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मंथरा कौन थी पूर्वजन्म में, Manthra ‘s story of previous birth,

Adarsh Dharm ansuni katha kahani

मंथरा कौन थी,अपने पूर्व जन्म में, Manthara 's story of previous birth,

मंथरा से जुडी हुई एक पुराणिक पहेली – manthara se judi hui ek puranik paheli

पग चुरिला कुछ पीठ पै श्रवण नैन    भग दंत। तुलसी ऐसी नारी को भजन करे भगवंत।।

पहले इस पहेली के शब्दार्थ निकलते हैं

पग मतलब पैर

चूरिला मतलब चूड़ी की तरह घुमावदार

श्रवण मतलब कान

नैन मतलब आंखे

भगदंत मतलब टेढ़े या बड़े दांत

तुलसी मतलब तुलसीदास

ऐसी मतलब इस प्रकार की

नारी मतलब स्त्री

भजन करें मतलब प्रार्थन करे 

भगवंत मतलब भगवान

 साधारण अर्थ: जिसके पैर चूड़ी की तरह घुमावदार हैं अर्थात टेढ़े मेढे हैं। जिसकी पीठ के ऊपर कुछ लदा हुआ है, जिसके कान आंखे और दांत टेढ़े मेढे और बड़े बड़े है और ऐसी (छिपा हुआ शब्द) कुरूप महिला होते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि उसका भजन स्मरण स्वयं भगवान करते हैं।

 एक पहेली का शास्रोक्त उत्तर महर्षि गर्ग द्वारा रचित गर्ग संहिता की एक बहुत सुंदर कथा के माध्यम से दे रहे हैं। अब आते है इस दोहे के गूढ़ार्थ पर और गूढ़ार्थ समझाने के लिए आपको महर्षि गर्ग संहिता में वर्णित सुंदर कथा के माध्यम से समझाने का प्रयास करते हैं। 

 

यह पहेली महाराजा दशरथ की पटरानी महारानी कैकेई की दासी मंथरा (Manthara)के संबंध में है। मंथरा (Manthara) के पैर टेढ़े, कान शरीर के आकर के हिसाब से बड़े ,उसकी आंखे भैगी और दांत बाहर को निकले हुए टेढ़े मेढे थे, उसकी पीठ पर एक बड़ा सा कूबड़ निकला हुआ था किन्तु भगवान राम की माता कैकेई का पालन पोषण करने वाली धाय माता थी वह इसलिए प्रभु राम उसको नानी कहकर बुलाते थे और उनके चरण स्पर्श करते थे कभी भी मंथरा (Manthara) को उन्होंने दासी नहीं माना था।

अब सुनिए मंथरा (Manthara) थी कौन और उसने क्या पुण्य किए थे जिसमे उसको सभी देवताओं सहित भगवान शिव के आराध्य साक्षात परम ब्रह्म स्वरूप भगवान श्रीराम और उनके अंशावतार श्री भरत शत्रुघ्न और लक्ष्मण को पालन पोषण करने उनकी बाल लीलाएं देखने और फिर उसके कारण ही प्रभु को वन जाने का और राक्षस वध करने के काम में सहायक बनी थी अगर वह ऐसा नहीं करती रामजी का वन गमन नहीं होता तो दुष्ट राक्षस कैसे मारे जाते,अर्थात ईश्वर जो करता है किसी न किसी बहाने से करता है वही प्रभु राम ने किया था।

