भगवान राम सूर्यवंश में त्रेता युग के तृतीय चरण में आए परंतु रावण का जन्म सतयुग ( सत्ययुग ) के मध्य काल तृतीय चरण की शुरुवात में हुआ और वह सूर्यवंशी राजाओं से पीढ़ी दर पीढ़ी लडता रहा और हमेशा हारा अंत में रामजी द्वारा मारा गया। अतः हमको श्रीरामजी के पूर्वजों और रामजी के बाद उनके वंशजों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। रामजी की अधूरी, सुनी सुनाई अप्रमाणिक वंशावली बहुत सुनी या पढ़ी होंगी! परंतु इस पर सालो से शोध कर रहे पंडित विजय अवस्थी जी ने जो प्रामाणिक वंशावली बताई है! उसको पढ़ना चाहिए!
तो चलिए शुरू करते है इस श्लोक के साथ जो कहता है
“रजोजुषे जन्मनि सतववरततै: स्थितौ प्रजानाम, प्रलये तमः स्परशे ,
अजाय सर्ग स्थिति नाशहेतवे त्राई मयाय त्रिगुणात्मने नमः ।।”
अर्थात रजोगुण को धारण करने वाले ब्रह्माजी, प्रजा को स्थिति रखने के लिए! सतोगुण को धारण करने वाले पालनहार विष्णु जी, प्रलय के समय तमो गुण को धारण करने वाले शिवजी इन तीनों ही स्थितियों को शक्तियों को बनाने और मिटाने वाले इन तीनों की एकीकृत शक्ति तीनों की आत्मा को खुद को तीन भागो में विभक्त करता है और फिर इन तीनों के द्वारा अपने आप को असंख्य रूप में प्रकट करता है! पालता है और फिर खुद निगल कर पुनः अपने ने समाहित कर लेता है ! ऐसे महान अजाय अर्थात अजन्मा परमब्रह्म परमात्मा को नमस्कार करता हूं।
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सृस्टि/ पृथ्वी की प्रारम्भ कैसे हुआ
भगवान विष्णु के कान के मैल से निकले मधु और कैटभ राक्षस जिन्होंने ब्रह्मा जी को ही खाने के लिए दौड़ लगा दी ! ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की शरण में गए और उनकी आराधना करने लगे भगवान विष्णु ने उन दोनों राक्षसों से एक लंबा युद्ध किया और बाद में उनके टुकड़े काट काट के फेंक दिए ! जहां उनके टुकड़े गिरे वही पृथ्वी बन गई।
ब्रह्मा जी के हिस्से पर आया पृथ्वी के निर्माण का काम अब जीव जंतु बनाने का आदेश मिला ! अब चार ऋषि सनक,सानंदन, सनातन और सनत कुमार की रचना की ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण के लिए परंतु उन्होंने ईश्वर आराधना को अपनाया जिससे क्रोधित होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें सदैव बालक रूप में ही रहने का शाप दे दिया जो कि अजर और अमर है कुमारों के मना करने के बाद ब्रह्मा जी ने अपने चारों सिरों से दो दो ऋषि बनाने का संकल्प लिया! आप के मन में यह प्रश्न आ सकता है ऋषि तो सात ही है आठवे ऋषि कौन है ! तो आपको बताना चाहेगे की वे जामवंत है! जो ऋषि पुलस्त्य के भाई है ! इसका प्रमाण आपको रामायण और कई पुराणों में मिल जायेगा !
ब्रह्मा जी ने जो सृष्टि बनाई! उसमें पहले पाप या अधर्म वाला हिस्सा बना दिया और इतना अधर्म देख कर फिर परेशान हो गए और रोने लगे सभी जीव जंतु एक दूसरे को मारने लगे ! एक जीव को दूसरे जीव खा रहा था अपनी बनाई सृष्टि की दुर्गति देख ब्रह्मा जी को बहुत बुरा लगा, वह रोने लगे! उन्हें देखकर भगवान विष्णु भी रोने लगे और अपने आराध्य को रोता देख भगवान शिव भी रोने लगे! इससे भगवान शिव की आंखों से 11 आंसू गिरे जिन्हें माता जगत जननी दुर्गा ने अपने हाथों में संभाल लिया! धरती पर गिरने नहीं दिया माता के हाथों के संपर्क पाते ही वे बालक बन गए और जोर-जोर से रुदन करने लगे यानी रोने लगे माता ने उनको रुद्र नाम दिया।
माता ने इन 11 रूद्र को ब्रह्मा जी की सृष्टि संचालन में सहायता करने का काम सौंपा ब्रह्मा जी द्वारा लिखित आयु के बाद प्राणी को मारने का आदेश रुद्र ही करते हैं ! इनके अधीन सभी यमराज और यमदूत आते हैं इन्हीं 11 रूद्र को काल कहते हैं और भगवान शिव को महाकाल कहते हैं! अब सृष्टि में जन्म और मृत्यु चक्र प्रारंभ हो गया अब ब्रह्मा जी अपने 4 सिरों से 2-2 ब्रहम ऋषि उत्पन्न करने का संकल्प लेते हैं। ताकि शृस्टी का आरंभ किया जा सके! ब्रह्मा जी अपने शरीर से कितने प्राणी उत्पन्न करते। ब्रह्मा जी के शरीर से पहले मनुष्य मनु जिन्हें स्वयंभू मनु कहा जाता है और उनकी जोड़ीदार शतरूपा का नाम नामक नारी बनाई सप्त ऋषि यों के लिए 7 स्त्रियां बनाई गई । जिनमें छह कृतिकाये थी और जिन्होंने पृथ्वी पर जाने से मना कर दिया। सातवीं सतरूपा थी जो पृथ्वी पर तो गई परंतु उन्होंने ऋषि यों से विवाह करने से मना कर दिया । परंतु मनु के साथ उन्होंने विवाह किया और सृष्टि की रचना करने लगे। सप्तर्षियों ने छह अलग-अलग स्त्रियों से विवाह कर योनिजा सृष्टि की शुरुआत की। उदाहरण के लिए कश्यप ऋषि की पहली पत्नी दिती हुई और दूसरी अदिति हुई । कालांतर में महाराज स्वयंभू मनु और ब्रह्म ऋषियों की संतानों के ही आपस में विवाह हुए और परिवार बने।
स्वयंभू मनु और शतरूपा कौन थे?What is the story of Manu?
