pandu ki digvijay part2

महाराज पाण्डु की दिग्विजय यात्रा अंक -2

Adarsh Dharm ansuni katha kahani

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हस्तिनापुर कैसे बना सबसे समृद्ध राज्य किसने बनाया था ?

you can also watch this story on #adarsh dharm youtube channel-आप इस कथा को हमारे #आदर्शधर्म यूट्यूब चैनल पर देखकर आनंद ले सकते है! जय श्री कृष्णा  तो आज प्रस्तुत है महाराज पाण्डु की दिग्विजय यात्रा का अंक 2, आप लोगो ने पिछले अंक में देखा कि कैसे शकुनि ने अपनी एक चाल से नए नए बने राजा पाण्डु को जीवन मरण के किस खतरे में डाल दिया और विदुर कृपाचार्य, भीष्म, सत्यवती जैसे धुरंधर लोगो के होते हुए हस्तिनापुर को किस संकट में डाल दिया और सारे के सारे जानते हुए भी कुछ नहीं कर पाए। उधर महाराज पाण्डु की दिग्विजय यात्रा जारी थी अब अंग देश के बाद सभी राज्य उनके अधिकार में आते जा रहे थे उनकी जीत की खुशी बार बार हस्तिनापुर आ रही थी भीष्म और सत्यवती ,कुंती, गांधारी, धृतराष्ट्र सहित सभी खुशी मना रहे थे। वहीं शकुनि के दिल पर सांप लोट रहे थे।

जीते हुए राज्यों से पाण्डु(Pandu)ने कैसा व्यवहार किया ? क्या मथुरा के राजा कंस को लेकर पाण्डु (Pandu)का अनुमान सही साबित हुआ ?

उत्तर भारत के अधिकांश छोटे छोटे राज्य हस्तिनापुर को अपना अभिभावक मान चुके थे महाराज पाण्डु किसी के भी राज्य को हस्तिनापुर में नहीं मिला रहे थे अपितु उनसे दोस्ती, समानता और एक दूसरे का विश्वास जीतते जा रहे थे। उनका एक ही लक्ष्य था दिग्विजय पूरी करना तत्पश्चात राजसूय यज्ञ करना। पहले लक्ष्य की प्राप्ति में वह बहुत तेजी से बढ़ते जा रहे थे। अब उनकी सेना लवपुर (लाहौर), जामुन नगरी आज का जम्मू कश्मीर,और सिंधु, झेलम नदी के साथ जितने भी नगर थे वह सब हस्तिनापुर के साथ करार कर चुके थे, पाण्डु के दोस्ती भरे प्रस्ताव को स्वीकार करके हस्तिनापुर को अभिभावक अर्थात मुख्य राजा सम्राट मान चुके थे। पांडु की सेना का आकार बढ़ता जा रहा था जो राजा उनसे हारता था या दोस्ती करता था तो करार में उसकी सेना हस्तिनापुर के साथ उसके पक्ष में युद्ध करने को बाध्य होती थी, चूंकि वह दिग्विजय यात्रा पर थे अतः सेना बढ़ाना जरूरी था। अब इतनी विशाल सेना के साथ वह मथुरा की तरफ प्रस्थान कर रही थे। पांडु को लगता था कि मथुरा के राजा कंश के परम मित्र वसुदेव की बहन कुंती उनकी पत्नी है अतः कंश तो तुरंत दोस्ती का हांथ थामेगा और उनका मथुरा के साथ मैत्री सम्बन्ध के साथ सामरिक समझौता भी हो जाएगा दोनों राज्य एक दूसरे की सहायता करेगे। mujhey to mitrata karni hai

कौन थे राजा अरिमर्दन? कैसे हुए वो शकुनि के षड्यंत्र का शिकार? राजा अरिमर्दन और जींद का क्या रिश्ता है ?

