ऐतरेय ऋषि-बच्चा था जो गूंगा बहरा ऐतरेय, कहलाता था वह नादान। बोला जब तो माता तर गई भागे आए खुद भगवान।। Aitareya was a sage-child who was called dumb deaf Aitareya, that dolly. God said when God fled, God himself came. एक बार कुमार कार्तिकेय नारद जी से वार्ता करते हुए संसार से वैराग्य कैसे लें और उसके निरूपण की प्रार्थना किया तो नारद जी बोले! पूर्वकाल की बात है जब ऐतरेय नामक ब्राह्मण ने भगवान वासुदेव की कृपा प्राप्त की थी और जो उस बालक ने अपनी माता के साथ संवाद किया था ऐसा संवाद इसके पहले या बाद में किसी ने भी नहीं किया यह संवाद ऐसा था कि भगवान स्वयं को साक्षात रूप में आने से रोक नहीं पाए थे आज वह संवाद बताता हूं। Once, while talking to Kumar Kartikeya Narada, how to take disinterest in the world and prayed for its representation, Narad ji said! It is a thing of the past when a Brahmin named Aitareya got the blessings of Lord Vasudev and no one had communicated before or after the child who had communicated with his mother. God could not stop himself from coming, today I tell the dialogue.
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कौन थे बालक ऐतरेय के माता पिता?
हारित नामक मुनि के वंश में मांडूकी नाम के तीनों समय संध्या वंदन करने वाले सदैव प्रभु चरणों में स्नेह रखने वाले श्रेष्ठ ब्राम्हण थे उनकी पत्नी का नाम इतरा था और इन्हीं ऋषि पत्नी के गर्भ से एक बालक हुआ जिसका नाम ऐतरेय था। ये बालक वल्यावस्था से ही निरन्तर ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जप किया करते थे उनको इस मंत्र की शिक्षा पूर्व जन्म में ही पाई थी जो इस जनम में उनको सब कुछ याद था। यह न तो किसी की बात सुनते थे और न खुद किसी से कुछ भी बोलते थे सबको लगता था बच्चा या तो पप्पू है या फिर गूंगा है । In the clan of the sage named Harit, who worshiped Manduki at all three times, he was always a great Brahmin with affection at the feet of Lord, his wife’s name was Itra and from the womb of this sage wife was a child named Aitareya. These children used to chant Om Namo Bhagwate Vasudevaya continuously from childhood, they had learned this mantra in their previous birth, which they remembered everything in this birth. He neither listened to anyone nor spoke anything to anyone, everyone thought that the child is either Pappu or dumb.
बालक ऐतरेय की माता अपने पुत्र से दुःखी क्यों थी?
एक दिन उनकी माता इतरा ने बोला कि अरे तू तो मुझे क्लेश देने के लिए ही पैदा हुआ है मेरे जनम और जीवन को धिक्कार है ?मेरी कोख से तुझ जैसे कुपुत्र ने जनम ही क्यो लिया इससे अच्छा कि तेरा मर जाना ही अच्छा होता आदि बहुत कुछ माता कोशने लगी। उनकी बात सुनकर वह बालक हंसता है और फिर उसने दो घड़ी के लिए अपनी आंखे बंद कर मन में ईश्वर को प्रणाम करके फिर अपनी जनम दात्री माता को प्रणाम करके बड़ी धीर गंभीर वाणी में बोले। One day his mother Itra said, “Oh, you have been born to give me trouble. Damn my birth and life? Why did a son like you take birth from my womb so much better that it would be better for you to die?” Than mother started crying. Listening to them, the child laughs and then he closes his eyes for a moment, bowing to God in his heart and then bowing down to his birth mother. Then said, Mother, in a very patient voice.
संसार के विषय में बालक ऐतरेय ने क्या रहस्य बतलाया?