स्वयंभू मनु और सतरूपा से बहुत सी संताने हुई और उन्हीं की संतानों से यह नर मनुष्य की श्रष्टि की रचना हुई। श्रष्टि के प्रथम दम्पत्ति जो धर्म और आचरण में प्रवीण थे जिनके गुणों को आज भी वेद पुराण गाते है और जिनके रास्ते (लीक) पर चलना सर्वोत्तम है। जिनके पुत्र राजा उत्तानपाद हुए, जिनके पुत्र महान भक्त शिरोमणि ध्रुव हुए।
राजा ध्रुव के सबसे छोटे पुत्र जिनका नाम प्रियव्रत था! जिनके कार्यों की आज तक सभी वेद पुराण प्रशंसा करते है।
प्रियव्रत की संतानों में एक देवहूति नामक कन्या हुई जिनका पाणिग्रहण महान ऋषि कर्दम के साथ हुआ । ऋषि कर्दम और देवहूति से महान ऋषि आदिदेव हुए !
भगवान राम के किस वंशज ने अयोध्या बसाई और कहाँ ?
आदिदेव के घर सांख्य शास्त्र के रचयिता जो तत्व ज्ञान में भगवान के समान है और जिनका नाम कपिल भगवान कहा जाता है ।
संख्या शास्त्र या गणित या math की रचना महान ऋषि जो ज्ञन में ईश्वर के समान थे भगवान कपिल ने की थी। गणित या सांख्य शास्त्र की रचना प्रथम मन्वन्तर के द्वितीय चरण महर्षि कपिल ने की थी।
महानऋषि आदिदेव के घर सांख्य शास्त्र के रचयिता महान ऋषि भगवान कपिल हुए और कला नामक पुत्री हुई।
कला का विवाह महर्षि मरीचि के साथ हुआ जिससे उनके 12 पुत्र हुए जिसमे तीसरे नंबर के पुत्र महर्षि कश्यप हुए जिनकी 13 कन्याओं से विवाह हुए। उनकी दो पत्नी सगी बहन थी! जिसमे एक का नाम दिती और दूसरी का अदिति था।
दिती से राक्षस, असुर, दैत्य पैदा हुए, वहीं अदिति से देवता, आर्य ऋषि हुए।
ऋषि कश्यप और अदिति के सबसे छोटे पुत्र का नाम सूर्यदेव के नाम पर विवश्वान सूर्य रखा गया। सूर्य ने आर्यावर्त में अयोध्या नामक सुंदर नगरी बसाई जो सरयू नदी के किनारे और आर्यावर्त के बिल्कुल बीचोबीच में थी, वहां से वह पूरे आर्यावर्त के प्राणियों को कंट्रोल कर सकते थे। और इसी नगरी को अपनी राजधानी बनाया।
विवश्वान्न सूर्य का विवाह भक्त ध्रुव के पुत्र राजा प्रियव्रत के पौत्र की पुत्री संज्ञा और अश्विनी से हुआ।
सूर्य और संज्ञा के पुत्र वैवस्वत मनु हुआ!
इन्हीं राजा सूर्य के नाम पर इस वंश वेल का नाम सूर्य वंश पड़ा, न कि सूर्यदेव का वंश। परन्तु हां राजा विवश्वान्न असली नाम सूर्य के समान तेज, बल बुद्धि, और गति की वजह से उनका नाम सूर्य पड़ा था और यह नाम उनके दादाजी महर्षि मरीचि ने दिया था।
क्यों देवता हमेशा इन्द्र की मदद करते थे?
सूर्य के सबसे बड़े भाई इन्द्र हुए जिनको स्वर्ग के देवताओं का राजा बनाया गया। इसका अर्थ यह है कि जो भी इन्द्र के पद पर बैठेगा वह देवताओ का ही रिश्तेदार होगा! भाई, चाचा या भतीजा, यही वजह थी कि जब भी देव और असुर लड़ते थे ! देवता हमेशा इन्द्र की सहायता करते थे !क्योकि इन्द्र सगे भाई थे असुर सौतेले ! कश्यप और अदिति के 12 पुत्र में से 10 पुत्र स्वर्ग से लेकर प्रथ्वी के विभिन्न स्थानों के राजा हुए! उनके दो पुत्रों ने ब्राह्मण धर्म अपनाया जिसमे से एक त्रिपाठी हुए! उनके वंशज आज भी त्रिपाठी या तिवारी हैं।
कश्यप अदिति के चौथे नंबर के पुत्र ऋषि सांडिल्या हुए! उन्होंने वेदों का ज्ञान अर्जित किया और ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ब्रह्म को जानने वाले ब्रह्म को पाने वाले हुए जिनके वंशज सांडिल्य गोत्र वाले है।
देव और असुर संग्राम कैसे शुरू हुआ Devasur sangram kab aur kyon hua?