किन्तु उधर शकुनि अपनी चाल पर चाल चले जा रहा था पांडु की सेना मथुरा पहुंचती इसके पूर्व आज का हरियाणा का जींद और पंजाब का संगरूर यह सारा मिलाकर एक ही राज्य हुआ करता था जिसमे आज के सोनीपत,पानीपत आदि भी आते थे! जिनके राजा अरिमर्दन जो भगवान परशुराम का शिष्य और देवव्रत भीष्म का गुरुभाई था। यद्यपि वह भीष्म का परम मित्र था और इसीलिए पाण्डु ने उस राज्य को अपना मित्र राज्य मानते हुए उसके राज्य से होकर शान्ति से निकलते हुए आगे बढ़ गए थे। उस राजा को जो उनके तात का मित्र था! पिता समान मानकर पाण्डु ने छोड़ रखा था। किन्तु शकुनि ने वहां गलतफहमी फैलाकर उसको भड़का दिया था अतः वह किसी भी कीमत पर हस्तिनापुर को सुपर पावर नहीं मानना चाहता था। शकुनि को मालूम था कि अगर  अरिमर्दन हस्तिनापुर के खिलाफ हो गया तो पांडु का यही काम तमाम हो जाएगा, अतः शकुनि ने रातो रात यात्रा करके स्वयं वहां राजा अरिमर्दन से मिलकर उसको पाण्डु के खिलाफ भड़का दिया। उसने अरिमर्दन को यह बोलकर कि भीष्म के यह कहने के बावजूद कि आप उनके मित्र हो तथापि भीष्म को घर पर रोककर पाण्डु आपके राज्य को जीतकर हस्तिनापुर में मिलाने के लिए आ रहा है। मैं आपके पास स्वयं न आकर देवव्रत भीष्म के कहने पर सावधान करने आया हूं क्योंकि पाण्डु किसी भी समय आक्रमण करके आप के राज्य को जीतने आ रहा है।

हरियाणा के एक शहर (जींद) नाम का क्या रहस्य है ?क्या आज के जींद का महाभारत काल से कोई रिश्ता है ?

अरिमरदन एक परमवीर किन्तु परम स्वाभिमानी राजा था उसने अपनी सेना को पाण्डु को रोकने के लिए आदेश दे दिया और अपने पांच राजकुमार सभी प्रमुख सेनापति के साथ स्वयं भी युद्ध के मैदान में आ डटा।  महाराज पाण्डु की सेना मध्यान्न रात्रि में उनकी राजधानी पहुंचती है और वही बार्डर पर डेरा डाल कर सुबह राजा से मिलने की योजना बना रहे थे। किन्तु उधर शकुनि ने राजा के मना करने के बावजूद जींद की सेना को रात में सोते समय ही छल से मारने के लिए आक्रमण करवा दिया जिससे रात में ही पाण्डु सेना में भगदड़ पड़ गई। काफी सैनिक अचानक हुए अधार्मिक युद्ध से मारे गए। इस तरह अचानक और सोते हुए सैनिकों को मारने का आइडिया शकुनि का था जो अरी मर्दन की स्वीकृति के बिना ही शकुनि ने आक्रमण किया था। इस सेना में कंधार की भी सेना के कुछ खास सिपहसालार शामिल थे किन्तु पाण्डु शकुनि की इस चाल को समझ नहीं पाए। पांडु ने रात में उन आत्ताई लुटेरों धोखेबाज गैंग से लड़ते हुए रात बिताई और सुबह होते ही आक्रमण कर दिया। राजा अरीमर्दन ने पांडु को कायर कहते हुए बिना सेनाओं के आमने सामने आए युद्ध करने पर दुर्बचन कहे जिससे छुबध होकर पाण्डु ने उनसे सोते हुए निर्दोष सैनिकों के वध हेतु उलाहना देते हुए अपनी तलवार उनकी तरफ चला दी जिससे राजा ने ढाल लगाकर रोकने की कोशिश की, राजा तो बच गए किन्तु ढाल फट गई। पांडु की तलवार का इतना तीव्र वार जो राजा अरीमर्दन की ढाल काट सके वह कोई मामूली योद्धा नहीं हो सकता। अब पांडु का दूसरा प्रहार होता कि राजा के पांचों पुत्रों ने चारो तरफ से राजा पाण्डु को घेर लिया और उन पर वानो की वर्षा करने लगे किन्तु पाण्डु जो एक साथ सौ तीर चलाने की कला जानते थे उनके लिए ऐसे साधारण वाण काटना कितना आसान था। इस युद्ध में जो राज्य दोस्ती से जीता जा सकता था शकुनि ने एक भयंकर युद्ध में परिवर्तित कर दिया था और आग लगाकर दूर से तमाशा देख रहा था।

क्या हुआ जब पाण्डु राजा अरिमर्दन से मिले? क्यों राजा ने पाण्डु को श्रॉप दिया?

