Mandodari haran angad janam

मंदोदरी हरण -अंगद जन्म- कैसे बनी मंदोदरी रावण की पत्नी?

Adarsh Dharm ansuni katha kahani

मंदोदरी और महारानी तारा के जन्म और उनके विवाह के रहस्य जाने। इस अंक में यह जानते है कि जब मंदोदरी का विवाह किष्किंधा के राजा महात्मा बाली से हो गया फिर वह लंका के राजा रावण की पत्नी कैसे बनी।

आगे की कथा यह है

बाली की वरदानी शक्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती थी इसका प्रमुख कारण उसकी तपस्या और पूजा पाठ ही था। वह सुबह शाम ऋषियों की तरह संध्या वंदन किए बिना अपना दिन या रात शुरू नहीं करता था, जब किसी शत्रु का वध करता था उसके बाद उसके पाप निवारण के लिए तपस्या अवश्य करता था।

 एक बार की बात है! महाराज बाली तपस्या कर रहे थे! उधर ब्रह्मा और शिव के वरदान पाने के बाद मदांध रावण तीनों लोको में युद्ध छल बल से किसी न किसी प्रकार सबको हराता  हुआ ! धीरे धीरे पुरे पाताल, आकाश अंतरिक्ष को जीत चुका था! अब वह पृथ्वी के समस्त राजाओं से बारी बारी युद्ध करके अपने आधीन कर रहा था। इसी उद्देश्य से वह किष्किंधा आया और बाली से युद्ध की मांग की ! परंतु बाली उस समय तपस्या में बैठे थे !

रावण बार बार उनके ध्यान को भंग करने की कोशिश कर रहा था ! जिससे क्रोधित होकर बाली ने रावण को पकड़कर अपनी बगल में दबाकर ६ महीने तक तपस्या करता रहा ! रावण कुछ नहीं कर पाया चुपचाप दबा रहा , ६ महीने बाद तपस्या ख़तम करके फिर उसने रावण से पूछ लिया!  कि अब बताओ युद्ध मांग रहे थे चले मैदान में। परन्तु रावण ने तुरंत हार मान ली ! परन्तु मन में दुश्मनी की गांठ बांध ली और मौके की तलाश में रहने लगा।

अगले वर्ष फिर बाली पहले की भांति अपने प्रिय भ्राता सुग्रीव को कार्यवाहक राजा बनाकर ! तपस्या करने लगा, भ्रात प्रेमवश सुग्रीव भी ज्यादातर समय भाई के आसपास ही गुजारता था ! अतः अपने गुप्तचरों से सूचना पाकर रावण किष्किंधा  में ऋषि के वेश में आता है और वाली की आज्ञा थी कि उसके राज्य में किसी भी ऋषि की आज्ञा को ईश्वर की आज्ञा मानकर उनकी सेवा करे।

दूत से ऋषि आगमन सुन महारानी मंदोदरी अपनी देवरानी तारा के साथ आकर ऋषियों को भोजन सेवा के लिए खुद आ गई ! मौका पाकर रावण ने दोनों को पकड़कर अपने विमान में डालकर उनका हरन करके लंका की तरफ चल देता है। मंदोदरी और तारा दोनों ही उस समय गर्भवती थी और संतान को जन्म देने वाली थी। 

मंदोदरी ने रावण से कैसे की अपनी देवरानी तारा की रक्षा

मंदोदरी बहुत बुद्धिमान स्त्री थी उसने सबसे पहले देवरानी तारा को बचाने के लिए एक युक्ति सोची और रावण से बोली। हे राक्षस राज आपकी बड़ी प्रशंसा सुनी थी कि आप बड़े बलवान है वरदानी है तो जब हमारे पति घर पर उपस्थित थे आप युद्ध से जीतकर मुझे ले जाते तो वीरता थी पर यह चोरी और कायरता है।

रावण बोला कि आपकी सुंदरता मैंने दैत्यों के मुंह से सुनी थी देखने की इकक्षा हुई आज देखा तो रोक नहीं पाया। बालीको वरदान है उसके सामने कोई भी जीत नहीं सकता इसलिए छल करना पड़ा और छल बल भी युद्ध नीति का अस्त्र है।

 मंदोदरी ने पूछा कि अगर तपस्या से लौटने के बाद बाली तुमको तुमको और तुम्हारे परिवार प्रजा सैनिक सेना पर आक्रमण करके तुमको मार डालेगा तो क्या करोगे, दोनों राज्यों के कितने ही निर्दोष लोग मारे जायेगे क्या इसकी तुमको कोई चिंता नहीं है या भय नहीं है , कौन बचाएगा, रावण बोला कि तुम जैसी सुंदरी अगर कुछ माह के लिए मेरी पत्नी रहे फिर मृत्यु भी हो जाए तो कोई बात नहीं। मै तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। 