कश्यप और दिती से पैदा हुए पहले पुत्र हिरण्याक्ष और दूसरे का नाम हिरणाकश्यप हुआ। इनको आर्यावर्त के दक्षिण का राजा बनाया गया! परन्तु उसने तपस्या से वरदान में इतनी शक्ति प्राप्त कर लिया था जिससे उसने आगे चलकर सौतेले भाई लोगो की जमीन राज्य छीन लिए और यहां से शुरू हुई दानव और देवो के युद्ध।
अयोध्या के राजा लोग हमेशा स्वर्ग के राजा इन्द्र की सहायता और असुरो से युद्ध इसीलिए करते थे क्योंकि इन्द्र उनका सगा भाई ,चाचा, दादा था और असुर सौतेले।
यही से शुरू हुआ देवासुर Devasur संग्राम sangram.
वैवश्वत मनु कौन थे !who was vaivasvata manu.
राजा सूर्य स्वयंभू मनु (svayambhuva manu) से अत्यधिक प्रभावित थे! इसलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम वैवस्वत मनु रखा, राजा सूर्य और राजा वैवस्वत मनु दोनों को ही भगवान नारायण के महान भक्तो में गिना जाता है! जिनको नारायण के साक्षात दर्शन हुए थे!
वैवस्वत vaivasvata मनु manu के पुत्र का नाम इकक्षवाकु हुआ जो महान प्रतापी राजा हुए,जिनका गुणगान देवता तक करते है इसीलिए सूर्य वंश के साथ इस वंश को इक्कश्वाकु वंश भी कहा जाता है।
इक्ष्वाकु की पत्नी का नाम अलंबुषा था और वह हिरणाकश्यप की बहन होलिका और मदुरा के राजा अल्मबुष की पुत्री थी, देवासुर संग्राम में जब असुरों ने देवताओं की पुत्री से हिरणाकश्यप का विवाह कर दिया वह युद्ध महराज सूर्य की सहायता के बावजूद देवता हार गए थे, जब देवताओं की तपस्या से और हिर्णनक्ष्य द्वारा सूर्य देव को नीचा दिखाने के लिए प्रथ्वी की धुरी पकड़ ली गई!
जिससे दिन रात होने बंद हो गए धरती पर त्राहि त्राहि हुई तब नारायण ने वाराह रूप में उसका वध किया, उसी समय हिरणाकश्यप की सेना का युद्ध इक्ष्वाकु से हुआ और दैत्य युद्ध हार गए और संधि में अल्मबुषा का विवाह इक्ष्वाकु से हुआ था।
इक्ष्वाकु के पुत्रो में दो पुत्र प्रतापी हुए जिनमें से बड़ा पुत्र विशाल और छोटा पुत्र आर्द या चन्द्र हुआ इनका नाम चंद्रदेव के नाम पर रखा गया था। इनके वंशज चंद्रवंशी क्षत्रिय कहे गए है अर्थात चन्द्र वंश भी सूर्य वंश में से ही निकला है। बड़े पुत्र विशाल अयोध्या के राजा बनाए गए और चन्द्र ने पश्चिमी में अपना अलग राज्य बनाया जो आगे चलकर भरत वंश भी कहा गया।
सूर्यवंश और चंद्रवंश में क्या अंतर है ! क्या है महाभारत से इसका सम्बन्ध ?
इक्ष्वाकु के पुत्रो में दो पुत्र प्रतापी हुए !जिनमें से बड़ा पुत्र विशाल और छोटा पुत्र आर्द या चन्द्र हुआ इनका नाम चंद्रदेव के नाम पर रखा गया था। इनके वंशज चंद्रवंशी क्षत्रिय कहे गए है अर्थात चन्द्र वंश भी सूर्य वंश में से ही निकला है।
बड़े पुत्र विशाल अयोध्या के राजा बनाए गए और चन्द्र ने पश्चिमी में अपना अलग राज्य बनाया! जो आगे चलकर भरत वंश भी कहा गया।
- विशाल के पुत्र का नाम हेमचंद्र हुआ!
- हेमचंद्र के पुत्र सुचंद्र हुए!
- सूचंद्र के पुत्र ध्रूमाश्व हुए!
- ध्रूमाष्व के पुत्र महान राजा सरजन्य हुए!
- सरनजय भी इन्हीं का नाम था! क्योंकि इन्होंने देवासुर संग्राम में अपने बाणों से असुरों की पूरी सेना को ढक दिया था जिसमें तिल के बराबर भी प्रकाश जाने की जगह नहीं बची थी और असुर युद्ध में पराजित हो गए थे इसीलिए ब्रह्माजी ने इनका नाम स्रनजय नाम दिया था।
स्रनजय के पुत्र राजा सहदेव हुए जो सदाचारी और दानवीर होने के साथ बड़े सहनशील और महान पराक्रमी थे।
- सहदेव के पुत्र कुशाश्व था
- कुशाश्व के पुत्र का नाम सोमदत्त हुआ
- सोमदत्त के पुत्र काकुतस्य था!