भयंकर युद्ध के बाद पाण्डु के हांथ राजा के पांचों पुत्र वीरगति को प्राप्त हो गए, राजा अरिमर्डन और पांडु का बड़ा भयानक युद्ध हुआ दोनों के शरीर में सैकड़ों घाव हो चुके थे किन्तु कोई भी हार नहीं मान रहा था। शाम होते ही राजा ने सूर्य अस्त होने की संख ध्वनि के युद्ध रोकने की घोषणा की जिसे पाण्डु ने मान लिया और युद्ध रुक गया। दोनों पक्ष अपने अपने घायल लोगो को सुरक्षित स्थानों पर ले जाकर उनका इलाज करा रहे थे और मारे गए लोगो का अंतिम संस्कार। राजा जब अपने पांच पुत्रो की चिता तैयार कर रहे थे उस समय भीष्म के मित्र होने के कारण अपने पिता समान राजा अरीमर्डन के पास जाकर महा भावुक राजा पाण्डु काफी दुखी हुए और अपने किए हुए पर शर्मिंदा हो रहे थे उस समय एक दुखी पिता ने अपने पुत्रो का वध करने वाले राजा का अपने पुत्रो की चिता पर स्वागत करते हैं और उनकी बहादुरी की तारीफ करते हुए अगले दिन युद्ध की चुनौती भी देते हैं।  उस समय पाण्डु ने एक ही प्रश्न किया कि हे तात मतलब ताऊ आप तो हमारे तात के गुरूभाई हो फिर आपने रात को सोते हुए सैनिकों पर आक्रमण क्यों किया किन्तु राजा आरिमरदन ने जब रात में आक्रमण से मना किया तो पांडु पश्चाताप करने लगे।  इन दोनों की बातो को छिपा हुआ शकुनि का शातिर सिपाही सुन रहा था कहीं शकुनि का भेद न खुल जाए इसलिए उसने छिपकर दूर से ही राजा arimardn पर निशाना साधकर जहर लगा हुआ तीर छोड़ देता है जो राजा के शरीर में घुस जाता है और दम तोड़ते हुए राजा ने इस घात को पांडु की घात समझ कर श्राप दिया कि जिस प्रकार आज मै अपने पुत्रों को अग्नि नहीं दे पा रहा और धोखे से तुमने मुझे मारा है तो तुम्हारे अपनी कोई संतान नहीं होगी।  और यह श्राप देकर राजा अपने प्राण दे देता है। इस तरह निर्दोष पाण्डु को एक भयानक श्राप मिल जाता है। किन्तु वह अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटे। चूंकि राजा के सभी पुत्र और राजा मारे गए थे अतः कोई वारिश न होने के कारण उस राज्य को हस्तिनापुर में मिलाया गया। जिस जगह पर युद्ध हुआ था और पांडु ने जीता था उसका नाम ही आज का जींद है जो आज हरियाणा का एक प्रमुख शहर है। शकुनि के बहुत सारे आदमी पाण्डु की सेना में छिपे हुए थे और रात का आक्रमण ,राजा अरिमार्डन को धोखे से मारने का काम शकुनि कम्पनी का ही था।

क्या पाण्डु राजा अरिमर्दन पर बाण चलाने वाले को पकड़ पाए? कैसे बढ़ी हस्तिनापुर राज्य की संवृद्धि?

पांडु बहुत दुखी थे कि एक निर्दोष राजा पर उनके ही सिपाही ने छिपकर तीर क्यों चलाया, अतः वह अपनी सेना में शामिल सभी राज्यों के सैनिकों से पूछताछ कर रहे थे परन्तु उनका गुप्तचर विभाग इस बात को पता लगाने में अक्षम रहा और मजबूरन उनको अपना कांरवा आगे बढ़ाना पड़ा। अब प्रश्न ; जब भीष्म और विदुर के पास साक्ष्य सबूत थे और धृतराष्ट्र के न मानने पर उनके पास राजमाता सत्यवती के रूप में सुप्रीकोर्ट था जिसका निर्णय अंतिम था फिर उन्होंने शकुनि की करतूतें उनके समक्ष क्यों नहीं रखी? तो इसका जवाब यह है कि भीष्म को पांडु पर विश्वास था कि वह कोई गलत निर्णय नहीं लेगे और इस मामले को उन्ही के समक्ष रखा जाएगा। तो इस तरह महाराज पाण्डु की वीरता शौर्य से हस्तिनापुर में इतनी उपजाऊ जमीन वाले क्षेत्र मिल जाने से हस्तिनापुर सबसे समृद्ध राज्य बन गया था। उधर हस्तिनापुर जो मेरठ से लेकर बागपत गाजियाबाद दिल्ली तक एक समृद्ध किन्तु कम क्षेत्रफल का राज्य था इस राज्य के मिल जाने से इधर का पूरा हरियाणा और आधा पंजाब संगरूर का इलाका हस्तिनापुर में आ गया था और यह पूरा क्षेत्र खेती के लिए सबसे उपजाऊ जमीन वाला क्षेत्र था अतः सत्यवती सहित सभी लोग पाण्डु की जय जय कार कर रहे थे किन्तु मित्र वध और वह भी धोखे से मारे जाने के कारण भीष्म अत्यंत दुखी थे, हस्तिनापुर सिंहासन के प्रति उनकी शपथ ने उनको मजबूर कर रखा था वरना प्रिय मित्र वध के कारण वह पाण्डु को अवश्य दंडित करते। 

जब शकुनि के षड्यंत्र के बारे में विदुर ने धतराष्ट्र से कहा तो क्या हुआ?