हे माता आप जो शोचनीय नहीं है उसके लिए शोक करती हो और जो शोचनीय है उसके लिए नहीं। यह संसार मिथ्या है आप इस शरीर के लिए क्यो चिंतित और मोहित हो रही हो यह तो मूर्खो के काम है आप जैसी विदुषी महिला को यह शोभा नहीं देता। शरीर तो गर्भ से लेकर मृत्यु पर्यन्त सदैव अत्यंत कष्टप्रद है । O mother, you grieve for the unfortunate and not for the fortunate. This world is false, why are you worried and fascinated for this body, this is the work of fools, it does not suit a woman like you. The body is always very annoying from the womb till death. यह शरीर एक प्रकार का घर है हड्डियों का समूह इसके भार को संभालने वाला पिलर या खंभा है। नाड़ी नस के जाल रूपी रस्सियों से इसको बांधा हुए है । रक्त और मांस रूपी मिट्टी से इसको लीपा गया है विष्ठा और मूत्र रूपी द्रव्यों का पात्र यह शरीर है और ऐसे देह रूपी घर में जीवात्मा रूपी गृहस्थ का निवास है। यह कितने कष्ट की बात है कि आप देह गेह की इस माया मोह में मूर्खो के अनुकूल बर्ताव कर रही हो। This body is a type of house. A group of bones is a pillar or pillar to handle its weight. The pulse is tied to a vein-like rope. It is coated with soil like blood and flesh. It is a body of liquor and urine, and in such a body house is the abode of a householder like spirit. It is so painful that you are behaving foolishly in this illusion of body. जैसे पर्वत से झरने गिरते रहते है वैसे शरीर से कफ और मूत्र मल निकलते है मल मूत्र से भरे हुए इस चर्म पात्र की तरह यह शरीर अपवित्र वस्तुओं का भंडार है इसका एक भी अंग प्रदेश पवित्र नहीं है। शरीर से निकले मल मूत्र का स्पर्श हो जाने पर मिट्टी साबुन और जल से हांथ शुद्ध किया जाता है तथापि उन्ही अपवित्र वस्तुओं के भंडार इस देह से जाने क्यो मनुष्य को वैराग्य नहीं होता। As the springs continue to fall from the mountain, phlegm and urine flow out from the body, like this leather pot filled with fecal urine, this body is a repository of unholy things, not a single part of it is sacred. After touching the feces of urine coming out of the body, we purified with soap and water, however, the stores of those unholy things go from this body because the person does not have disinterest. सुगन्धित तेल और जल के द्वारा यतन पूर्वक सफाई करने के बावजूद यह अपनी अपवित्रता को नहीं छोड़ता है । दुर्गन्ध और मल मूत्र के लेप को दूर करने के लिए ही शारीरिक शुद्धि का विधान किया गया है।इसके बाद आंतरिक भाव शुद्धि हो जाने पर ही मनुष्य शुद्ध होता है। It does not leave its impurity despite regular cleaning with aromatic oil and water. Physical purification has been done to remove the smell of stool and urine. After this, the person gets purified only when the inner feeling is purified.
गर्भ में पड़ा जीव क्या सोचता है और ऐतरेय के अनुसार वैराग्य का महत्त्व क्या है ?
ज्ञान रूपी निर्मल जल तथा वैराग्य रूपी मृतिका से ही व्यक्ति की अविद्या और रागमय रूपी मल मूत्र के लेप तथा दुर्गन्ध का शोधन कर सकते है। इस प्रकार इस शरीर को स्वभावत: अशुद्ध माना गया है। बुद्धिमान व्यक्ति शरीर को दोष युक्त जानकर उदासीन हो जाता है वह शरीर से अनुराग हटा लेता है वहीं इस संसार बन्धन से छूटकर निकल सकता है किन्तु जो इस शरीर को दृढ़ता पूर्वक पकड़े रहता है माया मोह नहीं छूटता है वह संसार में पड़ा रहता है । It is possible to cleanse the person’s inscrutable and stool-like urine and deodorant in the form of pure water of knowledge and deadness of quietness. Thus, this body is considered to be impure by nature. A wise person becomes indifferent after knowing the body with a defect, he removes attachment from the body, while he can leave the world free from bondage, but he who holds this body firmly, does not leave the illusion that he is lying in the world. इस प्रकार यह मानव जनम लोगो के अज्ञान दोष से तथा कर्म वशात दुख स्वरूप और महान कष्टप्रद बतलाया गया है। गर्भ को झिल्ली में रुंधा हुए जीव महान कष्ट पाता है जैसे किसी को लोहे के घड़े में रखकर आग से पकाया जाता है वैसे ही गर्भ के घर में पड़ा हुए जीव जठरानल की आंच से पकता है। In this way, this human birth has been told by ignorance faults of people and karma vashta grief form and great annoying. The organism stuck in the womb gets great distress as if someone is cooked with fire by placing it in an iron pot, similarly