- काकुतस्य के पुत्र का नाम सुमति हुआ। यह राजा अहिंसा को परम धर्म मानते थे और युद्ध से विमुख थे !
हिरणाकश्यप ने क्यों बनाया, हरदोई को राजधानी?
Hirnakashyap ne kyon banaya hardoi ko rajdhani?
काकुतस्य के पुत्र का नाम सुमति हुआ। यह राजा अहिंसा को परम धर्म मानते थे और युद्ध से विमुख थे ! सभी प्राणियों में ईश्वर को देखते थे, परिणामत: ब्रह्माजी के वरदान से घमंड में चूर असुर राजा हिरणाकश्यप ने इनके बहुत से भू भाग पर कब्जा कर लिया और इनको संधि में अयोध्या नगरी के अलावा सारे राज्य पर कब्जा कर लिया और आर्यो को कब्जे में रखने के लिए अयोध्या के नजदीक ही आज की हरदोई को अपनी राजधानी बनाया। जिससे वह आर्यो को नारायण की उपासना नहीं करने देता था!
यहां तक कि अपने राज्य में नारायण के सबसे प्रिय नाम राम की वजह से “र” अक्षर पर पाबंदी लगा दी थी जिसके कारण प्रजा या कोई भी बात करने ने “र” अक्षर का प्रयोग नहीं करता था जिसका प्रमाण आज भी हरदोई (मतलब हरि की दुश्मन) नगरी में “र” अक्षर आज तक बोलचाल से बाहर है। हरदोई के अधिकांश इलाके मै हद्दी, मिच्च,उद्द, बद्द, अढयी, आदि शब्द बोले जाते हैं। हर्दी सर्दी मिर्च उरद, अरहर नहीं बोलते हैं।
वैदिक कालीन संस्कृत ग्रंथो को जलाए, ताकि रामजी का गौरव घटा सकें!
इसके बाद की सैकड़ों पीढ़ी का नाम ग्रंथो में नहीं मिलता है, क्योंकि इतिहास हमेशा जीतने वालो के होते है वह चाहे छल से जीते हो या बल से जैसे आज के युग में भी अकबर जैसे राक्षस को महान पढ़ाया जाता है खिलजी जैसे आतंकी का इतिहास है पर महान राजाओं के नहीं उसी प्रकार हिरणाकश्यप ने मानवों आर्यो के इतिहास नहीं रहने दिए और सत्य युग की यहां 54 पीढ़ी के नाम नहीं आए है! वह सिर्फ अयोध्या के छोटे से नगर के राजा रहे और हिरणाकश्यप के आधीन उसको टैक्स देते थे।
तत्पश्चात राजा सुमति की 55वी पीढ़ी आर्द नामक राजा हुए जिन्होंने अहिंसा और डर छोड़कर असुरों से युद्ध किया! इस युद्ध में राजा आर्द ने जिस हिरणाकश्यप को न दिन में मरू न रात में न अस्त्र से न सस्त्र से न देवता न दानव न पशु न पक्षी से मरू ऐसे वरदानी असुर को नाकों चने चबाने पर विवश कर दिया।
सारे असुर आर्तनाद करते हुए भाग खड़े हुये जब भी युद्ध होता था!
राजा के बेटे राजकुमार युवनाष्व जो हजारों घोड़ों के वेग से तेज बान चलाते थे ! युद्ध में हिरणाकश्यप के हांथ उठाने से पूर्व हांथो को छेदकर रथ में ही पिरो देते थे! हिरणाकश्यप युवनाश्व से एक भी युद्ध नहीं जीत पाया, फिर से ब्रह्मा जी ने नर संहार रुकवाते हुए कश्यप ऋषि और सप्त ऋषियों के मध्य संधि कराई गई अब अयोध्या से अवध प्रदेश बन गया अर्थात अयोध्या का लगभग सारा भू भाग पुनः अयोध्या के कब्जे में आ गया।
यूवनाष्व के पुत्र महान प्रतापी राजा मान्धाता हुए!
मान्धाता के बेटे मुचकुन्द की कहानी -mandhata ke bete muchukund ki kahani
मान्धाता की पत्नी का नाम बिंदुमती था और जो एक ऋषि कन्या थी।
मान्धाता और बिंदूमती के पुत्र का नाम मुचुकुंद था! यह सूर्यवंश के बड़े प्रतापी राजा हुए! जिन्होंने स्वर्ग से लेकर प्रथ्वी से पाताल तक असुरों को बार बार हराया। देवासुर संग्राम में देवता इन्हीं के पराक्रम से जीते थे और युद्ध करते हुए देवताओं का एक साल बीत गया अर्थात मनुष्यों के सौ साल का एक दिन अर्थात 36500 साल बीत चुके थे!
जब युद्ध जीतने के बाद उनको सच्चाई बताई गई तो उन्होंने कहा कि मै सोना चाहता हूं और वह द्वापरयुग तक गुफा में सोते रहे!