मंदोदरी ने बोला कि अगर बीच का रास्ता निकाला जाए तो दोनों राज्यो के निर्दोष सैनिक मरने से बच सकते है ! तुम और बाली दोनों बच सकते हो। रावण बोला मै तैयार हूं। मंदोदरी ने कहा कि मै तुम्हारे साथ चलूंगी पर मेरी देवरानी तारा को किसकिंधा में छोड़ना होगा।

रावण ने मान लिया और तारा को पुनः किसकिनधा में वापस करने चल पड़ा और तारा को महल की छत पर उतार दिया।

कैसे हुआ अंगद का जन्म ? क्यों रखा उसका नाम अंगद?

वह फिर मंदोदरी को लेकर चलता है तो मंदोदरी कहती है कि मैंने सुना कि आपकी गर्जना इतनी भयानक है कि जिसको सुनकर महिलाओं के साथ पशुओं के भी गर्भ गिर जाते है ! उसने कहा यह सच है। तो मंदोदरी बोली कि मै वह गर्जना सुनना चाहती हूं! रावण ने बड़ा अट्टहास किया जिससे पूरे ब्रह्मांड में आवाज गूंज गई इतनी भयंकर आवाज से रानी मंदोदरी के गर्भ का भी स्राव ही गया और उनका पुत्र समय से पहले ही पैदा हो गया।

यह मंदोदरी का दूसरा त्याग था और आतताई से अपने और बालीपुत्र की रक्षा करने का बुद्धिमानी पूर्ण फैसला था। अब मंदोदरी ने पुनः प्रार्थना की कि इस बच्चे को तारा के पास छोड़ दो ताकि इसका पालन पोषण हो इस निर्दोष को आप जिसका है उसी को देकर मानवता का परिचय दो।

रावण ने पुन: विमान वापस किया और मंदोदरी को महल के छत पर उतारकर बच्चे को तारा को सौंपने की छूट दी। मंदोदरी ने अपना बालक तारा को देकर बोला कि आज मैं अपना अंग आपको अपना बेटा दान कर रही हूं आज से तुम ही इसकी माता होगी।

पुत्र माता के शरीर का अंग होता है अतः इसका नाम अंगद है। अब मुझे अपने राज्य, तुमको और अपने पुत्र को बचाने के लिए रावण के साथ जाना होगा और वह रावण के साथ लंका चली गई।

 रावण ने मंदोदरी से गंधर्व विवाह करके उसको लंका की महारानी बना दिया और परिणामस्वरूप मंदोदरी रावण से गर्भवती हो गई।

https://youtu.be/-9-35uBERdc

मंदोदरी ने कैसे बचाये रावण के प्राण -जाने इस भाग में

पूरे एक साल की तपस्या का व्रत लिए महाराज बाली की जब तपस्या ख़तम हो गई और सुग्रीव की सेवा भाव से वह अत्यंत खुश हुआ भाई को गले लगाया और प्रसन्न होकर राज्य को लौटा परन्तु तारा से सारी घटना सुनकर सुग्रीव को राज्य की रक्षा के लिए छोड़ा और खुद अत्यंत क्रोध में भरकर लंका पहुंचा और रावण को ललकारता हुए लंका में विचरण करने लगा!

राजा रावण डर से कांपता हुआ कभी इस महल से उस महल में छिपता हुआ घूम रहा था। उसको कोई उपाय नहीं सूझ रहा था तब मंदोदरी ने लंका में नर संहार रोकने के लिए पुनः परोपकार की भावना से रावण का साथ दिया और बाली के क्रोध से बचने का उपाय बताया।

 रावण ने दूत को भेजकर बाली को राजमहल में बुलवाया और मंदोदरी के पीछे खड़ा होकर अत्यंत दीन भाव से बोला कि महाराज मै ब्राह्मण पुत्र हूं ! अपने वचन का पालन करूंगा आपकी महारानी को आदर के साथ आपको सौपुंगा आप पहले हमारा आतिथ्य स्वीकार करो!