the organism lying in the womb house cooks with the heat of Jatharanal. गर्भ में स्थित होने पर जीव को पूर्व जन्मों का स्मरण हो आता है और सोचता है कि मै बार बार गलती करके यह कष्ट भोग रहा हूं अगली बार मनुष्य जनम मिलेगा वह सभी कल्याण कारी अनुष्ठान करूंगा जिससे पुनः मेरा गर्भ वास न हो मै संसार बन्धन से दूर करने वाले भगवदीय तत्व ज्ञान का चिंतन करूंगा। On being located in the womb, the creature remembers past lives and thinks that I am suffering this mistake again and again, next time I will get a birth, I will do all the welfare rituals so that my womb will not be inhabited again. I will ponder the God who removes the knowledge. जब उसका जन्म होता है , जन्मत मरत दुशह दुख होई, उस दुख में परमात्मा की याद करता है किसी प्रकार इस बार पार लगा दो !अगली बार सिर्फ आपका चिंतन मन से करूंगा। When he is born, (When a person born and at time of death he get immense pain), in that sorrow he remembers God, somehow cross this time! Next time I will only think you God. किन्तु जनम होते ही बाहर की हवा लगते ही मूढ़ता आ जाती है राग और मोह के वशीभूत हुए वह जीव संसार में न करने योग्य पाप कर्म करने लगता है और उनमें फंसकर वह न तो अपने को जानता है न दूसरे को। आंखे रहते हुए अंधा हो जाता है वह ईश्वर को नहीं मानता विद्वानों के समझाने पर भी समझ नहीं पाता! इसलिए राग और मोह के वशीभूत होकर संसार में कष्ट उठाता है। But as soon as the birth, the outside air starts to become foolish, subjected to the raga and fascination, that creature starts committing unpardonable sins in the world and trapped in them he neither knows himself nor the other. He becomes blind with eyes, he does not believe in God, but even after being persuaded by the scholars, he is not able to understand, so under the influence of raga ( means the Grudge) and fascination, he is suffering in the world.
भाव शुद्धि ही सबसे बढ़कर पवित्रता है ! वहीं सब कर्मो में प्रमाण भूत है! आलिंगन माता से पुत्री से और पत्नी से किया जाता है परन्तु तीनों के भाव अलग अलग होते है। एक स्त्री के स्तनों को पुत्र दूसरे भाव से स्मरण या स्पर्श करता है और पति दूसरे भाव से। Purity of thought is the highest purity! At the same time, there is evidence in all actions! Hug is made from mother, daughter and wife but the expressions of all three are different. The son remembers or touches the breasts of a woman in the other feeling and the husband in the different sense. अतः अपने चित्त को शुद्ध करना चाहिए भाव दृष्टि से जिसका अन्तःकरण अत्यंत शुद्ध हो वह स्वर्ग और मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है। Therefore, one should purify one’s mind, in terms of sentiment, whose conscience is very pure, he also attains heaven and salvation.
कैसे बालक ऐतरेय के अनुसार मानव जीवन कष्ट से भरा है ?
रात में कामग्निजनित खेद से पुरुष को निंद्रा नहीं आती दिन में द्रव्योपार्जन कि चिंता से उसको सुख नहीं, सम्मान अपमान से, प्रिय जनों के संयोग वियोग से और फिर वृद्धावस्था से ग्रस्त होने की चिंता के कारण जवानी में कोई सुख नहीं। इतने में बुढ़ापा आ जाता है शरीर के असमर्थ हो जाने के कारण अपनी पत्नी संतान बंधु बांधवों सेवको द्वारा अपमानित होता है यह सारे कष्ट। सिर्फ दुख ही दुख तो है फिर भी मनुष्य शरीर और उसके मोह में क्या से क्या करता है The man does not sleep in the night, due to sexual regrets, in the day there is no happiness in him by the concern of earning money, by the humiliation of respect, by the accidental disconnection of the dear ones and then there is no happiness in youth due to the worry of suffering from old age. In this way, old age comes due to the body being unable to be humiliated by his wife’s offspring brothers and servants. Sadness is only sadness, yet what does a human being do in the body and its attachment
गर्भ के कष्ट, जन्म लेने के कष्ट, बाल्यावस्था में इन्द्रियों की वृत्तियां अव्यक्त रहती है अर्थात कोई कष्ट होने पर भी बता न सकने पर जो नाना प्रकार के कष्ट, दांत आने पर होने वाले कष्ट,जब थोड़े बड़े हुए तो बैग लादकर स्कूल जाने अध्ययन करने माता पिता अध्यापक और बड़ों के अनुशासन का कष्ट, युवा वस्था में रागोंमत्त किसी से अनुराग प्यार हो जाए तो ईर्ष्या के कारण कष्ट , उन्मत्त क्रोधी है तो रार होने के कष्ट सब जगह कष्ट ही कष्ट है!
