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कुंती की कहानी, यादव क्यों राजा नही बन सकते,

Adarsh Dharm ansuni katha kahani

जय सियाराम मित्रो

आप लोगो ने हमारे पिछले विडियोज में पंच कन्याओं में से तीन कन्याएं जो सतयुग त्रेता युग की थी वह कौन थी कैसे जन्मी और किस लोक कल्याण के काम के चलते उनको वरदान मिला और वह चिरकुमारी कन्या बनी जिनके नाम प्रातः स्मरणीय हैं। वह कन्याएं थी मंदोदरी जिनके तीन वीडियो, कौन थी मंदोदरी और तारा उनके जन्म रहस्य, तारा किसकी पत्नी थी बाली या सुग्रीव की, मंदोदरी किसकी पत्नी थी रावण या बालि की  मंदोदरी हरण, अंगद जन्म रहस्य, वीडियो देखे। अब हम आपको द्वापर में जन्मी दो अन्य कन्याओं के बारे में शास्त्रोक्त रहस्य बताते हैं। इनमें से एक कन्या हैं महारानी कुंती, जी हां पांचों पांडवों की माता कुंती, कर्ण की माता कुंती भगवान श्रीकृष्ण की बुआ कुंती।

कौन है ययाति और देवयानी ?

पूर्व काल में चंद्रवंशी क्षत्रियो में एक महान प्रतापी राजा ययाति हुए जिनके नाम पर चंद्र वंश को ययाति वंश भी कहा जाता है यही वह राजा हैं जिन्होंने राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य की बेटी देवयानी से विवाह किया था, महाराज ययाति और देवयानी के प्रथम पुत्र एक यदु नामक महाप्रतापी क्षत्रिय राजकुमार हुए हैं किंतु अपने पिता के बड़े और सर्व गुण संपन्न, राजगद्दी के असली अधिकारी होते हुए भी वह राजा नही बनाए गए। इसकी भी एक अलग कहानी है जो सारांश में यहां बताना आवश्यक है,जब क्षत्रिय राजा ययाति और ब्राह्मण कन्या देवयानी को एक दूसरे से प्यार हो गया और राजा ययाति ने गुरु शुक्राचार्य से कन्या का हांथ मांगा तो उन्होंने मना कर दिया और उसका कारण यह बताया कि ब्राह्मण कन्या हमेशा पूजा पाठ करती हुई बड़ी हुई है मेरी इकलौती पुत्री है जो मेरे बुढ़ापे में मुझे माता गौरी की सैकड़ों साल तपस्या के उपरांत मिली है, एक बार वह बृहस्पति पुत्र कच्छ से धोखा खा चुकी है,इसलिए राजा जिनके महलों में कई रानियां होती हैं मेरी बेटी सिर्फ एक पत्नी व्रत रखने वाले की ही पत्नी बनेगी। प्यार में डूबे ययाति ने शपथ उठा ली कि भविष्य में वह देवयानी के अतिरिक्त किसी भी स्त्री से न तो विवाह करेगा और न संबंध बनाएगा। उसकी इस शपथ से संतुष्ट होकर शुक्राचार्य ने ययाति का देवयानी से विवाह कर दिया। विवाह में  देवयानी के साथ उनकी सहेली और दासी भी थी साथ में गई। कुछ दिनों के बाद देवयानी से यदु पैदा हुए ऐसे वीर और आकर्षक पुत्र को देखकर शर्मिष्ठा को ऐसा ही पुत्र प्राप्त करने की ईक्षा जाग्रत हुई और उसने राजा से इसकी मांग कर दी। शर्मिष्ठा देवयानी से भी ज्यादा खूबसूरत थी राजा अपनी शपथ भूल गए और उन्होंने शर्मिष्ठा से गंधर्व विवाह करके संबंध बनाए जिससे उनके पुरु नामक पुत्र हुआ जो बहुत संस्कारवान और वीर बलवान था।

किंतु शपथ भंग होने पर चूंकि गुरु शुक्राचार्य का श्राप भी जुड़ा था अतः राजा ययाति के शरीर से शुक्र मर गए और वह अचानक बुजुर्ग हो गए, एक जवान राजा बुद्ध हो गया, और उनकी मृत्यु की घड़ी आ गई यमदूत आ गए, किंतु ययाति अपनी पत्नी देवयानी से गिड़गिड़ा रहे थे कि बचा लो, उसने अपने पिता से बात की तो शुक्राचार्य ने जो उपाय बताया कि तुम्हारे पांच पुत्र में से इनकी दस दस साल आयु मांग लो जिससे पचास साल होंगे जिनको तपबल से मैं शिव आराधना से दो गुना कर दूंगा जिससे तुम अगले 100 साल तक जवां हो जाओगे।

ययाति ने सर्व प्रथम बड़े पुत्र यदु से उसकी जवानी के 10 की जगह 100 साल मांगे यदु बोले कि आप अपनी जिंदगी जी चुके अब अपने 1000 साल आयु में से 100 साल क्यों दें आपको शर्म आनी चाहिए अपनी अतृप्त वासना के लिए पुत्र के आयु मांग रहे हो। यही जवाब अन्य पुत्रो ने भी दिया, किंतु पुरु ने अपने 100साल जवानी पिता को दे दी जिससे ययाति को 200 साल और मौज करने के मिल गए।

प्रथा कैसे बनी कुंती ?