कौन थी मंथरा अपने पूर्व जन्म में - kaun thi manthara apne purv janam me

दैत्यराज हिरणाकश्यप के पुत्र भक्त प्रहलाद (Prahlad) के पुत्र का नाम विरोचन (Virochana)था महान व्यक्ति का पुत्र महान ही होता है उसी प्रकार भक्त प्रहलाद जब अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बने तो उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति के साथ अपने कुल परम्परा अनुसार ही राज्य किया और राक्षस लोग उन्ही परम्पराओं के साथ रहे जो पूर्व में करते थे अब फर्क इतना कि राक्षस लोग भगवान विष्णु को भी आराध्य मानते थे और वहीं से शिव और विष्णु दोनों की ही कृपा प्राप्त कर रहे थे। किन्तु राक्षस होते हुए वैष्णव बनने के कारण उनके अंदर सद्गुण आ गए थे, ज्यादातर लोग वैष्णव अर्थात शाकाहारी और नियमित संध्या पूजन वाले थे अतः धर्म की वृद्धि हो रही थी अधर्म समाप्त प्राय हो गया था। जब भक्त प्रहलाद थोड़े बूढ़े हो चले और उनका पुत्र वीरोचन बड़ा हो गया तो उन्होंने विरोचन (Virochana)को राजा बना दिया और स्वयं संन्यास लेकर प्रभु भक्ति में पूरी तरह से संलग्न हो गए।

इन्द्र ने क्यों किया छल मंथरा के पिता के साथ- indra ne kyon kiya chhal manthara ke pita ke saath

महाराज विरोचन एक महान प्रतापी वीर और दान शील राजा थे उन्होंने दिग्विजय यज्ञ किया जिसमे उन्होंने गुरु शुक्राचार्य की मदद से 10 dishaon में दिग्विजय प्राप्त की, जिसमे उन्होंने स्वर्ग के राजा इंद्र को हारकर उनका सिंहासन भी अपने आधीन कर लिया और त्रिदेवों को छोड़कर उसने सभी को अपने आधीन कर लिया।

 महाराज विरोचनं(Virochana) का नियम था कि वह सुबह उनके स्नान ध्यान संध्या वंदन के पश्चात जो भी  याचक ब्राहमण आते थे उनकी मन चाही मुराद को पूरी करते थे उसके बाद ही अन्न जल ग्रहण करते थे। उधर स्वर्ग छिन जाने से परेशान दुखी आत्मा इंद्र भगवान विष्णु की शरण में जाता है !उनसे त्राहि माम त्राहि माम करता है और अपनी व्यथा बतलाता है। भगवान विष्णु द्रवित हो जाते हैं और इंद्र को बोलते हैं कि एक धर्म परायण राजा विरोचनं जिसने आज तक कोई पाप किया ही नहीं बल्कि आप जैसे शत्रुओं को हराकर उसने जीवन दान दिए हैं! तो भला मैं क्यो और कैसे उसका वध कर सकता हूं। वह बहुत धर्म परायण दानी और कर्तव्य निष्ठ राजा होने के साथ मेरे परम भक्त प्रहलाद का पुत्र है अतः मै उसका कभी भी अनिष्ट नहीं कर सकता।

फिर प्रभु मेरे इतने तपस्या के बाद जो इंद्र पद दिया है वह किस काम का अगर हम उसका भोग भी ना कर सके। कोई तो उपाय बताओ।

 प्रभु विष्णु ने उपाय बतलाया कि विरोचन बहुत बड़ा दानी है सुबह जो भी उसके पास याचक जाता है खाली नहीं लौट सकता आप सुबह ब्राह्मण भेष में जाकर स्वर्ग मांग लो और उपाय बताकर प्रभु ने अपनी आंखे बंद कर ली और पुनः योग निद्रा में सो गए।

इंद्र ने सुबह ब्रह्मण का रूप बनाया और और विरोचन जहां पूजा कर रहा था! वहीं अलख जगा दी और फिर जब मांगो शब्द सुना तो इंद्र के मन में कपट आ गया उसने सोचा इससे स्वर्ग मांगकर मिल जायेगा किन्तु फिर मुझे कौन पूछेगा कौन पूजा करेगा, लोग मुझे दान में मिला राज्य का उलाहना देगे अतः मैं स्वर्ग ने मांगकर इससे इसी की मृत्यु मांग लेता हूं। उसने राजा से संकल्पित होने की प्रार्थना किया और कहा संकल्प करो कि अपनी बात से नहीं फिर जाओगे। राजा हंसकर संकल्प उठा लेता है और कहता है कि अब मांगो।