The problems of the womb, the pain of birth, the senses of the senses in childbearing remain latent, that is, even if there is no problem, which many kinds of sufferings, the troubles that come on teeth, when they grow a little, then the bags are loaded and studied in school. Troubles of discipline of parents, teachers and elders, if you fall in love with someone in a young age, if you fall in love with someone, if you are angry and furious, then the pain of being angry is the trouble everywhere. वृद्धावस्था में रोगातुर पुरुष धर्म अर्थ काम और मोक्ष का साधन करने में असमर्थ होता है इसलिए युवा अवस्था में ही धर्म का आचरण करना चाहिए। In old age, a diseased male is unable to perform the means of dharma, work and salvation, so one should practice religion in a young age.
वात पित्त और कफ कि विषमता ही व्याधि कहलाती है इसीलिए शरीर व्याधि मय है और यदि जीवन काल आ गया है तो उसे देव वैद्य धनवंतरी भी नहीं बचा सकते। काल से पीड़ित व्यक्ति को कोई औषधि तपस्या दान मित्र रिश्तेदार रसायन तपस्या जप योग सिद्ध महात्मा पण्डित मौलाना डाक्टर वैद्य हकीम बाबा नेता या यह सारे मिलकर भी नहीं बचा सकते। Vata Pitta and Kapha’s asymmetry is called Vyadhi! That is why the body is sick and if life time has come, it cannot be saved even by Dev Vaidya Dhanvantari. A person suffering from a period of time can not save any medicine, penance, charity, relatives, chemistry, tapasya, chanting, yoga, Mahatma Pandit Maulana, Dr. Vaidya Hakeem Baba, leader or all these together मृत्यु के समान कोई दुख नहीं है मृत्यु के समान कोई भय नहीं है और मृत्यु के समान कोई त्रास नहीं है। पत्नी पुत्र मित्र राज्य ऐश्वर्य और सुख सभी स्नेह पाश में बंधे है किन्तु मृत्यु इनका उच्छेद कर डालती है। There is no sorrow like death, there is no fear like death, and there is no tragedy like death. Wife, son, friend state, happiness and happiness are all tied in the affection loop, but death annihilates them.
क्या मृत्यु के बाद दुःख खत्म हो जाता है? अगर नहीं तो क्यों ?
इस जीवन की समाप्ति के बाद मनुष्य भयंकर मृत्यु को प्राप्त होता है और उसके बाद वह पुनः करोड़ों योनियों में जन्म लेता और मरता है। कर्मो की गणना के अनुसार देह भेद से जो जीव का एक शरीर से वियोग होता है उसे मृत्यु नाम दिया गया है वास्तव में उससे जीव का बिनास नहीं होता। मृत्यु के समय महान मोह को प्राप्त हुए जीव के मर्म स्थान जब विदीर्ण होने लगते है उस समय उसको बड़ा भारी कष्ट होता है जिसकी संसार में कोई उपमा नहीं है! After the end of this life a man dies horribly and after that he is born again and dies in millions of lives. According to the calculation of deeds, the organism that is separated from the body by a body is named death, in fact it is not without the soul. At the time of death, when the heart of the creature attained to great fascination begins to dissolve, at that time it suffers a lot of pain, which has no likeness in the world
विवेकी पुरुष के लिए किसी से कुछ मांगना मृत्यु से भी अधिक दुखदाई होता है। तृष्णा ही लघुपात का कारण है इससे आदि अंत और मध्य में दारुण दुख होता है। दुखो की यह परम्परा समस्त प्राणियों को सवभवतः प्राप्त होती है।क्षुधा को सब रोगों से बड़ा रोग माना गया है जैसे अन्य रोगों से लोग मरते है उसी तरह भूंख से भी लोग मर जाते हैैं। For a prudent man, asking for something from someone is more painful than death. Craving is the cause of shortness, it hurts to much in the beginning and middle. This tradition of sorrows is best received by all beings. Sukudha means hunger has been considered as the greatest disease of all diseases, as people die from other diseases, similarly people die from starvation.