उनके द्वारा काल यवन का वध हुआ! भगवान कृष्ण ने नारायण रूप में दर्शन दिए।
- मुचुकुंद के पुत्र पुरुकुस्त हुये।
- पुरुकुस्त के पुत्र त्रयद्वासयु हुए
- त्रयद्वासयु के पुत्र अनरण्य हुए।
- अनरण्य के पुत्र हर्यश्व थे
- हर्यश्व के पुत्र अरुण हुए
- अरुण के पुत्र राजा त्रिबंधन हुए।
सत्यव्रत कैसे बने त्रिशंकु-trishanku Ramji ke vanshaj
राजा त्रिबंधन के पुत्र परम प्रतापी राजा सत्यव्रत हुए। यह सदा सत्य बोलते थे और अपने गुरु वशिष्ठ के परम भक्त थे।
अपने अंतिम समय अर्थात चौथेपन में वन जाकर तपस्या करने की परम्परा को इन्होंने तोड़ा, इनकी अंतिम इच्छा इस पंच तत्व के शरीर के साथ स्वर्ग जाने की थी!
इसके लिए उन्होंने गुरु वशिष्ठ से यज्ञ द्वारा या तप द्वारा कैसे भी पहुंचाने की प्रार्थना की! परंतु यह ईश्वर की प्रकृति के विपरीत बताकर गुरु वशिष्ठ ने मना कर दिया।
अतः उन्होंने अपने गुरु का अपमान करके उनको राजगुरु पद से हटा दिया और ऋषि विश्वामित्र के पास गए। चूंकि उस समय ऋषि विश्वामित्र का एक मात्र कार्य किसी भी प्रकार किसी भी विषय में गुरु वशिष्ठ से दुश्मनी कर रहे थे!
बार बार हजारों साल तपस्या कर रहे थे परन्तु राजर्षी से ब्रह्मऋषि नहीं बन पा रहे थे! अतः उन्होंने सत्यव्रत को शरीर के साथ स्वर्ग भेजने के लिए अपने तपोबल का प्रयोग किया! उधर इन्द्र ने स्वर्ग से उनको धक्का देकर नीचे गिरा दिया!
परन्तु विश्वामित्र के तप के प्रभाव से वह नीचे भी नहीं आ सके और बीच में लटक गए अतः उनका ही नाम त्रिशंकु पड़ा। नारायण से जब नारद ने पूछा कि प्रभु सदा सत्यवादी राजा को ऐसी सजा क्यो मिली!
तो उन्होंने कहा कि यह ब्राह्मण और गुरु के अपमान के पाप के कारण भोग रहे है।
क्या रामजी सत्यवादी हरिशचंद के वंशज थे! Ramji ke vanshaj satyawadi harishchand.
राजा सत्यव्रत के पुत्र सत्यवादी महादानी राजा हरिश्चंद्र (Harishchand) हुए जिनकी प्टनिवका नाम तारामति था। इन्होंने पुनः गुरु वशिष्ठ को अपना राज गुरु बनाया और सत्य न्याय के साथ राज्य किया।
इन्होंने 999 यज्ञ किए और सौवे यज्ञ की कामना की तभी देवता और ऋषियों ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई और इसके कर्ण धार ऋषि विश्वामित्र को बनाया !
उन्होंने स्वपन ने अपने राज्य को विश्वामित्र को दान कर दिया! सुबह दरबार में सच में ऋषि खड़े थे और दान के बाद की दक्षिणा मांग रहे थे!
चूंकि राज्य पहले ही दान कर चुके थे अतः दक्षिणा चुकाने के लिए उन्होंने खुद की रानी अपने बेटे और अपने आप को बेचकर दक्षिणा चुकाई।
अंत में परीक्षा पास करके भगवान शिव ब्रह्मा इन्द्र और सभी ऋषियों के दर्शन किए और शिव प्रेरणा से नारायण दर्शन हेतु अपने पुत्र रोहित को राज्य भार देकर तपस्या के लिए चले गए।
नारायण ने उनको दर्शन देकर अट्ठारहवें मन्वन्तर में इन्द्र के पद का वरदान दिया।
- हरिश्चंद्र के पुत्र रोहित हुए
- रोहित के पुत्र हरित हुए
- हरित के पुत्र चंप हुए
- चंप के पुत्र सुदेव हुए
- सुदेव के पुत्र विजय हुए
- विजय के पुत्र भरूक थे
- भरुक के पुत्र वॄक हुए
- वॄक के पुत्र बाहुक हुए
- बाहुक के पौत्र राजा सगर हुए परन्तु उनके पुत्र का नाम नहीं मिल पाया ! अतः यहां पर एक पीढ़ी कम है!
राजा राम के वंशज सगर के पुत्रों को क्यों मिला श्राप? Raja sagar ke purta kitne the
राजा सगर के पिता की मृत्यु अल्पायु में उनके राजा बनने के पूर्व ही युद्ध में भक्त प्रहलाद के पौत्र दानवीर महाबली राजा बलि के हाथों हो गयी थी। अतः बाहुक के बाद अयोध्या के राजा सगर बने।
जिन्होंने दो विवाह किये बड़ी रानी सुमति एक रिषि कन्या थी और दूसरी का नाम केसिनी था जो विदर्भ राज्य की राजकुमारी और द्रविड़ अर्थात असुर कन्या थी।
राजा सगर के सुमति से एक पुत्र असमंजस हुये परंतु असुर कन्या केसिनी से 88 हजार पुत्र हुये! जो एक से एक बलवान थे। उनकी शक्ति के कारण राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का निर्णय लिया और घोड़े की रक्षा के लिए केसिनी पुत्र चले!
