स्वयंवर में जिसने स्वयंवर को पाया। यही वर मिला था, उसी वर को पाया।। कौन थी सती जिसने, अपने पति को, अपने पति को, गोद में खिलाया। स्वयंवर में जिसने,स्वयंवर को पाया।
जय श्रीकृष्ण मित्रो
स्वागत है आप सब का आदर्श धर्म सनातन धर्म के प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में। आज का प्रश्न लिया है श्रीमान रूप किशोर जी का उन्होंने प्रश्न किया है जो संयोग से मेरे साथियों के साथ अभिनीत रामलीला मंचन मे दिन में राम लीला मंचन होती थी रात में धार्मिक नाटक हुआ करते थे। उन नाटकों के ज्यादातर डायलाग गीत आदि लिखने का काम मेरा ही होता था। रूपकिशोर जी की लाइन हुबहू हमारे एक गाने से मिलती जुलती हैं और उनकी पहली का प्रसंग भी ठीक वही है जहां के लिए हमने यह गाना लिखा था। यह गाना मंचन कराने वाले उदघोषक को गाना था,अर्थात मैने स्वयं ही गाया था।
स्वयंवर में स्वंयवर को पाया। वह कौन सी सती पुजारिन थी जिसने अपने पति को गोद में खिलाया था?
आपके प्रश्न का शब्दार्थ
स्वंयवर = यहां पहले स्वयंवर का मतलब एक उत्सव जो राजा लोग अपनी राजकुमारी को यह अधिकार देते थे कि राजकुमारी बुलाए गए राजा राजकुमारों में से जिसको चाहे तो अपने वर पति को चुन सकती थी। कभी कभी वहां प्रतियोगिता भी रखी जाती थी, जैसे सीता माता, और द्रोपदी के स्वयंवर में थी, किंतु शर्त पूरी करने के बाद भी या शर्त एक से अधिक लोगो द्वारा पूरी करने के बाद भी राजकुमारी का स्वयं वर चुनने का अधिकार सुरक्षित होता था, वह कारण बताकर मना कर सकती थी जैसे कर्ण के लिए द्रोपदी ने मना कर दिया था।
दुबारा स्वयंवर शब्द आया= यहां पर इसका शब्दार्थ है स्वयं का वर, अर्थात अपना ही वर अपना ही पति।
पाया= मिला
आगे सिंपल शब्द ही हैं कि वह कौन सी पतिव्रता सती नारी थी जिसने अपने ही पति को जब वह बच्चा रहा था उसको अपनी गोद में खिलाया था, अर्थात खुद इतनी बड़ी थी कि उसने अपने पति का बचपन देखा था।
संदर्भ: आपके प्रश्न का अर्थ समझाने के लिए रामायण और कृष्णायन दोनो के ही संदर्भ लेने पड़ेंगे।
सबसे पहले रामायण से आप लोगो ने श्रीरामचरित मानस के बाल काण्ड में भगवान शिव और सती की कथा सुनी है कि कैसे माता सती भगवान राम के परमब्रह्म परमात्मा होने पर संदेह करती हैं और उनकी परीक्षा लेने के लिए माता सीता का रूप बनाती है जिससे भगवान शिव उनको माता का स्थान दे देते हैं। इसके लिए हमारे वीडियो आओ मानस पढ़ना सीखे के लिंक दिए जा रहे हैं इसके साथ एक दर्शक के प्रश्न नहि मानी स्वामी की बाता में भी समझाया गया है। तत्पश्चात माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञकुंड में आत्मदाह कर लेती हैं जिससे भगवान शिव अखंड समाधि में चले जाते हैं। उधर माता का पुनर्जन्म होता है पार्वती के रूप में और वह भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिए तपस्या करती हैं।
