कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा,

Adarsh Dharm Gyan ki baatein

 जय श्रीराम मित्रो

स्वागत है आपका आदर्श धर्म सनातन धर्म के अनसुने रहस्यमई कहानियों के प्रश्नावली में। आज का विषय लिया है हमारे एक दर्शक एवम् बड़े भाई श्रीमान हरबंस बाजपेई जी कानपुर के एक प्रश्न से। उनका प्रश्न है कि यह चौपाई किस ग्रंथ से ली गई है

कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा।।

बड़े भाई आप स्वयं एक महान विद्वान हैं और विभिन्न लेखकों की पुस्तकें, ग्रंथ, पुराण, उपनिषद पढ़ते रहते हैं मुझे यह भी मालूम है कि आप सिर्फ मुझे क्रिटिसाइज करने के लिए ही सही प्रश्न तो पूछा है। आप को यह भी मालूम है चौपाई किस ग्रंथ की है, पेज नंबर लाइन नंबर क्या है उसका अर्थ क्या है किस संदर्भ में बोला गया है सब कुछ मालूम है किन्तु यह आपका बड़प्पन है कि लोक कल्याण हेतु आप चाहते है कि मेरे अन्य बहुत सारे दर्शक भाई बहनों को इस चौपाई का गूढ़ार्थ बतलाया जाए इसलिए मै आपके इस प्रश्न के लिए बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूं।

 तो मित्रो यह चौपाई श्रीरामचरितमानस से ही ली गई है और इस चौपाई के माध्यम से संत तुलसीदास जी ने इस कठिन कलिकाल जिसमे धर्म समाप्त हो जाएगा या न के बराबर होगा, पाप कर्म बढ़ जायेगे उसमें संसार सागर से पार मनुष्य कैसे पार हो सकते हैं और उसका क्या उपाय है। 

चौपाई का शब्दार्थ है। कलयुग मे सिर्फ ईश्वर के एक नाम राम नाम का जाप करके ही मनुष्य भवसागर से पार हो जाते हैं।

गूढ़ार्थ:

गोस्वामी जी ने रामायण के उत्तरकांड में कलियुग में क्या होगा इसका बड़ा सुंदर वर्णन किया है जैसे साधुओं के लिए लिखा है

नारी मुई ग्रह सम्पत्ति नासी।

मूड मुड़ाय होय सन्यासी।

जाके नख अरू जटा विशाला।

सो प्रसिद्ध तापस कलिकाला।।

किसी की पत्नी मर गई या सम्पत्ति नष्ट हो गई आलसी है काम नहीं करना मुफ्तखोर बनना है तो सन्यासी बाबा बन जाते हैं। कलयुग मे सिर्फ वह बड़े संत माने जायेगे जिनके बड़े बड़े नाखून हो बड़ी बड़ी जटाए हों। जितना ज्यादा झूठा लंपट वह बड़ा साधु माना जाएगा जैसे आप लोग स्वयं देख रहे हो कलयुगी बाबा कुछ जेल में हैं कुछ समोसा में लाल चटनी खाई हरी नहीं खाई इसलिए कृपा रुक रही है बताने वालो को लोग अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दसबंद दे आते है वह अरबों पति है जो लूट रहे है गरीब लुट रहे हैं।

मातापिता के संतानों के साथ संबंधों के लिए भी लिखा है

ससुरारि पियारि भयी जब तें

रिपु रूप कुटुम्ब भयो तब ते

सुत मानहि मात पिता तब लौ

अबलानन दीख नहीं जब लौ

इस तरह उन्होंने कलयुग की समस्त खामियां खुलकर बयान की है और आज के युग में वह पूरी तरह से चरित्रार्थ हो रही है। बड़े छोटे का कोई भेद नहीं, महिलाओं की इज्जत उनके अपनों से ही सुरक्षित नहीं। महिला कितनी बिगड़ जायेगी सब कुछ खोल के लिख गये थे जो आज सब कुछ सामने दिख रहा है।

  यह सब कुछ खामियां होते हुए कलियुग में एक विशेषता है जिसका स्कंध पुराण में महाकाल द्वारा श्लोक ३५/१५ में बताया गया है

कलेरदोष निधेश्चैव श्रुणु चैकम महागुणम।

यदि अल्पेन तु कालेन सिद्धिं गच्छंति मानवा:।।

अर्थात यद्यपि कलयुग समस्त दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक महान गुण है जो सुनिए। वह है कि कलयुग में थोड़े ही समय में साधन करने से थोड़े ही प्रयास करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेते हैं।

 सत्य युग त्रेता द्वापर के लोग कलयुग के इस महागुण के कारण ही कहते है कि जो मनुष्य कलयुग मे श्रद्धा से वेदों स्मृतियों और पुराणों में बताए हुए धर्म का अनुष्ठान करते है वे धन्य हैं। त्रेता में जो सिद्धि एक वर्ष तक के प्रयास से वहीं द्वापर में एक मास के प्रयास से क्लेश सहन करते हुए धर्म अनुष्ठान से जो फल प्राप्त होता है वह कलयुग में सिर्फ एक दिन के अनुष्ठान से मिल जाता है। कलयुग मे मनुष्य भगवान विष्णु और भगवान शिव की नियम पूर्वक पूजा करने वाले जितनी सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं उतनी सिद्ध प्राप्त करने के लिए अन्य युगों मे सैकड़ों हजारों वर्ष उपासना करने से प्राप्त होती है। इस प्रकार चारो युगों की व्यवस्था बदलती रहती है किन्तु चारो युगों में वहीं लोग धन्य है जो भगवान का सबसे प्यारा नाम राम नाम का जाप करते हैं। कलयुग मे तो भगवान राम के नाम का जाप करने से ही मुक्ति भी मिल जाती है।

निष्कर्ष: इस चौपाई के माध्यम से गोस्वामी जी ने कम शब्दो मे बहुत बड़ी बात लिख दी है उन्होंने बतलाया है भगवान राम के नाम जाप से बड़ा कोई यज्ञ तप आदि भी नहीं है राम जी के नाम की महिमा का उन्होंने एक अन्य चौपाई में कहा है

जनम जनम मुनि जतन कराही।

अंत राम मुख आवत नाही।।

अर्थात बड़े बड़े ऋषि मुनि पूरी जिंदगी भर जप तप करते हैं किन्तु फिर भी अंत समय में कुछ न कुछ माया मोह वश इस एक दो अक्षर का नाम राम नाम मुख से नहीं निकाल पाते इस लिए पुनः जीवन मरण के चक्र में फंस जाते है अर्थात मुक्ति नहीं मिलती। किन्तु वहीं एक व्यक्ति जो जीवन भर भले ही नास्तिक रहा हो किन्तु मरते समय अगर उसके मुख से राम निकलता है वह अनायास भव सागर पार करके प्रभु में समाहित हो जाता है आत्मा परमात्मा में मिल जाती है।और यही भाव भगवान राम के नाम की महिमा का गोस्वामी जी ने बड़ी सुन्दरता से एक चौपाई में ही समाहित करके बतलाया है कि कलयुग में सिर्फ नाम जाप करने मात्र से मनुष्य भवसागर पार करके परमात्मा से एकिकार हो जाता है। उम्मीद करते हैं बाजपेई जी आपके प्रश्न का समुचित उत्तर मिल गया होगा!

अस्तु जय श्रीराम।

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