क्या राजा सुखी है या स्वर्ग में रहनेवाले सुख का भोग करते है?
अगर कहें कि कोई राजा धनवान सुखी है तो ऐसा भी नहीं है राजा को केवल यह अभिमान रहता है कि मेरे घर में इतना वैभव शोभा पा रहा है वास्तव में तो उनका सारा आभरण भार रूप है, समस्त अलोपन द्रव्य मल मात्र है सम्पूर्ण संगीत राग प्रलाप मात्र है। विचार दृष्टि से देखने पर इन राज्य भोगो के द्वारा राजाओं को सुख कहां मिलता है! If you say that a king is rich and happy, it is not so! The king only has such pride that he is getting so much glory in my house! In fact, all his gratitude is a form of weight, all the adulteration is just feces! Music is just a rant. Where do kings get happiness through these state enjoyments when they look at them from their point of view? वह लोग एक दूसरे से ईर्ष्या एक दूसरे से जीतने के प्रयत्न में दुख भोगते है। धन लक्ष्मी की भूख कभी नहीं मिटती जितनी है उससे ज्यादा प्राप्त करने की चेष्ठा का दुख अतः धनी हो या निर्धन धन प्राप्ति के लिए हमेशा दुख भोगते है! Those people are jealous of each other in trying to win over each other. The hunger of wealth Lakshmi never disappears, the misery of the endeavor to get more than that is so rich or always suffer misery for getting poor wealth!
दुर्भिक्ष, दुर्भाग्य, मूर्खता, दरिद्रता,नीच ऊंच का भाव,मृत्यु राष्ट्र विप्लव पारस्परिक अपमान का दुख, एक दूसरे से धन, वैभव पद, प्रतिष्ठा ,मान बड़ाई में आगे निकलने और ईर्ष्या का कष्ट, अपनी प्रभुता सदा स्थिर न रहने से ऊंचे चढ़े लोगो को नीचे गिराने के प्रयत्न सफल न होने पर दुख, इत्यादि महान दुखो से यह जगत व्याप्त है। Famine, misfortune, foolishness, poorness, low altitude, death, nation insurrection, misery of mutual humiliation, wealth, splendor, prestige, dignity and dignity of each other, and the pain of jealousy, your lordship will not rise steadily. If the attempt to bring people down is not successful, this world is covered with sorrows and great sorrows.
मनुष्य स्वर्गलोक में जो पुण्य फल भोगते है ! वह अपने मूलधन गंवाकर ही भोगते है क्योंकि वहां वह कोई नवीन कर्म नहीं कर सकते और यही स्वर्ग का एक भयंकर दोष है। जैसे वृक्ष को जड़ से काट देने पर वह विवश होकर पृथ्वी पर गिरता है ! उसी प्रकार पिछले जन्म के पुण्य समाप्त होते ही स्वर्ग वासी जीव पुनः पृथ्वी पर गिर पड़ते हैं अर्थात पुनर्जन्म लेते हैं! इस प्रकार देखा जाएं तो स्वर्ग के देवताओं को भी कोई सुख नहीं है ! नरक में पड़े जीवों के दुखो को क्या वर्णन करे वह तो नरक मतलब दुख है ही। स्थावर जंगम योनि पड़े हुए जीवों को भी बहुत दुख भोगने पड़ते है। The virtues that humans enjoy in heaven are consumed only by losing their principal, because they cannot do any new work there, and this is a terrible flaw of heaven. Just as a tree is cut down from its roots and falls on the earth in the same way, as soon as the merits of the previous birth are finished, the creatures of heaven fall again on the earth, that is, they are reborn!In this way, even the gods of heaven have no happiness! What can describe the sufferings of living beings in hell, hell means misery. The creatures with real movable life also have to suffer a lot.
ऐतरेय इस संसार में क्यों रहना नहीं चाहते थे?