  इंद्र ने कहा कि मुझे आपका सर चाहिए राजा विरोचन(Virochan) वचन से बंधे थे संकल्पित थे अतः बोले कि आप ब्राह्मण तो आप हों नहीं सकते आप अपनी पहचान बताओ इंद्र ने टाल मटोल किया तो वीरोचनन बोलते है कि अगर मैंने अब तक कोई पाप नहीं किया तो इस ब्रह्मण बने व्यक्ति का असली चेहरा सामने आ जाए अब क्या था ड रा सहमा हुआ इंद्र सामने खड़ा था। दिग्विजय करने वाले महाराज हंस पड़े और इंद्र से यह कहकर कि छल से तुम मेरा वध करवा रहे हो! किन्तु ज्यादा दिन तक राज्य भोग नहीं कर पाओगे क्योंकि मेरी संतान तुमसे इस कपट का बदला अवश्य लेगी और ऐसा कहकर विरोचन (Virochan) ने अपनी ही तलवार से अपनी गर्दन काटकर इंद्र को दान देकर मृत्यु को प्राप्त हो गए ।

मंथरा ने कैसे बदला लिया इन्द्र से अपने पिता की मृत्यु का -manthara ne kaisey badla liya indra se apne pita ki mritiyu ka

यह दृश्य देखकर राजा के दोनों बच्चे एक पुत्र बलि जो कालांतर में महादानी महाबली बना जिसके घर याचक बनकर स्वयं प्रभु वामन रूप रखकर आए और दूसरी संतान पुत्री विरोचना(Virochana) दोनों आर्तनाद करते रोते बिलखते हुए वहां आते हैं। बालक बली(bali) और बुजुर्ग भक्त प्रहलाद और सभी लोगो की प्रार्थना के बाद भी इंद्र ने विरोचन का सिर नहीं लौटाया जिससे उनके दाह संस्कार के लिए बिना सर की लाश को दाह sanskar हो ही नहीं सकता था। इंद्र जा चुका था बलि अभी बहुत छोटा था बिना लड़े और इंद्र को हराए हुए पिता का सर नहीं मिल सकता था अतः virochana ने अपने दादा श्री प्रहलाद का आशीर्वाद लेकर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया।

  राजकुमारी virochna सभी प्रकार के अस्त्र शस्त्र से सुशोभित थी और उसने सारी राक्षसी विद्याएं सीख रखी थी! उसने स्वर्ग पर अचानक आक्रमण करके रास रंग में डूबे देवताओं पर नाग वानो की वर्षा कर दिया और सभी देवताओं को बंदी बना लिया। भाई राजकुमार बलि ने पिता का सर लेकर युद्ध विराम की घोषणा कर देते है! किन्तु राजकुमारी इंद्र सहित अग्नि, वरुण, पवन आदि किसी देवता को जिंदा न छोड़ने पर अड गई थी। नागो के जहर से सभी देवता चित्कार कर रहे थे। देवमाता अदिति अपने पुत्रो की रक्षा के लिए राजकुमारी से अनुनय विनय कर रही थी! अपने आप को उनकी दादी होने की गुहार लगा रही थी,जब कोई विनय अनुनय नहीं मानी तो अदिति ने दोनों हांथ जोड़कर घुटनों पर बैठकर परम प्रभु विष्णु की आराधना स्तुति करती है भगवान प्रकट होते है और राजकुमारी से देवताओं को छोड़ देने का आग्रह करते हैं। राजकुमारी अपनी विद्या के अभिमान में भगवान विष्णु का तिरस्कार करती है उनको दुर्वचन कटु वचन बोलती है जिससे प्रभु गरुण शक्ति का आव्हान करते है और हजारों गरुण प्रकट होकर सभी नागो को खा जाते है और देवताओं को मुक्त कर देते है

  किन्तु राजकुमारी अपने पिता के साथ हुए कपट से क्षुब्ध थी! अतः वह स्वयं गरुण सेना पर आक्रमण कर देती है और तलवार लेकर उनके पंख काटने लगती है !

