द्रौपदी की कहानी, द्रोपदी के पूर्वजन्म की कथा,

Adarsh Dharm ansuni katha kahani
dropadi koun thi

जय श्रीकृष्ण मित्रो

स्वागत है आप सबका आदर्श धर्म सनातन धर्म यूट्यूब चैनल की अनसुनी पौराणिक कथा प्रसंग में। आप लोगो ने हमारे पिछले विडियोज में पंच कन्याओं में से चार कन्याओं के बारे में जाना कुछ मूर्ख अज्ञानी लोग पांच कन्याओं में कुंती, तारा, मंदोदरी अहिल्या के साथ जगत जननी माता सीता का नाम लेते है और सोशल मीडिया पर गलत जानकारी डाल करके लोगो को गुमराह कर रहे हैं। इन चार कन्याओं के साथ शास्त्रों में पांचवी कन्या के रूप में पांडवो की पत्नी द्रोपदी को स्थान दिया है।

dropadi-2

एक साधारण कन्या से कैसे बनी चिर कुमारी द्रोपदी? ek sadharan kanya se kaisey bani chir kumari dropadi?

द्रोपदी कौन थी पांच पतियों से विवाह के पश्चात भी उनको सती क्यों कहा जाता है उनका विवाह पांच पुरुष के साथ क्यों हुआ, क्या माता की आज्ञा जो उन्होंने बिना देखे बोल दी, आज्ञा वापस भी ली जा सकती थी सिर्फ यही वजह पांच पुरुषो से विवाह ki vajah नही हो सकती थी। भगवान कृष्ण वहां स्वयं उपस्थित थे तो अगर यह धर्म सम्मत बात नही थी तो भला वह कैसे होने देते।इन सभी बातों के उत्तर जानने के लिए हमें द्रोपदी के जन्म रहस्य और पूर्व जन्म रहस्य को जानना आवश्यक है।

क्या सम्बन्ध है द्रोपदी का राजा नल और उनकी पत्नी दमयन्ती से kya sambandh hai dropadi ka Raja Nal or unki patni damyanti

आप सबने भगवान श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज महाराज नल और उनकी पत्नी दमयंती के बारे में थोड़ा या बहुत कुछ न कुछ जरूर सुना होगा, वह बड़े प्रतापी दानी और अपने पूर्वजों के तरह ही वीर पराक्रमी प्रजा को पुत्र की तरह पालन करने वाले राजा थे, उनके राज्य में एक बड़े विद्वान किंतु ,दान न लेने के साथ प्रतिज्ञाबद्ध ब्राह्मण थे। इनका नाम यज्ञदत्त  चतुर्वेदी शर्मा था किसी राजा के दरबार में शास्त्रार्थ करने गए और अपनी विद्वता से वहां उपस्थित सभी विद्वानों को कुछ पलों में ही निरुत्तर कर दिया। जब परितोषिक देने की बात आई तो राजगुरु ने उनका अपमान कर दिया जिससे ब्राह्मण देव चतुर्वेदी क्रोधित हो गए और पारितोषिक लेने से मना करके दान न लेने की शपथ ले ली, इसके बाद उन्होंने ब्राह्मण कर्म पूजा पाठ के साथ खेती करने का काम भी शुरू किया जिससे तत्कालिन ब्राह्मणों ने वर्ण बदलने का आरोप लगाकर उनको समाज से बहिस्कृत कर दिया। यज्ञदत्त के एक कन्या थी किंतु दान न लेने के कारण, पारितोषिक न लेने के कारण, मुफ्त शिक्षा ,और थोड़ी खेती जिसमे इतना ही अन्न मिलता था कि बाप बेटी भरपेट भोजन भी नही कर सकते थे। अपनी लाडली बेटी को दुखी देखकर समाज से निष्कासन से दुखी यज्ञदत्त ने एक दिन आत्महत्या कर लिया।

राजा नल ब्राह्मण के घर गए तो उस विद्वान बालिका को देखकर उसकी दुख भरी घटना को सुनकर राजा ने उस लड़की को अपनी पुत्री banaakar अपने घर ले आए। किंतु unake राजगुरु ने बताया कि इस कन्या के पूर्व जन्म के पापो के कारण ही यह अत्यंत दुख उठा रही है,इसके पिता की मृत्यु का कारण भी यही कन्या है अगर आप इसको अपने घर रखते हो तो घोर विपत्तियों का सामना करना पड़ेगा। राजा नल सूर्यवंशी उन्होंने कहा जब मैं वचन दे चुका तो अब क्या सोच विचार जो भी हो नलिनी अब मेरी पुत्री है।

