तुलसी इस संसार में पांच रतन हैं सार, संत मिलन हरि कथा दया धर्म उपकार।

तुलसी इस संसार में पांच रतन हैं सार।संत मिलन हरि कथा दया धर्म उपकार।

Jay Shriram मित्रो

 साधारण अर्थ: संत तुलसीदास जी कहते हैं कि इस संसार में अर्थात मृत्यु लोक में सिर्फ पांच रतन रूपी सार तत्व ही हैं जो जीव के लिए कल्याण प्रद है और वह हैं धर्म पर चलना,ईश्वर की भक्ति, सभी प्राणियों पर दया करना,परोपकार करना और सतसंग करना।

 1- धर्म पर चलना, धर्म क्या है , धरायति इति धर्म: अर्थात धारण करने योग्य को धारण करना, मनुष्य को क्या धारण करने योग्य है?  

वेद: स्मृति: सदाचार: स्वस्य च प्रियमात्मन:।

एतत चतुरविधम प्राहु: साक्षात् धर्मस्य लक्षणम।।

अर्थात वेद स्मृति सत्पुरुषों के आचरण (सदाचार) का अनुकरण  तथा अपनी आत्मा को प्रिय लगने वाले आत्मा का हित करने वाले कार्य (आत्मा का हित किस कार्य में है वह कार्य) यह चार प्रकार के लक्षणों को धर्म कहा जाता है और यही धारण करने योग्य हैं।

गीता में भगवान कहते हैं

यद्द्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। स यतप्रमानम कुरूते लोक स्तदनुवतरते।।

श्रेष्ठ पुरुष जो जो आचरण करता है अन्य पुरुष भी वैसा वैसा आचरण करते है वह जो कुछ प्रमाण कर देता है समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार आचरण करने लग जाते हैं।

अन्ये तवेवमजाननत: श्रुतवार्नयेभ्य उपासते।

तेअपि चातितर अंत्येव मृत्युम श्रुतिपरायणा:।।

परन्तु इनमें से दूसरे अर्थात जो मंदबुद्धि वाले पुरुष हैं वे इस प्रकार ना जानते हुए दूसरों से अर्थात सदपुरुशो से सुनकर ही उसके अनुसार उपासना करते है और वे श्रवण परायण पुरुष भी संसार सागर से तर जाते हैं।

इसके विस्तृत व्याख्यान के लिए आप हमारे वीडियो धर्म की परिभाषा, सत्य कैसा बोलना चाहिए, दान, दान के रहस्य, अवश्य देखिए।

2- भगवत भक्ति भगवान की कथाएं व्याख्यान कहना सुनना उनकी भक्ति कीर्तन भजन करना।

गीता में भगवान कहते हैं

तेषां सततयुक्तानाम भजताम प्रीतिपूर्वकम। ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयांति ते।

 उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेम पूर्वक भजन करने वाले भक्तो को मै वह तत्वज्ञान रूप योग देता हूं जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।

भगवद भक्ति क्यों करनी चाहिए क्योंकि नारायण स्वयं कहते हैं

लक्ष्मीं वापि परित्यक्ष्ये, प्रणान देहमथापि वा।

श्रीवत्सं कौस्तुभं मालां वैजयंतीमथापि वा।

श्वेतद्वीपं च वैकुंठम क्षीरसागरमेव च। शेषं च गरुड़ं चैव न भक्तं त्यक्तुमुत्सहे।

अर्थात मै लक्ष्मी को त्याग दूंगा ,अपने प्राण देह श्रीवत्स, कौस्तुभ मनि वैजयंती माला श्वेत द्वीप, वैकुंठ धाम , क्षीर सागर, शेष नाग, गरुड़ सभी को त्याग सकता हूं किन्तु अपने भक्तो को कभी नहीं त्याग सकता।

नामु सप्रेम जपत अनयासा।

भगत होहि मुद मंगल बासा।

चहु जुग तीनि काल तिहु लोका।

भए नाम जपि जीव बिसोका।।

3- दया धर्म सभी प्राणि मात्र पर दया भावना रखना।

सभी प्राणियों में ईश्वर को मानकर सबके अंदर ईश्वर है आत्मा है और सभी आत्माएं परमात्मा का ही स्वरूप हैं इसलिए सभी पर दया करुणा प्यार करना चाहिए।

गीता में भगवान कहते हैं ममै वांशो जीवलो के जीव भूत: सनातन:।

मन: षष्ठानीन्द्रियांनि प्रकृति स्थानि कर्षति।।

देह में सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही इस प्रकृति में स्थित मन और पांच इन्द्रियों को आकर्षण करता है।

तुलसीदास जी कहते है

ईश्वर अंश जीव अविनाशी। चेतन अमल सहज सुखरासी।।

ईश्वर का अंश जीव है और वह चेतन अमर सहज सुख देने वाला है।

इशावस्योपनिशद में कहा है

यस्तु सर्वानि भूतान्यात्मनेव पश्यति। सर्वभूतेषु चात्मानम ततो न विजुगुप्स्ते।

जो मनुष्य सम्पूर्ण प्राणियों को आत्मा में ही देखता है और आत्मा को सारे भूतो में देखता है अर्थात सम्पूर्ण भूतो को अपनी आत्मा समझता है वह फिर किसी से घृणा नहीं करता – सबको अपनी आत्मा मानने वाला किससे और कैसे घृणा करेगा। अर्थात सभी से प्यार करेगा दया करेगा। वह हिंसा कर ही नहीं सकता।

