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नमस्कार, दोस्तो स्वागत है आपका आदर्श धर्म के अनसुनी रहस्यमय प्रसंग और कथा में, आज प्रस्तुत है भगवान श्रीराम के महान पिता सम्राट दसरथ के द्वारा अनजाने में हुए अपराध फलस्वरूप मिला भयंकर श्राप और तत्पश्चात श्राप देने वाले दम्पत्ति की संतान उनकी पुत्री को अपनी पुत्री बनाकर पालन पोषण किया और फिर पुत्री की इक्षानुसार उससे ज्यादा विद्वान ऋषि के कुल में उसका विवाह करवाया।
जैसा कि मैंने पहले भी बतलाया है और इस बात के प्रमाण है कि सूर्य वंशी राजा लोग सिर्फ जीवन के चार भागों में से तीन भाग जिंदगी राजकुमार और राजा की तरह बिताकर चौथा भाग भगवान को (अपने परलोक की शुद्धि हेतु ) अपने किसी उत्तराधिकारी को राजा बनाकर वानप्रस्थ में चले जाते थे तपस्या करते थे और अपनी मृत्यु तक सिर्फ भगवत भजन और तपस्या करते थे।
Table of Contents
आर्यावर्त के सभी राजा अयोध्या को टैक्स देते थे
क्यों देते थे सभी राजा अयोध्या को टैक्स?
समय चक्र घुमा और वह समय भी आ गया! जब महाराज अज ने भी वान प्रस्थ और तपस्या का निर्णय कर लिया और युवराज दशरथ को राजा बनाकर स्वयं वन को चले गए।
महाराज दशरथ ने वीरता और दया का मित्रता का समानता का एक आदर्श स्थापित किया। काशी के राजा ने सिर उठाया तो युद्ध से उसके विद्रोह की कुचलकर वीरता दिखाई!
निषादराज गुह के पिता अपने राज्य कोअयोध्या में मिलाने का प्रस्ताव लाए तो महान दशरथ ने उनको गले लगाकर मित्र कहा और स्वतंत्रता से राज करने को कहा।
आर्यावर्त के सभी राजा अयोध्या को टैक्स देते थे और नतमस्तक थे किन्तु सभी स्वतंत्र थे !
अपने अपने देश की परम्परा के अनुसार राज करते थे और अयोध्या उनकी एक अभिभावक की तरह थी, कोई राज्य किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण नहीं कर सकता था वह अपना विवाद अयोध्या में दशरथ जी के समक्ष लाते थे और दशरथ जी फैसला अंतिम और बाध्यकारी होता था।
कौन थे शान्तनु और ज्ञानवती? उन्होने क्यों राजा दशरथ को श्राप दिया?
उन्हीं के राज्य में एक वणिक या व्यापारी (वैश्य) रहते थे जिनका नाम शांतनु था और उनकी पत्नी जो परम सती और पति भक्ति में रत थी उनका नाम ज्ञानमती था।
शांतनु गृहस्थ जीवन में एक वणिक या व्यापारी थे! परन्तु उनके कोई संतान नहीं थी! उन्होंने कई प्रकार के छोटे छोटे यज्ञ उपवास भजन कीर्तन करके प्रभु आराधना की थी! किन्तु उनको सफलता नहीं मिली।
फिर इधर उधर से सुनकर उन्होंने भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र ओम नम: शिवाय। ओम नम:शिवाय। ओम शिवाय नमः मंत्र का जाप करने लगे!
पति को तपस्या करते देख उनकी पत्नी ने उनसे पूछा कि किस मंत्र का जाप कर रहे हो उसके जपने से हमको क्या लाभ होगा।
तो शांतनु ने बतलाया कि इस मंत्र के जाप से हमारे जानने वाले सदानंद को भगवान शिव ने पुत्र का वरदान दिया है और उनको पुत्र रूपी रतन मिल गया ऐसा कोई व्यक्ति मेरी दुकान पर बता गया था !
अतः मै भी वहीं जाप कर रहा हूं। ज्ञानमती ने कहा कि स्वामी वह मंत्र मुझे भी बतला दीजिए ! ताकि मै भी जाप करूंगी और मेरी परम इच्छा है, कि कोई विदुषी बेटी जो बड़े बड़े ऋषियों से ज्यादा ज्ञानवान हो! मेरी कोख से जन्म ले।
शांतनु ने मंत्र अपनी पत्नी को बतलाया जिससे वह भी बगल में ही आसान जमा के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने लगी। धीरे धीरे उनकी तपस्या का प्रभाव बढ़ता गया !