skuni accha hai भीष्म के दिमाग में यह नहीं आया कि पांडु तो उनके ही शिष्य हैं वह ऐसा जघन्य कार्य कैसे कर सकते थे,परन्तु विदुर ने इस बात जा संज्ञान लिया और शकुनि की चाल का पता कर लिया, और शकुनि की शिकायत कार्य वाहक राजा धृतराष्ट्र से की गई, किन्तु उसने विदुर के इस प्रस्ताव कि शकुनि को देश से निकाला जाए को ठुकरा दिया और यह कहकर कि शकुनि मेरे लिए यहां है वह गांधारी की सेवा के लिए है उसका कोई अपराध हो ही नहीं सकता क्योंकि वह तो आठो पहर मेरे साथ रहता है। भीष्म ने इस मामले को फिलहाल राजा पाण्डु के वापस आने तक स्थगित करने का प्रस्ताव किया और शकुनि बच गया। भीष्म चाहते तो यह मामला राजमाता सत्यवती के द्वारा निबटा सकते थे और शकुनि नामक तेजाब को देश से बाहर कर सकते थे किन्तु यहीं उनकी सबसे बड़ी भूल हुई जो भरत वंश के लिए घातक सिद्ध हुई।  पांडु बहुत दुखी थे कि एक निर्दोष राजा पर उनके ही सिपाही ने छिपकर तीर क्यों चलाया, अतः वह अपनी सेना में शामिल सभी राज्यों के सैनिकों से पूछताछ कर रहे थे परन्तु उनका गुप्तचर विभाग इस बात को पता लगाने में अक्षम रहा और मजबूरन उनको अपना कांरवा आगे बढ़ाना पड़ा। अब प्रश्न ; जब भीष्म और विदुर के पास साक्ष्य सबूत थे और धृतराष्ट्र के न मानने पर उनके पास राजमाता सत्यवती के रूप में सुप्रीकोर्ट था जिसका निर्णय अंतिम था फिर उन्होंने शकुनि की करतूतें उनके समक्ष क्यों नहीं रखी? तो इसका जवाब यह है कि भीष्म को पांडु पर विश्वास था कि वह कोई गलत निर्णय नहीं लेगे और इस मामले को उन्ही के समक्ष रखा जाएगा। तो इस तरह महाराज पाण्डु की वीरता शौर्य से हस्तिनापुर में इतनी उपजाऊ जमीन वाले क्षेत्र मिल जाने से हस्तिनापुर सबसे समृद्ध राज्य बन गया था। उधर हस्तिनापुर जो मेरठ से लेकर बागपत गाजियाबाद दिल्ली तक एक समृद्ध किन्तु कम क्षेत्रफल का राज्य था इस राज्य के मिल जाने से इधर का पूरा हरियाणा और आधा पंजाब संगरूर का इलाका हस्तिनापुर में आ गया था और यह पूरा क्षेत्र खेती के लिए सबसे उपजाऊ जमीन वाला क्षेत्र था अतः सत्यवती सहित सभी लोग पाण्डु की जय जय कार कर रहे थे किन्तु मित्र वध और वह भी धोखे से मारे जाने के कारण भीष्म अत्यंत दुखी थे, हस्तिनापुर सिंहासन के प्रति उनकी शपथ ने उनको मजबूर कर रखा था वरना प्रिय मित्र वध के कारण वह पाण्डु को अवश्य दंडित करते।  भीष्म के दिमाग में यह नहीं आया कि पांडु तो उनके ही शिष्य हैं वह ऐसा जघन्य कार्य कैसे कर सकते थे,परन्तु विदुर ने इस बात जा संज्ञान लिया और शकुनि की चाल का पता कर लिया, और शकुनि की शिकायत कार्य वाहक राजा धृतराष्ट्र से की गई, किन्तु उसने विदुर के इस प्रस्ताव कि शकुनि को देश से निकाला जाए को ठुकरा दिया और यह कहकर कि शकुनि मेरे लिए यहां है वह गांधारी की सेवा के लिए है उसका कोई अपराध हो ही नहीं सकता क्योंकि वह तो आठो पहर मेरे साथ रहता है। भीष्म ने इस मामले को फिलहाल राजा पाण्डु के वापस आने तक स्थगित करने का प्रस्ताव किया और शकुनि बच गया। भीष्म चाहते तो यह मामला राजमाता सत्यवती के द्वारा निबटा सकते थे और शकुनि नामक तेजाब को देश से बाहर कर सकते थे किन्तु यहीं उनकी सबसे बड़ी भूल हुई जो भरत वंश के लिए घातक सिद्ध हुई।   जय श्रीकृष्ण दोस्तो.
panditji
pandit vijay kumar awasthi

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