4- सतसंग अर्थात संतो से मिलना उनकी सेवा करना उनके उपदेशों को सुनना मनन करना मानने योग्य मानना।

श्रीमदभागवत में कहते हैं

तुलायाम लवेनापी न स्वर्ग नापुनर्भवम।

भगवत संगिसंगस्य मर्त्यानां  किमुताशिष:।।

भगवत संगी अर्थात नित्य भगवान के साथ रहने वाले अनन्य प्रेमी भक्तो के निमेष मात्र के भी संग के साथ हम स्वर्ग और मोक्ष की भी समानता नहीं कर सकते फिर मनुष्यों के इक्षित पदार्थो की तो बात ही क्या करनी। और यही बात रामायण में तुलसी जी कहते है

तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिय तुला एक अंग।

तूल न ताहि सकल मिली जो सुख लव सतसंग।।

अब किसको संत माना जाए पहचान की जाए।

संतपुरुषों के लक्षण। जिनमे समता, शांति, ज्ञान,स्वार्थ त्याग,सौहार्द ,भक्ति आदि पवित्र गुण अति सय रूप में होते है ऐसी ही लोगो के साथ के लिए शास्त्र बोलते हैं  प्रथम तो ऐसे महापुरुष संसार में बहुत कम है फिर उनका मिलना दुर्लभ है मिल जाए तो पहचानना मुश्किल है फिर भी अगर ऐसे महापुरुष का किसी प्रकार मिलना हो जाए तो उनसे अपने अपने भाव के अनुसार लाभ अवश्य होता है क्योंकि उनका मिलना अमोघ है। श्री नारद जी ने भक्ति सूत्र में लिखा है 

महंतसंगस्तु दुरलभोगम्यो अमोघश्रच।

अर्थात महात्माओं का संग दुर्लभ अगम्य और अमोघ है।

यहां पर कलयुगी बाबा जो अपने आप को संत,बापू, बाबा,प्रभु नाम के साथ अपने नाम राम रहीम, साई,आदि तरह तरह के नाम लगाकर लोगो को लूटने वाले ठगो की बात नहीं की गई है, संत तो काम क्रोध लोभ मोह अहंकार इन पांच अवगुणों से बिल्कुल दूर होते हैं वह संत नहीं बल्कि दुष्ट पापी राक्षस है जो किसी को अपनी भक्ति करने को कहते हैं धन सम्पत्ति मांगते हैं,ईश्वर की मूर्तियों पर चढ़ावा के बहाने से धन उगाही करते हैं हजारों लाखो का सौदा करके फिर तरह तरह के गाल बजाकर बड़े बड़े टीके लगाकर बड़ी जटा रखकर लोगो को भ्रमित करते हैं वह संत नहीं कलयुगी राक्षस हैं जो मनुष्य को भ्रमित करके सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। अतः संत और ठगों को पहचान करना आवश्यक है।

5- परोपकार अर्थात अपने तन मन धन से अगर किसी के लिए बिना स्वार्थ कोई सेवा करते हो वहीं परोपकार है।

तुलसी बाबा कहते हैं

परहित बस जिनके मन माहीं।

तिन्ह कंह जग दुर्लभ कछु नाही।

जिनके हृदय में दूसरे का हित बसता है उनको जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।

स्कंध पुराण में कुमार कार्तिकेय कहते हैं 

परोपकरणं  येषां जागर्ति हृदये सताम।

नश्यन्ति विपदस्तेषां संपद: स्यु: पदे पदे।

जिन सज्जनों के हृदय में परोपकार की भावना जागृत रहती है उनकी समस्त आपदाएं नष्ट हो जाती है और उन्हें पग पग पर संपदाएं प्राप्त होती रहती हैं।

गीता में भगवान कहते हैं

लभंते ब्रह्मनिर्वाण मृषय: क्षीणकल्मषा:।

छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूत हिते रत:।‌।

अर्थात जिनके सब पाप नष्ट हो गए है जिनके सब संशय ज्ञान के द्वारा निवृत्त हो गए हैं जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित मे रत हैं और जिनका वश में किया हुआ मन निश्छल भाव से परमात्मा में स्थित है वे ब्रह्म वेत्ता पुरुष शांत ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।

निष्कर्ष: अर्थात यही मुख्य पांच बाते हैं जो मनुष्य को ईश्वर से मिलवाती हैं धर्म के रास्ते पर ले जाने की प्रेरणा देती है। इसके संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए आपको हमारे अन्य वीडियो धर्म की परिभाषा, सत्य क्यों और कैसा बोलना चाहिए, दान किसको दें, दान के रहस्य, परोपकार क्या है, विष्णु दास और राजा चोल की कथा, सदाचार, क्या हुआ जब बच्चे को लगी प्रणाम करने की आदत ( कहानी), महिलाओं के सदाचार, ईश्वर क्या है, क्या भगवान निराकार है या साकार ,आत्मा और परमात्मा में क्या संबंध है, वेदों के अनुसार कौन होते है अवतारी।देखिए उसमे मैंने विस्तार से धर्म क्या है ईश्वर क्या है बतलाया है और उम्मीद करता हूं वह सारे वीडियो देखकर आपके सभी संशय दूर हो जाएंगे 


अस्तु जय सियाराम।

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