हे माता जैसे कौवों के अपवित्र स्थान में विशुद्ध राजहंस नहीं रह सकता उसी प्रकार ऐसे दुखमय संसार में मै तो रम नहीं सकता अतः मै कहां आनंदपूर्वक रह सकता हूं वह स्थान सुनो। A pure flamingo cannot live in the unholy place of ravens like mother, similarly in such a sad world I cannot live, so where can I live happily? तेज, अभयदान, अद्रोह,कौशल, अचपलता, अक्रोध, और प्रिय वचन यह उस विद्या वन के सात पर्वत हैं। दृढ़ निश्चय ,सबके साथ समता, मन इन्द्रियों का संयम,गुण संचय, ममता का अभाव, तपस्या तथा संतोष यह सात सरोवर है। light, forgiveness, no grudge, talent, sweetness, no anger and Beloved Word are the seven mountains of that lore. Determination, equality with all, restraint of the sense organs, lack of virtue, lack of affection, austerity and satisfaction are the seven lakes. भगवान के गुणों का विशेष ज्ञान होने से जो भगवान में भक्ति होती है वह विद्या वन की पहली नदी है वैराग्य,ममता के त्याग, भगवत आराधना, भगवत दर्पण, ब्रमहैक तत्व बोध, क्रमशः दूसरी से छठी नदी है और सातवीं नदी है सिद्धि। और इन्हीं सात नदियों का संगम स्थल है वैकुंठ धाम। जो आत्म त्रप्त शांत और जितेंद्रिय होते है वहीं महात्मा इस मार्ग से परात्पर ब्रम्ह को प्राप्त करते हैं। Having special knowledge of the qualities of God, the devotion in God that is the first river of Vidya Van is Vairagya, renunciation of Mamta, Bhagavata worship, Bhagavata Darpan, Bramhaka element Bodh, the second is the sixth river and the seventh river respectively And the confluence of these seven rivers is Vaikunth Dham. Those who are self-satisfied, calm and alive, while the Mahatma attains Paratpar Brahma through this path. अतः इस संसार को दुखो का समुद्र समझकर इसकी तरफ से अत्यंत उद्विग्न हो जाना चाहिए ,उद्वेग से वैराग्य होता है वैराग्य से ज्ञान और ज्ञान से परमात्मा भगवान विष्णु को जानकर मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। Therefore, considering this world to be a sea of sorrows, one should be extremely excited on this behalf, one is disillusioned with excitement and by attaining enlightenment and by knowing the divine God Vishnu attains salvation. प्रकृति मेरी पत्नी है किन्तु मै कभी उसका चिंतन नहीं करता, नासिका,जिह्वा,नेत्र,त्वचा, कान, मन, और बुद्धि यह सात प्रकार की अग्नि सदैव मेरे अंदर प्रजवलित रहती है। Nature is my wife, but I never contemplate her, this seven types of fire always burns inside me, nasal, tongue, eye, skin, ear, mind, and intellect. गंध,रस,रूप,शब्द,स्पर्श,मंतव्य,और बोधव्य ये सात मेरी समिधाएं है होता भी नारायण है और वही ध्यान में उपस्थित होकर उस हविश का भक्षण करते हैं और ऐसे यज्ञ द्वारा अपनी इस गृहस्थी में परमेश्वर भगवान विष्णु का यजन करता हूं और किसी भी वस्तु की कामना नहीं करता मेरा स्वभाव राग द्वेष आदि से लिप्त नहीं हो सकता हे जननी आप मुझ पुत्र से दुखी मत हो मै तुमको उस पद पर पहुंचाऊंगा जहां सैकड़ों यज्ञ करके भी पहुंचना असम्भव है। Smell, juice, form, word, touch, intent, and perception are my seven problems! It is also Narayana and he is present in meditation and devours that Havish and through such a yajna I worship God Lord Vishnu in this family of my life and do not wish for anything, my nature cannot indulge in raga malice etc. Mother, do not be unhappy with my son, I will take you to the post where it is impossible to reach even after performing hundreds of yagyas. हे मां मै तो हमेशा ब्रम्हचर्य का आचरण करता हूं ब्रम्ह ही समिधा, अग्नि कुशास्तरण है जल भी ब्रम्ह है और गुरु भी ब्रम्ह है और यही मेरा ब्रम्हचर्य है। और अब मेरे गुरु का परिचय सुनो O Mother, I always conduct Brahmacharya, Brahma is the Samidha, fire is the Kushastharan, Water is also Brahm and Guru is also Brahm and this is my Brahmacharya. And now listen