उधर तारकासुर से प्रताड़ित देवता शिवजी को जगाने के लिए कामदेव को भेजते हैं, यद्यपि वह जानता था कि शिव के सामने जाने का मतलब मृत्यु है फिर भी देव काज के लिए उसने फूलो के वाण का प्रयोग शिवजी पर किया जिससे उनकी समाधि टूट गई और उन्होंने जब सामने कामदेव को देखा तो उन्होंने क्रोध में अपना तीसरा नेत्र खोल दिया जिससे कामदेव जलकर भस्म हो गया। यह देख उसकी पत्नी रति ने शिवजी की वंदना किया और दुखी होकर याचना की
जोगी अकंटक भए पति गति सुनत रति मूर्छित भई।
रोदति बदति बहु भांति करुणा करति शंकर पहि गई।
अति प्रेम करि बिनती विविध विधि जोरि कर सम्मुख रही।
प्रभु आशुतोष कृपाल शिव अबला निरखि बोले सही।
अब ते रति तव नाथ कर होइही नाम अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनू निज मिलन प्रसंगु।
जब यदुवंश कृष्ण अवतारा। होइहि हरण महा महिभारा।
कृष्ण तनय होईहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होय न मोरा।
रति गवनी सुनि शंकर बानी। कथा अपर अब कहहु बखानी।
तो उस समय से लाखो साल से इंतजार कर रही देवी रति जब कृष्ण अवतार हो जाता है तो शिव पार्वती के पास जाती है और पूछती है कि हे प्रभु आपने हमे वर दिया था कि कृष्ण के अवतार के बाद उनके पुत्र के रूप में मुझे मेरे पति शरीर के साथ मिलेंगे। प्रभु मुझे क्या करना है क्या मैं अपना शरीर त्याग कर मथुरा में रहूं या द्वारका, कहां पर मेरे पति मिलेंगे।
प्रभु शंकर उनको बताते हैं कि आपको अभी शंभरासुर नामक दैत्य के यहां रहना होगा वही आपके पति स्वत: आ जायेंगे, आप को अपनी दैवीय शक्ति को छिपा कर मानवी की तरह रहना होगा। तब रति एक मछुवारे के घर जहां शिवजी ने बताया था वहां जाती है और मानवी के रूप में अपने पति के खो जाने की बात बताती है और मछुवारा उसको अपनी बहन मानकर अपने घर पर आश्रय देता है। मछुवारे की पत्नी मायावती जो स्वयं मायासुर की प्रपौत्री थी, ईश्वर की माया से वह अपनी याददाश्त खो चुकी थी और समुद्र के किनारे मछुवारे को मिली थी उसको घर ले आया था,लोगो के कहने पर उसने मायावती के साथ विवाह किया था, किंतु दोनो को कोई संतान नहीं हुई थी।
मायावती के घर पर रति एक मानवी की तरह उसके पति की बहन की हैसियत से रहती थी आर्थिक तंगी के कारण वह राजमहल में शंभरा सुर की बेटी की दासी का भी काम करती थी। धीरे धीरे शभरसुर की बेटी उसको अपनी सहेली मानने लगी थी। उधर कृष्ण और रुक्मणि के घर पुत्र रूप में कामदेव ने जन्म लिया उनका नाम प्रदुम्मन रखा गया। आप सबको मैं पहले भी बता चुका हूं देवऋषि नारद जी का क्या काम है।
ब्रह्मा का मैं पुत्र हूं नारद मेरा नाम
इधर उधर के झगड़े लगाना यही हमारा काम। बोलो नारायण नारायण
पहुंच गए शंभराशुर के पास और बता दिया कि पिछली बार आया था तब मैने तुमको बताया था कि तुम्हारी मृत्यु सिर्फ कृष्ण और रुक्मणि के प्रथम पुत्र के हांथ हो सकती है, अब आपको सूचित करने आया हूं कि वह जन्म ले चुका है।आगे क्या करना है तुम जानो मैं तो चला नारायण नारायण।