और वह दोनों निराहार होकर तपस्या करने लगे और उनके मंत्रो के उच्चारण वायुमंडल में गुंजायमान होने लगे। किन्तु उनकी तपस्या का फल उनको नहीं मिल पा रहा था।
यह दृश्य देखकर नारद ऋषि को उन पर दया आ गई और उन्होंने भगवान शिव के यहां अलख निरंजन ध्वनि के साथ कैलाश पर भगवान शिव से उनके संबंध में चर्चा की।
भगवान शिव बोले कि शांतनु की तपस्या पूरी हो चुकी है वरदान का समय आ गया है और वह ऋषि के समक्ष प्रकट होकर वरदान दिया।
माता ज्ञानमती ने पुत्री और शांतनु ने पुत्र मांगा, भगवान शिव ने शांतनु से पूछा कि आप सुपुत्र चाहते है या कुपुत्र, सुपुत्र की आयु कम होगी!
परन्तु कुपुत्र की ज्यादा, शांतनु ने सुपुत्र मांगा। शिव ने वरदान देकर दोनों को कृतार्थ किया और अपने आसन पर पुनः आ गए, नारद पूछते है कि हे प्रभु आपने शांतनु को अल्पायु वाले पुत्र का वरदान क्यों दिया?
भगवान शिव बोले
श्र्णु नारद वेद गुह्यम भेदम अष्य सनातन:।
नीगुरा मंत्र जाप प्रभवश्य अर्द्ध पुण्य: नियमत:।
अर्थात
हे नारद यह वेदों में वर्णित इसके गोपनीय और सनातन (पुरातन) भेद सुनो, और वह भेद यह है कि अगर कोई भी व्यक्ति बिना गुरु किए हुए किसी मंत्र का जाप करके अपने इष्ट देव को मनाता है तो नियमत: उसको आधे पुण्य के लाभ ही मिलते हैं।
शांतनु मम भक्त वणिकम ज्ञानवानम कृपणस्य च। स: नास्ति गुरुम कृत्वा तस्य पापस्य अल्पायु:सुतः ।
शांतनु वणिक मेरा भक्त है ज्ञानवान है किन्तु अत्यंत कंजूस है जिसके कारण उसने गुरु दक्षिणा बचाने के लिए कोई गुरु नहीं किया, और अपने विवेक से मंत्र जाप किया है इसी पाप के कारण उसको अल्पायु पुत्र मिला है।
ज्ञानमती सती नारी पति: गुरु परमेश्वर:। तस्या वरदान फलीभूतम् कन्या रत्नम ददाति वा।
ज्ञानमती एक सती नारी है जिसने पति परमेश्वर से मंत्र लेकर उसको गुरु बनाकर तपस्या किया है अतः उसका वरदान फलीभूत हुआ और उसको दीर्घजीवी महान विदुषी कन्या रतन प्राप्त हुआ है।
समय पर शांतनु और ज्ञानमती को जुड़वा बच्चे एक पुत्र श्रवण (Sarvan)कुमार और पुत्री शांता (Shanta)प्राप्त हुए !
दोनों बड़े हुए किन्तु एक दुर्घटना में शांतनु और उनकी पत्नी की आंखे चली गई और वह दोनों अंधे हो गए।
अब परिवार का भरण पोषण दोनों सुकुमार बच्चो पर आ गया था श्रवण (sarvan )kumarकुमार घर के सभी कार्य करता था और पिता की दूकान का काम देखता था।
शांता(Shanta) जन्म से ही शिव वरदान से अत्यंत कुशाग्र बुद्धि वाली विदुषी थी और उसको सभी वेद कंठस्थ हो गए थे! वह इतनी ही अल्पायु में बड़े बड़े ऋषियों की शास्त्रार्थ में छुट्टी कर देती थी।
श्रवण दिन रात सिर्फ माता पिता की सेवा में लगा रहता था। इसलिए उसकी दुकान से सिर्फ इतनी कमाई ही हो पाती थी कि परिवार को दो जून की रोटी ही मिल पाती थी!
शांतनु और ज्ञानमती दोनों अत्यधिक वृद्ध हो चुके थे! उन्होंने कभी भी किसी तीर्थ में स्नान नहीं किया था!
अतः उनकी तीर्थ करने की बड़ी प्रबल इकशा थी उन्होंने यह बात अपने बच्चों को बताई, श्रवण कुमार अपनी बहन शांता से बोला कि आप दुकान संभालो और मै इनको तीर्थ यात्रा करवाता हूं!
उसने माता पिता के लिए खुद एक कावर बनाई जिसमें एक तरफ पिता और एक तरफ माता को बैठा कर चल पड़ा तीर्थ यात्रा पर। वह चक्र तीर्थ, मिश्रित तीर्थ, नीलकंठ हरिद्वार, बद्री केदार, आदि तीर्थो के दर्शन कराते हुए!