किन्तु देवराज ने जब देखा कि यज्ञ पूरा हुआ! तो उसका पद जा सकता है उसने छल से घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
केसिनी पुत्र मिलकर ढूंढते हुए उन्होंने आधी धरती खोद डाली! जिससे एक समुद्र की बढ़ोतरी हो गयी और कपिल ,ऋषि को गाली देने लगे, कपिल ऋषि ने आंखे खोलकर उन सबको भस्म कर दिया।
जिनके उद्धार के लिए माता गंगा को प्रथ्वी पर लाने की कोशिश सूर्य वंशी राजाओं ने की और अंत में राजा भगीरथ सफल हुए !
सगर के बाद असमंजस राजा बने असमंजस के पुत्र अंशुमान हुए!
अंशुमान के पुत्र ,पौत्र,और प्रपौत्र का नाम ग्रंथो में नहीं मिल पाया !
उनकी छठी पीढ़ी राजा भगीरथ हुए जिन्होंने तपस्या करके अपने पूर्वजों को गंगा स्नान करवाके मुक्ति दिलाई। अर्थात राजा सगर से लेकर 9 पीढ़ी तक के राजा गंगा अवतरण के लिए तपस्या करते रहे दसवीं पीढ़ी सफल हुई।
कुछ जगह अंशुमान का पुत्र दिलीप को बताया गया है और भगीरथ को दिलीप का पुत्र जो प्रमाण पर खरा नहीं उतरता। क्योंकि कालिदास, तुलसीदास से पहले हुए हैं !
अतः हम यहां कालिदास को ज्यादा महत्व देते हुए दिलीप को भगीरथ का पुत्र मानते है।
भगीरथ के पुत्र महाराजा दिलीप हुए जिन्होंने कामधेनु गौ की पुत्री नंदिनी की इतनी सेवा की और उसकी जान बचाने के लिए अपने प्राण अर्पण कर दिए!
उनकी भक्ति से गौ माता ने प्रसन्न होकर उनको पुत्र होने का आशीर्वाद दिया फलतः रघु नामक परम प्रतावी महवीर पुत्र ने जन्म लिया।
महान रघु जिनसे रामजी रघुवंशी कहलाए !-mahan Raghu jinsey Ramji raghuvanshi kahlaye
राजा दिलीप ने पुनः अष्मेघ यज्ञ किया और यज्ञ के घोड़े की रक्षा के लिए राजकुमार रघु गए, इन्द्र ने घोड़ा पुनः चुराया! परन्तु इस बार मुकाबला रघु से था, कई वर्षों तक देवताओं और रघु की सेना में युद्ध हुआ!
अग्नि, पवन, वरुण, इन्द्र, यम, कुबेर, शनि सभी ने अपनी जान लगा दी ! परन्तु रघु से जीत नहीं पाए, अंततः इन्द्र ने अपनी हार स्वीकार की और घोड़ा लौटाकर उनका यज्ञ पूरा कराया।
राजा दिलीप वीर होने के साथ साथ परम तपस्वी भी थे, जब राजकुमार रघु का इन्द्र आदि देवताओं से युद्ध चल रहा था ! उस समय रावण ने अयोध्या पर आक्रमण की योजना बनाई !
परंतु इसकी सूचना यज्ञ में दीक्षित राजा दिलीप को हो गई उन्होंने यज्ञ स्थली में बैठे बैठे ही मंत्र अभिपुरित बान द्वारा अपनी सीमाएं बांध दी!
जिसमे रावण या कोई राक्षस बिना परमिशन आने पर जलकर भस्म हो जाएगा। रावण ने कोशिश की परंतु दिलीप रेखा वह कभी पार नहीं कर पाया। अर्थात आक्रमण तो दूर की बात वह अयोध्या के राज्य में प्रवेश करने में भी असमर्थ रहा।
इसके पश्चात दिलीप अपने चौथिपन में तपस्या हेतु वन चले गए और राजा रघु बने, रघु दिग्विजय करने हेतु निकल पड़े और उन्होंने चारो दिशाओं में सभी को चैलेंज करके युद्ध करके अपने आधीन कर लिया। पूरे आर्यावर्त के राजा अयोध्या के आधीन हो गए और रघु सूर्यवंश के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट बने।
अयोध्या के राजा रघु ने बाली और रावण को अपने अधीन किया ?
महाराज रघु ने बाली को जिसके सामने जाने से आधी शक्ति घट जाती थी ! अपनी तेजी से उसको उसी की पूछ से बंदी बना लिया था और अधीनता स्वीकार करने पर स्वतंत्र कर दिया था। रघु ने रावण को अधीनता न स्वीकार करने पर समुद्र के इस पार से ही लंका के चारो दरवाजे तीरो से भर दिए थे !