उसी समय संयोग वश राजा के सितारे गर्दिश में चले गए वह राज्य पाठ सब हार गए गरीबी से बुरा हाल था।राजा चाहते थे कि नलिनी का शीघ्र विवाह हो जाए तो वह वन को चले जाएं किंतु नलिनी का एक तो रंग काला था और इसके बावजूद गरीबी में रहने के कारण दिन हीन जर्जर शरीर कोई भी उससे शादी नही कर रहा था।

1600 साल शिवजी की तपस्या, कैसे बनी जनमानस के कल्याण की वज़ह 1600 saal shiv ji ki tapshya kaise bani janmanas ke kalyan ki wajah

dropadi koun thi-3

एक दिन उसके पूर्व जन्म के किसी पुण्य से उसको संसार के मित्र महर्षि विश्वामित्र मिल गए उसने अपनी आप बीती बताई तो ऋषि ने उसको शिव की तपस्या करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि विवाह सिर्फ शिव कृपा से ही होता है उनकी कृपा नही होती तब तक किसी का विवाह नहीं होता। अब नलिनी ने अखंड समाधि लगाकर शिव भक्ति में लीन तपस्या करने लगी,उधर उनके पिता राजा नल अपनी पत्नी के साथ वन वन नगर नगर अपनी पुत्री को ढूढते हुए घूमने लगे किंतु किसी को नही मालूम वह कहां विलुप्त हो गई।

इस ब्राह्मण कन्या नलिनी ने बड़ी कठिन तपस्या किया  इसने त्रेता में 1600 साल शिव की तपस्या की थी,और  इनकी आकांक्षा थी कि

 1)उनको धर्मराज के तरह का न्याय प्रिय, सत्यवादी, राजा पति रूप में मिले

2) इनका पति इतना ताकतवर हो कि पेड़, पहाड़ तक उखाड़ सके, उसके पवनदेव जितनी ताकत हो।

3)संसार का सबसे अच्छा धनुर्धर हो जिसकी तुलना स्वयं भगवान राम से हो।

4) संसार का सबसे अधिक सुंदर हो और पशु प्रेमी हो, सभी जीवो पर दया करे।

5)उनका पति दुनियां का सबसे बड़ा ज्योत्षी हो और सबसे ज्यादा सहनशील हो।सभी प्रकार की बीमारियों का चिकित्सक हो।

जब शिवजी प्रकट हुए उस समय कन्या उनको देखकर इतना डर गई कि मांगने में सिर्फ पति के अलावा कुछ बोल नहीं पाई

सबलसिंह चौहान कृत  महाभारत का दोहा है।

पति पति पति मोहि देहु पति, पति मोहि मांगे देहु। एवमस्तु जो मांगेहू, पांच पति तुम लेहू।

वह कन्या जो उस समय 1629 वर्ष की थी इस जन्म का आधा भाग जी चुकी थी इसलिए शिवभक्ति करके शेष जीवन बिताने का usake man men खयाल आया वह बोली प्रभु मैं तो सिर्फ एक विवाह हेतु आपकी तपस्या कर रही थी किंतु आपने तो मुझे कलंकित होने का अभिशाप दे दिया। अब 5 पति का क्या करूंगी प्रभु। शिवजी बोले कि तुमने जो मांगा हमने दे दिया किंतु तुमने पति पाने के लिए इतना कठोर तप किया है तो मैं आपको यह वरदान देता हूं कि आने वाले द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण धरती के भार को हल्का करने के लिए अवतार लेंगे उस समय आप एक तरूणी कन्या के रूप में अग्नि से उत्पन्न होगी,तब तक तुम अग्नि देव के संरक्षण में देवलोक में निवास करो।  भगवान कृष्ण तुमको अपनी बहन मानेंगे और उनकी अनुशंसा पर ही तुमको तुम्हारे पति मिलेंगे।

dropadi koun thi -4

 