अतः क्रोधित राजा ययाति ने अपने होनहार महान बलवान पुत्र को राज्य सिंहासन से बेदखल कर दिया और उनको उनके वंशजों को कभी भी राजा की सीट नही मिलेगी यह आदेश और श्राप दिया। पुरु के राजा बनाया गया, आगे चलकर पुरु के वंशज दो भागो में बट गए एक 😎 जो राजा उग्रसेन, कंश आदि के पूर्वज थे, दूसरे राजा दुष्यन्त और उनके पूर्वज। वास्तव में मथुरा और हस्तिनापुर दोनो ही पुरु के वंशज थे। उधर यदु राजा नही बने उनके बहुत सि संताने हुई, चूंकि उनके पिता ने उनसे चंद्र वंशी होने का हक भी छीन लिया था अतः यहां से उनका उनके नाम पर एक अलग वंश शुरू हुआ जिसको यदुवंश कहा गया। इसी यदुवंश में एक महान वीर हुए जिनका नाम शूरसेन था, इन्ही सूरसेन के पुत्र वसुदेव हुए, उनकी चार पुत्रियां थीं, सुरसेन की बहन का विवाह राजा कुंती भोज से हुआ था उनके बहुत सारे पुत्र थे किंतु बेटी नही थी, उस समय गृहस्थ कन्या दान को अति महत्व देते थे इसलिए उन्होंने अपने साले शूरसेन से उनकी एक बेटी मांग ली, और उसको अपनी पुत्री बनाकर घर ले आए। उस प्रथा नामक कन्या का नाम कुंती रखा गया।

कुंती को किसने दिया आकर्षण मन्त्र ?

विवाह के पूर्व कुंती अपने महल में रह रही थी उसी समय भगवान शिव के अंशावतार  महर्षि दुर्वासा पधारे,राजा कुंती भोज ने उनकी खूब सेवा की, उन्होंने कहा कि वह अपना चातूरमास व्रत आपके राज्य में पूरा करना चाहते हैं इसलिए राजा ने उनका आश्रम अपने महल के साथ अपने बागीचे में बना दिया और स्वयं अपनी पुत्री के साथ अक्सर उनके सुख सुविधा का ध्यान रखते थे,कुंती स्वयं अपने सेवकों से उनकी समय से पुष्प,अक्षत,समिधा लकड़ी, कुशा गंगा जल आदि सभी वस्तुओं का ध्यान रखती उनको मीठे फल आदि की व्यवस्था करती और ऐसे सुखपूर्वक उनका चात्रुमास पूरा हो गया। दुर्वासा जितने क्रोधी है उतने ही दयालु भी हैं वह प्रसन्न हो जाए तो कुछ भी दे देते हैं नाराज हो जाए तो सब नष्ट कर देते हैं। उन्होंने कुंती से वर मांगने को कहा, कुंती बोली हे महात्मा आप तो सर्वज्ञ हो आप खुद ही अपनी मर्जी से जो भविष्य में मेरे लिए अच्छा हो वह दे दो।

ऋषि दुर्वासा ने ध्यान से देखा तो उनको मालूम हुआ कि इसका पति संतान के पूर्व ही श्राप पा जाएगा अतः इसको पुत्र सुख नही मिलेगा अतः उन्होंने कुंती को आकर्षण मंत्र सिखाया और बोले कि इस मंत्र को जिस देवता के नाम से तुम जाप करोगी वह देवता प्रत्यक्ष तुम्हारे सामने आ जाएगा और उससे तुमको एक पुत्र की प्राप्ति होगी। मंत्र देकर दुर्वासा चले गए। कुंती उस समय किशोर बालिका थी आज की भाषा में टीन एज में। इस उम्र में कुछ भी जानने की प्रबल इक्षा होती है इसीलिए कहा गया है कि टीन एज में अगर संतान बिगड़ गई या बन गई, उस समय माता पिता को उन पर विशेष नजर रखने की जरूरत होती है किंतु आजकल होता बिल्कुल उसके विपरीत है हम लोग उनको  बच्चा समझ कर ज्यादा छूट देते हैं और वह गलत रास्ता पकड़ लेते हैं। टीन एज के बाद संतान जब पूर्ण जवान हो जाती है तब उनको अपना भला बुरा सोचने समझने की अक्ल आ जाती है और फिर वह नही बिगड़ते। आज कल टीन एज की छूट के परिणाम ही लव जिहाद, किशोर अपराध, आदि को बढ़ावा देते हैं अतः मेरे विचार से टीन एज के बच्चों को छूट देनी चाहिए पर उन पर हमेशा नजर रखनी चाहिए और 6 W (Who, which, what, when, Where, & How) का सदैव प्रयोग करते रहो,बच्चो के अंदर घरवालों का डर रहना चाहिए तो कभी नही भटकते।

क्या वास्तव में कुंती के पांच पति थे जैसा की विधर्मी कहते है?