जब अंतिम तीर्थ प्रयाग राज जा रहे थे रास्ते में रात हो जाने के कारण वह अयोध्या के पास एक जंगल में ही ठहर गए।
श्रवण की मृत्यु दुर्घटना या पाप? दोष या भूल ?
sharvan’s death accident or sin? Mistake or crime?
उस समय राजा दशरथ(Dashrath) के दरबार में प्रजाजन एक प्रार्थना लेकर आए थे कि एक नरभक्षी बाघ जंगल से आता है और रोज किसी न किसी मनुष्य को खा जाता है!
अतःराजा(Dashrath) स्वयं रात में उस नरभक्षी को मारने के लिए सरयू नदी से थोड़ी दूर उन प्रजा जनो के साथ छिपे हुए थे।
श्रवण के पिता को प्यास लगी थी ! अतः श्रवण घड़ा लेकर सरयू नदी से पानी भरने गया! उसके घड़े की गुड़ गुड़ की आवाज से राजा के साथ छिपे लोगो ने बोला कि देखो बाघ पानी में है और आवाज कर रहा है!
उनके द्वारा इतने विश्वास से कहे गए बचनो को सुनकर राजा दशरथ(Dashrath) ने बिना देखे शब्द भेदी वाण चला दिया! जो पानी भर रहे श्रवण की छाती भेद चुका था।
श्रवण की दर्दभरी चीख निकली ! जिसको सुनकर सभी भागकर वहां पहुंचे और बालक को मरता देखकर राजा दशरथ पश्चाताप के कारण रोने लगे, परन्तु अनजाने में ही सही उनके हांथ से हत्या हो चुकी थी।
राजा ने श्रवण से उनकी अंतिम इच्छा पूछी तो उसने कहा मेरे पिता को पानी पिला दो बोलकर मृत्यु को प्राप्त हो गया।
अब दशरथ(Dashrath) ने पानी भरा और घड़ा लेकर वहां गए! जहां श्रवण के माता पिता बैठे थे उनको पानी पीने की विनय किया !
किन्तु उन्होंने जिद करके पहले श्रवण को पूछा अतः मजबूरन उनको सारी घटना बतानी पड़ी जिसको सुनकर शांतनु ने क्रोध में दशरथ (Dashrath) जी को श्राप दिया(बददुआ दी)!
और कहा जैसे पुत्र वियोग में मेरी मृत्यु हो रही है! वैसे ही पुत्र वियोग में आप भी तड़प तड़प कर मरोगे कहकर अपना शरीर त्याग दिया।
पति के शांत हो जाने के बाद पत्नी ज्ञानमती ने पश्ताप में रोते हुए! राजा दशरथ(Dashrath) से अपनी पुत्री के लिए आश्रय और अपने लिए चिता मांगी !जिसमे बैठकर वह अपने पति के साथ सती हो जाए।
शांतनु की पुत्र वियोग में मृत्यु के पश्चात सम्राट दशरथ पश्चाताप से रुदन करते हुए! माता ज्ञानमती से खुद को दण्ड देने की याचना करते हैं!
तो माता ज्ञानमती ने जो बोला वह सुनने योग्य है। माता ज्ञानमती बोली कि
पश्चातापमास्ति दण्डः अज्ञात पापस्य कर्मण:।
पुत्र मोहस्य वशीभूते: स्वामी श्रापम ददाति त्वम।
अर्थात किसी अनजाने पाप कर्म के लिए पश्चाताप करना ही एक बड़ा दंड माना गया है। पुत्र मोह के वशीभूत मेरे पति ने आपको श्राप दिया है।
क्षमा राजन क्षमा प्रभो, राजा साक्षात जनार्दन:
श्राप वचनम, पापेभ्य: क्षमाशी मम स्वामिना:।
श्रुन राजन त्वं परम पुरुष: दयालु: महात्मा च।
पुत्री शांता परम विदुषी स्वीकृतम तव सुता एवं वा।
अर्थात हे राजन क्षमा कीजिए क्षमा कीजिए क्योंकि राजा तो साक्षात भगवान का प्रतिनिधि होता है और उस ईश्वर के प्रतिनिधि राजा को कठोर वचन शाप देकर जो मेरे पति ने अपराध किया है अतः उनको भी क्षमा के दो।
हे राजन आप तो महापुरुष महादयालु और महात्मा हैं अब आप दया करके मेरी विदुषी पुत्री शांता को अपनी पुत्री की तरह स्वीकार कीजिए।
दशरथ के बहुत अनुनय विनय के बावजूद ज्ञानमती ने दशरथ जी से दो चिताओ की व्यवस्था कराई! जिसमे एक में पुत्र श्रवण को और दूसरी में शांतनु के शरीर के साथ ज्ञानमती जी सती हो गई।
अब दशरथ शांतनु के घर पहुंचे और शांता को सारी घटना बताकर पश्चाताप में रुदन करने लगे। शांता बहुत समझदार और विदुषी थी! उसने दशरथ जी को तुरन्त माफ कर दिया और उनके साथ अयोध्या आ गई! दशरथ के कोई संतान नहीं थी!