कैसे एक सुन्दर राजकुमारी बनी कुरूप मंथरा -kaisey ek sunder rajkumari bani kurup manthara

यह देखकर श्री भगवान के वाहन गरुण क्रोधित होकर उस राजकुमारी पर सेना के साथ टूट पड़ते है, इतने सारे पक्षी और अकेली महिला चारो तरफ से चोच पंजे के प्रहार से उसके अंग भंग हो जाते हैं ! उसकी आंखो टेढ़ी पैर टेढ़े कान भयानक हो जाते है पीठ को नोच देते है! जिससे उसकी पीठ में इतने घाव हो गए जो सूज कर कूबड़ की गठरी बन जाते हैं और जिसके कारण उसकी कमर झुक जाती है और शक्ल बे शक्ल भयानक हो जाती है।

देव दानव युद्ध समाप्त हो चुका था देवता स्वर्ग पर काबिज थे और दानव पृथ्वी और पाताल दोनों के स्वामी थे अब राजकुमार बलि राजा बन चुके थे और प्रहलाद और शुक्राचार्य की सहायता से राज्य चला रहे थे। किन्तु भयानक शक्ल और सूरत बिगड़ जाने के कारण लोग राजकुमारी की मजाक उड़ाते थे और उस पर हंसी करते थे इससे क्षुब्ध होकर राजकुमारी हमेशा शत्रु भाव से भगवान विष्णु को नियमित सुबह शाम दोपहर रात भर सिर्फ उनको गालियां देती रहती थी। कालांतर में उसकी मृत्यु हो जाती है किन्तु मरते समय भी वह अपने कूबड़ और कुरूप स्वरूप को याद करते हुए मर जाती है।

अंतिम सांस तक मंथरा कहती रही बुरे शब्द भगवान विष्णु को -atim saas tak manthara kahti rahi burey shabad bhagwan vishnu ko

 वेदों उपनिषदों में वर्णित है और यह प्रमाणित भी है कि व्यक्ति अपनी अंतिम सांस लेते समय जिस चीज में उसकी स्मृति होती है उसको अगले जन्म में उसी के अनुसार जन्म मिलता है। यही कारण था राजकुमारी की स्मृति अपने कूबड़ कुरूप में थी इसलिए जब उनका पुनर्जन्म हुआ तो वह कूबड़ आदि के साथ उसी प्रकार की शरीर में कमी के साथ जन्मी, किन्तु पूर्व जनम मे बैर भाव से उसने पूरी जिंदगी प्रभु का स्मरण किया था अतः प्रभु ने उसको इस जनम में बाल लीला आदि के वह समस्त सुख दिए जो हजारों साल तपस्या के उपरांत मनु सतरूपा को दसरथ कौशल्या के रूप में दिए थे।

पिछले जनम मे भी वह बैर भाव से प्रभु का स्मरण करती थी और इस जन्म में शुरू से ही वह भगवान विष्णु की विरोधी और रामजी का विरोध घृणा करती थी किन्तु वह आठो पहर राम जी का स्मरण करती थी बैर भाव से या प्रेम भाव से या किसी भी भाव से जो प्रभु का स्मरण करता है प्रभु उसका स्मरण करते हैं। प्रभु अपने भक्तो का भजन स्मरण करते हैं !

भगवान अपने भक्त का भजन अर्थात स्मरण करते हैं और मंथरा तो उनकी दो जनम से भक्त थी फिर उसका भजन भला क्यों नहीं करते प्रभु। 

आशा है आप सभी लोगो को मंथरा के पूर्व जनम की कथा अवश्य पसंद आएगी अस्तु। 

 

जय सियाराम

2 thoughts on “मंथरा कौन थी पूर्वजन्म में, Manthra ‘s story of previous birth,

  1. You really make it seem really easy along with your presentation however I
    to find this matter to be actually one thing which I feel I might by no means understand.

    It sort of feels too complicated and very huge for me. I am taking a look ahead on your next
    submit, I will attempt to get the cling of it!

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