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महारानी मंदोदरी (Mandodari) और महारानी तारा (Tara) जो पंच कन्याओं में से है उनके जन्म रहस्य कथा
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Mandodari aur Bali ka vivah story . what was relation between Bali and Mandodari. what was the relation between Tara and Sugreev ? Tara kiski Patni thi.
दोस्तो,आप सबने पंच कन्याओं के बारे में सुना होगा। यह वास्तव मे पूर्व जन्म के श्राप के कारण और फिर वरदान के कारण इन देवियों को श्राप भी झेलने पड़े और ताउम्र चिर कुमारी होने का आशीर्वाद भी मिला।
इन कन्याओं के बारे में सुनोगे तो यह पूछने कि जिज्ञासा अवश्य होगी कि जब इन देवियों का विवाह हुआ , पुनर्विवाह हुआ बच्चे भी हुए फिर भी इनको कुमारी कन्या vergin girl कहते है क्यों? ऐसा कैसे संभव है ?
आइए जानते है महारानी मंदोदरी को, और महारानी तारा को जिनको पांच कन्याओं में गिना जाता है । आखिर यह कौन थी , किसके साथ उनका विवाह हुआ था ? इनके प्रथम पुत्र का क्या नाम था ? क्या इनका पुनर्विवाह हुआ था ? जानते है इस अंक में उम्मीद करते है कि आप लोगो को अच्छा लगेगा ।
अब चूंकि प्रसंग बड़ा है अतः इस प्रसंग को अधिक जानकारी के लिए 3 भागों में विभक्त करते है।
1-महारानी मंदोदरी (Mandodari) और महारानी तारा (Tara)के जन्म की कथा:
मंदोदरी और तारा दोनों ही स्वर्ग की अप्सरा थी जिनको राम नाम भक्ति में लीन भगवान शंकर की समाधि तोड़ने के लिए तत्कालीन इन्द्र (देवताओं के राजा ) ने भेजा था क्योंकि उस समय अंधकासुर नामक दैत्य जो भगवान शंकर का ही भक्त था ने त्रिलोक में त्राहि त्राहि मचा रखा था। आप सबको मालूम है कि भगवान शंकर अजर अमर है पंरतु माता रानी बार बार शरीर त्याग कर नया शरीर लेती है और वरदान के कारण शिवजी से ही उनका विवाह होता है।
उस समय माता गौरा देवी , ललिता देवी के रूप में शिवजी की अर्धागीनी थी। जब अप्सरा अपना नृत्य गायन करके कैलाश पर भोलेनाथ की तपस्या भंग करने की कोशिश कर रही थी उस समय माता ललिता स्वयं नैमिशारण्य के पवित्र जंगल में ओम नमः शिवाय पंचाक्षर मंत्र जाप करते हुए एक वर्ष से तपस्या कर रही थी।
मृदंग और घुघरू की आवाज पति को नहीं सुनाई पड़ी परन्तु पत्नी के कानों तक आ गई जिससे माता की तपस्या खंडित हो गई जिससे माता कैलाश पर जाकर क्रोधित होकर उन अप्सराओ को हमेशा के लिए स्वर्ग से निष्काशित होकर एक को मेढ़की हो जाने का श्राप दे देती है। तथा बोली कि जैसे स्वांग किए है तो तेरा पति वानर होगा, तूने जैसे बेशर्मी की है मेरे पति के सामने तेरा पति राक्षस हो।
माता के श्राप का काट सिर्फ माता के पास ही है, अप्सरा मज़बूरी दासता बताकर माता से त्राहिमाम करती है तो माता प्रसन्न होकर उनको श्राप मुक्ति बाद राजरानी होने का आशीर्वाद देती है और अप्सरा को चिरकाल तक सुख भोगने का आशीर्वाद देती है। दोनों को चिर कुमारी होने का आशीर्वाद भी देती है।
वहीं दूसरी अप्सरा जो सिर्फ नाच रही थी तथा कई तरह के स्वांग कर रही थी उसको समुद्र की कछुई हो जा और जैसे स्वांग बनाकर मेरे पति के सामने दिखा रही थी, तू जब भी शाप मुक्त होगी तो तू पूछ वाले वानरो की पत्नी बनेगी।
अतः मंदोदरी(Mandodari)- मेढ़की(Mendhaki) बनी और तारा(Tara)- कछुई(Kacchui) बनी
अतः जो दूसरी अप्सरा समुद्र में कछुई बनी वह तारन हार भगवान विष्ण को छूकर (जो उस समय कछुए के रूप में मंद्र!चल पर्वत की धुरी बने थे ) शाप मुक्त होकर स्त्री रूप में आ गई और समुद्र से बाहर निकल कर भगवान विष्णु की अनुशंसा से महाबली महात्मा बाली के छोटे भाई सुग्रीव से विवाह हुआ और इनका नाम तारा पड़ा। कालांतर में श्राप वश इनको बाली की पत्नी बनकर भी रहना पड़ा और सुग्रीव की पत्नी तो थी ही। इस तरह चिर कुमारी तारा का कछुय्यी योनि से उद्धार हुआ और सूर्य पुत्र सुग्रीव से विवाह हुआ। रामायण सीरियल में रोमा नामक सुग्रीव पत्नी का किसी भी रामायण किसी भी ग्रंथ में कोई जिक्र नहीं है।