अतः शांता को उन्होंने अपनी बेटी बना लिया! उसकी शिक्षा दीक्षा का प्रबंध किया। गुरु वशिष्ठ से उसने शिक्षा प्राप्त की और उस समय की महान विदुषी विख्यात हुई। अयोध्या में दशरथ जी के दरबार में लगभग प्रतिदिन शास्त्रार्थ होता था! जिसमें कोई भी ऋषि शांता को हरा नहीं पाया।
दशरथ जी अपनी पुत्री की विद्वता से बड़े प्रसन्न होते थे और इस तरह भावावेश में उन्होंने घोषणा कर दी कि मेरी पुत्री को जो व्यक्ति शास्त्रार्थ में हरा देगा! हम अपनी कन्या का दान उसी महान विद्वान को करेंगे!
फिर क्या था- रोज ही कोई न कोई राजा, राजकुमार, ऋषि, विद्वान आने लगे! किन्तु परम विदुषी शांता से हारकर वापस चले जाते थे!
शांता भी यही चाहती थी कि उसका पति वह व्यक्ति बने ! जो उसको शास्त्रार्थ में हरा दे। शांता अत्यंत सुंदर और आकर्षक भी थी!
इसलिए सभी राजा, राजकुमार, विद्वान उससे विवाह करने को आतुर थे, पर शास्त्रार्थ शुरू होते ही उनके अरमान ठंडे पड़ जाते थे।
श्रृंगी ऋषि shringi rishi की वास्तविकता क्या है? क्या वास्तव थे, सींग वाले? या सत्य कुछ और है जो आपको बताया ही नहीं गया !
एक दिन एक बड़ा ही दीन हीन सा नवयुवक दरबार में आया और शास्त्रार्थ कर रहे, लोगो के बीच श्रोताओं में बैठ गया! वह देखने में काफी निर्धन थे ! किन्तु उनके शरीर से सूर्य के समान तेज निकल रहा था! उनको देख कर राजा दशरथ ने उनका परिचय पूछा तो उन्होंने अपना नाम श्रृंगी (shringi) बतलाया।
श्रृंगी (shringi)का नाम सुनकर गुरु वशिष्ठ भी चौंक गए क्योंकि श्रृंगार शास्त्र का रचयिता श्रृंगी ऋषि (shringi Rishi)इतनी कम आयु का नवयुवक था।
दशरथ जी ने उनके चरण धोए और उचित आसन पर बैठाया और उनसे कुछ ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देने को कहा। श्रृंगी ऋषि ने अपना व्याख्यान शुरू किया! किन्तु उनके बीच में बार बार एक नवयुवती अर्थात दशरथ जी की पुत्री शांता बोल रही थी और प्रभु लीला वश शांता ने श्रृंगी ऋषि को शास्त्रार्थ की चुनौती दे डाली और उन्होंने स्वीकार कर लिया।
शास्त्रार्थ चालू हो गए, शांता और श्रृंगी का शास्त्रार्थ 16 दिन चला और सत्रह्वे दिन शांता ने हार मान ली और अपनी प्रतिज्ञा अनुसार ऋषि श्रृंगी के गले में जयमाल डाल दी और उनको स्वामी मानकर उनकी चरण वंदना की। बेटी की ईक्षा देख दशरथ जी ने खुशी खुशी अपनी दत्तक पुत्री शांता का दान महान ऋषि श्रृंगी को किया, दशरथ जी ने दहेज और दान से श्रृंगी ऋषि का घर भर दिया और इस तरह दशरथ जी की दत्तक पुत्री, महान पित्र भक्त श्रवण कुमार की बहन और वणिक शांतनु की बेटी का श्रृंगी ऋषि से विवाह हुआ।
जो आपको बताया गया वह सत्य है या अर्ध सत्य जो झूठ से ज़्यादा घातक है? निर्णय आपको अपने विवेक से लेना होगा? ज़रा विचार करे इन प्रश्नो पर भी?