मेरे साथ भोजन करो मेरी दोस्ती स्वीकार करो। रावण के दीन बचन सुनकर और मंदोदरी की प्रार्थना सुनकर बाली का क्रोध शांत हुआ और वह भोजन करने के लिए रावण के साथ उसकी रसोई में बैठ गया।

 जैसा कि सभी सनातनियों को पता है कि भोजन हमेशा प्रथ्वी पर बैठकर लकड़ी के पटरे पर उटकु बैठा जाता है पैर की उंगली प्रथ्वी को स्पर्श करती है परन्तु एड़ी पटरे के ऊपर रहती है! दोनों हांथ दोनों पैरो के बीच में रखकर दाए हांथ से भोजन को खाया जाता है और भोजन करते समय मौन रहा जाता है यही भोजन का तरीका है।

खाना परोसने वाली स्वयं रानी मंदोदरी थी उसने दो थाल में स्वादिष्ट व्यंजन परोसे और रावण और वाली के सामने रख दिए, बाली ओम पूर्णमिदाम पूर्णेन्दु वाला भोजन के पूर्व ईश्वर को समर्पित मंत्र पढ़ने में अपनी आंखे बंद करता है! परन्तु रावण अपनी थाली में एक ग्रास खाकर फिर दूसरा ग्रास तोड़कर उसमें ही रखकर अपनी थाली बाली की थाली से बदल देता है। 

मंदोदरी को पता था कि बाली कभी भी किसी का जूठा भोजन नहीं कर सकता था इसीलिए उसने ही रावण से यह काम करवाया था बाली ने ऐसा करते देखकर खड़े होकर अत्यंत क्रोध में गर्जना की जिसको सुनकर लंका में मदोदरी समेत 72000 राक्षसियो के गर्भ एक साथ गिर गए पूरी लंका में चारो तरफ हाहाकार मच गया। रावण अपनी मृत्यु पक्की समझकर पुनः मंदोदरी के पीछे छुप गया।

 गर्भ स्राव के दर्द को समेटे हुए मंदोदरी पुनः हांथ जोड़कर बाली से बोली। हे महात्मा हे वैष्णव हे बलवानो में श्रेष्ठ महाराज बाली आपके सामने यह रावण एक तुच्छ प्राणी है ऋषि विश्वसरावा का पुत्र है आप तो ऋषियों के रक्षक है फिर ऋषि पुत्र का वध कैसे कर सकते है! इसके अपराध को क्षमा कर दो।

वैसे भी मैं अब आप जैसे महात्मा की पत्नी बनने लायक नहीं रही, जब आप इसके एक बार चखे हुए भोजन को नहीं खा सकते तो यह मेरे साथ सब कुछ कर चुका है और यह रक्तस्राव जो आपकी गर्जना से हो रहा है इसकी संतान पैदा होने वाली है इसलिए मै आपके योग्य नहीं रह गई।

 मंदोदरी की बात सुनकर बाली का क्रोध कम हुआ परन्तु उसने कहा कि इसने अपनी गर्जना से हमारे पुत्र अंगद को समय से पूर्व जन्म करवाकर उसको शारीरिक रूप से कमजोर किया है ! अतः आज लंका की कोई भी गर्भवती अपने बच्चे को रोक नहीं सकती और ऐसा कहकर पुनः अट्टहास करता है जिससे लंका की सारी स्त्रियों के गर्भ एक साथ गिर जाते है।

इस तरह बालीने मंदोदरी की अनुशंसा (सलाह) पर एक बार पुनः रावण को माफ किया और जीवन दान दिया । बदले में रावण ने कुछ भी हो जाये कभी किसकिनधा की तरफ न देखने या कोई धोखा न करने की सौगंध देकर सन्धि किया।  

मंदोदरी और रावण का पहला पुत्र नरांतक जो सत्वासे मास में और ज्येष्ठा के मूल नक्षत्र में पैदा हुआ, अर्थात गर्भ के सातवें महीने में जो अशुभ माना गया है, ज्येष्ठा के मूल में पिता की मृत्यु हो जाती हैं! अतः आचार्यों ने जो उपाय बताया है वहीं रावण ने किया।

सभी 72000 बालको को नदी में एक साथ बहा दिया गया जो बहकर नदी के बीच में खड़े एक वट बृक्ष तक पहुंचते है और उसे से चिपक कर उसके दूध को पीते हुए बड़े होते हैं !

फिर कौन इनको पालता है इसकी कथा अगले प्रसंग में।

देखते रहिये और पढ़ते रहिये अगले आने वाले बेहतर पौराणिक प्रामाणिक और रोचक प्रसंग और प्रेरणादायक कहानियां ! जय श्री राम !

प्रस्तुति: पंडित विजय कुमार अवस्थी

 

2 thoughts on “मंदोदरी हरण -अंगद जन्म- कैसे बनी मंदोदरी रावण की पत्नी?

  1. !!जय जय सियाराम!!
    बहुत बहुत साधुवाद,, उक्त ज्ञान मय प्रसंग से अवगत कराने के लिए। कृपया बतलाने का कष्ट करें यह प्रसंग किस ग्रंथ से लिया गया है.??

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