लंका वासी और रावण सहित सभी को जो जहां था वहीं ,बातों से सिल दिया था। फिर मल्यवान को भेजकर आधीनता स्वीकारी तब छोड़ दिया। रावण को ब्रह्मण पुत्र होने के कारण अयोध्या के राजा कभी मृत्यु दण्ड नहीं देते थे। माफ कर देते थे।
चक्रवर्ती राजा रघु के पुत्र चक्रवर्ती राजा अज हुये रावण ने इनसे भी युद्ध किया और तीन दिन के युद्ध में ही हार मानकर उनको सम्राट मान लिया।
सत्यकेतु के दशरथ बनने की कथा -satyaketu baney dashrath
चक्रवर्ती राजा अज के पुत्र सत्यकेतु हुये जो अपने पिता और दादा रघु के समान प्रतापी वीर वरदानी त्यागी सम्राट हुये। रावन ने इनके साथ बड़े भयंकर वेग के साथ युद्ध किया परन्तु हार गया जिससे उसने अपने समान दस महारथियों के साथ अधार्मिक युद्ध किया अकेले पर दस तरफ से एक साथ प्रहार किते गये परन्तु राजा तो कालहु डरै न रन रघुवंशी थे वह अकेले ही लड़ते रहे। परन्तु इस बीच उनके रथ का सारथी रावण के धोखे के प्रहार से मर गया और राजा के रथ का पहिया निकल गया था किन्तु उसी समय कैकय नरेश की राजकुमारी कैकेयी ने अपने रथ से कूदकर राजा को बन्दी बनने से बचा लिया और उनको अपने रथ में बैठाया खुद सारथी बनी, कैकेई जैसी सारथी पूरे विश्व में कोई नहीं था अब राजा ने क्रोध में युद्ध करके दसों महारथी हराकर बन्दी बना लिये। परन्तु रावण को मृत्यु दंड नहीं देकर ब्राम्हण पुत्र कहकर क्षमा कर दिया। यही से राजा सत्यकेतु का नामकरण राजा दशरथ हो गया।
परन्तु देवी कैकेयी इतनी क्रोधित हुई थी कि उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि इन दस के दस महारथियों को इन्हीं राजा के पुत्र से मरवा डालूंगी ऐसी शपथ उठाई थी।
दशरथ के पुत्र श्रीराम हुये ( भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न भी थे) पर वंशावली अयोध्या के राजाओं की ले रहे हैं।
राम जी के बाद अयोध्या के राजा कुश बने, हालांकि रामजी ने यहां से छोटे भाई भी हकदार होते है ! का फार्मूला चलाया और अपने तीनों भाइयों केपुत्रो को भी अलग राज्यो का राजा बनाया अपने दोनो पुत्रों को अलग राजा बनाया। अयोध्या के सिंहासन पर कुश को ही बिठाया।
रामजी के बाद की वंशावली-Ramji ke baad ki vanshavali
रामजी के परलोक गमन के बाद कुश ने अपनी राज्य का विस्तार किया और पूरे आर्यावर्त को अपने आधीन किया,उन्होंने जिन पहाड़ी पर कठिन तपस्या की वह आज भी अफगानिस्तान में उन्हीं के नाम पर है। भगवान शिव ने कुश को पशुपति अस्त्र दिया था और एक पूरा क्षेत्र दान किया जिसको आज का अफ्रीका कहा जाता है,उसका पुराना नाम शिवदान है जो अपभ्रंश बनकर आज का सूडान है। अफ्रीका का पूरा नाम कुश द्वीप रखा गया और कुश ही वहां के राजा माने गए है आज भी उनकी पूजा की जाती है उनके पिता रामजी की पूजा अफ्रीका में अभी भी कई जगह होती है।
कुश ही चक्रवर्ती राजा बने उनके भाई ने लवपुर नगर बसाया जो आज का लाहौर है। कुश की पत्नी का नाम कुमुद्वनी था और वह नागवंशी राजकुमारी थी।
कुश के पुत्र का नाम अतिथि हुआ यह भी अपने पूर्वजों की तरह अभूतपूर्व प्रतापी राजा हुए इनका नाम अतिथि कुश द्वीप के लोगो ने रखा था क्योंकि वह लोग कुश को अतिथि या मेहमान मानते थे या बाहर से आए हुए।
अतिथि के पुत्र निषध थे!
क्या है नल दमयंती कथा?-nal damyanti katha
निषद के पुत्र महान राजा नल हुए जिनकी पत्नी का नाम दमयंती था। इनको अपने धन और राज्य का बड़ा घमंड हो गया था! परन्तु नारायण ने इनका घमंड तोड़ने के लिए इनको एक एक दाने के लिए तरसा दिया था!
राज्य दुश्मनों ने छीन लिया, फिर इनके बारे में ही बड़ी सारी स्टोरी है। कि इनके देखते देखते जिस व्यक्ति की शरण में खाना खाने गए! तो खूंटी हार निगल गई फिर जंगल में मछली पकड़ी और भुन्नकर खाने बैठे तो भुनी हुई मछली भी पानी में कूदकर भाग गई।
अंत में नारायण को याद किया आराधना की तब नारायण ने दर्शन दिए राज्य वापस हुआ शत्रु से जीत गए। पुनः राजा बने और फिर तपस्वी।
- नल के पुत्र का नाम नभ हुआ
- नभ के पुत्र पुंडरीक हुए
- पुंडरीक के पुत्र क्षेमधनवा हुए
- क्षेमधनुआ के पुत्र देवानीक हुए
- देवा नीक के पुत्र अनीह हुए
- अनीह के पुत्र अहिनगु हुए
- अहिनगु के पुत्र का पारिपात्र हुआ!
