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यह चौपाई रामचरित मानस से ली गई है, आज इसका अर्थ जानते है !

यहां भक्त को एक अबोध बालक की संज्ञा देते हुए तुलसीदास जी कहते है कि जो व्यक्ति इस कर्म प्रधान मृत्युलोक में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उसके परिणामों को ईश्वर पर छोड़ देता है पूरी तरह से ईश्वर में ही संलग्न होते हुए ईश्वर पर ही आश्रित हो जाता है!

करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी। जिमि बालक राखइ महतारी॥

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This chaupai is the essence of all the scriptures of Sanatan Dharma, just as milk is made with curd, then it is churned and butter is removed and then it is heated and ghee is extracted. For this we explain here by giving you brief examples of some more texts.

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स वेदै तत परम ब्रह्म धाम यत्र विश्वम निहितं भांति शुभ्रम। उपासते पुरुषं ये ह्यकामा स्त्ते शुक्र मेत द ति वर्तन्ती धीरा:।

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अर्थात वह निष्कामभाव वाला पुरुष इस परम विशुद्ध प्रकाशमान ब्रह्म धाम स्वरूप परमेश्वर को जान लेता है जिसमे सम्पूर्ण जगत स्थित हुआ प्रतीत होता है जो भी कोई निष्काम साधक परम पुरुष परमेश्वर की उपासना करते हैं वे इस रजो वीर्य मय संसार का अति क्रमण कर जाते हैं। T

स वेदै तत परम ब्रह्म धाम यत्र विश्वम निहितं भांति शुभ्रम। उपासते पुरुषं ये ह्यकामा स्त्ते शुक्र मेत द ति वर्तन्ती धीरा:।

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That is, that malefic person knows God in the form of this perfect pure light Brahman Dham in which the whole world seems to be situated. Any soulless seeker who worships the ultimate male God, he becomes very proud of this world. T

विष्णु पुराण में ऋषि पुलस्त्य ने कहा है देखे सर्ग १ श्लोक

परमब्रह्म परमधाम यो असो ब्रह्म तथा परम। तमा आराध्य हरिम याति मुक्तिमप्य्यती दुर्लभाम।

अर्थात जो पर निर्गुण और अपर सगुण ब्रह्म है वहीं परम धाम है ऐसे उन हरि की आराधना करके मनुष्य अति दुर्लभ मोक्ष भी पा सकता है!

 ईश्वर उनकी रक्षा ठीक वैसे करते है जैसे एक माता अपने अबोध बालक के लिए करती है, बालक स्वयं शुशु करके अपना बिस्तर गीला करता है किन्तु उसको सर्दी न लग जाए 

इसलिए उसकी माता उसको सूखे में लिटाकर उसके शुशू वाले भाग में गीले में स्वयं लेट जाती है। खुद भूखी हो या प्यासी हो किन्तु बच्चे को अपने दूध से फीडिंग कराती है। खुद भूखी रहकर बच्चे को खाना खिलाती है!

God protects them in the same way as a mother does for her innocent child, the child starts his own bed wetting it, but he does not get cold so his mother lays him in the dry and lies in the wet part of his dry self.

. She herself is hungry or thirsty, but feeds the child with her milk. Being hungry, he feeds the child food!

इसीलिए कहा गया है कि कोई भी संतान कभी अपनी माता और पिता के ऋण से मुक्त नहीं होता है उसी प्रकार ईश्वर जिसने हमारी आत्मा को यह पंचतत्व से बना मानव शरीर देकर ईश्वर प्राप्ति का साधन दिया है और अगर हम उस शरीर का उपयोग उस नेक काम में करते है तो मुक्ति भी मिल सकती है।

आधा अधूरा ज्ञान सदैव घातक और भ्रामक होता है! गोस्वामी तुलसीदास की एक एक चौपाई अनेक ग्रथो के सार समेटे हुए है !  इसे जन सधारण की भाषा में पहुचाने के एक प्रयास है ! आशा है आपको पसंद आएगा!

सधन्यवाद पंडित विजय कुमार अवस्थी

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