अब दूसरी अप्सरा जिसने एक मेढ़की बनकर जन्म लिया उस की बात सुनो।
महर्षि सौंनक के पिता महर्षि सुनक उर्फ क्रेत जो ब्रह्माजी की मस्तिष्क से पैदा सात रिषियो में से एक है। एक बार वह प्रभु उपासना सुबह की संध्या वंदन कर रहे थे इसके पूर्व उन्होंने दूध को एक कड़ाही में गरम करने हेतु रखा था। दूध खौल रहा था ऋषि पूजा में व्यस्त थे और उसी समय एक चील एक अत्यंत जहरीले सर्प को पंजे से पकड़कर ले जा रही थी और सर्प फिसलने की कोशिश में सफल हो गया और पंजे की पकड़ से छूट गया परन्तु उसकी मौत निश्चित थी इसलिए वह खौलते हुए दूध में गिर गया और उसी में मर गया सारा दूध भी विषैला हो गया।
यह दृश्य एक मेढ़की देख रही थी उसने अपने मन में निश्चय किया कि परोपकारी महान ऋषि को हर हालत मे बचाना है अतः उसने अपने प्राण दान का निश्चय कर लिया और उछल कूद करके दूध के कढ़ाही के पास पहुंच गई और ऋषि के आने का इंतजार करने लगी ।
ऋषि पूजा के बाद आकर सुबह के नाश्ते में दूध पीते थे अतः वह लोटे में दूध भरने को जैसे ही तैयार हुए मेढ़की उसी समय छलांग लगाकर दूध में कूद पड़ी और बेचारे के छोटे से शरीर का दूध में कीमा बन गया और वह मर गयी।ऋषि को बहुत गुस्सा आया उन्होंने हांथ में जल लेकर जैसे ही श्राप देने को क्रोध किया कि उनकी नजर कढ़ाई में काले सर्प पर पड़ी उन्होंने तुरंत दूध फेंककर मेढ़की के शरीर को निकाला धोया और प्यार करने लगे रुदन करने लगे। रुदन में उनके मुंह से मंद- उधौ – धरी निकल रहा था जिसका मतलब मेरे लिए उस नन्हे जीव ने प्राण दे दिए और विलाप करते हुए अपने तप बल को याद किया और बोले।
हे भगवान हे जगन्नाथ से नारायण अगर मेरे पूजा कर्म धर्म के पुण्य में कोई ताकत है शक्ति है तो यह जीव अभी एक सुंदर कन्या बन जाए और मेरी पुत्री कहीं जाए। उनके इतना कहते ही वह मेढ़की एक सुंदर जीवित कन्या बन गई। संख ध्वनि के साथ ब्रह्मा जी प्रकट हुए और बोले हे पुत्र तुमने आज अपने पिता अर्थात मुझसे अलग श्रृष्टि बना दी इस कन्या को किसी देवता दानव या किसी मनुष्य के रज बीज के बिना उत्पन्न किया इसलिए आज से आपका नाम क्रेत होगा। आपके रुदन में निकले शब्दों को जोड़कर इस कन्या का नाम मंदोदरी करते है। ब्रह्मा बोले हे पुत्र मय दानव पुत्री प्राप्ति के लिए मेरी तपस्या कर रहा है अतः यह कन्या उसको पालक पिता के रूप में दे देना ताकि आपके कर्म जो वेद की संरचना में रुकावट न हो ।
कुछ समय बाद वहां मयदानव और वानरों के राजा बाली आते है दोनों ही कन्या देखकर अपने मन की इक्षा ऋषि क्रेत को बताते है ।
मयदानव को उस कन्या में पुत्री दिख रही थी बाली को पत्नी दिख रही थी। ऋषि ने दोनों की बात रखी। उस नौ वर्षीय कन्या को पुत्री के रूप में मय दानव को दिया और वहीं बाली से पाणिग्रहण कराया कन्या दान मयदानव ने किया और ऋषि ने खुद मंत्र पढ़े।
यहां समाज के लिए एक नया नियम प्रतिपादित हुआ जिसे वेद में लिखा गया और वह ऋषि क्रेत ने ही इस बात को वेद में लिखा और नियम प्रतिपादन किया कि दान कन्या का होना चाहिए पर कन्या ससुराल गौने में जाएगी गौना कन्या के रजस्वला होने के उपरांत जब वह स्त्री बन जाए तब होगा। तो मंदोदरी विवाह के बाद पिता मयदानव के पास गई रजस्वला होने के बाद गौना हुआ फिर किस्किंधा आई ।
यह है शास्त्र वर्णित मंदोदरी और तारा की जन्म की कथा। जय श्रीराम
मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वाश है कि आप सब लोग मेरे इस विचार से सहमत अवश्य होगे कि धर्म कर्म कर्तव्यो की आज की स्थिति देखते हुए इस विषय पर हम सब लोगो को एक गहन विचार,परिचर्चा, आलोचना, सलाह और सुधार की जरूरत है। अतः आप सभी के सपोर्टिव कमेंट्स और आलोचनाओं का मै दिल की गहाईयों से स्वागत करूंगा।
लेखक : पंडित विजय कुमार अवस्थी