to the introduction of my mentor! मेरा एक ही शिक्षक है दूसरा कोई नहीं । ह्रदय में विराजमान अन्तर्यामी परमपुरुष ही शिक्षक बनकर शिक्षा देता है उनके सिवा कोई दूसरा गुरु नहीं है, वहीं परमात्मा मेरे गुरु है बंधु है माता पिता है और वही मेरे सबसे बड़े मित्र हैं इसलिए मै सिर्फ उनको ही नमस्कार करता हूं। I have only one teacher and no one else. In the heart, only the Supreme God, who is a teacher, teaches, apart from being a teacher, there is no other teacher except God, my Guru is a brother, he is a parent and he is my greatest friend, so I only greet him. अपने पुत्र की यह व्याख्यान सुनकर इतरा का मुंह खुला का खुला रह गया था कुमार ऐतरे य के अपना कथन समाप्त करते ही वहां अर्चाविग्रह से शंख चक्र गदा धारी भगवान विष्णु साक्षात प्रकट हो गए भगवान की कांति करोड़ों सूर्यो के समान दिव्य और प्रकाशमान थी वह अपनी प्रभा से सम्पूर्ण जगत को उदभासित कर रहे थे । On hearing this lecture of his son, Itra’s mouth was left open, after concluding his statement of Kumar Aitareya, there was a manifestation of Lord Vishnu in a conch-shaped mace with an incantation and the radiance of the Lord was divine and bright like crores sun He was revealing the entire world with Prabha(Lots of light). भगवान को देखते ही ऐतरेय दण्ड की भांति धरती पर उनके चरणों में लोट गए उनके शरीर में रोमांच हो गया नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे वाणी गदगद हो गई ,बुद्धिमान बालक ने प्रभु की स्तुति की, भगवान ने बालक से वर मांगने को कहा। On seeing God, Aitareya laid down straight, his body was thrilled, the tears flowed out of his eyes, the voice was awakened, the wise boy praised the Lord, God asked the child to ask for the boon. इस पर ऐतरेय ने कहा मेरा अभीष्ट वरदान यही है कि घोर संसार में डूबते हुए मुझ असहाय के लिए आप कर्णधार हो जाए। Aitareya said that this is my desired blessing! That you may be the helm of my helplessness while drowning in the great world. भगवान बोले हे वत्स तुम तो संसार सागर से मुक्त ही हो। मै आपको यह वरदान देता हूं कि आपके द्वारा दिए गए इस व्याख्यान को जो लोग मन से श्रवण करेगा उसके पाप कम होंगे जो मनन करेगा पाप नष्ट हो जाएगा और जो आत्मसात करेगा मानेगा वह मुक्त हो जाएगा मोक्ष प्राप्त करेगा। और जो तुमने स्त्रोत बनाकर स्तुति की है इस का गायन करेगा उसके सम्पूर्ण पाप का नाश हो जाएगा। यह आशीर्वाद देकर भगवान पुनः वासुदेव विग्रह में प्रवेश कर गए। God said that you are free from the ocean of the world. I give you the boon that those who listen to this lecture given by you will reduce their sins, those who meditate, sin will be destroyed, and whoever assimilates will be liberated and will attain salvation. And what you have praised by making a source will sing it and all its sins will be destroyed. By giving this blessing, God again entered the statue of god vishnu. उस समय माता के साथ बालक एकटक भगवान को जाते हुए देखता रह गया। माता तो बिना भक्ति के बिना प्रयास के सुपुत्र होने की वजह से भगवान के साक्षात दर्शन करके गदगद थी उनकी वाणी बन्द थी,बहुत देर के बाद उनकी वाणी लौटी तो अपने सुपुत्र को अपने आप से चिपका कर रोए जा रही थी पछताए जा रही थी कि मैंने तुमको क्या क्या नहीं बोला था। At that time, the child kept looking at God with God. Mother was unconcerned to see God without effort without devotion, her voice was closed, her voice was closed after a long time, when her voice returned after long time, her son was clinging to herself and crying and regretting that What didn’t you say?
निष्कर्ष : तो ऐसे ही लोग सुपुत्र की मांग नहीं करते, सुपुत्र हो तो वह मोक्ष भी दिला सकता है, जैसे ऐतरेय की माता को मोक्ष आवागमन जीवन मरण से मुक्ति मिली थी अस्तु।
ओम नमो भगवते वासुदेवाय
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