शंभरासुर द्वारका जाकर माया से सबको सुलाकर कृष्ण पुत्र को चुरा लाता है और समुद्र में फेंक देता है जिसको भगवान की माया से एक मछली निगल लेती है जिसको उसी दिन मछवारा पकड़ लेता है घर आकर जब उसका पेट काट कर देखता है कि उसके अंदर सुंदर श्याम वर्ण देखने में बिल्कुल श्रीकृष्ण जिंदा खेलता हुआ मिलता है। उसको मायावती के चूंकि कोई संतान नहीं थी उसको पालने लगती है। उसी बीच नारद ऋषि आते हैं रति को उसके पति के बारे में बताते हैं कि यही आपके पति देव हैं,मायावती को उसकी याददाश्त कराते हैं कि आप तो आसुरी माया के सबसे बड़े कलाकार मायासुर की प्रपौत्री हो,आपके पिता से माया सीखने के बाद यह माया किसी और को न पता चले इसलिए शभरासुर ने उनकी धोखे से हत्या कर दी थी,आप इस बालक को अपनी आसुरी माया और यह देव लोक से आई देवी रति देव माया के मिश्रित युगल माया से इस बालक को समय से पूर्व बड़ा करना होगा क्योंकि यह शंभरा सुर देवलोक पर आक्रमण करने वाला है उसके पूर्व इस बालक के द्वारा इसका वध होना निश्चित है आप लोग तो माध्यम मात्र हो,आप जिनकी पूजा करती हो यह उन्ही भगवान कृष्ण का अंश उनका पुत्र है इसका नाम प्रदुम्मन है और यह सब बताने के लिए मुझे कृष्ण ने ही भेजा है। यह कन्या जो आपके साथ आपकी ननद है यही इस बालक की पत्नी बनेगी,इसके पूर्व आप दोनो इस विद्या से इसको समय से पूर्व तरुण कीजिए।
इसके बाद मायावती ने अपनी सम्पूर्ण आसुरी माया और देवी रति ने दैवीय माया से प्रदुम्न को कुछ माह में ही जवान कर दिया और उसके बाद मायावती ने एक गुरु एक माता की तरह उसको सभी अस्त्र शस्त्र,शास्त्र भी सिखाए, दैवीय शक्तियां स्वयं देवताओं ने दी,इसके बाद प्रदुम्न ने युद्ध में सांभरासुर का सेना, पुत्रो समेत वध कर दिया था।
अब आते हैं आपके प्रसंग पर, देवी रति मछुवारे को अपना भाई मानती थी इसलिए उसके घर पर रहते हुए अपने पति मतलब कामदेव या प्रदम्मन को गोदी खिलाती थी जब वह बालक थे ।
वह राजमहल में दासी के रूप में गई थी किंतु राजकुमारी की सखी बन गई थी इसलिए ज्यादातर राजकुमारी उसको अपने साथ ही रखती थी।
प्रद्युमन जब रसायन विद्या से मायावती द्वारा समय से पूर्व तरुण हो गए और उधर शभरासुर की पुत्री का स्वंबर हो रहा था वही जाकर वह शंभरा सुर को युद्ध के लिए ललकारते हैं और अपना परिचय देते हैं कि मैं वासुदेव श्रीकृष्ण का पुत्र प्रद्यमुन हूं जिसको तूने समुद्र में फेंक दिया था आज तुझे युद्ध की चुनौती देता हूं, उस समय असुर उनको धोखे से कैद करता है जब रति राजकुमारी के द्वारा उनको मुक्त करती है और तब प्रद्युम्न ने रति को पहचान लिया और पत्नी भाव से उनसे बात की थी। इसीलिए कहा गया कि स्बयमवर में रति को स्वयं का वर मिला। अर्थात राजकुमारी के स्वयंवर में उनको प्रद्युम्न ने पत्नी भाव से पहचाना।
दूसरी बात अपने पति को गोद में वह पहले खिला चुकी थी।
यहां कुछ विधर्मियो ने चेंज किया है वह प्रद्युम्न की माता, गुरु, मायावती को रति बताकर वेद में बताए गए दो रिश्ते, मात्र देवो भव, आचार्य देवो भव का निरादर कर रहे हैं उनको विभिन्न पीडिया पर डालने से पूर्व शास्त्र अध्ययन करने की जरूरत है। मुझे मालूम है कि वह तथाकथित लोग जिनकी रोजी रोटी सनातन की झूठी खामियां दिखाकर पैसे बनाना है वह लोग मुझे गाली अवश्य बकेगे किंतु क्या करें पंडितजी को सत्य बोलने की आदत जो है। उम्मीद करते है कि आपके प्रश्न का सही उत्तर मिल गया होगा अस्तु जय श्रीकृष्ण।