पारिपात्र के महान दानी महा राजा शिवि हुए जिनको दानियो में ऋषि दधीचि, राजा हरिश्चंद्र, महाबली महाराज बली, और द्वापर के महादानी अंग राज कर्ण के साथ लिया जाता है। इन्होंने एक पक्षी कबूतर की जान बचाने के लिए बाज को अपने शरीर से कबूतर के वजन के बराबर मांस देने का निश्चय किया और तराजू में एक तरफ कबूतर को बैठा दिया और दूसरी तरफ अपने शरीर के हिस्से काट कर रखते जा रहे थे!
परन्तु तराजू न उठाने पर वह खुद दुसरी तरफ बैठ गए। कबूतर बने अग्नि देव और बाज बने इन्द्र तुरन्त प्रकट हुए और राजा की बड़ी प्रशंसा की। वरदान दिए।
राजा शिवि दान से अपने आप को अपने नाम को अमर कर गए।
- राजा शिवि की पुत्र राजा शिल हुए
- शिल के पुत्र उन्नाभ हुए।
- उन्नाभ के पुत्र ब्लस्थल हुए
- बल स्थल के पुत्र बज्र नाभ हुए!
- बज्रनाभ के पुत्र संङगण हुए।
- शंङगण के पुत्र वयुषिताशव हुये।
- वयुषिताशव के पुत्र विश्वसह हुए।
- विश्वसह के पुत्र कौशल्य हुए।
- कौशल्य के विघॄति हुये।
- विघॄति के पुत्र का नाम हिरणयनाभ हुआ।
- हिरणयनाभ के पुत्र पुष्य हुए।
- पुष्य के पुत्र ध्रुव सिन्धु हुये
- ध्रुवसिन्धु के पुत्र सुदर्शन हुये।
सुदर्शन की माता का नाम मनोरमा और उनकी पत्नी का नाम शशीकला बताया गया है जो काशीराज की राजकुमारी थी।
- सुदर्शन और शशी से जो पुत्र हुए उनमें ज्येष्ठ अग्नि कर्ण हुए
- अग्निकर्ण के पुत्र का नाम शीघ्र था!
- शीघ्र के पुत्र का नाम मरु हुआ!
- मरु के पुत्र प्रसुश्रुत हुआ!
- प्रसुश्रुत के पुत्र संधि हुए!
- संधि के पुत्र अमरषण हुआ।
- अमरषण के पुत्र महस्वान हूये!
- महस्वान के पुत्र विश्वसाह हुये!
- विश्वसाह के पुत्र प्रसेनजीत हुये!
- प्रसेनजीत और भीष्म पितामह में युद्ध हुआ जिसमें भीष्म की जीत हुई और अयोध्या का राज्य हस्तिनापुर के आधीन हो गया।
- प्रसेनजीत के पुत्र तक्ष हुये।
तक्ष और पांडु का युद्ध हुआ जिसमें पांडु ने जीत पाई और जिसमें सन्धि पत्र बना कि हस्तिनापुर साकेत (अयोध्या) से कोई कर नहीं लेगा परन्तु एक दूसरे पर अगर कोई शत्रु आक्रमण करेगा तो दूसरी पार्टी पहली के लिए युद्ध करेगा।
तक्ष के पुत्र व्रहदनल हुते जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे उनको हनुमानजी ने बता दिया था कि भगवान कृष्ण कौन हैं परन्तु रघुवंशी अपने वचन से कैसे फिरें युद्ध की स्थिति में उनको हस्तिनापुर की तरफ से लडना था भले ही अपने मित्र के पुत्र पांडु पुत्र ही क्यों न आक्रांता हों। अतः वह कौरवों की तरफ से लड़ें और अन्त में अभिमन्यु के हाथों वीरगति पा गये।
इसके बाद की वंश वेल क्या है किसी ग्रन्थ में नहीं मिली।
इस तरह भगवान राम की आगे पीछे की वंशावली जो बतलाई है उसके विभिन्न ग्रंथों में प्रमाण है, इसमें कम से कम सौ से हजार पीढ़ी की कमी लग रही है जिनका नाम धार्मिक ग्रंथों में नहीं आया है परन्तु समय इतना बीत गया तो सबको याद रख पाना असम्भव है। सत्य युग के 4 लाख साल, त्रेता के तीन द्वापर के दो लाख साल मतलब 9 लाख साल में
इतने ही वंशज और भी होंगे परन्तु इतिहास में सपूत का ही नाम होता है ।
Bahut sunder lekh.koti koti sadhuwad
Aapk sabke pyaar ke liye Bahut bahut Aabhar
आज मुझे कुछ समय मिला मैंने जानना चाहा कि भगवान राम की वंशावली,, के बारे में आप से बहुत अच्छी जानकारी मिली, प्रभू राम, सहित, आपको बारंबार कोटि कोटि प्रणाम करता हूं,
Mujhe bhi bahut achchha laga Jai shree ram
Bhai.jay shree ram
Maharshi kashyap ki jay unhi ke sara vansh hain raam bhi kashyap vansh ke hi hain
Maharshi kashyap ki jay unhi ke sara vansh hain raam bhi kashyap vansh ke hi hain bhagavan ram ki jay
Jai Shree Ram Jai SiyaRam Ji Ki Jai
Is post m bhut prabhavit huaa .