यह उन अज्ञानी की बात का शास्त्रोक्त जवाब है कि हमारे सनातन धर्म में कोई जाति व्यवस्था थी ही नहीं कर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था थी इससे बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता है कि वैश्य घर में जन्मी शांता (shanta)क्षत्रिय राजा के घर पाली गई राजकुमारी बनी, और फिर एक महान ऋषि ब्रम्ह ज्ञानी ऋषि श्रंगी के साथ उनका विवाह हुआ। तो यहां कौन सी जाति का बंधन आया क्योंकि जाति थी ही नहीं कर्म के अनुसार वर्ण थे।
अब प्रश्न यह है कि अर्धग्यानी लोग,अज्ञानी लोग रामजी(Ramji) की और दशरथ(Dashrath) जी की निन्दा करते है! शांता को दशरथ की या माता कौशल्या की अपनी पुत्री बताते हैं और कई लोग तो शांता को श्रंगी से विवाह को आधार मानकर झूठ बोलकर ऐसा किया! वैसा किया आदि!
कोई यह भी कहते है शांता को सिर्फ स्वार्थ बश श्रंगी को राजा दशरथ ने पुत्र लाभ के लिए पुत्री एक जंगली ऋषि को दान किया।
कोई अज्ञानी कहते हैं कि दशरथ जी ने बालिका होने के कारण उनको अंग राज को दान कर दिया था जबकि अंग देश बना ही महाभारत काल में है! उस समय कोई भी अंग देश का अस्तित्व ही नहीं था।
किन्तु इन बातो में कोई सच्चाई नहीं है जो झूठ फैलाए गए,उनका शास्त्रोक्त सच तो यही है कि महान विदुषी शांता के दशरथजी पालक पिता थे और वह सदैव अपने सभी चारो पुत्रो से ज्यादा अपनी पुत्री को चाहते थे।
पुत्रेष्टि यज्ञ के बाद उनके चार पुत्र हुए और उस यज्ञ को करवाने का श्रेय भी श्रंगी ऋषि को जो उनके दामाद थे को जाता है । राजा दशरथ ने पुत्री शांता को पाला था! वह असल में वणिक ऋषि और भगवान शिव के भक्त शांतनु और ज्ञानमती की बेटी थी। अतः जो लोग शांता जैसी विदुषी को, राजा दशरथ जैसे महान राजा को, गाली देते है वह इंसान के रूप में अपने आप को गाली देते है।
श्रृंगी ऋषि जो श्रृंगार शास्त्र के रचयिता हैं। ऐसे ऋषि जो पुत्रेष्टि यज्ञ के विशेषज्ञ थे! जिनके मंत्रो के जाप से कोई भी देवता उनके आदेश के अनुसार प्रकट होता था! उनको अज्ञानी लोग सींग वाला मनुष्य कहते हैं! तरह तरह की बातें बनाते हैं! जो पूर्णतया झूठ है फिर भी प्रत्येक मनुष्य स्वतंत्र है और निर्णय आप लोगो पर छोड़ते हैं।
निष्कर्ष और विचारणियाँ प्रश्न (कमेंट अवश्य करे)
- दशरथ जी निरवंशी थे और पुत्रेष्टि यज्ञ के उपरांत ही उनको संतान मिली। अतः शांता को उनकी अपनी पुत्री होने का प्रश्न ही नहीं उठता।(Kya betia vansh ka hissa nahi hoti? beti thi to nirvanshi kaise?)
- शांतनु की पुत्री थी और उनके नाम पर ही माता ज्ञानमती ने पति के नाम पर पुत्री को शांता नाम दिया था।
- अंग देश का अस्तित्व ही महाभारत काल में आया था तो अंग देश का राजा कहां से आया।(krishna ke kaal ki mahabharat hai ? Ramji se pahle Dashrath the to ang desh kahan se aaya?
- फिर एक निरवंशी राजा जिसके शांता के अलावा कोई संतान ही न हो वह किसी दूसरे राजा को अपनी इकलौती संतान क्यों देते यह भी झूठ है।(Dasrath ek kharab vykti they beti thi isliye jungli rishi se shaadi ki phir itne badey dil wale bhi they ki khud nirvashi rahkar apni ikloti beti dusrey ko de di?)
“ऋषि अगस्त्य के अनुसार माता ज्ञानमती ने सती होने के पूर्व अपनी पुत्री का पालक पिता महाराज दशरथ को बनाया था जो तर्क संगत भी है और सच भी है।”
अतः निर्णय आप लोग स्वयं कीजिए ! comment main bataiye aapko kya lagta hai.
अस्तु जय सिया राम।
written by विजय कुमार अवस्थी
Sashatrokat satay