तो कुंती भी टीन एज में थी उसने सोचा कि ऋषि तो गए क्या इस मंत्र में सच में ऐसी शक्ति है कि कोई देवता सामने आ जाएगा एक बार किसी को बुलाकर देखती  हूं और उसने वही गंगा के किनारे विधि पूर्वक सूर्यदेव का स्मरण करके मंत्र जाप किया तीन बार मंत्र जाप करते ही सूर्यदेव प्रकट हो गए और पुत्रवती भव बोल दिया, देवता का आशीर्वाद कुंती गर्भवती हो गई अब क्या करे,कुंती गिड़गिड़ाने लगी नही प्रभु मैं तो अभी बच्ची हूं कुंवारी हूं आप वरदान वापस ले लो। सूर्यदेव ने कहा कि महर्षि ने आपको समझाया था कि इस मंत्र के जाप से आप को उसी देवता का अंश स्वरूप पुत्र मिलेगा उनकी बात झूठ नही हो सकती हां मैं आपको यह वरदान देता हूं कि पुत्र जन्म के बाद तुम पुनः कौमार्य अवस्था को पा जाओगी। सूर्य देव गए और इस तरह कर्ण का जन्म हुआ। इसके बाद उनका विवाह हुआ पांडु की दिग्विजय यात्रा हुई फिर पांडु वन विहार को गए,मृग के शिकार में एक ऋषि और उनकी को वाण लग गया, ऋषि का श्राप मिला,फिर कैसे वह धृतराष्ट्र को राजा बनाकर वन में रहने लगे, कैसे ऋषियों ने उनको निरवंशी राजा कहा फिर कैसे पति की आज्ञा से कुंती ने क्रमस: धर्मराज,पवनदेव,इंद्रदेव को मंत्र से बुलाया और तीन बालक युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन को प्राप्त किया फिर अपनी छोटी सौर को मंत्र सीखा कर नकुल और सहदेव के जन्म हुए यह आप सबने महाभारत सीरियल में देखा है इसलिए विस्तार न देकर उन मूर्खो के उत्तर पर आते हैं जो उन देवताओं को कुंती के पति बताते हैं। उनसे पूछना चाहता हूं कि अगर कोई व्यक्ति किसी स्त्री को मांगने पर कोई चीज गिफ्ट देता है तो क्या वह उसका पति हो जाता है। सूर्यदेव के वरदान से पुत्र जन्म के बाद वह हमेशा कुंवारी रहती थी कन्या रहती थी।

कुंती के सिर्फ एक पांडु ही पति थे और वह उनके लिए सदैव सती रही ,वफादार सती रही उनकी मृत्यु के बाद उनके नाम पर उनकी याद में जीवन यापन किया।

कुछ दुष्ट प्रवत्ति के लोग  चारो देवता सूर्य,धर्मराज,पवन, इंद्र आदि को उनके पति बताते हैं या अनैतिक रिश्ते बताते हैं उनके लिए सिर्फ मूर्ख शब्द ही पर्याप्त है उनकी मूर्खतापूर्ण परिवाद के लिए। मूर्खो

कुंती के बुलाने पर दर्शन देकर उनको पुत्रवती भव का वरदान देकर गए देवता,उनके पति नही बन जाते। कम से कम vidharmiyo से इतना तो सीख सकते हो कि मनुष्य द्वारा बनाए गए संप्रदाय वाले परियों की जैसी कहानियों, जादू से होने वाले कार्यों पर भी संदेह व्यक्त नही करते,समाज में चली आ रही कुप्रथा को भी जायज कहते है क्योंकि उनके ग्रंथ में लिखा है और हम अपने ही ग्रंथो पर कुतर्क करते हैं। जो सरासर गलत है।

कुंती के त्याग की कहानी महाभारत में भरी पड़ी है उन्होंने कदम कदम पर हस्तिनापुर की जनता के सुख के लिए, परिवार की एकता बनी रहे इसके लिए त्याग किए उनकी महानता के लिए ही  उनको पंच कन्याओं में से एक गिना जाता है उनकी मृत्यु के भी कोई प्रमाण नहीं हैं अतः उनको चिरकुमारी अर्थात हमेशा जवान और चिरंजीवी भी माना गया है। अस्तु जय श्रीकृष्ण।

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