तत्पश्चात कन्या नलिनी बोली हे प्रभु अगर मनवांछित विवाह हेतु कोई कन्या तप करती है और आप दर्शन देने में सैकड़ों वर्ष लगा देते हैं  उसकी तो उम्र ही निकल जाती है कुछ ऐसा करो कि कन्या की पुकार पर क्या जल्दी नहीं आ सकते, शिवजी बोले कि यह तुम्हारा लोक कल्याण के लिए मांगा गया वरदान है जो मैं अवश्य दूंगा इसके साथ मैं प्रसन्न हूं कि आपने इस समय भी लोक कल्याण परमार्थ के लिए सोचा अतः तुम पांच पतियों वाली होकर भी सती रहोगी, आजीवन कुंवारी कन्या रहोगी तुम्हारा नाम पंच कन्याओं में लोग प्रातः काल लेंगे तो उनके सभी बिगड़े कामों का भी रास्ता मिल जायेगा। उन्होंने कहा तुमको तप करते हुए 1600 साल हो गए आगे से अगर कोई कुंवारी कन्या मनवांछित पति प्राप्ति के लिए सिर्फ 16 सोमवार का ह्रदय से भक्ति और नियम पूर्वक हमारे लिए उपवास करेगी,और मुझे प्रसन्न करने हेतु पूरे दिन हमारे पंचाक्षरी मंत्र जो तुमने जाप किया है वही मंत्र जाप करती है और ऐसा वह 16 सोमवार करती है तो उसका मनोरथ अवश्य सफल होगा।

कुंवारी कन्याएं तभी से 16 सोमवार का व्रत करने लगीं और अपने मनोरथ सिद्ध करती आ रही हैं। इसके बाद वह तपस्विनी कन्या नलिनी अग्नि में प्रवेश कर गई और शिव कृपा से देवलोक में विराजमान हुई।

बाकी की कहानी आप महाभारत में देख चुके हैं कि कैसे वह यज्ञ के हवन कुंड की अग्नि से उनका जन्म हुआ ,कैसे उनका स्वुंबर हुआ कैसे अर्जुन ने जीता और फिर कैसे पांच पांडवों की पत्नी बनी। इसलिए इसका विस्तार न करते हुए आगे बढ़ते हैं।

द्रोपदी ऐसी एक स्त्री जो खुद अग्निजन्मा, महान उद्देश्य के लिए उन्होंने पांच लोगो के साथ विवाह किया था।

अब प्रश्न यह है कि जब उन्होंने 5 लोगो से विवाह किया फिर सती कैसे हुई?

इसका बड़ा सिंपल जवाब है और जिसने महाभारत पढ़ी है या सीरियल ध्यान से देखा है उसके लिए इसका अर्थ निकालना बड़ा सरल है।

आप को याद दिलाना चाहते हैं कि पांडवो के बीच में भगवान कृष्ण की अनुशंसा से देवऋषि नारद ने एक समझौता एग्रीमेंट कराया था जिसमे यह नियम था कि द्रोपदी एक एक वर्ष के लिए एक एक भाई की पत्नी बनकर रहेगी। जब वह युधिष्ठिर की पत्नी होगी तो बाकी सब उसके लिए देवर की तरह होंगे। जब वही सहदेव की बारी में होगी उनकी पत्नी होगी तो बाकी सारे ज्येष्ठ की तरह रहेंगे। अर्जुन की बारी में दो ज्येष्ठ दो देवर रहेंगे, अर्थात द्रोपदी एक समय में एक साल तक वह सिर्फ अपने पति की पतिव्रता वफादार पत्नी रहती थी। चूंकि उसका विवाह पांच पतियों से किया गया था माता की आज्ञा से इसलिए पत्नी पांचों की थी पर अलग अलग समय पर अलग अलग रिश्ते में रहती थी। उनके बीच समझौता भी था कि  उस समय जब एक भाई की पत्नी है तब दूसरा भाई द्रोपदी से सिर्फ दूसरे रिश्ते से ही बात कर सकता था। किंतु उसके कक्ष में नही जा सकता था।

एक बार एक ब्राह्मण की करुण पुकार पर उसकी रक्षा हेतु अपना गांडीव धनुष लेने के लिए अर्जुन गलती से द्रोपदी के कक्ष में चले गए, उस समय द्रोपदी एक दिन पूर्व अर्जुन की पत्नी थी इसलिए धनुष उनके कक्ष में रखा था, अगले दिन से वह साल भर के लिए युधिष्ठिर की पत्नी थी। नियम उल्लंघन के कारण अर्जुन को 12 वर्ष तक वनवास देश निकाला लेना पड़ा था।

द्रोपदी के पांच पतियों में प्रत्येक से एक एक पुत्र था, और वह अपने सभी पतियों की बारी बारी समय समय पर परमेश्वर की तरह ही मानती थी उनकी सेवा करती थी अतः वह शिव भक्त पूरी तरह से सती थी।

उनके द्वारा लोक कल्याण हेतु मांगे गए वरदान से उनको पंच कुंवारी कन्याओं में स्थान मिला था अस्तु जय श्रीकृष्ण।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *